मनुष्य की उत्पत्ति व सदाशिव
मानव उत्पत्ति के बारे में आदिकाल से ही मानव जिज्ञासु रहा हैं। वर्तमान युग में इस सिद्धान्त पर आधारित दो प्रकार की अवधारणा विद्यमान है। प्रथम दार्शनिक दृष्टिकोण द्वितीय वैज्ञानिक दृष्टिकोण। दोनो ही मानव विकास की कहानी को लेकर गहन अनुसंधान का परिणाम बताते है।

(अ) दार्शनिक दृश्टिकोण :- दर्शन शास्त्र ने सृष्टि के विकास व मानव मन की सृष्टि पर व्यापक अध्ययन किया है। इनकी मान्यता को अलग- अलग शब्दों में स्तरानुकुल परिभाषित करने की चेष्टा की गई है। विश्व में दर्शनशास्त्र मुख्यतः दो शाखाएॅ है। प्रथम पूर्वी भारतीय दृष्टिकोण व द्वितीय पश्चिमी युनानी दृष्टिकोण।

(१) भारतीय दृष्टिकोण:- भारतीय दर्शन की शाखा विस्तृत है। इस ने ईश्वर , सृष्टि, मन, नीति आदि तत्वों पर विस्तृत प्रकाश डाला है। मानव उत्पत्ति के संदर्भ में मात्र सृष्टि दर्शन की व्यख्या पर्याप्त है। मानव उत्पति के संदर्भ में भारतीय दो शाखाए है।
      (य.) वैदिक दर्शन :- वैदिक दर्शन शास्त्री सृष्टि उत्पत्ति के प्रश्न के निदानार्थ अध्ययन प्रक्रिया में वेदों के युग में                                        शोध पत्र जारी नहीं हो पाया। कालान्तर विश्व के प्रथम दार्शनिक कपिल के सांख्य दर्षन के बाद
                           में विभिन्न दर्शनो सृष्टि की उत्पत्ति के तथ्य पर प्रकाश डाला तथा मानव ने उपनिषद् युग में                                            दर्शन की गहराई में डुबकी लगाकर ज्ञात किया यह तथ्य खोजा की चेतनपुरूश से जड प्रकृति तथा                                उसे सूक्ष्म चेतन प्राण व क्रमिक विकास के अन्तिम क्रम में मानव की उत्पत्ति हुई।
      
       (र.) जैन दर्शन :- इसके अनुसार जिन नामक चेतन प्राण से जड़ की सृष्टि हुई उसे जद्गल जीन में प्राण का विकास                                    हुआ। इसी क्रम में मानव का सृजन हुआ।

       (ल.) बौद्ध दर्शन :- इसके अनुसार शुन्य बौद्धिसत्व से जडत्व तथा जडत्व से दुःखी जीव की चरम अवस्था में मानव                                    आया।

       (व.) पौरणाइक दर्शन :- इस दर्शन में विभिन्न देवताओं को केन्द्र मानव कर उनसे देवी तथा सृष्टि के विकास में ब्रह्मा                                           ने मानव को सभी प्राणियों की रक्षार्थ बनाया।

       (श.) शाक्त दर्शन  :- यह चेतन मॉ तीन चेतन पुरूश तथा उससे तीन प्रकृति तथा उसे सृश्टि  व मानव की सृजन                                             हुआ।

(२.) पश्चिमी युनानी दर्शन :-  इस दर्शन ने सृष्टि उत्पत्ति के विज्ञान को स्पष्ट नहीं करते हुए, एक बात स्वीकारी कि तत्व से ही विश्व आया। उसमें मानव ही उस तत्व का असली पहचान कृत है। ईसाई युहदी पारसी व इस्लाम ने दर्शन की बजाया नैतिक शिक्षा पर अधिक बल देता है  पर दर्शन की झलक सर्वोच्च सत से मानव के आने की बात करता है।
इस सब में एक बात उभयनिष्ठ है कि चेतन से पदार्थ व पदार्थ से पुनः चेतन तथा इसका चरम विकास ही मानव है। यद्यपि पुरूष को सभी में अलग-अलग प्रकार से परिभाषित किया है। प्रकृति को किसी ने प्रभावशाली तो किसी ने गौण बताया है। यह दर्शन विकास का क्रमिक विकास के विभिन्न स्तर का परिणाम है।
सदाशिव के जीवन के काल के बहुत बाद दर्शन शास्त्र का जन्म हुआ। सदाशिव ने तात्कालिन मानव के मन स्थिती देखकर इन झाल से दूर रहन की सलाह दी।

(ब.) वैज्ञानिक दृश्टिकोण :- विज्ञान के अनुसार पदार्थ(जड़) से जीव का सृजन हुआ है, विज्ञान पदार्थ सृजन की चार अवस्था का क्रम ठोस, द्रव, उष्मा व गैस निर्धारित कर चुका है। पर गैस कहा से आया। इस पर शोध पत्र जारी होना है, पर इतना सैद्धान्तिक रूप से स्पष्ट है। कि निर्वात में उपस्थित ईथर कण से गैस का सर्जन हो सकता है। ईथर कण ही वास्तविक निर्वात है। निर्वात कहा आया यह शोध होने के बाद स्पष्ठ हो जाएगा कि चेतन ही जड़ अवस्था में परिवर्तति हुआ। वैज्ञानिक सिद्धान्त के अनुसार वानर प्रजाति के बाद मानव की सृष्टि हुई।
इस प्रकार मानव उत्पत्ति के देनो सिद्धान्त में एक ही बात उभयनिष्ट है कि चैतन्य ही सृष्टि का आदिकारक है चैतन्य पर दर्शन ने तो काफी कुछ शोध कर दिया है विज्ञान के जानकारी में नहीं आ पाया है। मानव के विकास के बारे में दोनो ही एकमत है कि सभी जीवों अन्तिम व उन्नत प्रजाति मानव है।
आदि चैतन्य को भी दर्शन ने शिव नाम से अभिनिहित किया है। मानव उत्पत्ति के बाद के इतिहास क्रम में धातु युग के उतर में तथा सभ्यता युग पुर्वाद्ध में एक अति विकशीत चैतन्य युक्त मानव का जन्म हुआ। इस मानव ने पृथ्वी की मानव सभ्यता के विकास में अतुलनीय योगदान दिया। सृष्टि के अन्य बुद्धि सम्पन्न मानव से उस मानव की तुलना नहीं की जा सकती थी। वह मानव इतिहास में सदाशिव के नाम से जाना गया। सदाशिव का आगमन मानव के आने के कोटी युग बाद धरती पर हुआ। सदाशिव की वेश-भूषा व कार्य पद्धति उन्हें किसी आकाशीय देवता से अलग किसी वास्तविक पुरूष के रूप में चित्रित करती है। बडे दुःख की बात है कि इस महामानव को किसी सम्प्रदाय या मजबह विशेष का देवता समझ कर इस पर निश्पक्ष शोधपत्र जारी नहीं कर पाया है। इतिहास की इस महासम्भुति के साथ इतिहासकारों का किया गया। अन्याय है।
सदाशिव के महान योगादान के प्रति श्रृद्धा अर्पित करते हुए महान इतिहासकार श्री प्रभात रंजन सरकार ने उनकी स्मृति में कई प्रभात संगीत की रचना की है। साथ नमो शिवाय शान्ताय नामक पुस्तक की रचना कर सदाशिव की देन से मानव जाति को परिचित करवाया।
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   👉 लेखक:- करण सिंह राजपुरोहित उर्फ आनंद किरण
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