भारत माता बनाम धरती माता (Mother India vs. Mother Earth)



भरण पोषण एवं समग्र उन्नति को सुनिश्चित करने वाले भूभाग का भारतवर्ष नाम दिया गया था। उसी भारतवर्ष में एक चिन्तन का विकास हुआ, जो कण-कण में ईश्वर की अनुभूति करने लगा तथा सम्पूर्ण विश्व को कुटुबं में समाने का दृष्टिकोण रखता था। अपने इन महान विचारों को बल देने के लिए व्याख्याकारों ने धरती को माँ तथा अम्बर को पितृतुल्य दिखाने की मान्यताओं का विकास किया। इसके अतिरिक्त प्रत्येक उपयोगी पेड़ पौधे, पशु, नदी, पर्वत इत्यादि को भी आदरणीय, श्रद्धेय तथा आस्थामय रुप में विकसित किया। कालांतर भारतवर्ष का यह महान दर्शन भारत देश के लिए गाथा लिखने के लिए निकला तब भारत भूमि को भारतमाता के रूप में चित्रित किया। इसलिए आज हम भारतमाता बनाम धरती माता विषय लिया है। हम देखने का प्रयास करेंगे कि भारतवर्ष के दर्शन की महानता इसमें कैसे झलकती है अथवा और कोई तथ्य है? 
हमारा देश, जो एक सांस्कृतिक इकाई था, उसका नामकरण उसके स्वभाव, गुणधर्म एवं चिन्तन के आधार पर भारतवर्ष किया गया। कालांतर में भारतवर्ष का एक भौगोलिक स्वरूप भी निश्चित किया गया लेकिन उसका चिन्तन सम्पूर्ण विश्व के लिए ही रहा। देश का नाम भारत नहीं भारतवर्ष सही है। यह शाब्दिक विन्यास, शब्दार्थ एवं भावार्थ की दृष्टि से सही है। भारत शब्द इन सभी दृष्टि से अपूर्ण है। हिन्दुस्तान व इण्डिया संस्कृत नहीं क्रमशः फारसी एवं लैटिन भाषा की शब्दावली के है। आर्यावर्त व दक्षिणावर्त एक नस्ल एवं समुदाय का द्योतक है। अतः यह शब्द सम्पूर्ण देश के लिए उपयुक्त नहीं है। जम्मू द्वीप भी प्राचीन शब्दावली होने पर भी सम्पूर्ण राष्ट्र का प्रतिनिधित्व नहीं करता है। राष्ट्र का नाम जानने के बाद मूल विषय की ओर जाते हैं। 

भारतवर्ष के चिन्तन की धारा में धरती माता तो समा जाती है लेकिन  खंड व देश में निवास करने वाली भारत माता नहीं समा सकती है। हमारा चिन्तन तो शिव को पिता, गौरी को माता तथा त्रिभुवन को स्वदेश कहता है। वहाँ भारत भूभाग को ही माता मान लेना दर्शन की पूर्णता में छेद रखना है। धरती माता एक ग्रह विशेष का चिन्तन होने पर भी ब्रह्माण्डीय चिन्तन पर विराम नहीं लगता है लेकिन खंड भारतमाता का चिन्तन एक सीमा पर जाकर रुक जाता तथा काल की परिधि में राष्ट्र का भूभाग बदलने के साथ भारतमाता का स्वरूप छोटा बड़ा हो जाता है। स्वतंत्रता से पूर्व की भारतमाता, वर्तमान भारतमाता से थोड़ी बड़ी थी। भारतवर्ष के दर्शन की धरती माता सम्पूर्ण भूभाग का स्वदेश, स्वधर्म एवं स्व बंधुत्व में समाविष्ट करता है। इतिहास के सागर में ज्यादा गहरा जाए तो भारतमाता और भी अधिक बड़ी दिखाई देती है। अतः देश सृष्ट भारतमाता का चिन्तन शास्वत, सनातन एवं पुरातन के शब्दकोश में नहीं रहता है। जबकि धरती माता का दर्शन इनसे प्रभावित नहीं होता है। भारतवर्ष के दर्शन में पृथ्वी तत्व में उन सभी खगोलीय पिंड एवं वस्तुओं को लिया गया है, जो ठोस है। भारतवर्ष की महानता में धरती माता के शरीर को बिठाया तथा वहाँ भारतमाता को खोजा तथा देखा कि सम्पूर्ण धरा जो धरती माता है, वही भारतवर्ष की माता है। अतः भारतमाता को सम्पूर्ण वसुंधरा में देखना है। 

भारतवर्ष एक चिन्तन है, जिसमें उसका दर्शन, संस्कृति एवं संस्कार है। यही भारतवर्ष का मानस है। भारतमाता अथवा धरती माता केवल भूगोल ही नहीं है। यह इतिहास, दर्शन, संस्कृति एवं संस्कार भी है। भारतवर्ष के संस्कार, संस्कृति, दर्शन एवं इतिहास की महानता बताते है कि यह मनुष्य को जाति, नस्ल, प्रजाति,सम्प्रदाय, क्षेत्रवाद, प्रदेशवाद, राष्ट्रवाद, भाषावाद, हिन्दू, जैन, बौद्ध, सिख, इस्लाम, ईसाई, यहुदी व पारसी इत्यादि कभी नहीं बनाते है। यह मनुष्य को मानव तथा मानवोत्तर देवकोटि, ईश्वर कोटि तथा ब्रह्म कोटि बनना सिखाती है। इसकी दृष्टि में मानव से कम अथवा मानव निम्नतम कुछ भी स्वीकार्य नहीं है। अतः भारतवर्ष के चिन्तन अखंड का चिन्तन है। खंड का नहीं, जो भी चिन्तन मनुष्य को खंड अथवा विभाजित करने की चेष्टा करता है। वह भारतमाता अथवा धरतीमाता का स्वरूप नहीं हो सकता है। अतः भारतमाता अथवा धरतीमाता का एक स्वरूप में नव्य मानवतावाद ही निवास कर सकता है। अतः भारतमाता अथवा धरतीमाता का मानस वैश्विक दृष्टिकोण, एक, अखंड और अविभाज्य मानव समाज में निहित है। इसको सामाजिक आर्थिक जगत में प्रउत व्यवस्था में देखा जाता है तथा सामाजिक आध्यात्मिक जगत में इसे आनन्द मार्ग के रूप में देखा जाता है। 

अब भारतमाता अथवा धरतीमाता की आत्मा का अवलोकन करते हैं। दर्शन एवं यथार्थ की दृष्टि से चराचर जगत एक ही आत्मा का विकास तथा यह उस एक आत्मतत्व से बना हुआ है। भारतवर्ष का आत्मज्ञान उसी दृश्य है। अतः भारतमाता अथवा धरतीमाता की आत्मा भी उससे अछूती नहीं रह सकती है। अतः भेदमूलक, संकीर्ण मानसिकता, तथा अपना पराया का भाव भारतमाता अथवा धरतीमाता की आत्मा में निवास नहीं करती है। 


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             करण सिंह
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