अर्थ, परिभाषाएँ एवं उदाहरण
(Meaning, definitions and examples)
🌹 (१) आत्म केंद्रित दर्शन 🌹
(Self Centred Philosophy)
(i) अर्थ (Meaning) - स्वयं का विचार करने वाली विचारधारा है। इसमें व्यक्ति प्रधान समाज गौण होता है।
(ii) परिभाषा ( Definition) - "जिस व्यवस्था जिसमें निजी लाभ के उद्देश्य से चारा तंत्र खड़ा किया जाता है, वह आत्मकेंद्रित विचारधारा कहलाती है।"
(iii) उदाहरण (examples) - पूँजीवादी अर्थव्यवस्था है, जिसमें व्यक्तिगत स्वामित्व होता है। उद्यमी एवं उसकी फर्म व्यक्तिगत हित के लिए ही कार्य करती है। उदारवादी एवं लोककल्याणकारी नीति के कारण एक निश्चित राशि कल्याण मूलक कार्य में लगाती है, जो एक प्रकार छल है। यह संभावित विद्रोह का टालने के मनोविज्ञान के तहत लाया गया है। इस से प्रभावित देशों को प्रथम विश्व कहते हैं। जिसमें संयुक्त राज्य अमेरिका एवं उसकी टीम है।
(iv) व्याख्या (Discuss) - पूँजीवादी अर्थव्यवस्था को व्यक्तिवादी एवं स्व:केन्द्रित अर्थव्यवस्था कहते हैं। यह निजी स्वामित्व के सिद्धांत पर काम करने के कारण अपने अधिक मनोवैज्ञानिक एवं विज्ञान सहमत मानती है। इसलिए निजी सम्पत्ति के जादू से रेत को सोना में बदलनी की उक्ति देती है, लेकिन यह भूल जाती है मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है; जहाँ निज सुख से कई मूल्यवान सर्वाजनिक सुख को महत्व देना होता है। अतः समझे बड़ी अमनोविज्ञान एवं अविज्ञान पूँजीवाद में भर गया है। इसलिए पूँजीवाद मनुष्य एवं उसके समाज के लिए व्यवस्था नहीं है। इसे तुरंत प्रभाव से हटा देना चाहिए। इसमें व्यक्ति, राष्ट्र एवं समाज का हित है
💐 (२) जड़ केंद्रित दर्शन 💐
(Matter Centred Philosophy)
(i) अर्थ (Meaning) - पदार्थ के विचार को प्रधानता देने वाली विचारधारा है। इसमें चेतन का महत्व नहीं है, भौतिकवाद ही सबकुछ है।
(ii) परिभाषा ( Definition) - "जिस व्यवस्था में भौतिकता एवं मनुष्य एवं उसके समाज के भौतिकवादी सिद्धातों को ही महत्व दिया गया हो, उसे जड़ केंद्रित विचारधारा कहते हैं।"
(iii) उदाहरण (examples) - समाजवादी अथवा साम्यवादी अर्थव्यवस्था है, जिसमें केवल भौतिक पक्ष को महत्व दिया गया है। इतना ही नहीं जीवन के अन्य पक्ष को मानने को तैयार नहीं है। साम्यवादी तो मार्मिक अथवा धार्मिक पक्ष के विरोधी भी है। यह विचारधारा थोड़ी उन्नत है। इसका ध्यान समाज की ओर जाता है, लेकिन एकांकी होने के कारण समाज का कल्याण नहीं कर सकती है। इसमें द्वितीय विश्व आता है। चीन, रुस एवं उनकी टीमें है।
(iv) व्याख्या (Discuss) - समाजवादी अर्थव्यवस्था को पूँजीवाद के विकल्प में लाया गया था। पूँजीवाद से पहले राज्यवाद था जहाँ समाज नहीं राजाज्ञा सर्वोपरि थी। चूंकि राज्यवाद एक सुस्पष्ट परिभाषा में बद्ध नहीं था इसलिए अर्थव्यवस्था की अवधारणा में नहीं पढ़ाया जा सकता है। समाजवाद में एक अमनौविज्ञानिक शब्द 'साम्य'आने से समाजवाद की मूल परिकल्पना अव्यवहारिक हो गई। वस्तुतः समाजवाद समाज बनाने के लिए आया था लेकिन समाज धर्म को नहीं समझने के कारण जड़त्व में परिणत हो गया, इसलिए समाजवाद को जड़ केन्द्रित अर्थव्यवस्था की परिधि में रखा गया है।
🌷(३) भावजड़ता केंद्रित दर्शन🌷
(Dogma Centred Philosophy)
(i) अर्थ (Meaning) - भाव किस अविचार में जाकर जड़ हो जाता है, इसमें युक्ति एवं विज्ञान महत्व हीन हो जाती है, उसके स्थान पर अंधविश्वास प्रधान हो जाता हैं।
(ii) परिभाषा (Definition) - "जिस व्यवस्था पर बुनियादी जरुरत से ज्यादा अयुक्तिकर विश्वास प्रबल होकर चलाती है, उसे भाव जड़ विचारधारा कहते हैं।"
(iii) उदाहरण (examples) - एकात्मक मानववाद, इस्लामिक विश्व तथा अन्य मजहबीय अर्थव्यवस्था है। यह समाज एवं व्यक्ति के आर्थिक पक्ष के साथ सामाजिक, धार्मिक एवं अन्य पक्ष पर भी ध्यान देते हैं, लेकिन यह रुढ़ मान्यता, जातिगत चिन्तन एवं अविचार में व्यक्ति एवं समाज जकड़ देती है, जिसके कारण समग्र कल्याण नहीं कर सकती है। इसमें तृतीय विश्व के देश है। जो अपने रुढ़ मान्यता में अटके व लटके हुए हैं।
(iv) व्याख्या (Discuss) - भावजड़ता केन्द्रित अर्थव्यवस्था में आर्थिक मूल्यों से अधिक अंधविश्वास मूल्यवान हो जाते हैं। जिसके कारण वे अर्थव्यवस्था के बुनियादी प्रश्नों का उत्तर रुढ मान्यता में ढूँढते है। यहाँ भौतिक पक्ष के अतिरिक्त मानवीय पक्ष को देखा जाता है लेकिन भाव जड़ता में केन्द्रित होकर रह जाता है। रुढ़ मान्यता के आगे यह विज्ञान एवं यथार्थ को दफना देते हैं। इसलिए इस दर्शन को मानव कल्याण के नहीं चुना जा सकता है।
🌻 (४) ईश्वर केंद्रित दर्शन 🌻
(God Centred Philosophy)
(i) अर्थ (Meaning) - जगत को ईश्वर का रुप मानकर अपने चिन्तन को समग्र उन्नयन के सिद्धांत पर स्थापित करता है। इसमें व्यक्ति एवं उसके समाज के समग्र पहलू सामंजस्य होता है।
(ii) परिभाषा (Definition) - "जिस व्यवस्था में व्यष्टि एवं समष्टि के सर्वांगीण पक्ष के उन्नयन की व्यवस्था हो, वह ईश्वर केंद्रित विचारधारा है। इसके केन्द्र में ईश्वर है।"
(iii) उदाहरण (examples) - प्रगतिशील उपयोग तत्व है। यह स्थूल, सूक्ष्म एवं कारण जगत के प्रगति की व्यवस्था करता है। यह प्रमा संतुलन के माध्यम से किसी एक पक्ष को दूसरे पक्ष के चीरहरण की अनुमति नहीं देता है। इसके लिए अभी तक कोई विश्व नहीं बना है। यह व्यवस्था अभी तक प्रगति पर है।
(iv) व्याख्या (Discuss) - इस विश्व को पूँजीवाद, समाजवाद, साम्यवाद, भावजड़ किसी वाद की आवश्यकता नहीं है। यहाँ अर्थव्यवस्था के मूूल तत्व के प्रगतिशील व्यवस्था की आवश्यकता है। इसलिए प्रगतिशील उपयोग तत्व एक व्यवहारिक अर्थव्यवस्था है। इसके मूल में ईश्वर स्थापित है। इसलिए इस दर्शन को ईश्वर केन्द्रित दर्शन नाम दिया गया है। प्रगतिशील उपयोग तत्व वही है जो मनुष्य के धर्म, अर्थ, काम एवं मोक्ष को सिद्ध करें। यही मनुष्य तथा मनुष्योचित्त व्यवस्था है। शेष मनुष्य तथा मनुष्योचित्त व्यवस्था नहीं है। चाहे पूँजीवाद हो अथवा समाजवाद अथवा भावजड़ता कोई भी मानव समाज एवं मानवधर्म के अनुकूल नहीं है।
परिशिष्ट (appendix)
(१) धर्म - कर्तव्य अथवा निजी गुणधर्म है। जो मनुष्य का सांस्कृतिक पक्ष है। इसके बिना मनुष्य एवं समाज का संगठन ही संभव नहीं है।
(२) अर्थ - यह मनुष्य एवं समाज का सामाजिक आर्थिक पक्ष है। जहाँ भौतिक जगत को अर्थवान बनाया जाता है। जिस पर मनुष्य एवं समाज का संगठन निर्भर करता है।
(३) काम - भावनात्मक पक्ष अथवा वैचारिक पक्ष है। मनुष्य एक विचारशील प्राणी है। इनके विचार एवं भावना सदैव उसके साथ रहते हैं। अतः उसका संगठन समाज मुखी बनाकर उसे मनुष्य बनाया जाता है। यह पूँजीवाद एवं समाजवाद में संभव नहीं है तथा भावजड़ता उसे दूषित कर देती है।
(४) मोक्ष - विमुक्ति का पथ है। जब तक समाज व्यवस्था मनुष्य को विमुक्ति के पथ पर नहीं ले चलती है तब तक प्रगतिशील नहीं होती है। यह जीवन एवं जीवन के बाद भी मनुष्य को प्रगति की ओर ले चलता है इसलिए सामाजिक आर्थिक क्षेत्र में प्रगतिशील उपयोग तत्व की आवश्यकता है।
0 Comments: