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[श्री] आनन्द किरण "देव"
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आनन्द मार्ग से सेमिनार तथा सेमिनार से आनन्द मार्ग का निर्माण समझने की वेला आ गई है। आनन्द मार्ग ने सेमिनार, सेमिनार एवं और अधिक सेमिनार, गाँव स्तरीय सेमिनार का नारा दिया है। इन सेमिनार में आनन्द मार्ग बनता भी तथा गाँव स्तर पर आनन्द मार्ग जाता भी है। इतनी बड़ी विधा हमारे पास होने के बावजूद भी मुझे खेद के साथ लिखना पड़ता है कि इस विधा के साथ हमने न्याय नहीं किया। यह विधा प्रतिवर्ष दो बार केन्द्र से निकलती है तथा प्रथम संभाग स्तर में सेमिनार में जाकर आगे नहीं बढ़ती है। इसका कारण है कि प्रथम संभाग स्तर के सेमिनार करने की जिम्मेदारी तो इसमबु विभाग बड़ी निष्ठा के साथ निभाता है लेकिन द्वितीय संभाग स्तरीय तथा प्रथम जिला, ब्लाँक एवं गाँव स्तर पर जाकर रुग्ण हो जाती है। इसमबु विभाग का यह कार्य मात्र पेपर वर्क में जाकर दम तोड़ देता है। इसमबु विभाग की यह गंगा गंगोत्री से निकल कर सागर में विलीन होने तक निष्ठा के साथ आगे बढ़ती रहती तो आज आनन्द मार्ग दुनिया का सबसे सशक्त संगठन होता। हर गाँव में आनन्द मार्ग के जयघोष की ध्वनि सुनाई देती। प्रश्न यहाँ पैदा होता है कि क्या हम ऐसा कर सकते हैं? उत्तर हाँ। कैसे कर सकते हैं? आओ समझते हैं।
सेमिनार के प्रशिक्षक दल के गठन में सक्रियता - आनन्द मार्ग सेमिनार में मुख्य भूमिका प्रशिक्षक की होती है। केन्द्र से एक प्रशिक्षक दल तैयार होकर आता है। उन्हें संभाग स्तर पर प्रशिक्षक तैयार करने के जिम्मेदारी दी जाती है। लेकिन यह प्रशिक्षक दल उतनी निष्ठा के साथ नहीं बनता जितनी निष्ठा के साथ केन्द्र में प्रशिक्षक दल तैयार किए जाते हैं। यदि वही निष्ठा, प्रक्रिया संभाग स्तर पर की जाती तो सेमिनार का आगामी स्तर उतना सशक्त, सजग एवं पारदर्शी होता जितना प्रशिक्षकों का प्रथम जत्था सक्रिय होता है। अक्सर प्रथम संभाग स्तर के बाद के सेमिनार मात्र कागज की फाइल में ही दफन कर रह जाते हैं। अतः आनन्द मार्ग के निर्माण के लिए इस कार्य में सजगता दिखानी होगी। प्रथम संभाग स्तर के सेमिनार से पूर्व ही द्वितीय संभाग स्तर के प्रशिक्षकों को नियुक्ति पत्र जाना चाहिए तथा उन्हें डियूटी के लिए तैयार रहने की निर्देशना जारी कर देनी चाहिए। प्रथम संभाग स्तर के सेमिनार में द्वितीय स्तर प्रशिक्षकों के इस दल को तैयार करने के साथ उससे निम्न स्तर के प्रशिक्षकों की लिस्ट थमा देनी चाहिए जिन्हें उन्हें तैयार करना ही है। इस प्रकार गाँव स्तर तक सेमिनार प्रशिक्षकों को सूची तैयार लेकर सेमिनार प्रशिक्षक सेमिनार लेने पहुंचे।
सेमिनार आयोजक में निष्ठा का जागरण - किसी धर्मनिष्ठ व्यक्ति को आर्थिक संकट मे डालकर कार्यक्रम करने की इजाजत हमारा चर्याचर्य नहीं देता, इसलिए आयोजक के निर्माण में विशेष नीति का होना आवश्यक है। आयोजक यजमान नहीं एक संयोजक होता है। जिसे कड़ी से कड़ी जोड़कर कार्यक्रम को सुव्यवस्थित संपादित करने की जिम्मेदारी का निवहन करना होता है। अतः आयोजक में निष्ठा का जागरण करना आवश्यक है। निष्ठा प्रशिक्षक अथवा उच्च पदाधिकारी के प्रति नहीं अपितु निष्ठा संगठन एवं संगठन की जिम्मेदारी के प्रति होना आवश्यक है।
सेमिनार आनन्द मार्ग के प्रचार की नहीं निर्माण की विधा है - सेमिनार के प्रशिक्षक एवं आयोजक की जिम्मेदारी समझने के बाद यह समझना आवश्यक है कि सेमिनार आनन्द मार्ग का प्रचार करने की नहीं निर्माण करने की विधा का नाम है। इसलिए सेमिनार में भाग लेने वाला प्रत्येक व्यष्टि अपनी डियूटी एवं ट्रेड को लिखना होता है। उन्हें पिछले सेमिनार की दिनांक भी रेखांकित करनी होती है ताकि संगठन उसकी सक्रियता से परिचित हो सकता है। सेमिनार में प्रतिभागी की रिपोर्टिंग ली जाती है। जिसमें उसके द्वारा छ: मास में किये गए कार्य की अपडेट ली जाती है तथा नये कार्य का टार्गेट दिया जाता है। अतः निर्विवाद मान लेना चाहिए कि सेमिनार आनन्द मार्ग प्रचार की नहीं आनन्द मार्गी के निर्माण की विधा है।
सेमिनार आनन्द मार्गी को आनन्द मार्ग के सांचे ढ़ालता है - आनन्द मार्ग के महान आदर्श को स्वीकार करने वाले व्यष्टि को आनन्द मार्गी कहते हैं। जिसने आनन्द मार्ग पूर्ण रुप से आत्मसात कर दिया है, वह आनन्द मार्गी सदविप्र है। सदविप्र समाज की स्थापना करना आनन्द मार्ग के जगत हित के उद्देश्य का अंग है। वास्तव में सदविप्र समाज ही मानव समाज है। जहाँ तन का ही मन एवं आत्मा का मानव भी दिखता है। आनन्द मार्ग को स्वीकार करने से आनन्द मार्ग को आत्मसात करने के बीच एक पड़ाव है। उसमें आनन्द मार्ग के सांचे में ढ़ालने कार्य सेमिनार को दिया गया है। तीन दिन तक एक रूटिंग बनता है। उसको सभी प्रतिभागियों को पालन करना होता है। प्रात: जगने से रात्रि शयन तक उसका व्यष्टिगत जीवन समष्टि को समर्पित होता है। इस बीच वह पूर्णतया आनन्द मार्ग जीवन शैली को जिता है तथा उससे अपने जीवन में अंगीकार करता है। अतः सेमिनार आनन्द मार्ग बनाने की व्यवहारिक विधा है। इसलिए सेमिनार आयोजकों सेमिनार में उन्हीं लोगों को समाविष्ट होने की इजाजत देनी चाहिए जो तीन दिन तक पूर्णकालिक प्रतिभागी हो।
सेमिनार आनन्द मार्गी को समाज जिम्मेदार बनाता है - आनन्द मार्गी का व्यष्टि जीवन एवं समष्टि जीवन के प्रति जिम्मेदार व्यक्ति हैं। जिसके जीवन का उद्देश्य आत्मसुख नहीं सम समाजिक तत्व होता है। इसका एहसास जगत सेवा एवं धर्म प्रचार की जिम्मेदार धारण करने से होती है। सेमिनार में धर्म प्रचार की कला एवं समाज सेवा की आवश्यकता सिखने का भी सुअवसर मिलता है। यहाँ नूतन एवं पुरातन मार्गियों का मिलन होता है। एक दूसरे की जीवन शैली एवं कार्य शैली से परिचित होते हैं। जिससे वे जगत हित के कार्य के नये नये कौशल सिखते है।
सेमिनार साधक निर्माण की एक पाठशाला है - सेमिनार प्रशिक्षक की जिम्मेदारी होती है कि त्रिदिवसीय सेमिनार में प्रत्येक प्रतिभागी आनन्द मार्ग पूर्णरूपेण अवगत कराना। जब यह एहसास हो जाए कि उससे ज्ञान से सभी संतुष्ट हो गए, यही सेमिनार की सफलता का प्रतिफल है। इस विधा से साधक का निर्माण होता है, जो साधना, सेवा एवं त्याग का पाठ सिखते है। यहाँ बहने वाली भक्ति रस की सरिता साधक की आध्यात्मिक प्रगति में सहायक है।
इसलिए सेमिनार को आनन्द मार्ग निर्माण की एक कला के रूप में समझा जा सकता है।
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