*🔥 प्रउत का मारवाड़ी समाज🔥*
अध्याय - 01
प्राचीन काल का मरूदेश आज मारवाड़ी समाज के रुप में आया है। मूलत: मारवाड़ी शब्द मृ धातु से बना मौत की भूमि। यहाँ के वीर जीवन मूल्य से समाज मूल्य को बल देते थे। सम एवं विषम परिस्थितियों में जिसके पास झूंझने की शक्ति होती थी। वह मरुवीर की उपमा पाता था। उससे मरुवाट शब्द उसी से मरुधरा शब्द आया है। राजस्थान की मारवाड़ रियासत जोधपुर के कारण मारवाड़ी, मरुधरा एवं मरवाड़ का अर्थ सीमित क्षेत्र के लिए लेते देखे गए है। वस्तुत: जोधपुर, बीकानेर, अजमेर, जयपुर व भरतपुर संभाग में मारवाड़ी समाज क्षेत्र का विस्तार है। यहाँ के लोग अपनी भाषा को मारवाड़ी कहते है। आजकल राजस्थानी भाषा शब्द का प्रयोग किया जाता है, जो पूर्णतया गलत है।भाषा का नाम राजस्थानी नहीं मारवाड़ी, मेवाड़ी एवं हाडौती है।
मारवाड़ी समाज की संरचना - मारवाड़ी समाज परिक्षेत्र में भारतवर्ष के राजस्थान प्रांत के 5 संभागों में विभक्त 19 जिलें तथा पाकिस्तान के पंजाब प्रांत का बहावलनगर जिला है। अत: मारवाड़ी समाज के केन्द्रीय कार्यालय निर्देशन में दो राष्ट्रीय कार्यालय भी कार्यरत होंगे। यह समाज के प्रादेशिक कार्यालय भी है।
*(I). भारतवर्ष राष्ट्रीय इकाई ( मारवाड़ी समाज)* - मारवाड़ी समाज भारतवर्ष राष्ट्रीय इकाई जो राजस्थान प्रदेश इकाई है, यह केन्द्रीय कार्यालय के साथ संचालित होता है।
मारवाड़ी समाज की इस इकाई में 5 संभाग की 19 भुक्तियां है।
*A. बीकानेर संभाग* - इस संभाग में 4 भुक्तियां है।
*1. श्रीगंगानगर भुक्ति* - श्रीगंगानगर ज़िला भारत के राजस्थान राज्य का एक ज़िला है। ज़िले का मुख्यालय श्रीगंगानगर है। ज़िले को "राजस्थान का पंजाब " कहा जाता है इसका करण यहाँ पंजाबियो की बहुतायत है। यह "राजस्थान का अन्नदाता" जेसे नामो से भी मशहूर है। इस ज़िले का नाम बीकानेर के महाराजा गंगासिंह के नाम पर पड़ा है। इस समय यह बहुत ही अधिक निर्जन स्थानो में से था। पहले इसका नाम रामनगर था। इसका प्राचीन नाम रामू जाट की ढाणी था।वर्तमान में ये भूभाग सोढल गढ़ और चुंघेर जैसे दुर्गों को अपने आप में सँजोये हुआ है। इस जिले को बागानों की भूमि भी कहते है।
*प्रशासनिक स्वरुप* - श्रीगंगानगर जिले में 9 तहसीलें है, इन तहसीलों के नाम श्री गंगानगर, श्री करनपुर, सदुलशहर, पद्मपुर, रायसिंगनगर, सूरतगढ़, अनूपगढ़, श्री विजयनगर और घारसाना है।
*राजनैतिक स्वरुप*- श्रीगंगानगर जिले में ५ विधान सभा सीटें है, इन ५ विधानसभा क्षेत्रो के नाम 1. गंगानगर 2. करणपुर 3. सूरतगढ़ 4. रायसिंगनगर और 5. अनुपगढ़।
*2. हनुमानगढ़ भुक्ति* - हनुमानगढ़ जिला राजस्थान के बीकानेर मण्डल के अंतर्गत आता है, हनुमानगढ़ जिला राजस्थान के जिलों में 31वे नम्बर का जिला है जो की 13 जुलाई 1994 में बना, हनुमानगढ़ जिला पहले श्री गंगानगर जिले की एक तहसील हुआ करती थी, उसी ने निकल कर इसे जिला बनाया गया है। प्राचीन काल में योद्धेय क्षेत्र के उपनाम से प्रसिद्ध राजस्थान के हनुमानगढ़ जिले से मिश्र सभ्यता एवं सिंधु सभ्यता से भी पूर्व की पूर्व हड़प्पा सभ्यता तथा हड़प्पा कालीन सभ्यता के अवशेष कालीबंगा में उत्खनन में प्राप्त हुए हैं। हनुमानगढ़ को हनुमानगढ़ का क्षेत्र घग्घर नदी की बाढ़ के लिए प्रसिद्ध है। यादवों के वंशज भट्टी के पुत्र भूपत ने 285 ईस्वी में भटनेर किले (हनुमानगढ़ किला) का निर्माण करवाया था। भटनेर का दुर्ग मध्यकाल में राजस्थान का उत्तरी सीमा का प्रहरी कहलाता था।
*प्रशासनिक स्वरुप* -हनुमानगढ़ जिले में सात तहसीलों हैं: हनुमानगढ़, संगरीया, रावतार, नोहर, भद्र, तिब्बी और पिलिबांगा। इन सात तहसीलों में हनुमानगढ़ तहसील सबसे बड़ी और तिब्बी तहसील सबसे छोटी तहसील है।
*राजनैतिक स्वरुप* - हनुमानगढ़ जिले में 4 विधान सभा क्षेत्र है, इन विधासभा सीटों के नाम 1. हनुमानगढ़, 2. पीलीबंगा , 3. नोहर, 4. भद्रा।
*3. बीकानेर भुक्ति* - राती घाटी ,ऊन का घर , जांगल प्रदेश व ऊटों का देश उपनाम विख्यात बीकानेर जिला राजस्थान राज्य के बीकानेर मण्डल के अंतर्गत आता है, बीकानेर जिले का मुख्यालय बीकानेर नगर ही है। जोधपुर नरेश राव जोधा के पुत्र राव बीका ने 1465 में जांगल प्रदेश के विभिन्न छोटे-छोटे क्षेत्रों को जीत कर इस क्षेत्र में राठौड़ राजवंश के शासन की शुरुआत की एवं बीकानेर रियासत की स्थापना की थी। राव बीका ने 1588 ईस्वी में बीकानेर शहर को बसाकर उसको अपनी राजधानी बनाया था। स्वतंत्रता के बाद 30 मार्च 1949 को बीकानेर रियासत का राजस्थान में विलय हो गया था। बीकानेर में एशिया की सबसे बड़ी ऊन की मंडी स्थित है।
*प्रशासनिक स्वरुप* -बीकानेर जिले में 8 तहसील है, इन 8 तहसीलों के नाम 1. बीकानेर 2. छतरगढ़ 3. खाजूवाला 4. कोलायत 5. लूणकरणसर 6. नोखा 7. पूगल और 8. श्रीडूंगरगढ़, 8 तहसीलों में पूंगल और खाजूवाला तहसीलों की गिनती छोटी तहसीलों में है, जबकि कोलायत तहसील सबसे बड़ी तहसील है।
*4. चूरु भुक्ति* - चूरु जिला राजस्थान के बीकानेर मण्डल का एक महत्वपूर्ण जिला है। काले हिरणों के अभयारण्य (ताल छापर वन्य जीव अभयारण्य) के लिए विश्व भर में प्रसिद्ध राजस्थान का चूरू जिला अपने हवेलियों के लिए भी प्रसिद्ध रहा है। यहां की 6 मंजिली सुराणा हवेली (जिसमें 110 दरवाजे -खिड़कियां हैं), ढोला मारु के चित्र, कोठारी हवेली आदि प्रसिद्ध है। राजस्थान का चूरू जिला राज्य में सबसे कम वन क्षेत्र वाला जिला है। इस जिले से कोई भी नदी प्रवाहित नहीं होती है। 1 नवंबर 1956 को राजस्थान के एकीकरण पूर्ण होने के तहत चूरू को जिले का दर्जा प्राप्त हुआ था।
*प्रशासनिक स्वरुप* - चूरू जिले में 6 तहसीलें है, इन तहसीलों के नाम 1. चूरू 2. राजगढ़ 3. रतनगढ़ 4. सरदारशहर 5. सुजानगढ़ और 6. तारानगर है, इन 6 तहसीलों में रतनगढ़ सबसे छोटी तहसील है और राजगढ़ तहसील सबसे बड़ी तहसील है।
*राजनैतिक स्वरुप* - चूरू जिले में 5 विधान सभा क्षेत्र है, 1. तारानगर, 2. सरदारशहर, 3. चूरू 4. रतनगढ़ 5. सुजानगढ़
*B. जोधपुर संभाग* - इस संभाग में 6 भुक्तियां है।
*5. जोधपुर भुक्ति* -जोधपुर जिला राजस्थान के जोधपुर मण्डल का एक जिला है, जिले का मुख्यालय जोधपुर नगर में ही है, 'थार मरुस्थल का प्रवेशद्वार' एवं 'सूर्य नगरी' के उपनाम से प्रसिद्ध जोधपुर शहर की स्थापना 1459 ईस्वी में राठौड़ शासक राव जोधा ने की थी। जोधपुर में मेहरानगढ़ दुर्ग जिसे जोधपुर दुर्ग भी कहा जाता है, का निर्माण भी 1459 ईसवी में चिड़िया टूंक पहाड़ी पर करवाया गया था। इसी पहाड़ी के पास वर्तमान जोधपुर शहर बसाया गया एवं इसे अपनी राजधानी बनाया गया। जोधपुर में 1814 ईसवी में नगर परिषद बनी। जोधपुर का क्षेत्रफल : 22850 वर्ग किलोमीटर हैं।
*प्रशासनिक स्वरुप* - जोधपुर जिले में ७ तहसीलें है, इन तहसीलों के नाम 1. भोपालगढ़ 2. बिलार 3. जोधपुर 4. लूनी 5. ओसियां 6. फलोदी 7. शेरगढ़, इन सात तहसीलों में ग्रामो की संख्या के आधार पर फलोदी तहसील सबसे बड़ी तहसील है और बिलार तहसील सबसे छोटी तहसील है।
*राजनैतिक स्वरुप* - जोधपुर जिले में 9 विधान सभा क्षेत्र है इन विधान सभा सीटों के नाम 1. लोहारत 2. शेरगढ़ 3. ओसियन 4. भोपालगढ़ 5. सरदारपुरा 6. जोधपुर 7. सूरसागर 8. लुनी 9. बिलाारा।
*6. जैसलमेर भुक्ति* - जैसलमेर जिला राजस्थान के जिलो में सबसे कम जनसँख्या वाला जिला है, जैसलमेर जिला राजस्थान के जोधपुर मण्डल के अंतर्गत आता है और इस जिले के मुख्यालय जैसलमेर नगर में ही है। प्रसिद्ध राजस्थान के जैसलमेर शहर को 1155 ईस्वी में राव जैसल द्वारा बसाया गया था। जैसलमेर का किला त्रिकूट पहाड़ी (गोडाहरे पहाड़ी) पर स्थापित है। इसलिए इसे त्रिकूटगढ़/त्रिकूटांचल/गोडहरा भी कहा जाता है।
*प्रशासनिक स्वरुप* - जैसलमेर जिले में ३ तहसीलें है, जिनके नाम 1. फतेहगढ़ 2. जैसलमेर 3. पोखरण, इन तीन तहसीलों में ग्रामो की संख्या के आधार पर सबसे बड़ी तहसील जैसलमेर है और सबसे छोटी तहसील फतेहगढ़ तहसील है।
*राजनैतिक स्वरुप* - जैसलमेर जिले में विधान सभा की दो सीटें है, पहले विधानसभा सीट जैसलमेर है और दूसरी सीट पोखरण है। यह बाडमेर लोकसभा क्षेत्र में है।
*7. बाडमेर भुक्ति* - बाडमेर जिला राजस्थान में है, जिले का मुख्यालय बाडमेर नगर है। "बाढ़ाणा/मालाणी" उपनाम से प्रसिद्ध तेल एवं प्राकृतिक गैस खनिज संपदा के धनी बाड़मेर जिले को 1246 ईसवी में बरहड़देव ने बसाया था।
*प्रशासनिक स्वरुप* - बाड़मेर में 8तहसीलें है, जिनके नाम कुछ इस तरह से है, 1. बाड़मेर 2. बायतू 3. चोहटन 4. गुढा मालानी 5. पचपदरा 6. रामसर 7. शेव और 8. सिवाना, इन 8 तहसीलों में गुढा मालानी सबसे बड़ी तहसील है और सिवाना तहसील सबसे छोटी तहसील है।
*राजनैतिक स्वरुप* - बाड़मेर जिले में 6 विधान सभा क्षेत्र है, इन विधानसभा सीटों के नाम 1. बाड़मेर, 2. बायतू, 3. पचपदरा, 4. सिवाना, 5. गूढ़ मालानी, 6. चोहटन।
*8. जालोर भुक्ति* - जालोर जिला राजस्थान के 33 जिलो में से एक है और ये जोधपुर मण्डल में आता है। महर्षि जाबालि की तपोभूमि जालौर को प्राचीन काल से अनेक नामों से पुकारा जाता रहा हैं। जालौर के प्रसिद्ध उपनाम -सुवर्ण नगरी, ग्रेनाइट सिटी, जाबालीपुर व जालहुर है। बिजोलिया शिलालेख के अनुसार सुवर्णगिरी पहाड़ी के पूर्वी भाग में स्थित महर्षि जाबालि की तपोभूमि/कर्मभूमि होने के कारण जालौर को प्राचीन काल में जाबालीपुर के नाम से जाना जाता था।
*प्रशासनिक स्वरुप* - जालोर जिले में 7 तहसीलें है, जिनके नाम 1. आहोर 2. बागोरा 3. भिनमाल 4. जालोर 5. राणीवाड़ा 6. सांचौर और 7. सायला है, इन 7 तहसीलो में ग्रामो की संख्या के दर पर सबसे छोटी तहसील सायला है और सबसे बड़ी तहसील सांचोर है ।
*राजनैतिक स्वरुप* - जालोर जिले में 5 विधान सभा क्षेत्र है, इन विधानसभा सीटों के नाम 1. जालोर. भीनमाल 3. सांचौर 4. आहोर और 5. रानीवाड़ा है।
*9. सिरोही भुक्ति* - सिरोही जिला राजस्थान के जिलों में तीसरा सबसे कम जनसँख्या बाला जिला है, सिरोही जोधपुर मण्डल का जिला है और इसका मुख्यालय सिरोही नगर में ही है। सिरोही जिले को सहसमल ने 1425 ईस्वी में बसाया था। सिरोही का नाम 'सिरानवा हिल' के नाम पर पड़ा है। कर्नल जेम्स टॉड के अनुसार सिरोही नगर का मूल नाम शिवपुरी था।
*प्रशासनिक स्वरुप* - सिरोही जिले में 5 तहसीलेँ है, इन 5 तहसीलों के नाम इस तरह से है 1. आबू रोड 2. पिंडवारा 3. रेवदर 4. शिवगंज 5. सिरोही, सिरोह जिले की इन 5 तहसीलो को ग्रामो की संख्या के आधार पर देखे तो शिवगंज तहसील सबसे छोटी तहसील है जबकि रेवदर तहसील सबसे बड़ी तहसील है।
*राजनैतिक स्वरुप* - सिरोही जिले में 3 विधान सभा क्षेत्र है, इन दोनों विधान सभा सीटों के नाम 1. पिंडवाड़ा, 2. सिरोही और 3. रेवदर।
*10. पाली भुक्ति* - पाली जिले के पूर्वी भाग में अरावली पर्वत माला श्रंखला स्थित है।
*प्रशासनिक स्वरुप* - जिले में बाली, देसूरी, जैतारण, मारवाड़ जंक्शन, पाली, रायपुर, रोहट, सोजत व सुमेरपुर नामक 9 तहसीले है।
*राजनैतिक स्वरुप* - बाली, जैतारण, मारवाड़ जंक्शन, पाली, सोजत व सुमेरपुर नामक 6 विधानसभा क्षेत्र है तथा यहाँ पाली लोकसभा क्षेत्र है तथा जैतारण तहसील राजसमंद लोकसभा में है।
*C. अजमेर संभाग* - इस संभाग के 4 में से 3 भुक्तियां मारवाड़ी समाज में है।
*11. नागौर भुक्ति* -नागौर जिला राजस्थान के ३३ जिलों में से १ है, नागौर अजमेर मण्डल के अंतर्गत आता है और इसका मुख्यालय नागौर नगर में है। नागौर जिले भारत के पश्चिमी राज्य राजस्थान के बिलकुल मध्य में स्थित है। इसे प्राचीनकाल से अहिच्छत्रपुर के नाम से जाना जाता रहा है और यह जंगल प्रदेश की राजधानी भी रहा था।
*प्रशासनिक स्वरुप* - नागौर जिले में 10 तहसीलें है, इन 10 तहसीलों के नाम 1. डेगाना 2. डीडवाना 3. जायल 4. खींवसर 5. लाडनू 6. मकराना 7. मेड़ता 8. नागौर 9. नावाँ 10. परबतसर है, इन 10 तहसीलों में ग्रामो की संख्या के आधार पर खींवसर तहसील तहसील सबसे छोटी तहसील है और नावाँ तहसील सबसे बड़ी तहसील है।
*राजनैतिक स्वरुप* - नागौर जिले में 9 विधान सभा क्षेत्र है, इन विधान सभा सीटों के नाम 1. देवड़ावाना 2. जायल 3. नागौर 4. खींवसर 5. मेड़ता 6. देगाना 7. मकराना 8. परबतसर 9. नावाँ
*12. अजमेर भुक्ति* - देश के प्रथम पूर्ण साक्षर जिले के पुरस्कार से सम्मानित व सांप्रदायिक सद्भाव का संगम राजस्थान के हृदय स्थल व भारत के मक्का एवं धर्म नगरी आदि अनेक नामों से प्रसिद्ध अजमेर नगर की स्थापना चौहान राजा अजय राज ने 1113 ईस्वी में की। अजमेर में अजयमेरू दुर्ग स्थित है।
*प्रशासनिक स्वरुप* - अजमेर जिले में 9 तहसीलें है जिनके नाम 1. अजमेर 2. बीवर 3. भिनाय 4. केकड़ी 5. किशनगढ़ 6. मसूद 7. नसीराबाद 8. परबतसर 9. सरवर इन 9 तहसीलों में बीवर तहसील सबसे बड़ी तहसील है और परबतसर तहसील सबसे छोटी तहसील है।
*राजनैतिक स्वरुप* - अजमेर जिले ७ विधान सभा क्षेत्र है, इन विधानसभा सीटों के नाम 1. पुष्कर 2. अजमेर उत्तर 3. अजमेर साउथ (एससी) 4. नसीराबाद 5. बीवर 6. मासुदा और 7. केकरी है।
*13. टोक भुक्ति* - टोंक जिला राजस्थान के जिलों में ११वा सर्वाधिक कम जनसँख्या बाला जिला है, टोंक अजमेर मण्डल का जिला है और इसका मुख्यालय टोंक नगर में ही है। टोंक को भोला ब्राह्मण ने भूमगढ़ नाम से बसाया था। 1817 ईस्वी में आमिर खान पिंडारी ने इसे अपनी रियासत का केंद्र बनाया। आमिर खान पिंडारी को राजस्थान के कोटा के जालिम सिंह ने सरंक्षण दिया। एकमात्र रियासत जहां मुस्लिम नवाबों ने शासन किया था।
*प्रशासनिक स्वरुप* - टोंक जिले में 7 तहसीलें है, इन तहसीलो के नाम ये है 1. डॉली 2. मालपुरा 3. निवाई 4. पीपलू 5. टोडारायसिंह 6. टोंक और 7. उनियारा है. इन 7 तहसीलों में ग्रामों की संख्या के आधार पर निवाई तहसील सबसे बड़ी तहसील है एय
*राजनैतिक स्वरुप* - टोंक जिले में 3 विधान सभा सीटें है, इन 3 विधानसभा क्षेत्रो के नाम 1. निवाई 2. टोंक 3. देवली है।
( इस संभाग का भीलवाड़ा मेवाड़ी समाज में है)
*D. जयपुर संभाग* - इस जिले की 5 में से 4 भुक्तियां मारवाड़ी समाज का अंग है।
*14. झूंझनू भुक्ति* - झुन्झुनू जिला राजस्थान के जयपुर मण्डल का एक जिला है, झुन्झुनू जिले का मुख्यालय झुन्झुनू नगर में है। 'शेखावटी का सिरमौर जिला' झुंझुनू जिले में फिरोज खान तुगलक के बाद कायम खां के पुत्र मुहम्मद खान ने राज किया था। इनके बाद वहां पर शेखावत राजपूतों ने आधिपत्य कर लिया। झुंझुनू जिला आज राजस्थान में सांप्रदायिक सद्भाव की दृष्टि से अपनी विशिष्ट पहचान रखता है। झुंझुनू जिले को बचाए जाने के बारे में अलग-अलग इतिहासवेताओं के अलग-अलग मत हैं। एक मत के अनुसार झुंझुनू जिले को 1451-88 के बीच में जुंझा नामक जाट ने बसाया था।
*प्रशासनिक स्वरुप* - झुंझुनू जिले में ६ तहसील है, इन तहसीलों के नाम 1. बुहाना 2. चिरावा 3. झुंझुनू 4. खेतड़ी 5. नवलगढ़ और 6. उदयपुरवाटी , ग्रामो की संख्या के आधार पर झुंझुनू तहसील सबसे बड़ी तहसील है और उदयपुरवाटी तहसील सबसे छोटी तहसील है।
*राजनैतिक स्वरुप* - झुंझुनू जिले में 7 विधान सभा क्षेत्र है, इन विधानसभा सीटों के नाम 1. झुंझुनू, 2. मंडवा, 3. पिलानी, 4. नवलगढ़, 5. खेत्री, 6. उदयपुरवाटी, और 7. सूरजगढ़।
*15. सीकर भुक्ति* - सीकर जिला राजस्थान के जिलों में निर्माण के आधार पर २३वे नम्बर का जिला है, ये जयपुर मण्डल में आता है और इसका मुख्यालय सीकर नगर में है। सीकर जिले के संस्थापक राव शिवसिंह थे। एक अन्य मत के अनुसार सीकर जिले को राव दौलत सिंह ने 17 वीं शताब्दी में बसाया था।
*प्रशासनिक स्वरुप* - सीकर जिले में 6 तहसीलें है, इन तहसीलों के नाम 1. दन्त रामगढ़ 2. फतेहपुर 3. लचामगढ़ 4. नीम का थाना 5. सीकर 6. श्री माधोपुर, जिले की इन 6 तहसीलो में ग्रामो की संख्या के आधार पर दांत रामगढ तहसील सबसे बड़ी तहसील है और फतेहपुर तहसील सबसे छोटी तहसील है।
*राजनैतिक स्वरुप* - सीकर जिले में 7 विधान सभा क्षेत्र है, इन सात विधानसभा सीटों के नाम 1. लछमनगढ़, 2. धोद, 3. सीकर, 4. दांत रामगढ, 5. खंडेला 6. नीम का थाना और 7. श्री माधोपुर।
*16. जयपुर भुक्ति* - जयपुर जिला राजस्थान के ३३ जिलों में से १ है और यह जयपुर मण्डल के अंतर्गत आने बाला एक जिला है, जयपुर जिले का मुख्यालय जयपुर शहर है, इस शहर को गुलाबी शहर के नाम से जाना जाता है , जयपुर राजस्थान की राजधानी भी है। भारत का पेरिस, गुलाबी नगर, दूसरा वृंदावन, पूर्व का पेरिस, वैभव नगरी आदि के उपनाम से प्रसिद्ध राजस्थान के जयपुर नगर का निर्माण महाराजा सवाई जयसिंह द्वितीय द्वारा 18 नवंबर 1727 को विख्यात बंगाली वास्तुशिल्पी विद्याधर भट्टाचार्य के निर्देशन में 90 डिग्री कोण सिद्धांत पर करवाया गया था।
*प्रशासनिक स्वरुप* - जयपुर जिले में 13 तहसील है, जिनके नाम 1. आम्भेर 2. बस्सी 3. चाकसू 4. चोमू 5. जयपुर 6. जमवा रामगढ 7. कोटपूतली 8. मौजमाबाद 9. फागी 10. फुलेरा 11. सांगानेर 12. शाहपुरा 13. विराटनगर इन 13 तहसीलों में सबसे बड़ी तहसील चाकसू तहसील है और सबसे छोटी तहसील जयपुर तहसील है, ग्रामो की संख्या के आधार पर।
*राजनैतिक स्वरुप* - जयपुर जिले में १8 विधान सभा क्षेत्र है, इन 18 विधानसभा सीटों के नाम 1. विराटनगर 2. शाहपुरा 3. चोमू 4. फुलेरा 5. डुडू 6. झोट्वाड़ा 7. आमेर 8. जामवा रामगढ़ 9. हवाई महल 10. विद्याधर नगर 11. सिविल लाइन्स 12. किशन पोल 13. आदर्श नगर 14 मालवीय नगर 15. संगानेर 16. बागरू 17. बासी 18. चाकसू है।
*17. दौसा भुक्ति* - दौसा क्षेत्र में कछवाहा राज्य के संस्थापक दूल्हेराय ने लगभग 1137 ईस्वी में बड़गूजरों को हराकर अपना शासन स्थापित किया था। इसे ढूंढाड़ अंचल के कछवाहा वंश की प्रथम राजधानी बनाया गया। दौसा जिला राजस्थान के जयपुर मंडल का एक जिला है, जिले के मुख्यालय दौसा शहर में ही है, दौसा को एक जिले के रूप में मान्यता 10 अप्रैल 1991 में मिली थी जब जयपुर जिले की 4 तहसीलों को मिलकर दौसा जिला बनाया गया था और 1 तहसील सवाई माधोपुर से दौसा जिले में 15 अगस्त 1992 में जोड़ दी गयी थी।
*प्रशासनिक स्वरुप* - दौसा जिले में 5 तहसीलें है, जिनके नाम 1. बसवा 2. दौसा 3. लालसोट 4. महवा और 5. सीकरी है, इन 5 तहसीलों में लालसोट सबसे बड़ी तहसील है जबकि सीकरी तहसील सबसे छोटी तहसील है।
*राजनैतिक स्वरुप* - दौसा जिले में 4 विधानसभा क्षेत्र है, इन विधान सभा सीटों के नाम 1. महवा, 2. सीकरी (SC), 3. दौसा, 4. लालसोट।
( इस संभाग का अलवर जिला हरियाणवी समाज में है)
*E. भरतपुर संभाग* इस संभाग की 4 भुक्ति यों में से 2 भुक्तियां मारवाड़ी समाज में है।
*18. करौली भुक्ति* -करौली जिला राजस्थान के जिलो में से एक है और ये भरतपुर मण्डल में आता है, करौली जिले में 300 से ज्यादा मंदिर है, और करौली जिले का मुख्यालय करौली नगर में ही है। गोपालपाल के उपनाम से प्रसिद्ध करौली जिले को 1348 ईस्वी में यादव वंश के शासक अर्जुनपाल द्वारा भद्रावती नदी के किनारे कल्याणपुरी के नाम से बसाया गया। करौली जिला सवाई माधोपुर से अलग कर 19 जुलाई 1997 को राजस्थान का स्वतंत्र 32 वा जिला बना।
*प्रशासनिक स्वरुप* - करौली जिले में 6 तहसीलें है, इन तहसीलों के नाम 1. हिंडौन 2. करौली 3. मंडरायल 4. नादौती 5. सपोटरा 6. टोडाभीम है, इन 6 तहसीलों में ग्रामो की संख्या के आदर पर करौली तहसील सबसे बड़ी तहसील है और मंडरायल तहसील सबसे छोटी तहसील है।
*राजनैतिक स्वरुप* - करौली जिले में 3 विधान सभा क्षेत्र है इन विधान सभा सीटों के नाम 1. हिंडौन, 2. करौली, 3. सपोटरा।
*19. सवाई माधोपुर भुक्ति* -सवाई माधोपुर जिला राजस्थान के ३३ जिलों में से एक है, जिसका मुख्यालय सवाई माधोपुर नगर है और जिला भरतपुर मण्डल में आता है। सवाई माधोपुर शहर की स्थापना जयपुर नरेश सवाई माधोसिंह प्रथम ने की थी। जयपुर नरेश सवाई माधोसिंह प्रथम के नाम पर इस जिले का नाम सवाई माधोपुर रखा गया।
*प्रशासनिक स्वरुप* - सवाई माधोपुर जिले में 7 तहसीलें है, इन 7 तहसीलों के नाम 1. बमन्वास 2. बोनली 3. चौथ का बारवाड़ा 4. गंगापुर 5. खंदार 6. मालार्न डूओगार और 7. सवाई माधोपुर है। ग्रामो की संख्या के आधार पर चौथ का बरवाड़ा सबसे छोटी तहसील है जबकि सवाई माधोपुर तहसील सबसे बड़ी तहसील है।
*राजनैतिक स्वरुप* - सवाई माधोपुर जिले में तीन विधानसभा क्षेत्र है, इन 3 विधान सभा सीटों के नाम 1. बामनवास (एसटी) 2. सवाई माधोपुर 3. खंदार
( इस संभाग के भरतपुर व धौलपुर जिले ब्रज समाज में है)
(II). पाकिस्तान राष्ट्रीय इकाई (मारवाड़ी समाज)
*1. बहावलनगर भुक्ति* -बहावलनगर ज़िला, पाकिस्तान के पंजाब प्रांत का एक ज़िला है। इसका प्रशासनिक मुख्यालय, म्मम्म शहर है। प्राचीन बीकानेर रियासत की यह भुक्ति अब पाकिस्तान के पंजाब सुबे का एक जिला है।
विश्लेषक - श्री आनन्द किरण "देव"
🌺 प्रउत का मारवाड़ी समाज🌺
अध्याय -02
प्रगतिशील उपयोग तत्व मूलक सामाजिक आर्थिक व्यवस्था के निर्माण के लिए समाज आंदोलन की रुपरेखा तैयार की गई है। उसमें मारवाड़ी समाज भी एक सामाजिक आर्थिक इकाई है।
मारवाड़ी समाज का भौगोलिक विस्तार
प्रगतिशील मारवाड़ी समाज विस्तार 69°30` पूर्वी देशांतर से 77°02` है तथा 24°10` से 30°60` उत्तरी अक्षांश तक है। मारवाड़ी समाज के क्षेत्र का विस्तार पूर्व में करौली जिले पश्चिम में जैसलमेर जिले तक व उत्तर में श्री गंगानगर से दक्षिण में सिरोही तक है। मारवाड़ी समाज में एक जिला पाकिस्तान का बहलावनगर है, जो किसी जमाने बीकानेर रियासत में था। पाकिस्तान ने 14 अगस्त 1947 को चतुराई से बहलावपुर को पाकिस्तान में मिला दिया। यह मारवाड़ी समाज में मिल जाने पर अक्षांश का माप एवं पश्चिम की सीमा में परिवर्तन आ जाएगा। मारवाड़ी समाज इकाई की भौगोलिक सीमाए उत्तर में पंजाब, उत्तर पूर्व में हरियाणा, पूर्व में उत्तर प्रदेश दक्षिण पूर्व में मध्यप्रदेश व हाड़ौती समाज इकाई, दक्षिण में में मेवाड़ समाज इकाई, दक्षिण पश्चिम में गुजरात व पश्चिम तथा उत्तर पश्चिम में पाकिस्तान है।
मारवाड़ी समाज इकाई की भौगोलिक स्थिति –
मारवाड़ी समाज इकाई के प्राकृतिक क्षेत्र को चार भाग विभाजित किया गया है।
1. पश्चिम का मरुस्थलीय क्षेत्र - सिरोही, जालोर, पाली, जैसलमेर, बाड़मेर, जोधपुर, बीकानेर, गंगानगर, हनुमानगढ़, नागौर, चुरु, सीकर व झुंझुनू जिले के क्षेत्र आते है। साथ में पाकिस्तान के पंजाब प्रांत का बहलावपुर जिला भी है।
2. पूर्व का मैदानी क्षेत्र - अजमेर, टोंक, सवाई माधोपुर, करौली, दौसा जयपुर जिले आते है।
3. अरावली पर्वत श्रृंखला – सिरोही, पाली, अजमेर, नागौर, सीकर, जयपुर व दौसा जिलों कुछ क्षेत्र अरावली पर्वत के विस्तार क्षेत्र अथवा प्रभाव क्षेत्र में है।
4. दक्षिण पूर्व पठारी क्षेत्र – दक्षिणपूर्वी पठारी क्षेत्र में बूंदी, सवाईमाधोपुर व करौली का कुछ भाग आता है।
मारवाड़ी समाज इकाई के संभ्रांत क्षेत्र –
मारवाड़ी समाज इकाई की एक सामान्य सांस्कृतिक विरासत है। ऐतिहासिक कारणों से कुछ संभ्रांत क्षेत्र विकसित हुए है।
1. मरुधरा अथवा मारवाड़ क्षेत्र – सिरोही, जालोर, पाली, जोधपुर व नागौर का क्षेत्र मरुधरा क्षेत्र है।
2. थली क्षेत्र -जैसलमेर, बाड़मेर, बीकानेर, हनुमानगढ़, गंगानगर, चुरु व बहलावनगर (पाकिस्तान) थली क्षेत्र कहलाते है।
3. मेरवाड़ - अजमेर व नागौर जिले के कुछ क्षेत्र मेरवाड़ क्षेत्र कहलाता है।
4. शेखावाटी क्षेत्र – सीकरव झुंझुनू जिले में शेखावाटी क्षेत्र कहते है।
5. ढूंढाड़ क्षेत्र – जयपुर, दौसा, टोंक सवाईमाधोपुर व करौली में ढूंढाड़ को ढूंढ़ाड क्षेत्र कहते है।
मारवाड़ी समाज का वर्तमान प्रशासनिक स्वरूप –
मारवाड़ी समाज वर्तमान भारतवर्ष के राजस्थान राज्य का उत्तरी, पश्चिमी, पूर्वी एवं मध्य भाग है तथा पाकिस्तान के पंजाब प्रांत का बहलावपुर जिला है। जो किसी युग में बीकानेर रियासत का अंग था। जो पाकिस्तान के दक्षिण पूर्वी भाग में आता है। मारवाड़ी समाज का क्षेत्र राजस्थान के सात संभाग में से जोधपुर, बीकानेर, अजमेर, जयपुर व भरतपुर कुल पांच संभाग में आता है।
1. जोधपुर संभाग – जोधपुर, जैसलमेर, बाड़मेर, जालोर, सिरोही व पाली अर्थात संपूर्ण संभाग।
2. बीकानेर संभाग – बीकानेर, गंगानगर, चरु व हनुमानगढ़ अर्थात संपूर्ण संभाग।
3. अजमेर संभाग – अजमेर, नागौर व टोंक जिले जबकि भीलवाड़ा जिला मेवाड़ी समाज का हिस्सा है।
4. जयपुर संभाग - जयपुर, दौसा, सीकर व झुंझुनू जिले जबकि अलवर जिला हरियाणवी समाज का हिस्सा है।
5. भरतपुर संभाग – करौली व सवाईमाधोपुर जिले जबकि भरतपुर व धौलपुर जिले ब्रज समाज के हिस्से है।
आनन्द मार्ग प्रशासनिक स्वरूप में मारवाड़ी समाज
आनन्द मार्ग प्रशासनिक विभाग के अनुसार जयपुर रिजनल की जयपुर, बीकानेर, अजमेर व जोधपुर डाइसिस में मारवाड़ी समाज के क्षेत्र का विस्तार है।
1. जयपुर डाइसिस – जयपुर, दौसा, सीकर, झुंझुनू, सवाई माधोपुर व करौली भुक्ति है जबकि अलवर भुक्ति हरियाणवी समाज में व भरतपुर धौलपुर भुक्ति ब्रज समाज में है।
2. अजमेर डाइसिस – अजमेर, नागौर, टोंक व पाली भुक्तियां है जबकि भीलवाड़ा भुक्ति मेवाड़ी समाज का हिस्सा है।
3. जोधपुर डाइसिस – जोधपुर, बाड़मेर, जैसलमेर, जालोर व सिरोही भुक्तिं है।
4. बीकानेर डाइसिस – बीकानेर, हनुमानगढ़, गंगानगर व चुरू भुक्तिं है साथ कहिरा सेक्टर के लाहौर रिजनल की बहलावपुर भुक्ति भी है।
मारवाड़ी समाज में ब्रिटिश कालीन रियासतों का दृश्य –
भारतवर्ष की स्वाधीनता से पूर्व यह क्षेत्र राजपुताना नामक प्रशासनिक इकाई के अधीन आता था। जो ब्रिटिश रेजिमेंट अजमेर के निर्देशन में देशी राजाओं के द्वारा शासित थी। जिसमें अधिकांश राजा राजपूत थे। मारवाड़ी समाज परिक्षेत्र में 8 रियासते जो सेल्यूट स्टेट कहलाते थे। जिसके शासकों को ब्रिटिश सरकार में तोपों से सेल्यूट मिलती थी, जबकि एक नॉन सेल्यूट स्टेट ठिकाना था ।
1. जोधपुर (मारवाड़) रियासत – जोधपुर, बाड़मेर, नागौर, जालोर व पाली जिले में फैली यह रियासत राजपूताना की बड़ी रियासत थी। इसे मरूदेश अथवा मरूवाट भी कहते थे। जिसका अर्थ मौत की भूमि होता है। यहाँ प्रतिहार(परिहार या पडियार) व राठौड़ों का शासन है।
2. बीकानेर रियासत – बीकानेर, गंगानगर, हनुमानगढ़ व चुरू जिले तथा पाकिस्तान के बहलावपुर बीकानेर रियासत में था। यहाँ राठौड़ वंश का शासन था। उन्होंने जाटों को हराकर अपने सियासत स्थापित की थी।
3. जयपुर(आमेर) रियासत - जयपुर, दौसा, सवाईमाधोपुर, सीकर व झुंझुनू जिलों फैली इस रियासत पर कच्छवाहा राजाओं का शासन था। इन्होंने मीणों को हराकर अपना प्रभुत्व स्थापित किया था।
4. जैसलमेर रियासत - जैसलमेर व हनुमानगढ़ अंचल में यादव वंशी भाटियों का शासन रहा था।
5. सिरोही रियासत – देवड़ा चौहान वंश की रियासत सिरोही को शीश काटने वाली तलवार के रुप में पहचान बनाई हुई थी।
6. किशनगढ़ रियासत – राठौड़ वंश की रियासत वर्तमान अजमेर जिले में है। यहाँ चित्र बनिठणी भारत की मोनोलिसा के नाम प्रसिद्ध है।
7. करौली रियासत – यदुवंशी राजाओं की एक शाखा करौली में अपनी रियासत स्थापित की थी।
8. टोंक रियासत – अंग्रेज लुटपाट से परेशान होकर टोंक अमीर खां नवाब को दे थी। इससे पूर्व यह रियासत जयपुर के पास थी।
9. नीमकाथाना ठिकाना – नॉन सेल्यूट स्टेट के रूप में नीमकाथाना ठिकाना था। इनके राजाओं को बिट्रिश सरकार तोप की सलामी प्राप्त नहीं होती थी।
10. ब्रिटिश शासित स्टेट अजमेर मेरवाड - मारवाड़ी समाज परिक्षेत्र में अजमेर मेरवाड ब्रिटिश शासित प्रदेश था। जहाँ से संपूर्ण राजपूताना की रियासतों का अंग्रेज नियंत्रण करते है। ग्रीष्मकालीन में यह मुख्यालय माऊंट आबू होता था।
मारवाड़ी समाज क्षेत्र इतिहास के परिपेक्ष्य में
मारवाड़ी समाज इकाई का संगठन सर्वजन हिताय, सर्वजन सुखाय के प्रायोजन से प्रउत प्रणेता ने किया है। उन्होंने यह भी कहा है कि जिस जनगोष्ठी का इतिहास नहीं उसका भविष्य भी नहीं है। इसी क्रम में इस परिक्षेत्र की सीमाओं पर जो घटित हुआ, उनमें से इतिहास खोजने का प्रयास किया जा रहा है।
(1) मारवाड़ी समाज क्षेत्र का प्रौगौतिहासिक व आद्य ऐतिहासिक युग झलक
प्रारंभिक पाषाण काल(Early stone age ) आज से लगभग 1.5 लाख से 50000 वर्ष पूर्व तक का माना जाता है। यह मारवाड़ी समाज परिक्षेत्र में मानव संस्कृति का वह उषाकाल था जिसमें संस्कृति के सूर्य का उदय प्रारंभ हुआ था। अनुसन्धान से पता चलता है कि इस समय का मानव यायावर था। उसके भोज्य पदार्थ के रूप में जंगली कंद-मूल फल तथा हिरन, शूकर, भेड़, बकरी आदि पशु थे। इस युग के उपकरणों की सर्वप्रथम खोज आज से लगभग 95 वर्ष पूर्व श्री सी. ए. हैकर ने जयपुर में की थी। उन्होंने वहां अश्म पत्थर से निर्मित हस्त-कुल्हाड़ी (हैण्ड एक्स) खोजे थे जो कलकत्ता के भारतीय संग्रहालय में उपलब्ध है। इन अनुसंधानों से प्रारंभिक पाषाण काल के मानव द्वारा प्रयुक्त ‘हस्त-कुल्हाड़ी (हैण्ड एक्स), क्लीवर तथा चौपर’ नाम के उपकरणों के बारे में पता चलता है। पूर्वी राजस्थान में भानगढ़ तथा ढिगारिया और विराटनगर में ‘हैण्ड-एक्स संस्कृति’ का पता चलता है। पश्चिमी राजस्थान में लूनी नदी के किनारे तथा जालौर जिले में रेत के टीलों में पाषाणकालीन उपकरणों की खोज हुई है। विराटनगर में कुछ प्राकृतिक गुफाओं तथा शैलाश्रय की खोज हुई है जिनमें प्रारंभिक पाषाण काल से ले कर उत्तर पाषाण काल तक की सामग्री प्राप्त हुई है। मध्य पाषाण काल ( Middle Stone Age ) युग का प्रारंभ लगभग 50000 वर्ष पूर्व होना माना जाता है। यह संस्कृति प्रारंभिक पाषाण काल की संस्कृति से कुछ अधिक विकसित थी किन्तु इस समय तक मानव को न तो पशुपालन का ज्ञान था और न ही खेती बाड़ी का, इसलिए यह कहा जा सकता है कि यह संस्कृति संगठित सामाजिक जीवन से अभी भी दूर थी। इस काल में छोटे, हलके तथा कुशलतापूर्वक बनाये गए उपकरण प्राप्त हुए हैं, जिनमें ‘स्क्रेपर तथा पॉइंट’ विशेष उल्लेखनीय है। ये उपकरण नुकीले होते थे तथा तीर अथवा भाले की नोक का काम देते थे ।उत्तर पाषाण (Paleolithic) युग का सूत्रपात आज से लगभग 10000 वर्ष पूर्व हुआ था। इस युग में उपकरणों का आकार मध्य पाषाण काल के उपकरणों से भी छोटा तथा कौशल से भरपूर हो गया था। इस काल में उपकरणों को लकड़ी तथा हड्डियों की लम्बी नलियों में गोंद से चिपका कर प्रयोग किया जाना प्रारंभ हो गया था। मारवाड़ के तिलवाड़ा नामक स्थानों से उत्खनन में प्राप्त हुए हैं। मारवाड़ी समाज क्षेत्र पाषाण युग (Stone Age ) की सभ्यता के केन्द्र बिलाड़ा(जोधपुर) , जायल(नागौर) , ड़ीडवाना(नागौर) , डाडाथोरा(बीकानेर), तिलवाड़ा(बाड़मेर) थे । इस प्रकार ताम्र पाषाण काल (Copper stone age ) के सभ्यता के केन्द्र गणेश्वर(सीकर), पूगल(बीकानेर),कुराड़ा-नागौर,बूढ़ा पुष्कर(अजमेर) व, एलाना(जालोर) तथा लौहयुगीन स्थल (Iron Age) रैढ़(टोंक), विराटनगर(जयपुर), चक-84 (श्रीगंगानगर) व नगर(टोंक) के रुप में प्रमुख केन्द्रों को अनुसंधानकर्ताओं ने चिन्हित किये है। नदीघाटी कालीन सभ्यता में मारवाड़ी समाज परिक्षेत्र में हनुमानगढ़ जिलें में स्थित काली चुड़ियों का प्रदेश कालीबंगा व पीली चुड़ियों का नगर पीलीबंगा है । कालीबंगा में खेती करने प्रमाण है। दूसरी जयपुर के नजदीक बैराठ की सभ्यता भी है । यहाँ तक प्रउत एक समाज चक्र पूर्ण हो चुका था।
(2) मारवाड़ी समाज की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
मारवाड़ी समाज परिक्षेत्र का प्रौगैतिहासिक एवं आद्य ऐतिहासिक स्वरुप देखने के बाद इस क्षेत्र के ऐतिहासिक स्वरूप की ओर दृष्टिपात करते है। इतिहास के लिखित साक्ष्य बताते है कि यह वैदिक युग से लेकर ब्राह्मण युग के आरंभ तक आदिम जातियों के प्रभुत्व वाला क्षेत्र रहा है। यह जातियां लडाकू प्रवृत्ति की होती थी तथा सभ्यता के विकास से दूर रहने के कारण सुव्यवस्थित इतिहास लिखवाने में असमर्थ रही, लेकिन मारवाड़ी समाज के विकास में इनका योगदान भूलाया नहीं जा सकता है। इन वर्ग में से कुछ खेतिहर थे, तो कुछ पशुपालक थे। खेतिहर व पशुपालकों के मध्य संघर्ष होता था, लेकिन बाहरी संकट दिखाई देने पर दोनों एकजुटता का परिचय देते थे। प्रमाण के तौर पर हूणों व कुषाणों से मुकाबला करने में मिलित साहस दिखाया था। इसका एक मात्र कारण एक ही प्रजाति का होना है। भूमि की स्थिति, सांस्कृतिक परंपरा तथा भाव प्रेषण के माध्यम से यह मेरवाड़ी अथवा मारवाड़ी कहलाए। इस युग का प्रमाण उत्तरी बीकानेर पर एक गणराज्यीय योद्धा कबीले यौधेयत का अधिकार था। महाभारत में उल्लिखित मत्स्य पूर्वी राजस्थान और जयपुर के एक बड़े हिस्से पर शासन करते थे। जयपुर से 80 कि॰मी॰ उत्तर में बैराठ, जो तब ‘विराटनगर’ कहलाता था, उनकी राजधानी थी। इस क्षेत्र की प्राचीनता का पता अशोक के दो शिलालेखों और चौथी पांचवी सदी के बौद्ध मठ के भग्नावशेषों से भी चलता है। प्रउत समाज चक्र के शूद्र युग से शुरू होकर क्षत्रिय युग में जाकर यह विप्रो के समक्ष नतमस्तक हो गये ।
(3) ब्राह्मण युग एवं मारवाड़ी समाज –
आदिम मानवों शक्ति को नियंत्रित करने के लिए आगे आये बुद्धिजीवी वर्ग यह ब्राह्मण के नाम जाने जाने लगे। यह उस उनके धार्मिक संपादित करते थे। इसलिए बिना किसी अधिक प्रतिरोध के आदिवासी कहलाने इस क्षत्रियों वर्ग ने विप्र वर्ग सर्वोच्चता स्वीकार कर दी तथा प्रउत समाज चक्र के अनुसार मारवाड़ी समाज में विप्र युग की शुरुआत हुई। प्रमाण रुप में भीनमाल (जालोर) श्रीमाली ब्राह्मण गणराज्य, पाली पालीवाल ब्राह्मण गणराज्य, पुष्कर(अजमेर) पुष्करणा ब्राह्मण, खंडेलवाल ब्राह्मण गणराज्य के अस्तित्व के भी प्रमाण है। इसके अतिरिक्त गौड़, गुर्जर गौड़, शाकद्वीपीय, नागर इत्यादि ब्राह्मणों की प्रभुता के प्रमाण उपलब्ध है। कवि माघ एवं ब्रह्मगुप्त नामक विद्वानों की जन्म स्थली मारवाड़ी समाज का क्षेत्र रहा है।
(4) जैन व वैश्य प्रभुत्व का युग –
प्रउत के समाज चक्र को ऐतिहासिक कालक्रम में देखने पर पाते हैं कि विप्र के बाद वैश्यों का प्रभुत्व होता है। मारवाड़ी समाज का इतिहास भी इसी सारगर्भित समाज चक्र की पुष्टि करता है। मारवाड़ी समाज में विप्र प्रभुत्व के बाद जैन, अग्रवाल, खंडेलवाल, माहेश्वरी इत्यादि वैश्य वर्ग का प्रभुत्व आया। ऐतिहासिक प्रमाण बताते है कि मारवाड़ी समाज के दक्षिण पश्चिम में श्वेताम्बर व उत्तर पूर्व में दिगंबर जैनों का प्रभाव था। उनके प्रमुख केन्द्र सोनीजी की णसियन (अजमेर जैन मन्दिर), खण्डेला(सीकर), भीनमाल(जालोर), ओसियां(जोधपुर), नागौर, आमेर (जयपुर), सांगानेर(जयपुर),जिरावाला(सिरोही),रणकपुर(पाली), बाड़मेर,नारेली(अजमेर), पिंडवाड़ा(सिरोही) बताये गये है। इस प्रकार अन्य वैश्य वर्ग का भी समाज में प्रभाव था। यह समाज की राजनैतिक, आर्थिक एवं सामाजिक गतिविधियों को प्रभावित करते थे तथा अपने हितों के अनुसार बदलते भी थे।
(5) राजपूत युग व मारवाड़ी समाज चक्र –
राजस्थान की पहचान राजपूताना नाम से यहाँ के राजपूत शासकों के साहस की प्रशंसा प्रउत प्रणेता द्वारा की गई है। राजपूत युग को जरा विस्तार से समझते हैं।
(१) राजपूतों की उत्पत्ति – राजस्थान के इतिहास जनक कहलाने वाले कर्नल टोड़ ने इन्हें विदेशी बताया तो गौरीशंकर हीराशंकर ओझा ने इन्हें भारतीय बताया है । सबसे महत्वपूर्ण मत चंद्रबरदाई का है, उन्होंने राजपूतों की उत्पत्ति अग्नि कुंड़ से वशिष्ठ द्वारा होने की बात लिखता है। इस बात में सार है। वैश्य प्रभुत्व वाले समाज में शूद्र प्रजातियां पुनः अपने पिता प्रभाव को कायम करने के लिए लूटपाट डकैती को संघर्ष के साधन के रुप में अंगीकार किया तथा विप्र भी अपनी खोई हुई प्रतिष्ठा को पुनः पाने तथा लूटपाट से रक्षा के लिए कतिपय विश्वास पात्र, होनहार एवं बहादुर व्यक्तियों संस्कारित एवं परिशुद्ध कर क्षत्रिय राजपूत की उपमा दी गई तथा उन्हें अपनी बुराइयों व कमजोरियों को अग्नि में स्वाहा कर नये संस्कार अग्नि को साक्षी मानकर नये संस्कार धारण करवाए । इस उसका पुनः जन्म माना गया इसलिए अग्नि कुंड से उत्पत्ति होना कहा गया। यह पुनः क्षत्रिय युग का प्रारंभ है ।
(२) राजपूत युग की शुरुआत – भारत में मुगल काल से पूर्व का राजपूत युग क्षत्रियोचित कार्य में व्यस्त रहे। प्रारंभ में राज्य की स्थापना को लेकर एक राजवंश का दूसरे राजवंश से संघर्ष होता था तथा स्थानीय जनजाति से भी संघर्ष होता था। कालांतर में यह संघर्ष अफगान तुर्क आक्रांताओं में बदल गया। पृथ्वीराज चौहान अजमेर, हम्मीर चौहान रणथम्भौर, वीरमदेव कान्हड़देव सोनीगरा जालोर इत्यादि ने इतिहास के पन्नों पर खुन से अपने हस्ताक्षर कर दिये।
(३) मुगलों की चतुराई के समक्ष झुके राजपूत – सिर कटे धड़ लड़े। राजपूती साहस एवं वीरता के संदर्भ में कही जाने वाली उक्ति है। मुस्लिम आक्रांताओं ने एड़ी की चोटी एक कर दी लेकिन राजपूत कट गये लेकिन झुके नहीं। मुगलों ने अनुभव किया की बिना राजपूतों के सहयोग के भारतवर्ष में रहना मुश्किल है। अत: उन्होंने बुद्धि से काम लेते हुए राजपूतों को अपने में मिला दिया। इस प्रकार कह सकते हैं कि अक्कल के समक्ष तलवार निस्तेज हो गई। जो तलवारें उठी वह वफादारी का परिचय देने लग गई। इनके बीच भी भी मालदेव राठौड़ जोधपुर व वीर दुर्गादास करनोत जोधपुर इतिहास को अपने लिए कुछ कहने को रोक गये। यह ताकत पर बुद्धि की जीत का युग था।
(४) अंग्रेजों के विरुद्ध में राजपूत नहीं उठा पाए स्वर - अंग्रेजों ने राजपूतों को अपनी वैच्योचित कुटनीति के तहत आसानी से अधीनता स्वीकार करवा ली। जो रजपूती तलवार सिर काट व कटवा सकती थी लेकिन झुक नहीं सकती थी, वह मराठों से निजात पाने के अंग्रेजी शरण में महफूज महसूस करने लगी। 1776 में जोधपुर महाराजा की अंग्रेजों से संधि की पेशकश के बाद 1818 लगभग सभी रियासतों ने अंग्रेजों की सर्वोच्चता स्वीकार कर ली। 1823 में सिरोही ने भी अंग्रेजों के समक्ष अपने हथियार रख दिये थे। राजपूतों का प्रथम युग पूर्णतया क्षत्रिय युग, द्वितीय बुद्धि का उपयोग करने के कारण विप्र युग तथा अंतिम में सौदा बाजी के वैश्य युग कहलाता है। समाज चक्र में वैश्य युग के बाद एक अराजकता की स्थिति बनती है। वह शूद्र युग के नाम से जानी जाती है।
(५) स्वतंत्रता के बाद मारवाड़ी समाज – स्वतंत्रता के बाद एक्कीकरण को लेकर सरदार वल्लभ भाई पटेल का कार्य क्षत्रियोचित, प्रारंभिक नेतृत्व का कार्य विप्रोचित व आजकल के नेताओं का कार्यवैश्योचित बाड़ाबंदी चल रही है।
मारवाड़ी समाज की सांस्कृतिक विरासत –
सांस्कृतिक विरासत में भाषा, साहित्य, कला एवं परिपाटी का स्थान आता है। मूलतया सांस्कृतिक विरासत ही जन गोष्ठी का निर्माण करती है। इसके भौगोलिक परिस्थितियां, आर्थिक समस्या एवं संभावनाओं का भी महत्व है। प्रउत की सामाजिक इकाइयों को उपरोक्त गुणों से सजाया है। उसके नामकरण में सांस्कृतिक महत्व का स्वीकारा गया है।
(१) भाषा तत्व – गंगानगर से सिरोही एवं करौली से जैसलमेर व बहलावपुर(पाकिस्तान) में मारवाड़ी भाषा बोली जाती है। कुछ लोग भूल से राजस्थानी भाषा कहते है, जो गलत है क्योंकि राजस्थान का शब्द का अस्तित्व स्वतंत्रता के बाद आया है जबकि मारवाड़ी भाषा बहुत लंबा अतीत लेकर चल रही है। ऐसा ही मेवाड़ी व हाड़ौती का भी अतीत है। मारवाड़ी भाषा की मालवी प्राकृत से मानी गई है। मारवाड़ी भाषा की अपनी कई बोलियाँ है। बोलियों के संदर्भ में कहावत है कि हर बारह कोस पर बोली पलट जाती है। मारवाड़ी भाषा की बोलियां-गोड़वाड़ी, देवड़ावाटी, शेखावाटी, थली, ढ़टकी, ढ़ूंढाड़ी, चैरासी, तोरावाटी, काठेड़ा, नागरचाल व राजावाटी आदि बोलियाँ एवं जोधपुरी, अजमेरी, जयपुरी, बीकानेरी, जैसलमेरी, जालोरी, इत्यादि इत्यादि क्षेत्रवार उप बोलियाँ भी है। कतिपय विद्वान मारवाड़ी भाषा को हिन्दी की बोली कहते हैं, जो गलत धारणा है। जबकि मारवाड़ी हिन्दी से भी प्राचीन भाषा है। कुछ मारवाड़ी भाषा को राजस्थानी की बोली बता देते हैं जबकि राजस्थानी कोई भाषा नहीं है । मारवाड़ी का नाम बदलने का एक प्रयास है। मारवाड़ी समाज के जन, गण एवं मन की भाषा थी, है तथा रहेगी।
(२) साहित्य – मारवाड़ी भाषा के साहित्य को डिंगल साहित्य कहा गया है। इस अजस्र साहित्यकारों की साधना लगी हुई है। डिंगल” के सर्वप्रथम कवि ढाढी कवि बादर हैं। डिंगल” के प्रमुख कवियों में बादर, प्रिथीराज, ईसरदास जी, दुरसा जी आढा, करणीदान कविया, मंछाराम सेवक, बाँकीदास आशिया, किशन जी आढा व कवि सूर्यमल्ल हैं। साहित्यिक भाषाशैली के लिये “डींगल” शब्द का सर्वप्रथम प्रयोग बाँकीदास ने कुकवि बतीसी (1871 वि0 सं0) में किया है। मारवाड़ी की प्रमुख रचनाएँ – पृथ्वीराज रासौ (चन्दबरदाई) हम्मीर रासौ (जोधराज), ढोला मारू रा दूहा (कवि कल्लोल) , गजगुणरूपक (कविया करणीदान), सूरज प्रकास (कविया करणीदान), ूहणौत नैणसी री ख्यात मारवाड़ रा परगना री विगत (मुहणौत नैणसी), विजयपाल रासौ (नल्ल सिंह) , नागर समुच्चय (भक्त नागरीदास), हम्मीर महाकाव्य (नयनचन्द्र सूरि), वेलि किसन रुक्मणी री (पृथ्वीराज राठौड़) ,कान्हड़दे प्रबन्ध (पद्मनाभ), राजरूपक (वीरभाण), बिहारी सतसई (महाकवि बिहारी), बाँकीदास री ख्यात (बाँकीदास) (1838-90 ई,), कुवलमयाला (उद्योतन सूरी), हम्मीद हठ (चन्द्रशेखर), प्राचीन लिपिमाला, राजपुताने का इतिहास (पं. गौरीशंकर हीराचंद ओझा) वचनिया राठौड़ रतन सिंह महे सदासोत री (जग्गा खिड़िया), बीसलदेव रासौ (नरपति नाल्ह) , राव जैतसी रो छंद (बीठू सूजाजी), वंश भास्कर (सूर्यमल्ल मिश्रण)। साहित्य के क्षेत्र में मारवाड़ी समाज के कवियों एवं लेखकों का अमूल्य सहयोग रहा है।
(३) कला – मारवाड़ी समाज परिक्षेत्र कला के विकास कि पर्याप्त सुअवसर मिला। कला के इस अध्याय को तीन भाग में बाटकर अध्ययन करते है – कृति कला, काव्य कला व उपयोगी कला। कृति कला में स्थापत्य, मूर्ति व चित्रकारी को ले सकते है। मारवाड़ी समाज की धरा दुर्ग, हवेलियाँ, मंदिर, महल, स्तंभ, छतरियां व महलों से सज्जी धजी हुई है, मूर्तिकला के क्षेत्र में मारवाड़ी समाज पीछे नहीं है। मारवाड़ी समाज की चित्रकारिता का लोहा दुनिया मान चुकी है। बणी ठणी मारवाड़ी समाज की उत्कृष्ट चित्रकारी की पहचान है। काव्य कला में संगीत, नृत्य एवं कविताओं का विपुल भंडार मारवाड़ी समाज के पास उपलब्ध है। उपयोगी कला में मारवाड़ी समाज की विशिष्टता से सभी परिचित है । उस्ताकला, मथेरणा, चटापटी, थेवा, मीनाकारी, मुरासाकी कोफ्तगिरी, बेनाम कावड़, टेराकोटा, फड़, पॉटरी, रंगाई-छपाई, बंधेज, खराद, तारकशी, कुट्टी मुट्टी, खेसला, मिनिएचर, मांडणा, काष्ठ कला इत्यादि कला मारवाड़ी समाज की विशेष भूमिका है।
आर्थिक क्षेत्र में मारवाड़ी समाज
आर्थिक क्षेत्र में मारवाड़ी समाज के उद्यमियों के बारे में कहा जाता है कि जहाँ न पहुंचे बैलगाड़ी वहाँ बैठा है मारवाड़ी। मारवाड़ी समाज क्षेत्र में तथा इस समाज क्षेत्र से बाहर मारवाडियों खुब धन व यश पाया है। एक युग में मारवाड़ी समाज क्षेत्र भरणपोषण, रोजगार एवं आर्थिक क्रियाओं क्षेत्र में अग्रणियों था। पानी की कमी एवं वर्षा की अनियमितता ने मारवाड़ी समाज के लोगों को अन्यत्र पलायन होने के लिए मजबूर किया लेकिन प्रवासियों के मन में मातृभूमि के प्रति स्नेह मारवाड़ी समाज परिक्षेत्र के विकास के लिए आकृष्ट करता है। कृषि, पशुपालन, लघु व कुटीर उद्योग मारवाड़ी समाज की अर्थव्यवस्था के आधार थे। जब एक भी मारवाड़ी अपनी रोजीरोटी के लिए देशाटन नहीं करता था, तब भी आर्थिक क्षेत्र में खुशहालीश एवं आत्मनिर्भर था। किसी भी सामाजिक आर्थिक इकाई क्षेत्र के निवासी को पेट भरने अथवा आजीविका के लिए अपने क्षेत्र से बाहर जाना उस समाज के लिए दुर्भाग्य की बात है। अत: आर्थिक विकास यात्रा के लिए एक अध्ययन पत्र की आवश्यकता है।
(1) मारवाड़ी समाज परिक्षेत्र का जलवायु – मारवाड़ी समाज परिक्षेत्र कर्क रेखा के उत्तर में तथा उत्तरी ध्रुव रेखा के दक्षिण में है। इसलिए इसे शीतोष्ण कटिबंधीय प्रदेश कहा जाता है। यहाँ का औसत तापमान 38 से 39 डिग्री सेल्सियस है।
जलवायु की दृष्टि इस क्षेत्र को पांच भागों में बाटा जा सकता है।
(१) शुष्क जलवायु प्रदेश (औसत वर्षा – 0- 20 सेमी) – जैसलमेर, उत्तरी बाड़मेर, दक्षिण पश्चिमी गंगानगर तथा बीकानेर व जोधपुर का पश्चिमी भाग व बहलावपुर (पाकिस्तान )।
(२) अर्द्ध शुष्क जलवायु प्रदेश (औसत वर्षा – 20- 40 सेमी) – चुरु, गंगानगर, हनुमानगढ़, दक्षिण बाड़मेर, जोधपुर व बीकानेर का पूर्वी भाग तथा पाली, जालोर, सीकर, नागौर व झुंझुनू का पश्चिमी भाग।
(३) उप आर्द्ध जलवायु प्रदेश (औसत वर्षा – 40- 60 सेमी) – जयपुर, एवं अजमेर एवं दौसा का उत्तरी पूर्वी भाग तथा, पाली, जालोर, नागौर व झुंझुनू का पूर्वी भाग और टोक व सिरोही का उत्तरी पश्चिमी भाग।
(४) आर्द्ध जलवायु प्रदेश (औसत वर्षा – 60- 80 सेमी) – सवाईमाधोपुर, करौली तथा सिरोही, टोक, अजमेर व दौसा का दक्षिण पूर्वी ।
(५) अति आर्द्ध जलवायु प्रदेश (औसत वर्षा – 80 सेमी से उपर ) –
इस क्षेत्र में एक मात्र क्षेत्र माऊंट आबू है।
मारवाड़ी समाज परिक्षेत्र में दस कृषि जलवायु प्रदेश भी है – शुष्क पश्चिमी मैदान, सिंचित उत्तरी पश्चिमी मैदान, शुष्क आंशिक सिंचित पश्चिमी मैदान, अन्त प्रवाह, लूनी बेसिन, पूर्वी मैदान, अर्द्ध शुष्क, उप आर्द्र, आर्द्र प्रदेश व अति आर्द्र पर्वतीय प्रदेश है।
(2) मानसून, वर्षा व ऋतुएं– मारवाड़ी समाज परिक्षेत्र में तीन प्रकार के मानसून आते हैं। बंगाल की खाड़ी, अरब सागर एवं भूमध्यसागरीय मानसून है। सबसे अधिक वर्षा दक्षिणी पश्चिमी मानसूनी हवाओं से, द्वितीय बंगाल की खाड़ी, तृतीय अरब सागर व चतुर्थ भूमध्यसागरीय मानसून से होती है। यहाँ चार ऋतुएँ होती है – ग्रीष्म ऋतु मार्च से मध्य जून, वर्षा ऋतु मध्य जून से सितंबर, शरद अक्टूबर व नवम्बर से फरवरी शीत ऋतु होती है।
(3) नदियाँ, बांध व मिट्टी – नदियाँ एक ऐसा संसाधन है, जो मित्र व शुत्र राष्ट्र की भाषाएँ नहीं जानती, उन्हें जहाँ भी धरातल मिल जाता है, उस स्थान पर खुशहाली का इतिहास लिखकर अपने अंतिम स्थान की ओर निकल पड़ती है। मारवाड़ी समाज परिक्षेत्र में बहने वाली नदियाँ में बंगाल की खाड़ी को पानी देने वाली गंगा नदी सहायक की भी सहायक नदियों की गिनती आती है। इसमें चिरपरिचित नाम चंबल है, जो मालवी समाज से हाड़ौती समाज होती हुई मारवाड़ी समाज परिक्षेत्र के सवाईमाधोपुर व करौली को अपना अवदान देकर यमुना की ओर निकल जाती है। चंबल की सहायक एवं उनकी भी सहायक नदियों में जो मारवाड़ी समाज परिक्षेत्र के कुछ जिलों के लिए खुशनुमा अनुभव देती है उनमें बनास (अजमेर, टोक, सवाईमाधोपुर), खारी (अजमेर, टोक), मोरेल(जयपुर, दौसा, सवाईमाधोपुर व करौली), ढुंढ(जयपुर, दौसा) पार्वती (सवाईमाधोपुर) व बाणगंगा (जयपुर सवाईमाधोपुर) इत्यादि नदियाँ है। अरब सागर को जल आपूर्ति करने वाली नदियों में लूनी व लूनी की सहायक नदियाँ तथा साबरमती नदी है। मरुस्थल की गंगा नाम विख्यात लूनी नदी अजमेर की नागा पहाडियों से निकल नागौर, जोधपुर, बाड़मेर व जालोर जिलों को अपना आशीर्वाद देकर कच्छ के रन में मिल जाती है। लूनी की सहायक व उसकी सहायक नदियों में – जोजड़ी(जोधपुर), जवाई ( पाली, जालोर, बाड़मेर), सुकड़ी, मिठी, सागाई व गुहिया है। साबरमती सिरोही को कुछ छू कर खंभात की खाड़ी में मिल जाती है। तृतीय श्रेणी की नदियों में अन्त प्रवाह वाली नदियाँ हैं, जिन में घग्गर उसे नाली भी कहते है। हनुमानगढ़ गंगानगर होती हुई पाकिस्तान के बहलावपुर में जाती है। कातली (सीकर, झुंझुनू), साबी(जयपुर) व काकानी (जैसलमेर) है। मारवाड़ी समाज में जवाई बांध(पाली), टोरड़ी बांध(टोक), बिसलपुर बांध(टोक), पांचना बांध(करौली), बाकली बांध ( पाली-जालोर), नारायण सागर बांध (अजमेर) हरसौर बांध ( नागौर) पन्नालाल शाह बांध(झुंझुनू), अजीत सागर बांध (झुंझुनू) इत्यादि बांध है। मारवाड़ी समाज परिक्षेत्र की मिट्टी का अध्ययन पत्र देखने पर विचित्रता का समावेश मिलता है। कैलशियम आधिक्य एवं नाइट्रोजन व कार्बन अल्पता युक्त एरिडोसॉल बलुई या रेतीली मिट्टी मारवाड़ी समाज के जैसलमेर, बाड़मेर बीकानेर, जोधपुर, चुरु, व झुंझुनू सहित 12 जिलों में पायी जाती है। इसमें बाजरा, मुंग, मोठ की फसल होती है। कार्बनिक पदार्थों, नाइट्रोजन व अन्य जैविक तत्वों की कमी युक्त सीरोजम अथवा घूसर मरुस्थलीय मिट्टी अरावली पर्वतमाला के पश्चिम में नागौर, जालोर, पाली, झुंझुनू व सीकर जिलों में है। कार्बनिक पदार्थों, नाइट्रोजन व अन्य जैविक तत्वों की कमी युक्त सीरोजम अथवा घूसर मरुस्थलीय मिट्टी अरावली पर्वतमाला के पश्चिम में नागौर, जालोर, पाली, झुंझुनू व सीकर जिलों में है। लवणीय व क्षारीय तत्वों के आधिक्य युक्त लवणीय मिट्टी मारवाड़ी समाज के बीकानेर, गंगानगर, जालोर व बाड़मेर में पाई जाती है। जो अन उपजाऊ है। अजमेर, टोक व सवाईमाधोपुर के बनास प्रवाह क्षेत्र में पाई जाने वाली भूरी मिट्टी फास्फोरस व नाइट्रोजन की कमी के कारण उपजाऊ है। गेहूं, कपास, चावल व तंबाकू के लिए उपयुक्त उपजाऊ जलोढ़ अथवा कछारी मिट्टी जयपुर, टोक व सवाईमाधोपुर में है। इसमें नाइट्रोजन पर्याप्त तथा फास्फोरस व कैलशियम की कमी होती है। लोह आक्साइड युक्त लाल पीली मिश्रित मिट्टी अजमेर, सवाईमाधोपुर व सिरोही में पाई जाती है। कृषि के लिए अनुपयुक्त पर्वतीय मिट्टी अजमेर व सिरोही जिलों पाई जाती है।
0 Comments: