धर्मयुद्ध मंच से
® श्री आनन्द किरण®
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© राष्ट्र पहले अथवा धर्म ©
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आज का विश्व अनेक राष्ट्रों का समूह है। प्रत्येक राष्ट्र नागरिकों में एकता के भाव को मजबूत करने के लिए राष्ट्रभक्ति की भावना भरी जाती है। राष्ट्रभक्ति में राष्ट्र को सर्वोच्चता दी जाती है। दूसरी ओर आज के विश्व मानव को जाति एवं सम्प्रदाय से पहचाने के गुण विद्यमान है। यह पहचान कई बार राष्ट्र के गठन में इन गुणों को प्रधानता देने की वकालत करते है। लेकिन आज के अधिकांश सभ्य एवं विकसीत राष्ट्र किसी एक जाति अथवा सम्प्रदाय के आधार पर अपना परिचय देना अधिक उचित नहीं समझते है। राष्ट्र के गठन के पीछे सबसे गुरुत्व बिन्दु उसकी राष्ट्रीयता है। राष्ट्रीयता में एक पहचान उनकी सभ्यता एवं संस्कृति के गुण है। जब तक किसी राष्ट्र में रहने वाले सभी लोगों के निजी जाति एवं साम्प्रदायिक मान्यता उस राष्ट्र की सभ्यता एवं संस्कृति के अनुकूल रहती है तब तक राष्ट्रीयता एवं जाति एवं साम्प्रदायिकता के विवाद नहीं रहती है। लेकिन जब राष्ट्रीयता एवं जाति सम्प्रदाय के बीच पार्थक्य दिखाई देने पर एक प्रश्न प्रभावशाली हो जाता है कि राष्ट्र एवं जाति सम्प्रदाय में पहले कौन?
उपरोक्त प्रश्न का सर्वोत्तम उत्तर राष्ट्र बताया जाता है। जाति सम्प्रदाय की परिधि राष्ट्र की सीमा से बहुत अधिक बढ़ने से उसकी राष्ट्रीयता अन्तर्राष्ट्रीय मामलों में जाति सम्प्रदाय को प्राथमिकता देने के उतावले होते है। इसलिए यह प्रश्न सबसे अधिक महत्वपूर्ण है कि राष्ट्रीयता एवं जाति सम्प्रदायिकता में से किसे चुना जाए?
वैश्विक पैमाने पर दोनों ही व्याधियां है। जो मानवता को रुग्ण करती है। इसलिए सतपुरूष कह गए है कि व्यक्ति को सर्वोच्च प्राथमिकता धर्म को देनी चाहिए। यहाँ एक बात सदैव स्मरणीय होती है कि धर्म का जाति सम्प्रदाय से दूर दूर तक का कोई रिश्ता नहीं है। रिलिजन, मजहब, मत एवं पंथ धर्म के कुछ नजदीक जाने का प्रयास करते है लेकिन इनसे भी धर्म का दूर-दूर का रिश्ता नहीं है। धर्म अपने आप में एक स्वतंत्र सत्ता है। जिसका निकट संबंध मानवता है। मानवता भी जब तक मनुष्य केन्द्रित है तब तक रुग्ण है। मानवता सम्पूर्ण सृष्टि के समस्त जीव अजीव के कल्याण की भावना का परिचय है। इस चिन्तन के लिए मानवतावाद नाम अपूर्ण है। इस लिए श्री प्रभात रंजन सरकार ने इसका नाम नव्य मानवतावाद दिया। नव्य मानवतावाद धर्म है तथा धर्म की जाति मानवता है। जो विश्व कल्याण के गुण को धारण करती है।
विश्व कल्याण की राह में राष्ट्रीयता एवं जाति सम्प्रदाय बाधक बनने की स्थिति में धर्म को प्राथमिकता देनी चाहिए। इसलिए आप्त एवं आदर्श वाक्य कहता है कि यतो धर्म ततो जय।
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श्री आनन्द किरण @ सभ्यता एवं संस्कृति से
® श्री आनन्द किरण®
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© राष्ट्र पहले अथवा धर्म ©
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आज का विश्व अनेक राष्ट्रों का समूह है। प्रत्येक राष्ट्र नागरिकों में एकता के भाव को मजबूत करने के लिए राष्ट्रभक्ति की भावना भरी जाती है। राष्ट्रभक्ति में राष्ट्र को सर्वोच्चता दी जाती है। दूसरी ओर आज के विश्व मानव को जाति एवं सम्प्रदाय से पहचाने के गुण विद्यमान है। यह पहचान कई बार राष्ट्र के गठन में इन गुणों को प्रधानता देने की वकालत करते है। लेकिन आज के अधिकांश सभ्य एवं विकसीत राष्ट्र किसी एक जाति अथवा सम्प्रदाय के आधार पर अपना परिचय देना अधिक उचित नहीं समझते है। राष्ट्र के गठन के पीछे सबसे गुरुत्व बिन्दु उसकी राष्ट्रीयता है। राष्ट्रीयता में एक पहचान उनकी सभ्यता एवं संस्कृति के गुण है। जब तक किसी राष्ट्र में रहने वाले सभी लोगों के निजी जाति एवं साम्प्रदायिक मान्यता उस राष्ट्र की सभ्यता एवं संस्कृति के अनुकूल रहती है तब तक राष्ट्रीयता एवं जाति एवं साम्प्रदायिकता के विवाद नहीं रहती है। लेकिन जब राष्ट्रीयता एवं जाति सम्प्रदाय के बीच पार्थक्य दिखाई देने पर एक प्रश्न प्रभावशाली हो जाता है कि राष्ट्र एवं जाति सम्प्रदाय में पहले कौन?
उपरोक्त प्रश्न का सर्वोत्तम उत्तर राष्ट्र बताया जाता है। जाति सम्प्रदाय की परिधि राष्ट्र की सीमा से बहुत अधिक बढ़ने से उसकी राष्ट्रीयता अन्तर्राष्ट्रीय मामलों में जाति सम्प्रदाय को प्राथमिकता देने के उतावले होते है। इसलिए यह प्रश्न सबसे अधिक महत्वपूर्ण है कि राष्ट्रीयता एवं जाति सम्प्रदायिकता में से किसे चुना जाए?
वैश्विक पैमाने पर दोनों ही व्याधियां है। जो मानवता को रुग्ण करती है। इसलिए सतपुरूष कह गए है कि व्यक्ति को सर्वोच्च प्राथमिकता धर्म को देनी चाहिए। यहाँ एक बात सदैव स्मरणीय होती है कि धर्म का जाति सम्प्रदाय से दूर दूर तक का कोई रिश्ता नहीं है। रिलिजन, मजहब, मत एवं पंथ धर्म के कुछ नजदीक जाने का प्रयास करते है लेकिन इनसे भी धर्म का दूर-दूर का रिश्ता नहीं है। धर्म अपने आप में एक स्वतंत्र सत्ता है। जिसका निकट संबंध मानवता है। मानवता भी जब तक मनुष्य केन्द्रित है तब तक रुग्ण है। मानवता सम्पूर्ण सृष्टि के समस्त जीव अजीव के कल्याण की भावना का परिचय है। इस चिन्तन के लिए मानवतावाद नाम अपूर्ण है। इस लिए श्री प्रभात रंजन सरकार ने इसका नाम नव्य मानवतावाद दिया। नव्य मानवतावाद धर्म है तथा धर्म की जाति मानवता है। जो विश्व कल्याण के गुण को धारण करती है।
विश्व कल्याण की राह में राष्ट्रीयता एवं जाति सम्प्रदाय बाधक बनने की स्थिति में धर्म को प्राथमिकता देनी चाहिए। इसलिए आप्त एवं आदर्श वाक्य कहता है कि यतो धर्म ततो जय।
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श्री आनन्द किरण @ सभ्यता एवं संस्कृति से
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