प्रगतिशील उपयोग तत्व सर्वजन हितार्थ, सर्वजन सुखार्थ प्रचारित क्यों किया गया?
लोकतंत्र जहाँ बहुमत, दो तिहाई बहुमत व तीन चौथाई बहुमत की अभिधारणाओं तक सीमित है। सांस्कृतिक मर्यादाएँ बहुजन हिताय बहुजन सुखाय में जाकर समाप्त हो जाती है। वही प्रगतिशील उपयोग तत्व सर्वजन हितार्थ, सर्वजन सुखार्थ प्रचारित कर हमारे प्राणप्रिय *बाबा* ने अपने सर्वेश्वर रुप के दर्शन दिए है। प्रश्न यहाँ यह है कि ऐसा क्या संभव है? सभी आनन्द मार्गी एवं बाबा को जानने वालों का उत्तर है कि बाबा ने कहा है तो संभव ही नहीं, एक शत प्रतिशत संभव है। लेकिन बाबा ने प्रउत दर्शन मात्र उन लोगों के लिए ही नहीं दिया, जो बाबा को मानते एवं जानते हैं; अपितु बाबा का यह अवदान चराचर जगत के कल्याण के लिए है। बाबा के अवदान के बारे में एक अनजान का प्रश्न अवश्य ही रहता है। यह सब कैसे? जब हम इस महान संदेश के वाहक है, तब हमें भी इस प्रश्न का उत्तर जान लेना चाहिए।
सर्वजन हितार्थ, सर्वजन सुखार्थ की अवधारणा को एक समीकरण में स्थापित कर अध्ययन करते है। ➡ बहुजन + अधिशेष= सर्वजन। यहाँ बहुजन 50.01 से लेकर 99.99 प्रतिशत तक हो सकता है। वही अधिशेष 0.01 से 49.99 प्रतिशत तक है। 50 प्रतिशत पर बहुजन एवं अधिशेष समान हो जाते है। दोनों को पहचानना मुश्किल हो जाता है। 100 प्रतिशत पर बहुजन सर्वजन में बदल जाता है।
एक बात स्वत: सिद्ध है की बहुजन का निर्माण हो सकता है तो सर्वजन का भी निर्माण किया जा सकता है। इससे यदि कोई विद्वान काल्पनिक अवस्था मानता है तो उस विद्वान की भूल है। अन्य अल्पजन को बहुजन में बदला जा सकता है तो सर्वजन में भी बदलाना कदापि असंभव नहीं है। प्राचीन काल के स्मृतिकारों ने राजा के कर्तव्यों में सबका कल्याण बताया था। प्रउत एक सामाजिक आर्थिक व्यवस्था है, इसलिए प्रउत का भी लक्ष्य तथा कर्तव्य सर्वजन में होना आवश्यक है।
लोकतंत्र का निर्माण बहुमत के सूत्र पर किया गया हो ऐसा नहीं है। लोकतंत्र भी सम्पूर्ण जनता को उत्तरदायित्व लेकर चलता है। बहुमत की अभिकल्पना तो सबके कल्याण में आए गतिरोध को दूर करने के लिए की गई है। एक राजनैतिक दल में मतभेद होने के बावजूद अनुशासन के नाम एक राय पर चलता है। यह एक राय जिसे रुसो ने सामान्य इच्छा के नाम से चित्रित किया था। प्रउत व्यवस्था दल विहिन आर्थिक प्रजातंत्र की व्यवस्था है। यहाँ सर्वजन का सूत्र मुख्य रुप से स्थापित करना था।
समाज के सुरक्षा चक्र एक विधान है कि एक भी छुटा तो सुरक्षा चक्र टुटा। प्रउत भी एक समाज का निर्माण करता है, यहाँ भी सर्वजन की अभिधारणा आवश्यक है।
सर्वजन की अभिधारणा समाज में टोलियाँ नहीं बनने देते है जबकि बहुजन एवं अल्पजन अपने आप टोलियाँ है। यह जन सुख को खंडित कर देता है। प्रउत जिस सुखी, समृद्ध एवं शान्त विश्व की अभिकल्पना करता है। वहाँ टोलियों का स्थान नहीं होता है, अन्ततोगत्वा प्रउत सबका है, सबके लिए है, सबके द्वारा कार्य करवाता है। व्यक्ति एवं समाज धर्म को प्रत्येक मन मन में स्थापित करने के लिए सर्वजन हितार्थ, सर्वजन सुखार्थ प्रचारित किया गया है।
निष्कर्ष के रुप में श्री श्री आनन्दमूर्ति जी के आशीर्वाद पर सबका हक है। इसलिए प्रउत सर्वजन हितार्थ, सर्वजन सुखार्थ प्रचारित किया गया है।
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