तृतीय विषय - प्राणायाम साधना में प्रगाढ़ कैसे बनें? (Third topic – How to become profound in Pranayama Sadhana?)

             आओ साधना करते हैं

​प्राण को आयाम देना ही प्राणायाम है। प्राण का आधार श्वास है, इसलिए प्राणायाम क्रिया में श्वास को जोड़ा जाता है, लेकिन प्राणायाम साधना का संबंध केवल श्वास-प्रक्रिया तक ही सीमित नहीं होता। प्राणायाम को सही आयाम देने के लिए एक आध्यात्मिक मानसिकता का होना आवश्यक है। प्राण जिस पर मनुष्य का जीवन निर्भर है, उसे आयाम प्रदान करने से मनुष्य का जीवन सफल, सुफल और फलीभूत होता है।

​चक्र-शोधन के बाद, उन्होंने प्रश्न किया कि "प्राणायाम साधना में प्रगाढ़ कैसे बनें?"

​मैंने उत्तर दिया, "प्राणायाम स्वयं प्राण को आयाम देने के लिए है। आप उसे आयाम दे दीजिए, प्राणायाम साधना में प्रगाढ़ हो जाएँगे।"

​उन्होंने पूछा, "यह कैसे?"

​मैंने कहा, "प्राण का संबंध केवल शरीर से नहीं है; यह मन और आत्मा से भी संबंधित है। अतः, वही प्राणायाम साधना कहलाती है, जिसमें मन और आत्मा का समर्थन एवं सहयोग हो।"

​उन्होंने इसे और सरल करके समझाने के लिए कहा।

​मैंने स्पष्ट किया, "प्राणायाम साधना में श्वास, मंत्र और भाव – इन तीनों का होना ही प्राणायाम को 'साधना' बनाता है। इसमें भी, भाव की प्रधानता प्राप्त करना ही प्राणायाम साधना में प्रगाढ़ होना है।"

​उन्होंने पूछा, "लेकिन यह कैसे संभव है?"

​मैंने समझाया, "प्राणायाम साधना में जब मन श्वास की ध्वनि को ग्रहण कर लेता है, तब प्राण-मंत्र (इष्ट-मंत्र) चैतन्यता प्राप्त करता है। जब मन चैतन्य मंत्र के भाव को ग्रहण कर लेता है, तब प्राण मन के नियंत्रण-क्षेत्र में आ जाता है। इस अवस्था को ही प्राणायाम साधना कहते हैं। जब प्राण मन में समा जाता है, तभी साधक प्राणायाम साधना में प्रगाढ़ हो जाता है। इसे ही मंत्र-सिद्धि कहते हैं। अर्थात्, मंत्र-सिद्धि ही प्राणायाम में प्रगाढ़ होना है।"

​उन्होंने इसका विज्ञान जानना चाहा।

​मैंने कहा, "साधना के आरंभ में साधक श्वास को अधिक महत्त्व (गुरुत्व) देता है। जैसे-जैसे वह गहराई में जाता है, वह गुरुत्व-बिंदु श्वास से हटकर इष्ट-मंत्र पर आ जाता है। तब वह अनुभव करता है कि अनंत प्राण अथवा अनंत चेतना उसके भीतर प्रवेश कर रही है और बाहर आ रही है। जैसे-जैसे उसका अभ्यास बढ़ता जाता है, उसका गुरुत्व-बिंदु भाव पर आ जाता है, और वह पाता है कि वह तथा अनंत चेतना एकाकार हो गए हैं। तब वह जन्म-मरण के चक्र से स्वयं को मुक्त पाने लगता है। यही प्राणायाम साधना का विज्ञान है।"

​उन्होंने फिर पूछा, "प्राणायाम साधना में शुद्धियाँ क्यों आवश्यक हैं?"

​इसके उत्तर में मैंने कहा, "हम हमारे आसपास जो देखते हैं, पाते हैं और जानते हैं, वही हम अपने भीतर भी पाते हैं। इसलिए, भूत-शुद्धि, आसन-शुद्धि एवं चित्त-शुद्धि आवश्यक है।"

​उन्होंने पूछा, "क्या शुद्धियों में भी कुछ विशेष है?"

​मैंने कहा, "शुद्धि तो अपने आप में विशेष ही है। उसको सदैव विशेष मानकर ही करना चाहिए।"

​उन्होंने जानना चाहा कि "जो बिना मंत्र और भाव के प्राणायाम करते हैं, उनका क्या भविष्य है?"

​मैंने कहा, "किसी का भविष्य बताना अथवा तय करना मेरा अधिकार-क्षेत्र नहीं है। यह परम ब्रह्म का कार्य है, इसलिए मैं इस पर मौन ही रहूँगा। मेरी चुप्पी को आप जैसा उचित समझें, वैसा समझ लेना।"

​तब उन्होंने एक गंभीर प्रश्न किया, "साधना में प्राणायाम क्यों किया जाता है?"

​मैंने उत्तर दिया, "साधना का लक्ष्य अनंत को साधना है। अनंत को अपने प्राण में भर देने से ही साध्य प्राप्त होता है।"


English Translation (अंग्रेजी अनुवाद)


​Giving dimension to Prana (life force) is Pranayama. Prana depends on breath, which is why breath is included in the Pranayama Kriya (action), but the practice of Pranayama Sadhana (spiritual discipline) is not limited only to the breathing process. It is essential to have a spiritual mindset to give the right dimension to Pranayama. Prana, on which human life depends, when given a dimension, makes a human life successful, fruitful, and actualized.

​After Chakra Shodhana (chakra purification), He asked, "How does one become profound in Pranayama Sadhana?"

​I replied, "Pranayama itself has come to give dimension to Prana. Give it that dimension, and you will become profound in Pranayama Sadhana."

​He asked, "How is that possible?"

​I said, "Prana's connection is not just physical; it is also related to the mind and the soul. Hence, that alone is called Pranayama Sadhana which has the support and cooperation of the mind and soul."

​He requested a simpler explanation.

​I clarified, "The presence of breath, Mantra (sacred chant), and Bhava (feeling/emotion) in Pranayama Sadhana is what makes it a 'Sadhana'. Within this, achieving the predominance of Bhava is to become profound in Pranayama Sadhana."

​He asked, "But how is this achieved?"

​I explained, "In Pranayama Sadhana, when the mind grasps the sound of the breath, then the Prana-Mantra (Ishta Mantra) achieves consciousness. When the mind grasps the Bhava of the conscious Mantra, then Prana comes under the control of the mind. This state is called Pranayama Sadhana. When Prana merges into the mind, the practitioner becomes profound in Pranayama Sadhana. This is called Mantra Siddhi (Mantra Perfection). That is, Mantra Siddhi is becoming profound in Pranayama."

​He asked about the science behind it.

​I said, "At the beginning of Sadhana, the practitioner gives more importance (gravity) to the breath. As they go deeper, that point of gravity shifts from the breath to the Ishta Mantra. Then they realize that the infinite Prana or infinite consciousness is entering and leaving them. As their practice increases, their point of gravity shifts to the Bhava, and they realize that they and the infinite consciousness have become one (Ekaakar). Then they begin to find themselves free from the cycle of birth and death. This is the science of Pranayama Sadhana."

​then he  asked, "Why are purifications (Shuddhis) necessary in Pranayama Sadhana?"

​In response, I said, "What we see, find, and know around us, we will find within ourselves. Therefore, physical purification (Bhuta-Shuddhi), posture purification (Asana-Shuddhi), and consciousness purification (Chitta-Shuddhi) are necessary."

​He asked, "Is there anything special about the purifications?"

​I replied, "Purification (Shuddhi) itself is special. It should always be performed considering it as special."

​He inquired, "What is the future of those who practice Pranayama without Mantra and Bhava?"

​I said, "It is not within my jurisdiction to tell or decide anyone's future. That is the work of the Supreme Brahman, so I will remain silent on this. You may interpret my silence as you deem fit."

​Then he posed a serious question, "Why is Pranayama performed in Sadhana?"

​I answered, "The goal of Sadhana is to realize the Infinite. The goal (Saadhya) is achieved by filling one's Prana with the Infinite."

Marwari Translation (मारवाड़ी अनुवाद)

​ तीसरो विषय - प्राणायाम साधना में गहिरो क्यूँ बणीजे?

​प्राण नै आयाम देणो ही प्राणायाम है। प्राण तो श्वास माथे ही निर्भर है, ईं खातिर प्राणायाम करण में श्वास नै जोडियो जावे है, पण प्राणायाम साधना रो संबंध खाली श्वास-क्रिया तक ही कोनी रेवे। प्राणायाम नै सही आयाम देण खातिर आध्यात्मिक सोच रो होणो जरूरी है। प्राण, जाके माथे मानखी रो जीवण टिकीयोड़ो है, अगर उणनै आयाम दियो जावे तो मानखी रो जीवण सफल, सोरो और फलदायी बणे।

​चक्र-शोधन करण पाछे, उणाँ पूछ्यो, "प्राणायाम साधना में गहिरो (प्रगाढ़) क्यूँ बणीजे?"

​मैँ जवाब दियो, "प्राणायाम तो खुद प्राण नै आयाम देण वास्ते आयो है। थे उणनै आयाम दे दो, तो प्राणायाम साधना में गहिरा बण जावोगा।"

​उणाँ पूछ्यो, "ईंको के तरीको है?"

​मैँ बोल्यो, "प्राण रो संबंध खाली सरीर स्यूँ कोनी; ईंको संबंध मन और आत्मा स्यूँ भी है। तो, वो ही प्राणायाम साधना कहलावे है, जाके में मन और आत्मा रो साथ (समर्थन) और सहयोग होवे।"

​उणाँ सरल भाषा में समझावण नै कह्यो।

​मैँ साफ बतायो, "प्राणायाम साधना में श्वास, मंत्र और भाव – ईं तीनाँ रो होणो ही प्राणायाम नै 'साधना' बणावे है। ईं में भी, भाव नै प्रधानता मिलणी ही प्राणायाम साधना में गहिरो होणो है।"

​उणाँ पूछ्यो, "पण ईंको उपाय के है?"

​मैँ समझायो, "प्राणायाम साधना में जद मन श्वास की आवाज नै पकड़ी लेवे है, तो प्राण-मंत्र (इष्ट-मंत्र) में चेतना आ जावे है। जद मन चेतन मंत्र रे भाव नै पकड़ी लेवे है, तो प्राण मन रे काबू (नियंत्रण) में आ जावे है। ईं हालत नै ही प्राणायाम साधना कहे है। जद प्राण मन में मिल जावे है, तद ही साधक प्राणायाम साधना में गहिरो बणे है। ईंनै ही मंत्र-सिद्धि कहे है। मतलब, मंत्र-सिद्धि ही प्राणायाम में गहिरो होणो है।"

​उणाँ ईंरो विज्ञान (साइंस) पूछ्यो।

​मैँ कह्यो, "साधना की शुरुआत में साधक श्वास नै ज्यादा महत्त्व (गुरुत्व) देवे है। ज्यूँ-ज्यूँ वो ऊँडो जावे है, वो गुरुत्व-बिंदु श्वास स्यूँ हट'र इष्ट-मंत्र माथे आ जावे है। तद वो महसूस करे है के अनंत प्राण या अनंत चेतना उणरे माँयने आई-जाई कर री है। ज्यूँ-ज्यूँ उणरो अभ्यास बधे है, उणरो गुरुत्व-बिंदु भाव माथे आ जावे है, और वो पावे है के वो और अनंत चेतना एक बणगा (एकाकार होग्या) है। तद वो आपनै जनम-मरण रे फेरा स्यूँ छूटतो महसूस करण लाग जावे है। यो ही प्राणायाम साधना रो विज्ञान है।"

​फेर उणाँ पूछ्यो, "प्राणायाम साधना में शुद्धियाँ (सफाई) क्यूँ जरूरी है?"

​ईं रे जवाब में मैँ कह्यो, "आपाँ आपरे आड़ो-पाड़ो जकी चीजाँ देखाँ, पावाँ और जाणाँगा, वो ही आपाँ आपरे भीतरे भी पावाँगा। ईं खातिर भूत-शुद्धि, आसन-शुद्धि और चित्त-शुद्धि जरूरी है।"

​उणाँ पूछ्यो, "के शुद्धियाँ में भी कोई खास बात है?"

​मैँ जवाब दियो, "शुद्धि तो आपरे आप में खास ही है। उणनै हमेसा खास मान'र ही करणी चाइजे।"

​उणाँ जाणणो चाह्यो के "जो बिना मंत्र और भाव रे प्राणायाम करे है, उणाँ रो के भावी (भविष्य) है?"

​मैँ कह्यो, "कोई रो भावी बताणो या तय करणो म्हारो काम कोनी है। यो तो परम ब्रह्म रो काम है, ईं खातिर मैँ ईं माथे चूप ही रेहूँगा। म्हारी चुप्पी नै थे जिको सही समझो, वो समझ लेजो।"

​तद उणाँ एक गंभीर सवाल कर दियो, "साधना में प्राणायाम क्यूँ करियो जावे है?"

​मैँ जवाब दियो, "साधना रो लक्ष्य अनंत नै पावणो है। अनंत नै आपरे प्राण में भर देण स्यूँ ही लक्ष्य मिल जावे है।"

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