समय नहीं, सोच को बदलिए।
मन है समुंद्र, इसमें मंथन कीजिए।।
इससे निकले अमृत से, जीवन को भर दीजिए।
विष, महाकौल को समर्पित कर दीजिए।।
समय नहीं, सोच को बदलिए।
मन है समुंद्र, इसमें मंथन कीजिए।।
समय को सम विषम के तराजू में मत तौलिए।
विषम में भी सकारात्मक को बैठा दीजिए।।
विषम में सम, सम में आनन्द को भर दीजिए।
जीवन के हर पल में आनन्द में मिला दीजिए।।
समय नहीं, सोच को बदलिए।
मन है समुंद्र, इसमें मंथन कीजिए।।
किन्तु परन्तु नहीं, संकल्प लीजिए।
संकल्प में उत्साह की ऊर्जा भर दीजिए।।
अशुभ कुछ होता ही नहीं, ऐसा मन बना दीजिए।
हर शुभ काम में , लग्न व परिश्रम भर दीजिए।।
समय नहीं, सोच को बदलिए।
मन है समुंद्र, इसमें मंथन कीजिए।।
आशंकाओं के डर को सदैव के लिए मिटा दीजिए।
यदि अनिष्ट कुछ है तो दृढ़ विश्वास से हरा दीजिये।।
कोई अमंगल लगे तो उसमें मंगल के स्वर भर दीजिए।
हे कर्मयोगी! कर्म के बल पर भाग्यरेखा को बदल दीजिए।।
समय नहीं, सोच को बदलिए।
मन है समुंद्र, इसमें मंथन कीजिए।।
कविराज - आनन्द किरण
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