💥धर्मयुद्ध मंच से💥
✍श्री आनन्द किरण✍
भगवान श्रीकृष्ण के शंख का नाम पंचजन्य था। जो धर्म युग, नये युग के शुभारंभ के प्रतीक के रुप में जाना जाता है। सामाज के मूल्य जब रुग्ण तथा मृत व्यवस्था के द्योतक बन जाता है तब समाज में निष्कर्मणियता अथवा विनाशमुखी दिशा में गतिमान होते उस स्थिति में समाज में पशुता अथवा दैत्योचित्त प्रभाव में वृद्धि हो जाती है। सज्जन एवं आमजन में असुरक्षा भाव पैदा हो जाता है। आमजन बुराई के समक्ष नतमस्तक होकर अपनी प्राणिता के बचाव हेतु अपने निजत्व को कुचक्र के हवाले कर देते हैं लेकिन सत पुरुष के लिए यह राह संभव नहीं है इसलिए वे कुचक्र को उखाड़ फैकना चाहते हैं, तब उनका टकराव बुराई से होता है। बुराई सत्य को निगलने को आतुर हो जाती है। शक्ति एवं सामर्थ्य का पलड़ा जब तक दुर्जनों को अधिक होता है, तब तक सत्य सताया जाता है। समाज वैज्ञानिकों ने इस स्थिति का नाम धर्म की ग्लानि दिया है। प्रकृत विज्ञान के अनुसार समाज में जब - जब भी उपरोक्त स्थिति का सृजन हुआ है तब - तब सत्य एवं धर्म की रक्षार्थ एक अद्वितीय शक्ति का प्रकाश किसी पंच भौतिक सत्ता में दिखाई दिया है। उस सत्ता ने सज्जनों की इन दुर्जनों एवं विनाशकारी व्यवस्था से रक्षा की है तथा नये युग का पंचजन्य फूंका गया हैं। पंचजन्य की आवाज में सृजन है। धर्म के आगमन की सूचना है। यह पंचजन्य अविरल एवं अविराम भाव से अपनी अलौकिक शक्ति का विसर्जन करता रहे ताकि मानवता उसकी छत्रछाया में सुरक्षित एवं पल्वित रहे इसलिए परम पुरुष पंचजन्य की शंखनाद शक्ति आध्यात्मिक नैतिकवान व्यक्तियों के प्रदान करते हैं। वे आध्यात्मिक शक्तिपुंज स्वयं एवं समाज की असत्य से संघर्ष करने की शक्ति को उत्तरोत्तर वृद्धिमान करने के प्रति दिन ब्रह्म मुर्हत में पंचजन्य की विशेष तंरग का विसर्जन करते हैं। उसे पवित्र या अपवित्र किसी भी भाव से नादकर्ता एवं नाद के श्रवण कर्ता के कल्याण में वृद्धि करता है। यह तरंग माया की फांसी को काटता हैं तथा पाप शक्ति नाद की तरंग से कट जाती है। जिसके परिणामस्वरूप एक आनन्दमयी सृष्टि की रचना होती है। यह प्रकृत विज्ञान हैं तथा परम सत्ता का समाज को दिया गया अवदान हैं। यह नाद पंच + जन् + य = पाच प्रकार जनतांत्रिक एवं यांत्रिक ऊर्जा का जागरण करता है। प्रथम संगीत शक्ति, द्वितीय कीर्तनय शक्ति, तृतीय साधना शक्ति चतुर्थ गुरु वंदना शक्ति तथा अन्तिम सत को समर्पण की शक्ति है। प्रत्येक जन के मन में उक्त पंच 👊 शक्ति का जागरण एक संगठित समाज के निर्माण की आधारशीला हैं तथा स्वस्थ एवं स्वच्छ परिवेश का निर्माण है। पंचजन्य राग वैराग्य, आध्यात्मिक, श्रद्धा एवं समर्पण का नाद हैं। पंचजन्य यही नाद करता है।
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