चल पड़ा प्रउत रथ,
धरती पर खुशहाली की कहानी लिखने।
मगही के अंचल में प्रगति की नवजोत जले ।।
हे राही
थकना नहीं,
मुड़ना नहीं,
निज कर्तव्य नित पुकारे तुम्हें।
नव निर्माण, नव उत्थान भी करना है तुम्हें।।
रुकना नहीं,
करना नहीं विश्राम,
नव चेतना जगानी है तुम्हें।
हे! मुर्दा दिलों नव प्राण,
सुप्त पड़ी मनीषा में नव जोश फूंकना है तुम्हें।।
हे रथी!
रथ का पहिया नित आगे बढ़े, यह जिम्मा लेना है तुम्हें।
प्रगतिशील मगही समाज उठ खड़ा हुआ है, संग तुम्हारे।।
भोजपुरी, अंगिका, मिथिला और नागपुरी हुँकार भर रहे हैं, देख तुम्हें ।
अवधि, ब्रज, बुंदेलखंडी, बघेलखंडी व हरियाणवी नहीं कभी नहीं रहेंगे पीछे।।
पंजाबी, कशियारी, डोगरी, लद्दाख़ी पहाड़ी, सिरमौर, गढ़वाल व कुमाऊँ चलेंगे संग तुम्हारे।
लिप्सा, बोडो, असमिया, बंगाली, उत्कल व कोशल रहते है सदैव आगे।।
श्रीकारी, रायलसीमा, तेलंगाना, तमिल मलयाली, कोडागु, तुलु और कन्नड़ का बल दिखना तुम्हें।
छत्तीसगढ़ी, मालवा, कोंकणी, सह्याद्री, विदर्भ, गुजर, काठियावाड़ी व कच्छी को लेकर चलना है तुम्हें।।
हे! त्याग की प्रतिमूर्ति,
वीरों की भूमि का इतिहास बताता है।
मेवाड़ी हाड़ौती व मारवाड़ी प्रउत का ध्वज फैलाने मिलेंगे सदैव सबसे आगे।।
चल महारथी,
प्रउत का काफिला तेरे संग है,
बाबा की फौज तुम्हारे साथ है।
धर्म तुम्हारा कवच है,
नवयुग तुम्हारी मुठ्ठी में है।।
कविराज - श्री आनन्द किरण "देव"
यह शब्द माला आदरणीय सुशील दादा ( तात्विक श्री सुशील रंजन) को समर्पित है।।
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