हिन्दूमत बनाम आनन्दमूर्ति-

धर्मयुद्ध मंच से .............
............... @ श्री आनन्द किरण
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"हिन्दूमत बनाम आनन्दमूर्ति-२"
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हिन्दू मतवाद क्रमिक शोध का परिणाम है। मनुष्य केआगमन के प्रारंभिक क्षणों में आहार, निन्द्रा, भय व मैथुनिय से आगे बढ़ते हुए रहस्यमय सृष्टि पर शोध किये गए। वैदिक मत यज्ञ प्रधान था। इस काल में देवतावाद का चलन हुआ। सृष्टि की प्राकृत शक्तियों को देव एवं देवियों नाम दिए गए। तंत्र ने शरीर की नाड़ियों के संगम बिन्दु को देव नाम दिया गया। संस्कृत में पुरुष का सरनाम देव व स्त्री का सरनाम देवी दिया जाता है। तंत्र साधना प्रधान था। इसका में पंच तत्व पर पंच देव सूत्र व कालांतर में सृजन, पालन एवं संहार  के सूत्र पर तीन देवता की परम्परा का विकास हुआ। इतना होने पर भी सृष्टि का कारण तत्व ब्रह्म इन सब से परे आत्मिक आनन्द की राह पर था। जिसका अनुभव तंत्र साधना के बल मनुष्य करता था। आनन्दमूर्ति जी विद्या तंत्र साधना के रुप को स्वीकार करते हैं। इसके साथ योग एवं भक्ति को संयुक्त कर साधना पथ को आनन्दमय बनाया है। तंत्र के संदर्भ में भ्रान्त धारणा छोड़ कर ही व्यक्ति परमतत्त्व की राह पर चल सकता है।  देवताओं के संतुष्टि की कल्पित धारणा एवं मेघ सदृश्य धुआं को जानकर यज्ञवाद बलवान हुआ। कालांतर में इसने हवन, होम, अभिषेक तथा कर्मकांड के नाम पर व्यवसायिक परपरम्परा बन गई मनुष्य परमपद के रास्ते से दूर चला गया। आनन्दमूर्ति जी के चरणों में परमपद से दूर ले जाने वाली इस प्रथा का स्थान नहीं है। वे सूक्ष्म आध्यात्मिक अनुशीलन का समर्थन करते हैं। मूर्ति पूजा वैदिक या तंत्र की अपनी प्रथा नहीं है। यह पौराणिक युग के बाद अन्य से अंगीकार की गई परम्परा है। यद्यपि चित्रकारी एवं स्थापत्य चित्र निर्माण की शैली तंत्र व वैदिक युग से पूर्व की है तथापि यह पूजा के रुप में बाह्य प्रभाव से आई। मूर्ति पूजा सूक्ष्म आध्यात्मिक अनुशीलन की ओर ले जाने की सहगामी कभी नहीं रही। मनुष्य भ्रमवश ऐसा मान लेता है। श्री श्री आनन्दमूर्ति जी ने इसे स्वीकार नहीं किया है उन्होंने मनुष्य को साधना मार्ग, भक्ति का मार्ग बताया है। सामाजिक, धार्मिक, आर्थिक एवं अन्य रुग्ण परम्परा एवं कुप्रथा के विरुद्ध संघर्ष करने की राह दिखाई । यथार्थ को आदर्श तक ले जाने वाला सत्य मार्ग आनन्द मार्ग विज्ञान सहमत रास्ता परपरमतत्त्व आनन्दमूर्ति तक ले जाता है एवं विश्व सुन्दर, सुशील एवं सद्गुणों की ले चलता हैं । आनन्दमूर्ति इसके आदि एवं अनादि सत्ता है। 
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श्री आनन्द किरण @ विश्व बंधुत्व कायम हो
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