राजनीति एवं समाजनीति (politics and social policy)


राजनीति में व्यक्ति एवं दल होता है जबकि समाजनीति में समाज एवं आदर्श होता है।

राजनीति में जीत एवं हार के फार्मूले होते हैं जबकि समाजनीति में प्रगति एवं खुशहाली की सूत्र होते हैं। 

राजनीति में चेहरों की अदला बदली होती है जबकि समाजनीति में कुव्यवस्था सुव्यवस्था में बदलती है। 

राजनीति में इधर उधर की बातें होती है। समाजनीति में नव चेतना का जागरण होता है। 

राजनीति में स्वयं को चमकाने की प्रतिस्पर्धा होती है जबकि समाजनीति में समाज के विकास पर विचार विमर्श होता है। 

राजनीति में राज करने की महत्वाकांक्षा होती है जबकि समाजनीति में समाज को आगे बढ़ाने की चाहत होती है। 

राजनीति अनगल वाद विवाद होते हैं जबकि समाजनीति सामाजिक आर्थिक उन्नयन पर चिन्तन होता है। 

राजनीति में राजनेता आदर अनादर के शिकार होते हैं जबकि समाजनीति में समाज के पुरोधा सम्मान पाते है। 

राजनीति में भीड़ जुटानी पड़ती जबकि समाजनीति में कारबा स्वत: ही बनता है। 

राजनीति में गठजोड़ करना पड़ता है जबकि समाजनीति में एकता की पहचान होती है। 

राजनीति में धनबल की होड़ होती है जबकि समाजनीति में धन का त्याग होता है। 

राजनीति में जिन्दाबाद मुर्दाबाद होता है जबकि समाजनीति में परमपिता का जयकारा होता है। 

राजनीति में धोखाधड़ी होती है जबकि समाजनीति में अपनत्व का जागरण होता है। 

राजनीति में खींचातान होती है जबकि समाजनीति में एकता की प्रबलता होती है। 

मित्रों भारतवर्ष राजनीति से नहीं समाजनीति से चलता है। 

राजनीति की ओर समाज को नहीं ले चलों अपितु समाज की ओर राज को लाओ। 
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        करण सिंह
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