धर्मयुद्ध मंच से .............
............... @ श्री आनन्द किरण
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"हिन्दूमत बनाम आनन्दमूर्ति-१"
आध्यात्मिक अनुसंधान के क्रम में मतवाद का जन्म हुआ। विश्व में आध्यात्मिकता को परिभाषित करने वाले कई मत हैं। भारतवर्ष जहाँ विश्व में आध्यात्मिकता का सर्वाधिक विकास हुआ यहां धर्म को भी परिभाषित किया गया। यहाँ का प्रधान मत तन्त्र एवं वैदिक मत है। वास्तव में हिन्दू मतवाद नाम का विश्व में कोई मत नहीं है। भारतीय साहित्य के अनुसंधान के क्रम में कई भी इस शब्द का प्रयोग नहीं हुआ है। लेकिन आजकल वैदिक एवं तान्त्रिक परम्परा के लिए इस शब्द का प्रयोग किया जाता है। यह शब्द अरब देशों के लोगों द्वारा सिन्धु अफवाह क्षेत्र में निवास करने वाले जन समुदाय के लिए प्रयोग में किया गया था। जबकि भारतवर्ष एक व्यापक शब्द है जो सिन्धु, गंगा व ब्रह्मपुत्र के अफवाह क्षेत्र के साथ हिमालय पर्वतमाला के दक्षिण तथा हिन्द महासागर के उत्तर में व्यापक क्षेत्र है। भारतवर्ष का शाब्दिक अर्थ पर विचार करे तो इसका क्षेत्र और भी अधिक विस्तृत दिखाई देता है। विश्व के वह सभी भूभाग भारतवर्ष है। जहाँ भरणपोषण एवं सामग्रिक उन्नति सुनिश्चित हो जाएं । जहाँ उपरोक्त शर्त लागू नहीं हो तो उसे भारतवर्ष कहना उचित नहीं है। इसलिए एक उक्ति होनी चाहिए गर्व से कहो हम भारतीय हैं। जहाँ धर्म को सही अर्थों में स्थापित किया गया तथा मानव को जीव कोटि से ब्रह्म कोटि में उन्नत होने के अवसर प्रदान किये जाते हैं। यहाँ शारीरिक, मानसिक एवं आध्यात्मिक विकास के सभी अवसर उपलब्ध करवाया जाते हो उस विचारधारा पर गर्व करना उचित है। यदि किसी भू केन्द्रित या समाज केन्द्रित विचारधारा में मनुष्य को बांधता है वह कुछ भी हो सकता भारत नहीं। भारत समग्र सृष्टि के हित का चिन्तन करने वाले व्यष्टि का समूह है। आनन्दमूर्ति जी समग्रता में है। उन्हें खण्ड में नहीं समझा जा सकता है। आनन्दमूर्ति जी को समझने के लिए मन को सम्पूर्णत्व की ओर ले जाना होगा। जातिय, साम्प्रदायिक, क्षेत्रयी अथवा देश मात्र के विचारों में खोकर आनन्दमूर्ति जी तक नहीं पहुंचा जा सकता है। श्री श्री आनन्दमूर्ति जी के चिन्तन में संकीर्णता का स्थान नहीं है। वहाँ सर्वव्यापकता का निवास है। श्री श्री आनन्दमूर्ति जी ने व्यक्ति को सदैव यह स्मरण करवाया है कि तुम एक मनुष्य हो तथा एक मनुष्य के रूप में अपना परिचय दो।
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श्री आनन्द किरण @ दुनिया के नैतिकवादियों एक हो जाओ।
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