मनुष्य भ्रष्टाचारी क्यों बन जाता है ?Why does man become corrupt


मनुष्य भ्रष्टाचारी क्यों बन जाता है ?

मनुष्य की पहचान उसका आचरण है। जब उसके आचरण में भ्रष्टता आ जाती है। तब उसे भ्रष्टाचारी की संज्ञा दी जाती है। सब कोई जानता है कि भ्रष्टाचार गलत रास्ता है फिर भी कतिपय लोग भ्रष्टाचारी क्यों बन जाते हैं? यह समस्या मनुष्य के समक्ष सबसे जटिल है। नीतिकारों ने इसका कारण मनुष्य की लालसा को बताया है। कुछ हद तक इसको उत्तरदायी ठहराया जा सकता है लेकिन सदैव लालसा ही उत्तरदायी नहीं रहती है। इस समस्या के लिए सबसे उत्तरदायी कारण है समाज की व्यवस्था का ठीक नहीं होना। समाज में आर्थिक विषमता का होना, न्यूनतम आवश्यकताओं का पूर्ण नहीं होना, भविष्य सुरक्षित महसूस नहीं होना आदि आदि कारण मनुष्य को भ्रष्टाचार में भ्रमित करता है। 
 राजनीति भ्रष्टाचार को रोकने की लाख लाख योजना क्यो न बनाने ले? यह तब तक कारगर साबित नहीं हो सकती है जबतक कि समाज की व्यवस्था को ठीक नहीं किया जाए। भ्रष्टाचार के विरुद्ध जंग लड़ने वालों का प्रथम दायित्व है कि समाज की व्यवस्था सर्वजन हितार्थ सर्वजन सुखार्थ निर्मित करे। बड़े दु:ख के साथ लिखना पड़ता है कि भारतवर्ष ही नहीं अपितु सम्पूर्ण विश्व की किसी भी राजनैतिक विचारधारा ने इस दृष्टि में कार्य नहीं किया है। सांस्कृतिक जागरण एवं आर्थिक विकास के वे सभी दावे तबतक खोखले साबित होंगे जबतक समाज की तस्वीर स्वच्छ नहीं हो। 
🔴👉 विश्व की धरती माता निपुति नहीं है। कतिपय प्रगतिशील विचारधारा के लोग समाज आंदोलन के माध्यम से इसको जागृत करने की दिशा में कार्य कर रहे। एक दिन सूर्य स्वच्छ एवं स्वस्थ समाज की अरुणिमा को उदय होगा। वह दिन अवश्य मानव के इतिहास में स्वर्णाक्षरों लिखा जाएगा। तब भ्रष्टाचार का यह हिंसक जानवर किसी को भी जठराग्नि का शिकार नहीं बना पाएगा। 
🔴👉 प्रश्न यह है कि समाज आंदोलन ही समाज की व्यवस्था को सुप्रतिष्ठित करने के लिए पर्याप्त है। उत्तर है नहीं। इसके समानांतर आध्यात्मिक नैतिकवादी निर्माण का आंदोलन भी छेड़ना पड़ेगा । बिना आध्यात्मिक नैतिकवादी तैयार किए सामाजिक व्यवस्था कितनी भी सुन्दर क्यों न निर्माण की जाए। वह काल का भक्षण बन जाएगी। 
🔴👉 आजकल आध्यात्मिक नेताओं का आचरण संदिग्ध लग रहा है। इस विषम परिस्थिति में लोगों आध्यात्मिकता भरोसा कैसे करें? प्रश्न जायज़ है। समाज की दूषित व्यवस्था के कारण आध्यात्मिकता रुग्णित हो गई है। समाज की व्यवस्था सही करने वालों का प्रथम दायित्व ही यह है कि आध्यात्मिकता को पारदर्शी बनाना। यह मनुष्य के मन की गहराई में निवास करती हैं। अनंत, निराकार एवं सर्वव्यापी परमात्मा के अलावा कोई सही नहीं रख सकता है। इसलिए मनुष्य को मात्र उनका ही शरण आश्रय लेना चाहिए। तथाकथित दूषित आध्यात्म नेतृत्व की चिकनी चुपड़ी बातों से स्वयं को बचाकर रखना होगा। यह व्यवस्था अवश्य मनुष्य में आध्यात्मिकता के प्रति विश्वास का जागरण करेगा। मनुष्य दूषित व्यवस्था में पलने के कारण भ्रष्टाचार के विषधर को गले लगाता है। व्यवस्था में सुधार लाने के बाद मनुष्य इस नागपाश से मुक्त हो जाएगा।
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श्री आनन्द किरण 
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