समाज आंदोलन के 6 विषय (6 topics of SAMAJ movement)



अर्थव्यवस्था की आत्मा उपयोग तत्व है। उपयोग तत्व की सही पहचान प्रउत द्वारा दी गई है। प्रउत को यदि कोई सही पहचान दे सकता है तो वह समाज आंदोलन है। समाज आंदोलन मात्र हा हुल्लड़ अथवा भावनाओं का उबाल नहीं। यह समाज के लिए किया जाने वाला ठोस कार्य है। विश्व में संपदा एवं संसाधन की कमी नहीं कमी है, उत्पादन, वितरण एवं संयोजन की व्यवस्था की। व्यवस्था बनाने के लिए ही समाज आंदोलन की परिकल्पना की गई थी। अतः कहा जा सकता है कि प्रउत का प्रारंभिक निवास समाज आंदोलन है। समाज आंदोलन की शुरुआत सामाजिक आर्थिक इकाई के निर्माण से होती है। सामाजिक आर्थिक इकाई का निर्माण का उद्देश्य उपभोक्ता की सामाजिक एवं आर्थिक इकाई में एकात्मता स्थापित करता है। इसके अभाव में व्यक्ति दो जिन्दगियाँ जिता है। यह दोहरा जीवन मनुष्य के लिए दु:ख का प्रदान कराण है। प्रउत सर्वजन सुख एवं सर्वजन हित को लेकर आया है। प्रउत यह उद्देश्य सामाजिक आर्थिक इकाई के माध्यम से मजबूती प्रदान करता है। अतः सामाजिक आर्थिक इकाई का नाम समाज किया गया है। एक समाज के निर्माण के चार मौलिक तत्वों को लेकर किया गया है। जो समान आर्थिक समस्या, समान आर्थिक संभावना, नस्लीय समानता एवं भावनात्मक एकता के आधार स्तंभ पर खड़े है। यह कार्य तो प्रउत प्रणेता ने करकर दे दिए है। इससे आगे का कार्य समाज आंदोलन होता है। जो प्राउटिस्टों को करना है। प्रउत प्रणेता ने समाज आंदोलनकारियों के लिए एक आउट लाइन दी है। वही चर्चा का विषय लिया गया है।

(१) स्थानीय लोगों को शतप्रतिशत रोजगार - समाज आंदोलन का प्रथम फोकस स्थानीय लोगों को शतप्रतिशत रोजगार है। वह समाज अथवा देश कभी भी आदर्श नहीं हो सकता, जिस समाज अथवा राष्ट्र के लोगों को दो वक्त की रोटी के लिए दर-दर की ठोकरें खानी पड़े अथवा अपनी मातृभूमि, घर बाहर एवं परिजनों को छोड़ना पड़े। इससे मनुष्य को दो संसार को बोझ लेकर चलना होता है। यह मनुष्य को अव्यवहारिक बना देता है। इसलिए समाज आंदोलन कहता है कि व्यक्ति के सामाजिक एवं आर्थिक क्षेत्र एक होने चाहिए। अतः समाज आंदोलन शतप्रतिशत रोजगार देने की योजना को मूर्त रुप देता है। इसके प्रउत अल्पकालिन एवं दीर्घकालिन योजना बनाने की व्यवस्था देता है। अल्पकालिन में श्रम प्रधान उद्योग स्थापित किये जाने आवश्यक है। यह कृषि सहायक एवं कृषि आधारित उद्योग होंगे। दीर्घकालिन योजना के तहत पूंजी आधारित उद्योग स्थापित करना है। जिसमें प्रउत के अनुसार छोटे उद्योग व्यक्तिगत स्वामित्व के आधार पर, मध्यम उद्योग सहकारिता के आधार पर तथा बड़े उद्योग स्थानीय सरकार द्वारा संचालित किये जाएंगे। यहाँ स्मरण रखना आवश्यक है कि प्रउत बड़े उद्योग की जिम्मेदारी विश्व सरकार अथवा राष्ट्रीय सरकार द्वारा नहीं स्थानीय सरकारों द्वारा संचालित होंगे। यदि इतने पर भी बेरोजगार सामाजिक आर्थिक इकाई का पीछा नहीं छोड़े तो समय के घंटे कम कर हम शतप्रतिशत रोजगार के सूत्र को स्थापित करेंगे ही। आज तक अव्यवस्था के चलते एक समाज इकाई के लोग आर्थिक अथवा अन्य कारण से दूसरी इकाई में स्थापित हो गए हैं। उनके लिए प्रउत आपको दो रास्ते देता है। प्रथम अपने सामाजिक एवं आर्थिक हितों को जिस इकाई में रह रहे हैं, उनमें समाविष्ट कर दे अथवा दूसरे विकल्प के तहत अपने प्रथम क्षेत्र में पुनः लौट जाए। यह विकल्प चुनने का एकमेव अधिकार उद्यमी के पास है। यदि उद्यमी इसमें टालमटोल करता है तो समाज अपने अधिकारों का प्रयोग कर कठोर व्यवस्था लेगी। समाज का दायित्व है कि किसी भी स्थिति में समाज की पूंजी एवं संसाधन बाहर नहीं जाए। इसलिए शतप्रतिशत रोजगार एक व्यवहारिक प्रक्रिया है। 

(२) स्थानीय क्षेत्र का अधिकतम औद्योगिक विकास - समाज आंदोलन के लिए दूसरा दिशा निर्देश स्थानीय क्षेत्र के अधिकतम औद्योगिक विकास का मिला है। कृषिगत अथवा गैर कृषिगत कच्चामाल जहाँ भी प्राप्त होता है वहाँ उद्योग स्थापित करना प्रउत की आदर्श सिख है। समाज आंदोलन का दायित्व है कि किसी भी स्थिति में कच्चामाल बाहर नहीं जाने देना तथा उससे संबंधित अधिक से उद्योग स्थापित कर वस्तु की मात्रा एवं गुणवत्ता में वृद्धि करना। समाज को आवश्यकता अनुसार कुटीर, लधु, मध्यम एवं वृहद उद्योग स्थापित कर शतप्रतिशत रोजगार के सूत्र को स्थापित करने तथा व्यक्ति की‌ क्रय क्षमता में वृद्धि करना। अधिकतम औद्योगिक विकास नामक सिद्धांत को तीन उप सिद्धान्तों पर खड़ा किया गया है। पहला सामाजिक आर्थिक इकाई में स्थापित सभी उद्योगों को बाहर से कच्चा माल न लाकर स्थानीय कच्चा माल का उपयोग करना उचित है‌, दूसरा स्थानीय कच्चे माल का निर्यात बिल्कुल उचित नहीं है तथा तीसरा स्थानीय परिक्षेत्र में किसी वस्तु के औद्योगिक उत्पादन हेतु आवश्यक कच्चा माल की उपलब्धता नहीं होने पर, उस वस्तु को बाहर से आयात करने की अनुमति दी जा सकती है। यहाँ एक चेतावनी दी गई है कि स्थानीय क्षेत्र पूंजी बाहर जाना नुकसान दायक है इसलिए एक दूसरी समाज इकाई के मध्य वस्तु विनिमय होना अच्छा है। 

(३) बाहरी वस्तुओं के आयातों को टालना - समाज क्षेत्र में उत्पादित होने वाले उत्पाद के समक्ष बाहरी क्षेत्र से उत्पाद अपने क्षेत्र में नहीं आने देना। समाज आंदोलन कहता है कि स्थानीय वस्तु की गुणवत्ता कम होने तथा कीमत अधिक होने पर भी स्थानीय वस्तु ही खरीदे। किसी भी स्थिति में बाह्य वस्तु की खरीदी नहीं की जानी चाहिए। इससे स्थानीय वस्तु की गुणवत्ता में वृद्धि नहीं होती तथा स्थानीय क्षेत्र की पूंजी बाहर जाती है। अत: बाहरी आयातों को टालना चाहिए। इसको समझने के नमक सत्याग्रह को दिखाया गया है। 

(४) स्थानीय भाषा को ही शिक्षा के माध्यम के रूप में स्वीकार करना - समाज आंदोलन चौथे स्तर पर सामाजिक-आर्थिक क्षेत्र को छोड़ कर सामाजिक-सांस्कृतिक क्षेत्र में प्रवेश करता है। यह प्राथमिक से विश्व विद्यालय तक की सम्पूर्ण शिक्षा स्थानीय भाषा में देने की सिख देता है। इससे अंदर से तथा बाहर से स्थानीय बना रहेगा। यदि बाहर से स्थानीय है तथा अंदर से स्थानीय नहीं है तो वह दोहरा जीवन जीयेगा, जो मनुष्य के भूत, वर्तमान एवं भविष्य के लिए अच्छा नहीं है। भूतकाल में पुरखें जो छोड़ गए है, वर्तमान में हमारे पास है तथा भविष्य में जो हमारे पास आने वाला है, वह सबकुछ धूमिल हो जाएगा। अतः संस्कृति की पहली विरासत शिक्षा स्थानीय भाषा में परम आवश्यक है। इससे शैक्षणिक संस्थान स्थानीय जनता के नियंत्रण में होगी, जिससे अपसंस्कृति एवं कुसंस्कारों से वे सभी मुक्त रहेंगे। 

(५) स्थानीय भाषा को जनसंपर्क की मुख्य भाषा का दर्जा - समाज आंदोलन के लिए पांचवा निर्देश है कि स्थानीय भाषा को जनसंपर्क की मुख्य भाषा का दर्जा मिलना चाहिए। आज स्थानीय भाषा को तृतीय भाषा दर्जा दिया जा रहा है, जो‌ एक दुर्भाग्य है। समाज आंदोलन इस अभिशाप को मिटा देगा तथा सरकारी एवं गैर सरकारी कार्यालयों में स्थानीय भाषा में सभी कामकाज होंगे। कला, संस्कृति एवं अभिनय में तथा व्यापार वाणिज्यिक में भी स्थानीय भाषा का ही प्रचलन हो। विज्ञान, चिकित्सा एवं अभिव्यक्ति में भी स्थानीय भाषा का प्रयोग हो। इससे स्थानीय लोगों के आत्मविश्वास एवं स्वाभिमान में वृद्धि होगी। 

(६) स्थानीय सामाजिक-आर्थिक दावा - समाज आंदोलन का छठा विषय स्थानीय दावें है। प्रत्येक क्षेत्र के अपने विशेष विषय होते हैं। उनका समाधान भी समाज आंदोलन को करना है। अतः समाज आंदोलन कभी भी स्थानीय समस्या से अपने को अलग नहीं रहने देगा। जब तक समाज आंदोलन स्थानीय समस्या को अपने कंधों पर नहीं लेगा तब तक जनता के दिलोदिमाग का आंदोलन नहीं बनेगा। अतः स्थानीय समस्या को अपने कंधों पर लेनी तथा स्थानीय समस्या को लेकर झुंझने वालों का समर्थन एवं सहयोग करना है। स्थानीय दावों को लेकर ही योजना बने, इसलिए प्रउत ब्लॉक लेवल प्लानिंग से नीति निर्धारण की बात करता है। 

इस प्रकार समाज आंदोलन ज्वलंत, संजीवन एवं जागृत रहेगा तथा सर्वजन हितार्थ सर्वजन सुखार्थ के उद्देश्य को‌‌ प्राप्त करेगा। अधिक जानकारी के प्रउत अर्थव्यवस्था नामक‌ पुस्तक का  सामाजिक-आर्थिक आंदोलन अध्याय अध्याय को पढ़े।
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