आओ साधना करते हैं।
ध्यान की गहराई में जाने के विषय के बाद उनका प्रश्न चक्र शोधन पर आ गया। वह कहने लगे कि, "चक्र शोधन में कुशलता कैसे हासिल करें?"
चक्र शोधन साधना का अर्थ है चक्र को उसके मूल स्वरूप में देखना, जानना एवं पहचानना। अक्सर हमने सुना, पढ़ा अथवा हमें बताया जाता है कि चक्र 'ऐसा', 'यहाँ' तथा 'शक्ति केंद्र' होता है। लेकिन हम उसकी पहचान तभी कर पाते हैं, जब हम उसे जान लेते हैं। अतः चक्र शोधन में कुशलता प्राप्त करने के लिए आचार्य द्वारा बताई गई चक्र शोधन प्रणाली का अमल करते हुए निरंतर अभ्यास के माध्यम से यह उपलब्धि प्राप्त होती है।
मैंने कहा कि आप चक्र शोधन क्यों करना चाहते हैं? उन्होंने कहा कि पता नहीं, लेकिन मुझे यह करना है। मैंने कहा, "जब हम यह नहीं जानते कि चक्र शोधन साधना क्यों, तब तक चक्र शोधन साधना को कैसे जान पाते हैं।" उन्होंने कहा कि आप ही बता दो। मैंने कहा कि हमारी रुहानी यात्रा का पथ यही है, इसलिए चक्र शोधन आवश्यक है। उन्होंने पूछा, "हमारी यात्रा का पथ?" मैंने कहा, "हाँ, मूलाधार से सहस्रार तक गमन करना साधक का पथ है। इस पथ को बुहारना ही चक्र शोधन है।" उन्होंने कहा कि यह कैसे होता है, अर्थात् बुहारा कैसे जाता है? मैंने कहा कि बुहारने की दो गति होती है— प्रथम नीचे से ऊपर तथा द्वितीय ऊपर से नीचे। उन्होंने कहा कि ऐसा क्यों? मैंने कहा, "इसलिए कि चक्र संपूर्ण रूप से मार्जित (शुद्ध) हो जाता है।"
उन्होंने पूछा, "कैसे?" मैंने कहा कि :
• प्रथम स्थिति में चक्रों को चिन्हित करते हुए, उन्हें अपने होने का बोध कराया जाता है, जिससे चक्रों में सजीवता आती है तथा उन्हें फलने-फूलने व विकसित होने का पूर्ण अवसर मिलता है।
•• द्वितीय स्थिति में चक्र की शक्ति एवं सामर्थ्य प्रकट होता है, जिसे अपने में आत्मसात करना होता है, जिससे चक्र पूर्णतया शोधित होता है।
••• उन्होंने कहा कि यह सब कैसे होता है? मैंने कहा कि इसके लिए ईष्ट मंत्र की संगीतमय अभिव्यक्ति की आवश्यकता होती है, जिसके द्वारा प्रथम स्थिति में चक्र जागृत होते हैं तथा दूसरी स्थिति में नियंत्रित होते हैं, अर्थात् साधक के नियंत्रण में आते हैं। उन्होंने कहा कि ऐसा क्यों करना होता है? मैंने कहा, "अजागृत चक्र जीव-भाव को मुक्त होने नहीं देता है तथा अनियंत्रित चक्र शक्ति जीव-भाव को पथभ्रमित कर देती है।"
जागरण एवं नियंत्रण ही चक्र शोधन साधना का मूल है। इससे चक्र अपने मूल स्वरूप आनन्दधात्री शक्तिपीठ में आता है। अतः चक्र शोधन के साधक को आनन्द मार्गी होना आवश्यक है। बिना आनन्द मार्गी हुए चक्रों को मूल स्वरूप में प्रकट नहीं किया जा सकता।
चक्रों का मूल स्वरूप—आनन्ददायिनी अवस्था—साधक के समग्र विकास एवं कल्याण को कर पाती है। अतः सभी को आचार्य द्वारा बताई गई पद्धति से चक्र शोधन करना चाहिए।
English Translation
Come, let's practice Sadhana (Spiritual Discipline)
After the topic of how to delve into the depths of dhayan, their question shifted to Chakra Shodhana. They asked, "How to achieve proficiency in Chakra Shodhana?"
The practice of Chakra Shodhana means seeing, knowing, and recognizing the Chakra in its original form. We often hear, read, or are told that a Chakra is 'such', 'here', and a 'center of power'. But we can only truly identify it when we know it. Therefore, to achieve proficiency in Chakra Shodhana, this attainment is received through continuous practice while implementing the Chakra Shodhana system prescribed by the Acharya (Master).
I asked why they wanted to do Chakra Shodhana. They said they didn't know, but they felt they had to do it. I said, "If we don't know why we practice Chakra Shodhana, how can we truly know the practice?" They asked me to explain. I said that this is the path of our spiritual journey, and therefore, Chakra Shodhana is essential. They asked, "Our journey's path?" I said, "Yes, moving from Muladhara to Sahasrara is the path of the practitioner (Sadhaka). Clearing this path is what Chakra Shodhana is." They asked how this is done, that is, how is it cleared? I said that there are two movements for clearing—first from bottom to top and second from top to bottom. They asked why. I said, "Because the Chakra becomes completely cleansed (purified)."
They asked, "How?" I explained :
* In the first stage, by identifying the Chakras, they are made aware of their existence, which brings vitality to the Chakras and gives them a complete opportunity to flourish, bloom, and develop.
* In the second stage, the power and potential of the Chakra are revealed, which must be assimilated within oneself, thereby purifying the Chakra completely.
They asked how all this happens. I said that this requires the musical expression of the Ishta Mantra (personal deity mantra), by which the Chakras are awakened in the first stage and controlled in the second stage, meaning they come under the practitioner's control. They asked why this needs to be done. I replied, "Unawakened Chakras do not allow the Jiva Bhava (individual consciousness) to be liberated, and uncontrolled Chakra power misguides the Jiva Bhava."
Awakening and Control are the essence of Chakra Shodhana practice. Through this, the Chakra reaches its original form, the Anandadhatri Shaktipeeth (The Seat of Power that Nurtures Bliss). Therefore, a practitioner of Chakra Shodhana must be an Ananda Margi (one on the path of Bliss). Without being an Ananda Margi, the Chakras cannot be manifested in their original form.
The original form of the Chakras—the Bliss-Bestowing State—is capable of bringing about the overall development and welfare of the practitioner. Therefore, everyone should perform Chakra Shodhana using the method prescribed by the Acharya.
मारवाड़ी अनुवाद
आओ साधना करां
ध्यान री गहराई में जावण रा विषय पछे उणां रो सवाल चक्र शोधन माथे आयो। वे कहण लाग्या कि, "चक्र शोधन में कुशलता किण भांत हासिल करां?"
चक्र शोधन साधना रो मतलब है चक्र ने उणरै मूल रूप में देखणो, जाणणो अर ओळखणो। घणी वखत आपणै सुण्यो, पढ़्यो या बतायो जावै कि चक्र 'इयां', 'अठै' अर 'शक्ति रो केंद्र' होवै। पण आपां उणरी ओळख जद ई कर पावां, जद आपां उणने जाण लेवां। सो, चक्र शोधन में कुशलता पावण सारू आचार्य जी बताईड़ी चक्र शोधन री प्रणाली ने काम में लेवता थका लगातार अभ्यास रै जरिए ई आ उपलब्धि मिलै।
मैं कर्यो कि थे चक्र शोधन क्यूं करणो चाहो हो? उणां कर्यो कि ठा कोनी, पण म्हाने यो करणो है। मैं कर्यो, "जद आपां यो ई कोनी जाणां कि चक्र शोधन साधना क्यूं, तद तांई चक्र शोधन साधना ने किण भांत जाण पावां।" उणां कर्यो कि थे ई बता दो। मैं कर्यो कि म्हारी रुहानी यात्रा रो मारग यो ई है, इण सारू चक्र शोधन जरूरी है। उणां पूछ्यो, "म्हारी यात्रा रो मारग?" मैं कर्यो, "हाँ, मूलाधार सूं सहस्रार तांई जावणो साधक रो मारग है। इण मारग ने बुहारणो ई चक्र शोधन है।" उणां कर्यो कि यो किण भांत, मतलब बुहार्यो किण भांत जावै? मैं कर्यो कि बुहारण री दो चाल होवै—पैली नीचै सूं ऊपर अर दूजी ऊपर सूं नीचै। उणां कर्यो कि इयां क्यूं? मैं कर्यो, "इण सारू कि चक्र पूरी भांत सूं मार्जित (साफ) हो जावै।"
उणां पूछ्यो, "किण भांत?" मैं कर्यो कि :
* पैली स्थिति में चक्रां ने चिन्हित करता थका, उणां ने आपरै होवण रो बोध करावणो, जिण सूं चक्रां में जान आवै अर उणां ने फलणो-फूलणो अर विकसित होवण रो पूरो मौका मिलै।
* दूजी स्थिति में चक्र री शक्ति अर ताक़त परगट होवै, जिणने आपरै में आत्मसात करणो पड़ै, जिण सूं चक्र पूरो-पूरी शोधित हो जावै।
उणां कर्यो कि यो सगळो किण भांत होवै? मैं कर्यो कि इण सारू ईष्ट मंत्र री संगीत भरी अभिव्यक्ति री जरूरत होवै, जिण रै जरिए पैली स्थिति में चक्र जागृत होवै अर दूजी स्थिति में नियंत्रित होवै, मतलब साधक रै नियंत्रण में आवै। उणां कर्यो कि इयां क्यूं करणो पड़ै? मैं कर्यो, "अजागृत चक्र जीव-भाव ने मुक्त कोनी होवण देवै अर अनियंत्रित चक्र शक्ति जीव-भाव ने भटकता कर देवै है।"
जागरण अर नियंत्रण ई चक्र शोधन साधना रो मूळ है। इण सूं चक्र आपरै मूळ रूप आनन्दधात्री शक्तिपीठ में आवै। सो, चक्र शोधन रै साधक ने आनन्द मार्गी होवणो जरूरी है। बिना आनन्द मार्गी हुया चक्रां ने मूळ रूप में परगट कोनी कर्यो जा सकै।
चक्रां रो मूळ रूप—आनन्द देवण आळी अवस्था—साधक रै पूरै विकास अर कल्याण ने कर पावै है। सो, सगळां ने आचार्य जी बताईड़ी विधि सूं चक्र शोधन करणो चाहीजै।
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