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करण सिंह की कलम से
Karan Singh
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आज एकादशी है - हिन्दू मान्यता के अनुसार यह देवशयनी एकादशी है। बताया जाता है कि आज के दिन देवता सो जाएंगे, हिन्दू साधु संतों का रथ जहाँ है, वही थम हो जाएगा। इस घटना को हिन्दू मान्यता में चातुर्मास की शुरुआत कहते हैं। कार्तिक माह में देवउठनी एकादशी के दिन देवता उठ जाएंगे। इस वर्ष 29 जून 2023 से 23 नवंबर 2023 तक चलने वाले चातुर्मास में लगभग 5 महिने (4 मास 25 दिन) अर्थात 21 सप्ताह अर्थात 147 दिन अर्थात 3528 घंटे होंगे। इसमें सबसे बड़ा कथन देव शयन एवं उठन है। जो आलेख को लिखने के लिए प्रेरित किया।
मैं सभी की आस्थाओं का आदर करता हूँ तथा मुझे किसी की आस्था पर कुठाराघात करने का अधिकार नहीं है। लेकिन मेरे पास युक्ति द्वारा समझने एवं समझाने का कर्तव्य सुरक्षित है। उसके आधार पर उक्त कथन को समझने जा रहा हूँ। कथन के मूल में है कि भगवान विष्णु इस समयावधि में योगनिद्रा में रहे थे अथवा रहते थे। भगवान विष्णु को हिन्दू मान्यता में तीन प्रमुख देवता में से एक माना गया है। जिनका कार्य जगत का पालन करने का है। इनकी अर्द्धांगिनी माता लक्ष्मी है। जिसे धन की देवी अथवा धन का प्रतीक माना गया है। बताया जाता है कि विष्णु भगवान क्षीरसागर में शेषनाग की शय्या पर एक करवट पर सोये है, देवी लक्ष्मी उनकी पाद सेवा कर रही है। विष्णु का गुण विस्तार अथवा विवृत होना है। इस प्रकार हमने देव शयन एवं उठन के बीच का मूल कथन समझे। अब देव शब्द तथा उसके शयन व उठन का विज्ञान समझते हैं।
वैसे देव को दिव्य शक्ति अथवा अलौकिक शक्ति भी कहा जाता है लेकिन देव शब्द (द + इव) का अर्थ देने को बाध्य हो उस रुप में अथवा उस तरह का होता है। कुछ निश्चित क्रिया करने पर उसका क्रियाफल अथवा उत्पाद निश्चित रूप से प्राप्त होगा। उदाहरण वरुण देव - इन्हें यदि हाइड्रोजन व आक्सीजन 2:1 में देंगे तो जल के रूप में प्रकट होंगे। जो व्यक्ति के लिए पीने, कृषि करने, घरेलू का इत्यादि में उपयोगी है। इसी प्रकार विभिन्न गैसों को निश्चित अथवा अनिश्चित अनुपात में मिलाने से वायु देव का निर्माण होता है, जो प्राणवायु, पेड पौधो के खाद्य एवं विभिन्न का में उपयोग होता है। चूंकि उन्हें मौलिक माना गया है इसलिए देव को अमर कहा गया है। इनमें व्याप्त गुणों को वरदान माना गया है इसलिए इसलिए दिव्य कहा गया है। इस प्रकार वैदिक युग में ऋषि मुनियों ने कुछ मौल पदार्थ खोजे जिन्हें अलौकिक शक्ति नाम देकर देव शब्द का प्रयोग किया गया। इसका स्त्रिलिंग देवी बना। यह तो देव शब्द का अर्थ का विज्ञान मेरी समझ में आया। अब शयन एवं उठन को समझने का प्रयास करते हैं।
शयन का अर्थ सोना(to sleep) अथवा सुप्त अवस्था। देव शयन के अर्थ में देखे तो देवों की सुप्तावस्था है। देव को समाज में शुभ शक्ति का प्रतीक माना गया है। शुभ शक्ति यद्यपि कोई सुप्तावस्था नहीं तथापि अशुभ शक्ति के जागरण अवस्था को शुभ शक्ति के शयन की अवस्था कह सकते हैं। यह दिन जीव जन्तुओं के प्रजनन या जागरण का काल होता है इसलिए मनुष्य को अपने आमोद प्रमोद बंद कर देने चाहिए ताकि यह निर्विघ्नं अपना कार्य कर सके। ऐसा भी माना गया है। एक अन्य मान्यता के अनुसार इस अवधि में नदी नाले उफान पर होते हैं। इसलिए इन दिनों पर्यटन एवं यात्राएँ स्थगित करने की व्यवस्था नीति शास्त्र देता है। अन्य उक्ति इन दिनों खेतीहर के लिए बहुत व्यस्तता रहती है। यद्यपि रबी की फसल में भी काम होता है लेकिन इसे अधिक व्यस्त अवधि माना गया है। इसलिए अनार्थिक क्रियाओं को स्थगित रखा गया होगा। उठना अर्थ जागरण अर्थात शुभ शक्तियों का आधिक्य है। शरीर मनोविज्ञान बता है कि विजयदशमी अषाढ़ माह तक शरीर में क्षारीय तत्वों का प्रभाव अधिक होता है जबकि वर्षा के दिनों में अम्लता की अधिकता होती है। वनस्पति विज्ञान में इन दिनों फल व सब्जियों में जीवों का पाया जाना स्वभाविक है, इसलिए जैन मत तो चौमासा के दिनों में अधिक से अधिक सुखी सब्जी एवं सुखा मेवा लेते हैं।
देव, शयन व उठन का विज्ञान समझने के आध्यात्मिक शास्त्र की ओर चलते हैं। दसों दिशा, दिन का प्रत्येक क्षण, सप्ताह का प्रत्येक वार, पखवाड़े की प्रत्येक तिथि, महिने का प्रत्येक दिन, वर्ष का प्रत्येक दिन पवित्र है। कोई भी अपवित्र नहीं है। सार्वजनिक रूप से आध्यात्मिक शक्तियां न कभी सोती है तथा न कभी जागती है। व्यष्टिगत जीवन में आलस्य, दीर्ध सूत्रता, प्रमाद अविवेकी चिंतन इत्यादि आध्यात्मिक यात्रा में बाधक है, उसे किसी क्षण, वार, तिथि, दिन, माह अथवा वर्ष में त्याग कर संकल्प शक्ति का जागरण किया जा सकता है। इसलिए इस बोझिल धारणा को आध्यात्मिक जगत में स्थान नहीं दिया गया है।
विष्णु के शयन एवं जागरण का कथन पर विचार करते है। विष्णु के अर्थ में परमपिता पालक के रूप में होते हैं। पालन करने वाले यदि सो गया तो क्या होता है? यह स्वयं ही चिंतन करें। यदि यह कथन किसी यह मान्यता सारगर्भित लगता है तो अवश्य ही बताईये। भगवान देश, काल, पात्र एवं भाव के अतीत है, इसलिए जागरण एवं शयन की अवस्था कदापि परमात्मा के लिए नहीं है। यदि प्राकृतिक एवं अप्राकृतिक शक्तियां जिन्हें देव कहा गया है उनके लिए भी शयन व जागरण का कथन अयुक्तिकर है।
मैं किसी की आस्था पर हमला नहीं करता हूँ इसलिए युक्ति की मदद से समझता एवं समझता हूँ। यद्यपि किसी की धार्मिक मान्यता को ठेस पहुँचाना हमारा उद्देश्य नहीं तथापि किसी की धार्मिक मान्यता को ठेस पहुँची हो तो क्षमा चाहता हूँ।
ॐ मधुवता ऋतायते.........
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करण सिंह
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