चर्याचर्य के अनुसार आनन्द मार्ग की प्रशासनिक व्यवस्था (The administrative system of Anand Marg According to C.C.)



आनन्द मार्ग प्रचारक संघ की सर्वोच्च इकाई पुरोधा बोर्ड है। पुरोधा बोर्ड के सहयोग के लिए केन्द्रीय इकाई गठन किया जाता है। जिसके अध्यक्ष पुरोधा प्रमुख ही होते हैं। वे चाहे तो किसी ओर को एक निश्चित अवधि के लिए अध्यक्ष का दायित्व दे सकते हैं। चूंकि पुरोधा बोर्ड सर्वोच्च इकाई होने के कारण हम पुरोधा को समझने के लिए रुकेंगे। 

आचार्य, तात्विक एवं पुरोधा

आनन्द मार्ग प्रचारक संघ के दर्शन एवं आदर्श के प्रचार एवं मनुष्य के जीवन निर्माण के कौशल में दक्ष करने के लिए तीन आध्यात्मिक अति विशिष्ट मानवों की रचना की गई है। जिसमें पहला पुरोधा, द्वितीय आचार्य एवं तृतीय तात्विक है।

(१) तात्विक - तात्विक शब्द का शाब्दिक अर्थ तत्व का ज्ञाता एवं दृष्टा है। जो व्यक्ति तीक्ष्ण बुद्धि का है। दर्शन एवं आदर्श को जानकर तथा देखकर दूसरों उसे समझाने में सक्षम हो इन्हें तात्विक की शिक्षा दी जाती है। आनन्द मार्ग चर्याचर्य प्रथम खंड के अध्याय २ के अनुसार इन्हें तात्विक बनने पूर्व कम से कम 20 लोगों को अथवा विशेष परिस्थिति में 5 को आध्यात्मिक भावधारा में प्रवाहित करने का कार्य करना होता है। आनन्द मार्ग चर्याचर्य प्रथम खंड के अध्याय ३७ के अनुसार इन्हें उपयुक्त योग्यता सम्पन्न व्यक्तिविशेष के पास शिक्षा लेकर पांच तात्विकों के पैनल के समक्ष परीक्षा देनी होती है। उसी के फलाफल के आधार तात्विक पर्षद अभिज्ञान पत्र देता है। जिसमें रजिष्टर्ड नंबर के साथ परीक्षकों के हस्ताक्षर होते हैं।

तात्विक पर्षद - आनन्द मार्ग चर्याचर्य प्रथम खंड के अध्याय ४० के अनुसार तात्विक संबंधी समस्त नियम, कानून, शास्ति, अनुशासन एवं अन्य सबकुछ निर्धारित करने के लिए एक तात्विक पर्षद का गठन किया गया है। जिसमें एक सचिव सहित 12 तात्विक होते हैं। तात्विक पर्षद द्वारा गृहीत सिद्धांत अंतिम अनुमोदन के लिए आचार्य पर्षद की सिफारिश के साथ पुरोधा प्रमुख के पास प्रेषित किया जाता है।

(२) आचार्य - आचार्य शब्द का शाब्दिक अर्थ आचरण से दूसरों को प्रभावित करने वाला। आनन्द मार्ग चर्याचर्य प्रथम खंड के अध्याय २ के अनुसार जो व्यक्ति निष्ठावान, तेजस्वी  व तीक्ष्ण बुद्धि का है। दर्शन एवं आदर्श को समझ एवं समझा सकता हो इन्हें आचार्य होने के योग्य समझा जाता है।  आनन्द मार्ग चर्याचर्य प्रथम खंड के अध्याय ३७ के अनुसार इन्हें उपयुक्त योग्यता सम्पन्न व्यक्तिविशेष के पास शिक्षा लेकर पांच आचार्यों के पैनल के समक्ष परीक्षा देनी होती है। उसी के फलाफल के आधार आचार्य पर्षद अभिज्ञान पत्र देता है। जिसमें रजिष्टर्ड नंबर के साथ परीक्षकों के हस्ताक्षर होते हैं।

आचार्य पर्षद - आनन्द मार्ग चर्याचर्य प्रथम खंड के अध्याय ३९ के अनुसार आचार्य संबंधी समस्त नियम, कानून, शास्ति, अनुशासन एवं अन्य सबकुछ निर्धारित करने के लिए एक आचार्य पर्षद का गठन किया गया है। जिसमें एक सचिव सहित 8 आचार्य होते हैं। आचार्य पर्षद द्वारा गृहीत सिद्धांत अंतिम अनुमोदन के लिए  पुरोधा प्रमुख के पास प्रेषित किया जाता है।

(३) पुरोधा - आनन्द मार्ग चर्याचर्य प्रथम खंड के अध्याय २ के अनुसार  जिन आचार्यों के कम से कम ५०० शिक्षा भाई है ओर इन आचार्यों में से जो दुरुह विशेष योग में अभिज्ञ है। वे पुरोधा की शिक्षा पाने के योग्य है। आनन्द मार्ग चर्याचर्य प्रथम खंड के अध्याय ३७ के अनुसार इन्हें उपयुक्त योग्यता सम्पन्न व्यक्तिविशेष के पास शिक्षा लेकर पांच पुरोधाओं के पैनल के समक्ष परीक्षा देनी होती है। उसी के फलाफल के आधार पुरोधा पर्षद अभिज्ञान पत्र देता है। जिसमें रजिष्टर्ड नंबर के साथ परीक्षकों के हस्ताक्षर होते हैं।

पुरोधा पर्षद - आनन्द मार्ग चर्याचर्य प्रथम खंड के अध्याय ३७ के अनुसार पुरोधा संबंधी समस्त नियम, कानून, शास्ति, अनुशासन एवं अन्य सबकुछ निर्धारित करने के लिए एक पुरोधा पर्षद का गठन किया गया है। जिसमें एक सचिव सहित 4 पुरोधा होते हैं। पुरोधा पर्षद द्वारा गृहीत सिद्धांत अंतिम अनुमोदन के लिए  पुरोधा प्रमुख के पास प्रेषित किया जाता है।

पुरोधा प्रमुख - आनन्द मार्ग चर्याचर्य प्रथम खंड के अध्याय ३७ के अनुसार पुरोधाओं के वोट से पुरोधा प्रमुख को चुनने की व्यवस्था है। चुने गए पुरोधा प्रमुख आजीवन पद बने रहते है लेकिन वंशानुगत नहीं है। इनको पदच्युत करने की कोई व्यवस्था नहीं है तथा किसी को यह अधिकार भी नहीं है। (यद्यपि चर्याचर्य व अन्य कही में उल्लेख नहीं है लेकिन संभवतया मार्ग गुरुदेव को यह अधिकार है।) लेकिन स्वयं पुरोधा प्रमुख चाहे तो बीमारी अथवा अन्य किसी कारण से पदमुक्त हो सकते हैं।

आनन्द मार्ग प्रचारक संघ की प्रशासनिक व्यवस्था

आनन्द मार्ग प्रचारक संघ के सार्वभौमिक प्रचार के उद्देश्य निम्न प्रकार  की प्रशासनिक व्यवस्था आनन्द मार्ग चर्याचर्य भाग प्रथम में मिलती है।

(१) पुरोधा प्रमुख - आनन्द मार्ग प्रचारक संघ के सर्वोच्च पदाधिकारी पुरोधा प्रमुख के नाम से अभि निहित है। यह  आजीवन पद पर बने रहते है। इन्हें पदच्युत करने की कोई व्यवस्था नहीं है। मात्र मृत्यु अथवा स्व:इच्छा ही उन्हें पदमुक्त कर सकती है। 

(२) पुरोधा बोर्ड - पुरोधा प्रमुख के सहयोग के लिए एक पुरोधा बोर्ड होता है। आनन्द मार्ग चर्याचर्य प्रथम खंड के अध्याय ३७ के अनुसार जिसमें पुरोधा प्रमुख के अलावा तीन अन्य सदस्य होते हैं। जिसका चुनाव पुरोधाओं द्वारा 5 वर्ष के लिए चुनने जाते हैं। यह 5 वर्ष के बाद स्वत: ही कार्यमुक्त हो जाते हैं। अन्य वैकल्पिक व्यवस्था मृत्यु व स्व:इच्छा एवं अधिकांश पुरोधाओं की असंतुष्टि को पुरोधा प्रमुख की स्वीकृति मिलने से हैं। 

(३) केन्द्रीय संस्था - आनन्द मार्ग चर्याचर्य प्रथम खंड के अध्याय ३६ के अनुसार केन्द्रीय संस्था का चुनाव पुरोधाओं द्वारा किया जाता है। इसके अध्यक्ष पुरोधा प्रमुख होते हैं। वैकल्पिक व्यवस्था के तहत वे किसी अन्य को एक निश्चित समयावधि के इस पद पर नियुक्त कर सकते हैं। केन्द्रीय संस्था का अध्यक्ष अपने इच्छानुसार केन्द्रीय कार्य समिति एवं केन्द्रीय कार्यकारणी समिति का गठन करेंगे। प्रथम में 15 से 60 के बीच तथा द्वितीय में इच्छानुरूप सदस्य संख्या होती है। कार्यकारणी में केन्द्रीय संस्था के सदस्यों को लेना होता है लेकिन अध्यक्ष महसूस करें तो तीन सदस्य बाहर से भी ले सकते हैं। इनके कार्य अवधि केन्द्रीय संस्था तय करती है।

(४) राज्य समिति और देश समिति प्रभृति - जिला एवं केन्द्रीय समिति के बीच आवश्यकता होने पर प्रदेश, राज्य एवं देश समिति का गठन किया जा सकता है। इसके चैयरमेन का चुनाव केन्द्रीय संस्था के प्रेसीडेन्ट द्वारा किया जाता है तथा यह चैयरमेन आचार्य एवं तात्विकों को लेकर कार्यकारणी समिति का गठन करेंगे तथा आवश्यकता होने पर साधारण समिति का भी गठन कर सकेंगे। इसमें भी आचार्य एवं तात्विक लेने का प्रावधान है लेकिन योग्य व्यक्ति नहीं मिलने पर अन्य व्यक्ति लिया जा सकता है। इसके संख्या निर्धारित करने का इनके चैयरमेन के पास ही है। इनकी कार्यावधि केन्द्रीय संस्था द्वारा ही तय की जाएगी। यह एक वैकल्पिक व्यवस्था है लेकिन इसे स्थायी किया जा सकता है।

(५) जिला समिति - भुक्ति प्रधान अध्याय से
आनन्द मार्ग चर्याचर्य खंड १ के अध्याय ३ के अनुसार 

भुक्ति एवं भुक्ति प्रधान
(Bhukti and B. P.) 
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 आनन्द मार्ग प्रचारक संघ ने भारतवर्ष की प्रशासनिक इकाई जिला तथा बरतानिया की काउंटी जैसी इकाइयों को भुक्ति घोषित किया है। इसमें आनन्द मार्ग प्रचारक संघ के सचिव को भुक्ति प्रधान नाम दिया गया है। यह आनन्द मार्ग प्रचारक संघ की सबसे गुरुत्व पूर्ण इकाई है। इसलिए इसका अध्ययन करते हैं। सबसे पहले भुक्ति एवं भुक्ति प्रधान के कर्तव्य एवं दायित्व का अध्ययन करेंगे।

भुक्ति प्रधान के कर्तव्य एवं उत्तरदायित्व

आनन्द मार्ग चर्याचर्य खंड १ के अध्याय के अनुसार भुक्ति प्रधान के उत्तरदायित्व एवं कर्तव्य को अध्ययन की सुविधा के निम्न वर्गों में रखकर देखते हैं। 

(१) सामाजिक कर्तव्य - आनन्द मार्ग एक मानव समाज बनाने के लिए आया है। इसलिए सर्वप्रथम सामाजिक कर्तव्य पर विचार करते हैं। जन्म, जातकर्म, विवाह, प्रीतिभोज, नारायण सेवा, विवाह विच्छेद, मृत्यु, श्राद्ध और दीक्षादान के सभी रिकॉर्ड रखने होते हैं।

(२) आध्यात्मिक कर्तव्य - जागृति, ध्वज, प्रतीक और प्रतिकृति की पवित्रता की रक्षा करना। इसमें जागृति सचिव एवं अन्य की सहायता लेने का प्रावधान है। दीक्षादान भी एक आध्यात्मिक कर्तव्य है।

(३) न्यायिक दायित्व - सभी प्रकार के दीवानी और फौजदारी विवादों को निपटाना। इसके लिए वादी व प्रतिवादी को सदविप्र में से एक वकिल देने की व्यवस्था करेंगे। यह वकील निशुल्क अथवा भुक्ति की ओर पारिश्रमिक पाएगा।

(३) संस्थागत दायित्व - निरीक्षण, सेमिनार, कार्यकलाप, उपयोग ओर पर्षद के लिए उत्तरदायी बनाया गया है। यह इसमबु विभाग के कार्य है।

(४) सामान्य दायित्व - सामाजिक एकता की मजबूती को बरकरार रखना। इसके लिए सामूहिक हित को व्यक्तिगत हित से आगे रखना है। आनन्द मार्ग के जनकल्याण योजनाओं एवं कार्यक्रमों के कार्यान्वयन के लिए रूपये, समान, मानवशक्ति और भौतिक एवं बौद्धिक शक्तियों में सहायता करनी है। सोलह विधि से विचलित होने के आरोप पर अनुशासनिक कार्यवाही करने का प्रावधान है। इसमें भुक्ति कार्यकारणी की सलाह का प्रावधान है।

कर्तव्य एवं दायित्व का सीमांकन

पुरोधा प्रमुख भुक्ति प्रधान के कर्तव्यों एवं उत्तरदायित्व को घटा-बढ़ा सकते हैं। इसमें केन्द्रीय पुरोधा पर्षद की सलाह ले भी सकते हैं तथा नहीं भी ले सकते हैं।

भुक्ति प्रधान को प्रोत्साहन - भुक्ति प्रधान को मात्र उत्तरदायित्व एवं कर्तव्यों की डोर में ही नहीं बांधा है। उनके अच्छे कार्य के लिए प्रोत्साहित भी किया गया है। आनन्द मार्ग चर्याचर्य खंड १ के अध्याय ४ के अनुसार किसी भुक्ति प्रधान के अन्तर्गत सर्वाधिक प्रथम श्रेणी की आनन्द मार्ग प्रचारक संघ की समितियाँ है तो वह एक अर्द्ध वर्ष के दुनिया में होक्षतो जीवमित्रम् तथा सेक्टर में होने पर समाजमित्रम् के नाम उपाधि दी जाती है। यह उपाधि इस उपाधिधारी नया व्यष्टि नहीं आने तक रहेगी। अर्थात एक अर्द्ध वर्ष अधिक समय तक भी रह सकती है।यदि कोई व्यक्ति चार अर्द्ध वर्ष के लिए इस पदों के लिए रहने पर, वह स्थायी समाजमित्रम् अथवा जीवमित्रम् बन जाता है। स्थायी पदवीधारी यह व्यष्टि आजीवन यह उपाधि नाम के आगे धारण करेंगा लेकिन वंशानुगत नहीं। समाजमित्रम् व जीवमित्रम् का समाज में आचार्य के समान सम्मान मिलेगा। उनके विरूद्ध अनुशासनात्मक कार्यवाही की आवश्यकता होने पर पुरोधा ही कार्यवाही करने का अधिकार है। यह विशेषाधिकार भी प्राप्त है। यदि इस पदवियों की योग्यता रखने वाला भुक्ति प्रधान गृही आचार्य अथवा तात्विक है तो वह समाजमित्रम् के स्थान पर स्मार्त्त तथा जीवमित्रम् के स्थान पर धर्ममित्रम् पदवी धारण करेंगे। स्थायी पदवीधारी ऐसे व्यष्टि भुक्ति प्रधान ग्रहण नहीं कर सकते हैं।

भुक्ति प्रधान की योग्यता- एक शिक्षित गृही सदविप्र इस पद का अधिकारी है। आचार्य एवं तात्विक होना आवश्यक नहीं। 

भुक्ति प्रधान का कार्यकाल - तीन वर्ष। 

भुक्ति प्रधान का चुनाव एवं मतदाता - भुक्ति क्षेत्र के गृही सदविप्र अपने मत से भुक्ति प्रधान का चुनाव करेंगे। एक होने पर भी मतदान आवश्यक है। संभवतया 50 प्रतिशत + 1 मत अनिवार्य है।

भुक्ति समिति - आनन्द मार्ग चर्याचर्य खंड १ के अध्याय ३ के अनुसार भुक्ति प्रधान के सहयोग एवं सलाह के लिए दो प्रकार भुक्ति समितियाँ बताई गई है। 
(१)भुक्ति सामान्य  समिति - अधिकतम 25 एवं न्यूनतम 15 सदस्यों की सदविप्र में से तथा सदविप्रों के द्वारा एक भुक्ति सामान्य समिति का गठन करेंगे। इस समिति का अध्यक्ष भुक्ति प्रधान होगा। 

(२) भुक्ति कार्यकारणी समिति - इसका गठन भुक्ति प्रधान द्वारा अपने विवेक से करेगा। इसमें सदस्यों संख्या भी भुक्ति प्रधान के विवेक के अधीन है। इसमें अधिकतम तीन सदस्य भुक्ति सामान्य समिति के बाहर के सदविप्र होंगे।

(६) प्रखण्ड समिति - उपभुक्ति अध्याय से

उपभुक्ति एवं उपभुक्ति प्रमुख

आनन्द मार्ग चर्याचर्य भाग प्रथम के अध्याय ६ के अनुसार आनन्द मार्ग प्रचारक संघ के एक ओर महत्वपूर्ण इकाई की व्यवस्था दी गई है। जिसे उपभुक्ति नाम दिया गया है तथा इसका प्रमुख उपभुक्ति प्रमुख (UBP) के नाम से जाना जाता है।

उपभुक्ति - प्रखण्ड (block) अथवा प्रखण्ड व म्युनिसिपेलिटी क्षेत्र अथवा पुलिस थाना क्षेत्र अथवा 1 लाख जनसंख्या क्षेत्र को मिलाकर उपभुक्ति गठन की व्यवस्था है। यदि गाँव एवं शहर दोनों में प्रखण्ड व्यवस्था है तो प्रखण्ड ही उपभुक्ति का आधार है लेकिन गाँवों प्रखण्ड लेकिन शहरों में नहीं होने पर म्युनिसिपेलिटी क्षेत्र होने पर गाँवों प्रखण्ड तथा शहर में म्युनिसिपेलिटी क्षेत्र प्रखण्ड होता है। यदि म्युनिसिपेलिटी क्षेत्र बड़ा है तथा एकाधिक थाने है तो एक थाना क्षेत्र एक उपभुक्ति होगी। इन सबके अभाव में 1 लाख जनसंख्या का फार्मूला लागु होगा।

उपभुक्ति प्रमुख एवं उनके कर्तव्य एवं उत्तरदायित्व - उपभुक्ति में आनन्द मार्ग प्रचारक संघ का सचिव उपभुक्ति प्रमुख कहलाता है। उसके कर्तव्य एवं उत्तरदायित्व निम्नानुसार रेखांकित किये गए हैं।

(१) शिक्षा एवं नैतिक कर्तव्य एवं उत्तरदायित्व - साक्षरता प्रतिशत बढ़ाने के लिए अधिक से अधिक स्कूल खोलना तथा नैतिकता का ऊँचा स्तर विकसित करना एवं कायम रखना।

(२)  जनकल्याणकारी कर्तव्य एवं उत्तरदायित्व - स्थानीय जनता की क्रयशक्ति बढ़ाने का प्रयास करना। इसमें प्राउटिस्टों एवं अन्य सदविप्रों सहयोग लेने का प्रावधान है। स्थानीय जनसंख्या की आवश्यकता पूर्ति के लिए अधिक से अधिक सार्वजनिक भण्डारों को खोलना शामिल हैं। 

(३) उद्योग एवं कृषिगत कर्तव्य एवं उत्तरदायित्व - उपभुक्ति में कृषि एवं औद्योगिक उत्पादन की अभिवृद्धि का प्रयास करना। 

(४) सेवामूलक कर्तव्य एवं उत्तरदायित्व - उपभुक्ति के लोगों के लिए औषधि इकाई एवं चैरिटी गृहों का अधिक से अधिक विकास करना। इसमें आनन्द मार्ग प्रचारक संघ के प्रभागों एवं विभागों सहयोग उपेक्षित है। 

(५) भुक्ति के प्रति कर्तव्य एवं उत्तरदायित्व - उपभुक्ति को प्रमुख भुक्ति कार्यकारणी सम्मिलित किया जा सकता है। लेकिन उनके पास कोई विभाग नहीं होगा। वे उपभुक्ति का प्रतिनिधित्व करेंगे।

उपभुक्ति प्रमुख की योग्यता - एक शिक्षित सदविप्र होना आवश्यक है। आचार्य व तात्विक नहीं भी हो सकता है। 

उपभुक्ति प्रमुख का चुनाव - उपभुक्ति क्षेत्र के सदविप्र मिलकर अपने में से एक उपभुक्ति प्रमुख चुनेंगे। 

उपभुक्ति समिति - उपभुक्ति प्रमुख द्वारा उपभुक्ति के विभिन्न भागों के चुने गए सदविप्र में से उपभुक्ति समिति का गठन करेंगे। सदस्यों की उपभुक्ति प्रमुख के विवेकानुसार होगी। 

उपभुक्ति प्रमुख को प्रोत्साहन - उपभुक्ति प्रमुख को विश्व स्तर पर पहचान बनाने के लिए प्रोत्साहित की व्यवस्था दी गई है। आनन्द मार्ग चर्याचर्य भाग प्रथम के अध्याय ७ में यह व्यवस्था है।

सान्धिविग्राहिक, जनमित्रम् एवं लोकमित्रम् - किसी खास अंचल में किसी एक अर्द्ध वर्ष में सर्वाधिक कार्यरत उत्पादक एवं उपभोक्ता सहकारी संस्थायें सर्वाधिक हो, साक्षरता प्रतिशत 25 अधिक हो, इस उपभुक्ति क्षेत्र में कोई भूख एवं पोषाहार की कमी से नहीं मरा हो, वह अर्द्ध वर्ष के लिए सान्धिविग्राहिक के रूप में जाना जाएगा। इस उपाधि उपयोग तब तक करेगा जब तक कोई दूसरा इस उपाधि को ग्रहण न करें। लगातार चार अर्द्ध वर्ष तक सान्धिविग्राहिक पद पर रहने वाला स्थायी सान्धिविग्राहिक होगा। वह अपने नाम के आगे इस शब्द का व्यवहार आजीवन के लिए करेगा लेकिन वंशानुगत नहीं।  इसीप्रकार सम्पूर्ण सेक्टर में सर्वाधिक रहने वाला जनमित्रम् तथा सम्पूर्ण विश्व में लोकमित्रम् कहलाता है। शेष सभी व्यवस्था उपरोक्त अनुसार है।

(७) पंचायत स्तर की समिति - यद्यपि चर्याचर्य में उल्लेख नहीं है। परन्तु ऐसे व्यवस्था की जा सकती है। 

(८) ग्राम समिति - आनन्द मार्ग चर्याचर्य खंड प्रथम अध्याय ३६ के अनुसार ग्राम संघटक का मनोनयन जिला समिति के चैयरमेन या उनके अभाव में ऊर्ध्वतन समिति के चेयरमैन अथवा उसके अभाव में केन्द्रीय समिति के प्रेसीडेन्ट के द्वारा किया जाना है। ग्राम संघटक अपने इच्छानुसार ग्राम समिति एवं कार्यकारिणी समिति का गठन करेगा। यह आचार्य व तात्विक हो तो अच्छा है। ग्राम संघटक का पद मृत्युपर्यन्त अथवा ग्रामवासी असंतुष्ट होने पर पूर्व ही पदच्युत किया जा सकता है।

(९) एक वैकल्पिक व्यवस्था - आनन्द मार्ग चर्याचर्य खंड प्रथम के अध्याय ३८ में एक वैकल्पिक व्यवस्था दी गई है। जो सन्यासी व्यवस्था है। 

        अवधूत एवं अवधूत पर्षद

धर्म प्रचार और जनसेवा के काम में अत्यधिक व्यस्त रहने के फलस्वरूप पारिवारिक कर्तव्य सम्पादन जिनके लिए सम्भव नहीं हो। अनुष्ठानिक भाव सन्यास ग्रहण करने पर अवधूत कहलायेंगे। पुरोधा प्रमुख की स्वीकृति से अवधूतों के द्वारा निर्वाचित सदस्य को लेकर अवधूत बोर्ड का गठन किया जाएगा। इसका एक सचिव होगा। यह अवधूतों से संबंधित समस्त नियम कानून, शास्ति, अनुशासन और अन्य सबकुछ निर्धारित करेंगे। अवधूत बोर्ड द्वारा माना गया सिद्धांत अन्तिम अनुमोदन के लिए पुरोधा प्रमुख के पास प्रेषित होगा। अवधूत पुरोधा प्रमुख को मानकर चलेंगे। उनके अनुमोदन के बिना अवधूत बोर्ड कोई भी सिद्धांत बलपूर्वक स्थापित नहीं करेगा। अवधूतों को जन कल्याण में लगाने के लिए संस्था द्वारा प्रेसेडिंग ऑर्डर द्वारा विश्व स्तरीय व्यवस्था दी गई है। जिसकी चर्चा इस आलेख की विषय वस्तु नहीं है।
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