प्रउत कब?

प्रउत कब?
         बाबा ने प्रउत को सर्वजन हितार्थ, सर्वजन सुखार्थ प्रचारित किया है। इसलिए यह प्रश्न महत्वपूर्ण हो जाता है कि प्रउत आखिर कब आएगा?  यह प्रश्न बाबा से भी किया जाता था तथा प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रूप से प्रउत के सभी प्रशिक्षकों से भी किया जा चुका है। भविष्य के गर्भ में छिपे इस प्रश्न का उत्तर खोजने का प्रयास सभी ने अपने-अपने स्तर पर किया है तथा कर रहे है। हम सभी जानते है कि भविष्य की कोख में छिपे उत्तर पर सदैव ही संदेह की तलवार लटकती रहती है। चूँकि इस प्रश्न का उत्तर बाबा ने सकारात्मक रुप से दिया है। अत: सम्पूर्ण भक्त समाज आश्वस्त है कि एक ऊषा प्रउत को लेकर अवश्य आएगी। मनुष्यों की जितनी प्रगाढ़ भक्ति है, प्रउत के आने पर विश्वास भी उतना ही अधिक प्रगाढ़ है। मुझे भी बाबा के आप्त वाक्य पर शत प्रतिशत विश्वास है कि एक मेरे जीवन की एक ऊषा प्रउतमय होगी। हम सबके मन में यह तो पक्का विश्वास है कि प्रउत आएगा ही लेकिन यह यश रेखा किसके हाथों में खिंची गई है, इससे हम सभी अनजान है। बाबा ने हमें हस्तरेखाएँ पढ़ने के धंधे को नहीं सिखाया है; इसलिए मैं भी उसको नहीं पढ़ सकता हूँ। अत: आपके एवं मेरी रूह में यह प्रश्न तो है कि आखिर प्रउत कब?
        भक्त के लिए, इस प्रश्न का एक ही उत्तर है कि बाबा की इच्छा होगी तब प्रउत आ जाएगा।  बस मुझे तो  प्रउत के लिए जी जान से कार्य करना है। मैं उस ऊषा को देखूँ अथवा नहीं देखूँ। जीवन में जब तक प्राण है, तब प्रउत के लिए काम करता रहूँगा। ज्ञानी एवं कर्मी की भी अपनी-अपनी सोच होगी। एक बात तय है कि प्रउत को धरातल पर स्थापित करने की साधना में सलंग्न साधकों की कर्म साधना के बल पर ही प्रउत धरती पर आएगा दुनिया का हर मुश्किल से मुश्किल कार्य व्यक्ति व समष्टि की कर्म साधना के बल पर ही संपन्न हुआ है। कर्म करने वाले को यह पता नहीं होता है कि वह सफल होगा अथवा नहीं ;लेकिन यह विश्वास अवश्य रखता है कि एक दिन वह कामियाब अवश्य ही होगा। काम करने के लिए कर्मी के मन में इस प्रकार की सोच का होनी ही चाहिए। हमारे मामले में तो दूसरी बात है कि निश्चित एवं निश्चित रूप से हम कामियाब होगे ही, क्योंकि प्रउत परम पुरुष का संकल्प है; इसलिए संदेह का प्रश्न  है ही नहीं है। दूसरी बात स्वयं बाबा ने इसका उत्तर सकारात्मक दे दिया है, इसलिए प्रउत को तो धरती आना ही है।
             लेकिन मेरा प्रश्न कुछ इस प्रकार अटपटा है; प्रउत गया कब था, जो आएगा। प्रउत तो सदैव अपने पास है, फिर प्रउत के आने अथवा नहीं आने का प्रश्न ही नहीं रहता है। प्रश्न तो यह है कि हम प्रउत के पास है अथवा नहीं?  हम जब तक प्रउत से दूर है, तब तक प्रउत हमें दूर दिखाई देता है। जितने हम प्रउत के पास जाएंगे; प्रउत कब का प्रश्न, हम से दूर होता जाएगा। मैं तो कहता हूँ कि प्रउत तो धरती पर उसी दिन आ गया था, जब बाबा ने इस सर्वजन हितार्थ, सर्वजन सुखार्थ प्रचारित किया था। हम, हमारी दृष्टि इसे देख नहीं पाती है, तो यह प्रउत अथवा प्रउत प्रणेता का नहीं हमारी दृष्टि का दोष है।
        कई व्यक्ति तो यह भ्रम पाले बैठे है कि यदि प्रउत की विद्या को हमने सार्वजनिक कर दी, तो प्रउत कोई ओर चुरा ले जाएगा तथा अपने नाम प्रउत को स्थापित कर देगा। यह मात्र एवं मात्र उन व्यक्तियों का भ्रम है। प्रउत को तो श्री प्रभात रंजन सरकार सभी के हित एवं सुख में प्रचारित कर दिया है। तुम्हारे एवं मेरे छिपाने से नहीं छिप सकता है। 'कोई लाख छिपाए प्यार मगर दुनिया को पता तो चल ही जाएगा।' यहाँ तो छिपाने का कुछ है हि नहीं सब कुछ बाबा ने खोलकर सबके सामने रख दिया है।
          दार्शनिक जगत की दुनिया से, मैं हकिकत दुनिया में आकर भी, आपको एक ही बात कहूँगा कि, पहले हम सोचे कि हम, प्रउत के कितने नजदीक है। क्या हम व्यक्तिगत एवं अपने सार्वजनिक जीवन में प्रउत को जी रहे हैं। यदि हां, तो हमारा यह प्रश्न हो ही नहीं सकता कि प्रउत कब?  हम कहते है, हरे दादा! प्रउत को कैसे जिये, यह दुनिया प्रउत के योग्य बनी ही नहीं है। जब यह दुनिया प्रउत के योग्य बनी है, तब ही तो बाबा ने प्रउत को धरती पर लाया है; अन्यथा लाते ही नहीं। उन्होंने, शिव व श्री कृष्ण के युग में तो प्रउत नहीं लाया था, क्योंकि उस समय, दुनिया प्रउत के योग्य नहीं थी। कुछ लोग हमें कहते है कि दादा, आप लोग झूठ बोलते है, प्रउत तो पहले से ही धरती पर था।  बाबा ने मात्र प्रउत को नये युग के अनुसार परिभाषित किया है।  मैं उनसे कहूँगा कि यह आपकी नादानी है। राजमुकुट बनने से पहले, यह बनने वाले धातु के रुप में इस धरती में दफन था। उसे खादान से खोद कर कार्यशाला में लाया गया, उसे उपयुक्त डिजाइन देकर बनाया एवं सजाया गया, तत्पश्चात उसे राज मुकुट घोषित किया गया; उसके बाद जिसने उसे धारण किया, वह राजा कहलाया। प्रउत में उपस्थित तथ्य, यदाकदा इस धरा की संस्कृति, सभ्यता  व समाज में  यत्रतत्र थे, श्री प्रभात रंजन सरकार ने, उन्हें अपने साधना एवं आशीर्वाद के बल पर सिद्ध किया तत्पश्चात प्रउत को सर्वजन हितार्थ, सर्वजन सुखार्थ प्रचारित किया।
          प्रउत कब प्रश्न का एक उत्तर है कि प्रउत तो धरती पर आ गया है। जितने हम प्रउत मय बनकर जिते जाएंगे  उतना ही प्रउत हमें इस पृथ्वी पर स्पष्ट दिखाई देगा। आज मैं, हम सभी को बाबा के सहारे विश्वास दिलाना चाहता हूँ कि यदि हम सभी जिन्होंने, प्रउत को धरती पर स्थापित करने के संकल्प के साथ कार्य करने का प्रण लिया है, यदि वे सभी, प्रउत के तरिके से व्यष्टिगत एवं समष्टिगत रुप जीना एवं रहना शुरू कर देंगे, उसी दिन प्रउत व्यवस्था को इस दुनिया पर अपनी आँखों से देखेंगे। इसलिए हे प्राउटिस्टों! अपने को एवं अपने समाज को प्रउतमय बनाने के रचनात्मक कार्य को प्रारंभ कर दो,  तम्हारे इस कार्य प्रउत धरती पर सबको दिखाई देने लगेगा।
"न हो कोई साथ अकेले ही बढ़ चलो, मंजिल हमारी प्रतिक्षा कर रही है।"

➡ निवेदक

श्री आनन्द किरण

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1 टिप्पणी:

  1. Baba nam kevalam ji dada namsakar sach kha aapne prauth to tbhi se agaya h jab se hamare prem pita kie mukh kamal se bola gya h prem pita baba ki jay baba nam kevalam

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