समाज अथवा परिवार (society or family)

             पहले कौन?
     ( समाज अथवा परिवार ) 
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एक गुरु भाई विषय दिया कि समाज पहले बना के परिवार। मैंने इस विषय को प्रश्न बनाकर मित्रों के सामने रखा लगभग सभी ने परिवार पर ही अपना मत दिया लेकिन वे गुरु भाई मुझे शोध करने की सलाह देते हैं। उनका संकेत यह था कि समाज पहले आया है। मेरे लिए तो यह प्रश्न मुर्गी पहले आई अथवा अंडा बनकर रह गया। मुर्गी अंडे से आई, अंडा मुर्गी से आया, यह प्रश्न अनुत्तरर बनकर आज भी दार्शनिक के मनो मस्तिष्क घूमता आ रहा है। कभी कभी सोचता हूँ कि वे लोग कितने सुखी है, जो सोचते नहीं है। लेकिन क्या करे सोचने वाला दिमाग जो प्रभु ने दिया है। इतिहास का विद्यार्थी हूँ, इसलिए अपने विषय को लेकर इतिहास के पास ही जाता हूँ। बचपन से मैंने पढ़ा कि पहले विश्व इतिहास फिर भारत एवं बाद में राजस्थान के इतिहास का अध्ययन कराया जाता था। आज भी ग्यारहवीं में विश्व इतिहास तथा बाहरवीं में भारत का इतिहास पढ़ाया जाता है। विज्ञान में भी पहले शरीर की संरचना बाद में पाचन, श्वसन इत्यादि तंत्र, फिर ऊतक एवं बाद में कोशिश पढ़ाते है तो कोशिश समझ में आती है। इस प्रकार पहले समाज पढ़ते हैं तो परिवार समझ में आ जाता है। यह अध्ययन अध्यापन की प्रणालियां विषय को समझने में मददगार बन सकती है। विषय है समाज अथवा परिवार, पहले कौन? 

समाजशास्त्र बताता है कि समाज की मूल इकाई परिवार है। समाज की परिभाषा तो परिवार का समूह को समाज बताता है। इस प्रकार विषय मुर्गी एवं अंडे वाला ही बनता जा रहा है। लेकिन समाज निर्माण के इतिहास की ओर जाते हैं। इसके लिए हमें एकाकी एवं युथबद्ध प्राणियों के मनोविज्ञान की ओर चलना होगा। एकाकी प्राणियों का न कोई परिवार तथा न कोई समाज होता है। वह अपने लिए ही जीता है तथा अपने लिए मर जाना जाता है। इसलिए यहाँ प्रश्न का उत्तर नहीं मिलता है। इसलिए युथबद्ध प्राणियों के मनोविज्ञान को पढ़ते हैं। इनका समाज तो है लेकिन कोई परिवार नहीं। माँ स्वाभाविक आकर्षण के संतान की ओर खिंचती है लेकिन उनमें पारिवारिक संवेदना नहीं है। इसलिए इसको परिवार नहीं कहा जा सकता है। युथबद्ध प्राणियों का संसार पढ़े तो यहाँ समाज मूल अर्थ में नहीं अपितु समाज का उपरी ढाचा तो अवश्य है। अतः कह सकते हैं कि परिवार से पहले समाज आया था। 

अब थोड़ा मनुष्यों के इतिहास की ओर जाए तो आदि मानव का अपना परिवार तो नहीं था लेकिन उसका समाज अवश्य था। उसने अपने आप सबसे पहले अपने इस समूह में ही सुरक्षित पाया था, परिवार में नहीं। अतः हम समाज के पहले आने की बात को मान सकते हैं। परन्तु समाजशास्त्री समाज को परिवार का विकसित रुप मानते हैं। अतः अध्ययन को अधिक गहराई की ओर ले जाने की आवश्यकता है। मनुष्य की सभ्यता एवं संस्कृति का विकास समाज में हुआ था। वहाँ परिवार आदर्श रूप में थे। लेकिन इन आदर्श सभ्यता के विकास का इतिहास कबीलाई जीवन में समा जाता था। इतिहास के प्रारंभ क्षण के कबीलों में मूल रूप समाज दिखाई देता है तथा गौण रूप में परिवार। अतः समाज की उपादेयता परिवार से अधिक बलवान है। ऋग्वेद में संगच्छध्वं‌ कहकर एक समाज की रचना का संकेत देता है। लेकिन परिवार की पहली रूप रेखा सदाशिव के युग में आती है। ऋग्वेद में सदाशिव का उल्लेख नहीं आना ऋग्वेद को सदाशिव से पहले की रचना बताता है। अतः समाज पहले आया एक मजबूत साक्ष्य बनकर आया है। 

अरस्तू ने कहा था कि मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। उसने मनुष्य को पारिवारिक प्राणी नहीं बताया है। अतः समाज को प्रथम मानना अनुपयुक्त नहीं है। अब थोड़ा समाज एवं परिवार के निर्माण के विज्ञान को समझते हैं। समाज व्यक्तियों का समूह है जबकि परिवार के लिए विवाह के अनिवार्य शर्त है। किसी समाज का सदस्य बनने के लिए व्यक्ति का समर्पण होता है जबकि परिवार के लिए रक्त संबंध की आवश्यकता है। उदाहरण के लिए एक व्यष्टि मारवाड़ी समाज का सदस्य है यदि वह सहयाद्रि समाज में अपना समर्पण कर दे तो वह उसका अभिन्न अंग एवं सदस्य बन जाता है लेकिन उसे परिवार का सदस्य बनने के लिए विवाह अथवा जन्म का सहारा लेना पड़ता है। जन्म तो मनुष्य के हाथ में नहीं है इसलिए उसे परिवार का समाज विरासत में मिलता है लेकिन समाज का चयन तथा विवाह उसके हाथ में अतः विवाह करने से पूर्व अपने समाज का चयन करता है। अतः अधिक प्रमाणित मत है कि समाज पहले है। 

एक आदर्श समाज को एक आदर्श परिवार के गुण धारण करने होते हैं। मित्रों के समूह से वह समाज तो प्राप्त कर लेता है लेकिन आदर्श समाज प्राप्त करने के लिए समाज की रचना परिवार जैसी करने से होती है। अतः समाज को एक आदर्श परिवार बनने के लिए एक आदर्श परिवार के गुणों को समझना होता है। परिवार रक्तसंबंध के कारण सरलता से बनाया जा सकता है लेकिन समाज धर्म संबंध के आधार पर होता है इसलिए बड़े मुश्किल से बनता है। समाज को परिवारों की तथा परिवार को समाज की आवश्यकता है। समाज को ही आदर्श परिवार कहा जाता है। 

प्रश्न पहले कौन आया - समाज अथवा परिवार? और अधिक शोध की मांग करता है। समाज से परिवार परिचित होता है, परिवार से समाज का परिचय तो मिलता है लेकिन समाज अपने परिचय के परिवार का मौहताज नहीं है। अतः समाज पहले अधिक सुविधा जनक उत्तर है। इसलिए प्रकृति समग्र में निर्माण करती है लेकिन व्यक्ति खंड में निर्माण करता है। चूंकि समाज प्राकृत संस्था है इसलिए समाज पहले उत्तर अधिक सही है। अखंड से खंड आया है, खंड से अखंड नहीं अर्थात समाज से परिवार आया है। परिवार से समाज नहीं। 

भगवान् ने पहले सृष्टि बनाई उसमें ग्रह, नक्षत्र तारा, आकाशगंगा इत्यादि अतः पहले समाज आया बाद में समाज सही उत्तर है। यदि अभी भी मन संतुष्ट नहीं हुआ है तो मुर्गी एवं अंडे वाला विवाद चलने दीजिए।
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