............... @ श्री आनन्द किरण
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"हिन्दूमत बनाम आनन्दमूर्ति-३"
हिन्दू मतवाद का ज्ञान पक्ष उपनिषद है। उपनिषद को वेदांत या वेदांग भी कहा जाता है। आत्म तत्व अपरिचित वैदिक सभ्यता में आत्म ज्ञान का उद्भव तंत्र के सम्पर्क में आने के बाद हुआ। प्रारंभ में आर्य एवं अनार्य बीच में खुनी संघर्ष चला कालांतर में एक साथ रहने के कारण दोनों ही सभ्यता का समिश्रण के फलस्वरूप दर्शन का उद्भव हुआ। विश्व के प्रथम दार्शनिक महर्षि कपिल थे। उन्होंने सांख्य दर्शन दिया। तत्पश्चात भारत वर्ष में विभिन्न दर्शनों का प्रादुर्भाव हुआ। श्री श्री आनन्दमूर्ति जी ने शास्त्र तीन प्रकार बताए हैं - श्रुति शास्त्र, स्मृति शास्त्र एवं दर्शन शास्त्र। धर्म के संदर्भ में सद्गुरु एवं प्रवर्तक के उपदेशों का संग्रह श्रुति शास्त्र कहलाता है। समाज को दिशा निर्देश देने के लिए रचित शास्त्र स्मृति शास्त्र है तथा आत्म, परम तत्व एवं सृष्टि के गुढ़ तथ्यों के संदर्भ में की गई गवेषणा दर्शन शास्त्र की परिधि में आती हैं। हिन्दू मत में वेदों को श्रुति शास्त्र कहा गया है। ज्ञान तत्व की विषय वस्तु विस्तृत है। ज्ञान तत्व कितना भी विस्तृत क्यों न हो वह परमतत्व तक पहुंचने के लिए भक्ति तत्व का सहारा लेना पड़ता है। श्री श्री आनन्दमूर्ति जी धरती पर भक्ति जगाने के लिए आए। उसी के क्रम में ज्ञान, विज्ञान , भूगोल, इतिहास, अर्थशास्त्र इत्यादि की भी शिक्षा दी है। आत्म मोक्ष एवं जगत हित के उद्देश्य उन्होंने आनन्द मार्ग जगत को दिया। मनुष्य ज्ञानयोग व कर्मयोग के रास्ते भक्ति ध्येय में प्रतिष्ठित होकर परमपद को प्राप्त करता है। ज्ञान तत्व जिस अखिल विश्व का चिन्तन करता है उसका यथार्थ आनन्द दर्शन है।
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श्री आनन्द किरण @ मानव - मानव एक है, मानव का धर्म एक है।
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