आओ साधना करते हैं।
तत्व धारणा साधना वह प्रक्रिया है जिसमें साधक सृष्टि के पंच महाभूतों (पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, आकाश) को अपने मन में पूर्ण रूप से धारण करता है। यह सम्पूर्ण सृष्टि इन्हीं पंच तत्वों का सम्मिलित स्वरूप है, और मनुष्य सामान्यतः इनके प्रपंचों (विकारों और प्रभावों) में लिप्त रहता है। ये प्रपंच मनुष्य के मन पर गहरा प्रभाव डालते हैं। इस साधना का उद्देश्य इन्हीं प्रभावों से मुक्ति पाना और इन पंच महाभूतों की शुद्ध शक्ति को अपने मन में समाहित करना है।
प्राणायाम साधना पर चर्चा के बाद उन्होंने पूछा कि तत्व धारणा में दृढ़ कैसे बनें?
मैंने कहा कि पंच महाभूतों को अपने मन में धारण करके ही तत्व धारणा में दृढ़ता प्राप्त की जा सकती है। यह मन की सामर्थ्य वृद्धि और शक्ति विस्तार का मार्ग है।
तब उन्होंने कहा कि इतने विशाल पंचभूतों को मन में धारण करना कैसे संभव है? क्या यह केवल एक दार्शनिक कल्पना है?
मैंने कहा कि मन की शक्ति और सीमाएं भौतिकता से परे हैं। मन तो इन पंच महाभूतों से भी सूक्ष्म और विशाल है। जो चेतना इन तत्वों को रचती है, वह इन्हें धारण करने में भी सक्षम है। अतः तत्व को धारण करना असंभव नहीं है, बल्कि यह केवल चेतना के विस्तार का विषय है।
उन्होंने कहा कि मुझे दर्शन (फ़िलॉसफ़ी) मत पढ़ाओ, कोई व्यावहारिक (प्रैक्टिकल) और सीधी बात बताओ।
मैंने कहा कि व्यावहारिक रूप से, प्रत्येक तत्व का एक विशिष्ट आकार (Shape), एक निर्धारित स्थिति (Location/Seat), और एक विशेष रंग (Color) होता है। साधक को चाहिए कि वह एकाग्रता के साथ इन तत्वों को उनके निर्धारित स्थान, आकार और रंग सहित देखें (विज़ुअलाइज़ करें) और उन्हें अपने भीतर अनुभव करें। जब साधक इस प्रकार से गहन रूप से इन तत्वों को देखता और अनुभव करता है, तो तत्व की सम्पूर्ण शक्ति और सामर्थ्य उसके मन में स्वतः ही समाहित हो जाती है। इस अवस्था में, साधक यह गहन अनुभव करता है कि पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, और आकाश उसके भीतर ही स्थित हैं, और वह इन सब तत्वों से ऊपर (परे) एक साक्षी चेतना के रूप में स्थित है। यह अनुभव ही तत्व धारणा में दृढ़ता प्रदान करता है।
उन्होंने कहा कि लेकिन हमें यह अनुभव कैसे होगा कि तत्व की धारणा वास्तव में हो गई है? इसका क्या कोई प्रमाण या लक्षण है?
मैंने कहा कि यह साधना की बहुत गहरी और आंतरिक बात है। इसको जानने की इच्छा न रखना ही एक साधक के लिए अधिक उचित है, क्योंकि यदि यह लिया तो मन बार-बार उसी प्रतिफल (रिज़ल्ट) पर ध्यान केंद्रित करेगा। साधक का अधिकार केवल कर्म (साधना) पर है, उसके प्रतिफल (फल) पर नहीं। फल की आसक्ति जानने से मन में अधीरता और तड़प अधिक पैदा हो सकती है, जो एक एकाग्र साधक के मार्ग के लिए आवश्यक नहीं है। दृढ़ता का अनुभव स्वतः ही सहज रूप से आएगा।
उन्होंने कहा कि तत्व धारणा में दृढ़ता पाने के लिए मंत्रों का क्या महत्व है? क्या वे इस प्रक्रिया में सहायक हैं?
मैंने कहा कि यह बहुत ही अच्छा और इस समय का आवश्यक प्रश्न है। हाँ, मंत्रों का अत्यंत महत्व है। प्रत्येक तत्व का एक विशिष्ट बीज मंत्र (root Mantra) होता है। जब साधक इन मंत्रों का स्मरण करता है, और इसके साथ ही संबंधित तत्व के आकार, रंग, एवं प्रभाव को भी गहनता से स्मरण करता है, तो यह संपूर्ण साधना-यात्रा थोड़ी सरल, सुगम एवं आनंददायी बन जाती है। यह नीरस या केवल बौद्धिक यात्रा से सहस्त्र गुना अच्छा है कि साधना आनंद के रस (भाव) में डूबकर की जाए।
उन्होंने कहा कि क्या मंत्रोच्चारण (बोलकर जप) किया जा सकता है?
मैंने कहा कि स्मरण करने के लिए मन में ही उच्चारण (मानसिक) करना श्रेष्ठ है। साधना के इस चरण में ज़ोर से शाब्दिक उच्चारण (वाचिक जप) को अच्छा नहीं माना जाता, क्योंकि यह ध्यान को बाहरी जगत की ओर खींच सकता है।
उन्होंने कहा कि मंत्रोच्चारण एवं तत्व दर्शन में से ज्यादा महत्व किसको देना चाहिए?
मैंने कहा कि यद्यपि दोनों का महत्व साधना मार्ग में समान है, फिर भी तत्व दर्शन (गहन विज़ुअलाइज़ेशन और अनुभव) स्मरण (मंत्र जप) से अधिक प्रभावी सिद्ध होता है। अतः साधक को चाहिए कि वह निःप्रभाव (बिना किसी बाहरी प्रभाव या विकार के) और भावशून्य (शांत, समतापूर्ण भाव में) होकर, तत्व के मूल स्वरूप को देखने (साक्षात्कार करने) में अधिक गुरुत्व (महत्व) दे। इस प्रकार हम तत्व धारणा में सहजता और निश्चितता के साथ दृढ़ हो जाएँगे।
प्रस्तुति : आनन्द किरण
Come, let's spiritual practice (Sadhana).
Tattv Dharana Sadhana is the process in which the practitioner fully grasps the five fectors of creation (earth, water, fire, air, and space) in their mind. The entire universe is a composite of these five factors, and humans are generally entangled in their illusions (distortions and influences). These illusions have a profound impact on the human mind. The purpose of this practice is to free themselves from these influences and to incorporate the pure power of these five elements into their mind.
After discussing Pranayama Sadhana, he asked how to become firm in Elemental Dharana.
I said that firmness in Elemental Dharana can only be achieved by grasping the five elements in one's mind. This is the path to increasing the strength and expanding the power of the mind.
Then he asked, how is it possible to grasp such a vast array of five elements in the mind? Is this merely a philosophical fantasy?
I said that the power and limitations of the mind transcend physicality. The mind is even more subtle and vast than the five elements. The consciousness that creates these elements is also capable of holding them. Therefore, holding the elements is not impossible; it is merely a matter of expanding consciousness.
He said, "Don't teach me philosophy; tell me something practical and straightforward."
I said that practically, each element has a specific shape, a specific location, and a specific color. The seeker should visualize these elements with concentration, in their designated position, shape, and color, and experience them within themselves. When the seeker sees and experiences these elements deeply in this way, the full power and potential of the element is automatically absorbed into their mind. In this state, the practitioner deeply experiences that earth, water, fire, air, and space are within them, and that they exist above all these elements as a witness consciousness. This experience provides firmness in elemental perception.
He asked, "But how do we realize that elemental perception has actually occurred? Is there any proof or sign of this?"
I said that this is a very deep and intrinsic aspect of spiritual practice. It is best for a practitioner to avoid the desire to know this, because if they do, the mind will repeatedly focus on the same result. A practitioner's authority is only on the action (sadhana), not on its result. Knowing attachment to the result can create more impatience and yearning in the mind, which is not necessary for the path of a concentrated practitioner. The experience of firmness will come naturally and spontaneously.
He asked, "What is the importance of mantras in gaining firmness in elemental perception? Are they helpful in this process?"
I said that this is a very good and urgent question at this time. Yes, mantras are extremely important. Each element has a specific seed mantra (root mantra). When the practitioner remembers these mantras, and also deeply remembers the shape, color, and effect of the corresponding element, the entire spiritual journey becomes a little simpler, easier, and more enjoyable. It is a thousand times better to perform sadhana immersed in the essence of bliss (bhaav) than a dull or merely intellectual journey.
He asked, can chanting mantras (japa) be done verbally?
I said that chanting them mentally (mentally) is best for memorization. Vocal chanting is not considered good at this stage of sadhana, as it can draw attention away from the external world.
He asked, which should be given more importance: chanting mantras or philosophy?
I said that although both are equally important on the path of spiritual practice, deep visualization and experience proves more effective than remembrance (chanting mantras). Therefore, the practitioner should focus more on seeing (realizing) the essence of the essence, remaining neutral (without any external influences or distractions) and emotionless (in a calm, equanimous state). In this way, we will become firmly established in the essence of the essence with ease and certainty.
Presented by Anand Kiran
*चलो अभ्यास करां।*
तत्व धारणा यह साधना वा प्रक्रिया है जिण मांय अभ्यास करण आळा आपरै मन मांय सृष्टि रा पांच तत्वां (पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु अर अंतरिक्ष) नै पूरी तरह सूं पकड़ लेवै है। आखो ब्रह्माण्ड इण पांच तत्वां रो एक मिश्रण है अर मिनख आम तौर सूं आपरै भ्रम (विकृतियां अर प्रभाव) रै मांय उलझ जावै है। आं भ्रमां रो मिनख रै मन माथै घणो असर पड़ै। इण अभ्यास रो उद्देश्य खुद नै इण प्रभावां सूं मुक्त करणो अर इण पांच तत्वां री शुद्ध शक्ति नै आपरै मन रै मांय समाहित करणो है।
प्राणायाम साधना री चर्चा करियां पछै बां पूछ्यो कै तत्व धरण मांय दृढ़ता कियां बणी है।
म्हैं कैयो कै तत्व धरना मांय दृढ़ता तो पांच तत्वां नै मन मांय पकड़’र ई प्राप्त करी जा सकै है। मन री ताकत नै बढ़ाबा अर बांनै विस्तारित करण रो ओ ई मारग है।
फेर बो पूछ्यो, मन रै मांय पांच तत्वां री इतणी विशाल श्रृंखला नै पकड़णो कियां संभव है? कांई आ फगत दार्शनिक कल्पना है?
म्हैं कैयो कै मन री ताकत अर सीमावां भौतिकता सूं परे है। मन पांच तत्वां सूं भी ज्यादा सूक्ष्म अर विशाल है। आं तत्वां नै बणाबा आळी चेतना भी बांनै पकड़बा में सक्षम है। इण वास्तै, तत्वां नै पकड़णो असंभव कोनी है; ओ तो फगत चेतना नै विस्तारित करण रो मामला है।
बां कैयो, "म्हानै दर्शन मत सिखाओ; म्हनै कीं व्यावहारिक अर सीधो-सादो बताओ।"
म्हैं कैयो कै व्यावहारिक रूप सूं हरेक तत्व रो एक खास आकार, एक खास ठिकाणो अर एक खास रंग हुया करै है। साधक नै इण तत्वां नै एकाग्रता रै साथै, बांरी निर्धारित स्थिति, आकार अर रंग रै मांय देखणो चाइजै अर बांनै खुद रै मांय अनुभव करणो चाइजै। जद साधक इण तरीकै सूं आं तत्वां नै गहराई सूं देखै अर अनुभव करै है तो उण तत्व री पूरी ताकत अर क्षमता आपोआप बां रै मन मांय समा जावै है। इण अवस्था रै मांय, अभ्यास करण आळा नै गहराई सूं अनुभव हुवै है कै धरती, पाणी, अग्नि, वायु अर अंतरिक्ष बां रै मांय है अर वै एक साक्षी चेतना रै रूप मांय आं सगळा तत्वां रै ऊपर मौजूद है। यो अनुभव मूलभूत धारणा रै मांय दृढ़ता प्रदान करै है।
उण पूछ्यो, "पण आपां ओ कियां समझ सकां कै तत्व धारणा वास्तव में हुई है? कांई इण रो कोई सबूत या संकेत है?"
म्हैं कैयो कै ओ आध्यात्मिक अभ्यास रो एक घणो गहरो अर आंतरिक पहलू है। एक चिकित्सक रै वास्तै आ बात जाणबा री इच्छा सूं बचणो ही चोखो है, क्यूंकै जे वै करैला तो मन बार-बार एक ई परिणाम माथै ध्यान केन्द्रित करैला। एक चिकित्सक रो अधिकार फगत क्रिया (साधना) माथै हुवै है, उणरै परिणाम माथै नीं। परिणाम रै प्रति लगाव नै जाणणो मन रै मांय और अधीरता अर तड़प पैदा कर सकै है, जो एक एकाग्र अभ्यास करण आळा रै मारग रै वास्तै जरूरी कोनी है। दृढ़ता रो अनुभव स्वाभाविक रूप सूं अर सहज रूप सूं आवैला।
उण पूछ्यो, "तत्व री धारणा रै मांय दृढ़ता प्राप्त करण रै वास्तै मंत्रां रो कांई महत्व है? कांई वै इण प्रक्रिया मांय मददगार है?"
म्हैं कैयो कै ओ इण बगत घणो आछो अर जरूरी सवाल है। हां, मंत्र घणा जरूरी है। हरेक तत्व रो एक विशिष्ट बीज मंत्र (मूल मंत्र) होवै है। जद अभ्यास करण आळा नै आं मंत्रां नै याद रैवै है, अर साथै ई संबंधित तत्व रै आकार, रंग अर प्रभाव नै भी गहराई सूं याद राखै है, तो आखी आध्यात्मिक यात्रा थोड़ी सरल, आसान अर आनंददायक हो जावै है। नीरस या सिरफ बौद्धिक यात्रा सूं बेसी आनंद (भाव) रै सार मांय डूब्योड़ो साधना करणो हजार गुणा चोखो है।
उण पूछ्यो, कांई मंत्र (जप) रो जाप मौखिक रूप सूं कर्यो जा सकै है?
म्हैं कैयो कै बांनै मानसिक रूप सूं (मानसिक रूप सूं) जापणो रटबा रै वास्तै सबसूं आछो है। साधना रै इण पड़ाव माथै मुखर जप नै आछो नीं मानीजै, क्यूंकै इणसूं बारै री दुनिया सूं ध्यान हटायो जा सकै है।
बां पूछ्यो, किण नै ज्यादा महत्व दियो जावै: मंत्र जाप करणो कै दर्शन?
म्हैं कैयो कै भलांई आध्यात्मिक अभ्यास रै मारग माथै दोनूं ई समान रूप सूं महताऊ है, पण गहरी कल्पना अर अनुभव स्मरण (मंत्र जाप) सूं बेसी प्रभावी साबित हुवै है। इण वास्तै, अभ्यास करण आळा नै सार रै सार नै देखण (साकार करण) माथै ज्यादा ध्यान देवणो चाइजै, तटस्थ (बिना किणी बाहरी प्रभाव या व्याकुलता रै) अर भावनाहीन (शांत, समतुल्य अवस्था में) रैवणो चाइजै। इण भांत आपां सहजता अर निश्चितता रै साथै सार रै सार मांय पक्को थरप जावांला।
प्रस्तुत आनन्द किरण
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