समाज आंदोलन को सशक्त कैसे बनाएं? (How to strengthen the social movement?)

 समाज आंदोलन को सशक्त बनाने के लिए अथवा एक व्यक्ति किस प्रकार एक मजबूत समाज आंदोलन तैयार कर सकता है। विषय पर चर्चा करने के लिए उपस्थित हुए हैं। समाज आंदोलन के प्रणेता श्री प्रभात रंजन सरकार द्वारा बताई गई राह पर चलकर हम एक मजबूत समाज आंदोलन तैयार कर सकते हैं अथवा उसकी पृष्ठ भूमि लिख सकते हैं। 

       समाज आंदोलन के 6 विषय

१. स्थानीय लोगों को स्थानीय क्षेत्र (सामाजिक आर्थिक इकाई) में शतप्रतिशत रोजगार की गारंटी देना। 

२. स्थानीय क्षेत्र (सामाजिक आर्थिक इकाई) का अधिकतम औद्योगिक विकाश किया जाए।
 
३. स्थानीय क्षेत्र (सामाजिक आर्थिक इकाई) में बाहरी उत्पादों के आयत को टालने के लिए बाहरी वस्तुओं का बहिष्कार का सकारात्मक तरीका बाहरी उत्पाद उपयोग किसी भी परिस्थिति में नहीं करना। 

४. स्थानीय भाषा में शिक्षा अर्थात शिक्षा का माध्यम स्थानीय भाषा हो। 


६. स्थानीय क्षेत्र (सामाजिक आर्थिक इकाई) के स्थानीय मुद्दों को लेकर बड़ा जन आंदोलन खड़ा करना, जो स्थानीय क्षेत्र (सामाजिक आर्थिक इकाई) का समाज आंदोलन कहलाएगा।

समाज आंदोलन का मुख्य उद्देश्य स्थानीय क्षेत्र में स्थानीय लोगों को शतप्रतिशत रोजगार प्राप्त हो, जिससे दोषपूर्ण व्यवस्था के चलते समाज में सामाजिक एवं आर्थिक असंतुलन आया है। उन्हें दूर कर एक स्वच्छ, स्वस्थ एवं सुदृढ़ मानव समाज की रचना की जा सके। आज मनुष्य का सामाजिक क्षेत्र एवं आर्थिक क्षेत्र अलग-अलग होने के कारण दोहरी जिदंगी जीनी पड़ रही है। जिससे व्यष्टि का मानसिक साम्य तथा समष्टि का तानाबाना अस्तव्यस्त हो गया है। स्थानीय क्षेत्र में स्थानीय लोगों को शतप्रतिशत रोजगार देने के लिए समाज आंदोलन के दूसरे विषय पर अधिक से अधिक काम करना पडेगा। 

समाज आंदोलन का दूसरा विषय है स्थानीय क्षेत्र का अधिकतम औद्योगिक विकास करना है। तब ही स्थानीय लोगों को स्थानीय क्षेत्र में में शतप्रतिशत रोजगार की दी गई गारंटी को पूर्ण कर पाएंगे।इसके लिए स्थानीय क्षेत्र की कृषि एवं खनिज से संबंधित तथा स्थानीय जरूरतों से संबंधित उद्योग स्थानीय क्षेत्र में ही स्थापित किया जाए। यह समाज आंदोलन की कृषि एवं आर्थिक नीति का मुख्य अंग है। स्थानीय क्षेत्र के औद्योगिक विकास की सफलता के लिए समाज आंदोलन के तीसरे बिन्दु पर कार्य करना परम आवश्यक है। 

स्थानीय क्षेत्र में स्थानीय क्षेत्र में उपलब्ध उत्पाद के समतुल्य जो भी बाहरी उत्पाद है। उनके आयात को टालना तथा स्थानीय उत्पाद की आवाज बनना। यही सच्चा स्वदेशी आन्दोलन है। इससे स्थानीय उत्पाद को बल मिलेगा तथा स्थानीय उत्पाद की गुणवत्ता में विकास के लिए स्थानीय क्षेत्र में स्थानीय उत्पाद की स्वस्थ एवं स्वच्छ प्रतियोगिता को विकसित की जा सके। स्थानीय उत्पाद के विकास के लिए स्थानीय भाषा को बढ़ावा देना नितांत आवश्यक है। इसलिए समाज आंदोलन के चौथे पहलू पर काम करना आवश्यक है। 

समाज आंदोलन का चतुर्थ विषय शिक्षा का माध्यम स्थानीय भाषा को बनाने के लिए संघर्ष करता है। यह स्थानीय लोगों के गौरव का विकास करती है तथा यह स्थानीय क्षेत्र की ऐतिहासिक परंपरा एवं सभ्यता व संस्कृति को आबद्ध रखती है। स्थानीय भाषा को शिक्षा का माध्यम चुनने से पूर्व पांचवे विषय पर काम करना आवश्यक है। 

समाज आंदोलन का पांचवा विषय स्थानीय भाषा को जनसंपर्क एवं कामकाज की मुख्य भाषा का दर्जा दिलाने के लिए अनवरत कोशिश करना। इसके लिए समाज आंदोलन तथा समाज आंदोलनकारी को लोकप्रिय एवं समाज में अपनी पकड़ को मजबूत करना ही होगा। इसके लिए समाज आंदोलन का छठां विषय पर प्रथमतः काम करना होगा। 

समाज आंदोलन का छठां विषय स्थानीय क्षेत्र के स्थानीय मुद्दों को लेकर एक जन आंदोलन मजबूत तैयार करना तथा उसको नेतृत्व प्रदान करने के लिए प्राउटिस्टों को आगे आना ही होगा। 

वस्तु समाज आंदोलन के 6 विषय प्रउत तक पहुँचने की एक सीढ़ी है, जिसमें सबसे ऊपरी पायदान स्थानीय क्षेत्र में स्थानीय लोगों को शतप्रतिशत रोजगार उपलब्ध करना है। इसके सबसे निचला पायदान स्थानीय मुद्दों को लेकर जन आंदोलन की अगवाई करना है। अतः छठां विषय जो आम विषय उससे लेकर पांचवा, चौथा, तीसरा, दूसरा तथा पहले विषय की ओर चलना है। 

(१) स्थानीय मुद्दों के द्वारा एक प्राउटिस्ट जनप्रियता हासिल करेगा। किसी आंदोलन की नींव नेतृत्व पर जनता के विश्वास के आधार पर खड़ी होती है। अतः एक प्राउटिस्ट को जनता का विश्वासमत प्राप्त करना ही होगा। इसके सबसे बेहतर तरीका जनता के स्थानीय मुद्दे हैं। जल, आवास, सड़क, नदी, जंगल, चारागाह, सफाई एवं व्यवस्था से जुड़े स्थानीय मुद्दे हैं। जनता को इन मुद्दों पर प्राण न्यौछावर करने का वाले नेतृत्व की आवश्यकता होती है। यदि प्राउटिस्ट इस ध्वज को अपने हाथ में लेकर आगे बढ़ेगा तो जनता उसे अपना मसिहा मान लेगी तथा उसके आह्वान पर काम करने वाला एक काफिला मिल जाएगा। जनतंत्र मे एक व्यक्ति का यही सबसे बड़ा बल है। इसके लिए नेता को अपना चरित्र सद्विप्र सा बनाना ही नहीं होगा अपितु नेता को सद्विप्र बनना ही होगा। चरित्रवान एवं आध्यात्मिक नैतिकवान नेतृत्व में जनता अपना संरक्षक देखती है। इसलिए प्रउत के लिए काम करने वाले नेताओं को सद्विप्र बनने की यात्रा पर तीव्र गति से चलना होगा। 

(२) स्थानीय भाषा अपनत्व का आधार - जिस क्षेत्र की अपनी भाषा नहीं होती, उसका सामाजिक आर्थिक इकाई के रूप में भविष्य भी नहीं होता है। अतः नेतृत्व को स्थानीय भाषा को बढ़ावा देते हुए। स्थानीय भाषा को लोक व्यवहार एवं सरकारी कामकाज में प्रयोग करने के लिए के लिए एक सशक्त आन्दोलन को खड़ा करना ही होगा। इससे गैर स्थानीय भाषी तथा बाहरी ताकतों का प्रभुत्व क्षीण हो जाएगा तथा समाज अपने बल पर खड़ा होगा। अतः लोकप्रिय हुए प्राउटिस्ट को प्रउत की ओर प्रथम कदम उठाने के क्रम में स्थानीय भाषा पर जान छिड़क देनी होगी। यह जूनून ही एक सशक्त जन आंदोलन का आधार होगा। स्थानीय भाषा की जनप्रियता स्थानीय क्षेत्र में बाहरी हस्तक्षेप को निस्ताबुज कर देगा। 

(३) शिक्षा का माध्यम स्थानीय भाषा -  समाज आंदोलन की गति शिक्षा को स्थानीय भाषा में देने को लेकर भी होगा। बाहरी ताकतों को स्थानीय क्षेत्र में रोकने का सशक्त साधन स्थानीय भाषा की जनप्रियता है तो प्रतिभाओं के पलायन का सशक्त साधन स्थानीय भाषा में शिक्षा है। आज अंग्रेजी भाषा में शिक्षा का माध्यम प्रतिभाओं के विकास से अधिक पलायन का माध्यम बन गया है। अतः व्यक्ति के व्यक्तित्व विकास एवं स्थानीय क्षेत्र के विकास के लिए स्थानीय भाषा को शिक्षा के माध्यम को बनाने एवं बनाये रखने के लिए करम कसनी ही होगी। अंग्रेजी सहित अन्य भाषाओं को माध्यम बनाने वाली शिक्षा की दुर्बलता तो तोड़ना होगा। 

(४) बाहरी उत्पादों के आयात को टालना - स्थानीय विकास के लिए स्थानीय उत्पादों का प्रयोग जरुरी है। इसके बाहरी उत्पाद के प्रयोग पर ताला लगाना ही होगा। लोकल की वोकल स्थानीय उत्पाद की लोकप्रियता एवं गुणवत्ता बनाने में है। इसके स्थानीय उत्पाद की स्वच्छ एवं स्वस्थ प्रतियोगिता का परिवेश तैयार करने के लिए बाहरी आयात टालना ही होगा अथवा उसके विरुद्ध जनता को खड़ी करना होगा। 

(५) स्थानीय क्षेत्र का अधिकतम औद्योगिक विकास, समाज आंदोलन की सकारात्मक प्रणीती है। अतः स्थानीय क्षेत्र के लिए एक सुस्पष्ट औद्योगिक नीति की आवश्यकता है। 
किसी हालात में कच्चा माल स्थानीय क्षेत्र से बाहर नहीं जाए। इसके लिए पूरा दमखम लगा देना होगा। 

(६) स्थानीय क्षेत्र में ही स्थानीय लोगों को शतप्रतिशत रोजगार समाज आंदोलन सिद्धि है। यदि रोटी के खातिर अपने भाई बंधु व परिजनों को छोड़कर दुरस्त जाना पड़े तो समझना होगा कि सामाजिक एवं आर्थिक व्यवस्था का तानाबाना चकनाचूर हो रहा है। यह व्यवस्था शोषण तथा अव्यवस्था को बढ़ावा देती है। अतः समाज आंदोलन को अन्तिम स्थिति में यहाँ आना ही होगा। 

जैसे जैसे समाज आंदोलन सशक्त होता जाएगा, वैसे प्रउत आधारित व्यवस्था का निर्माण होता जाएगा।

आनन्द किरण
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