जन्माष्टमी क्या एवं क्यों?

        धर्मयुद्ध मंच से 
        ®श्री आनन्द किरण®
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    ©जन्माष्टमी क्या एवं क्यों?©
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      आज हम जन्माष्टमी को धर्मयुद्ध मंच पर ले जाते है। शास्त्र में कहा गया है। ब्रह्म  एक, अखंड, अनादि, अनन्त, सर्वव्यापी, निराकार, निरंजन एवं अजन्मा सत्ता है। इसलिए प्रश्न आता है कि जन्माष्टमी क्या एवं क्यों? धर्मयुद्ध मंच किसी भी विषय को देश, काल एवं पात्र की सीमा से उपर उठकर सत्य की कसोटी पर ले जाकर अध्ययन करता है। कभी भी धर्मयुद्ध मंच का उद्देश्य किसी भी व्यक्ति की धार्मिक भावना को ठेस पहुँचाना का उद्देश्य नहीं रहता है।
         भारतवर्ष में वैष्णवीय परंपरा के अनुसार भाद्रपद मास की कृष्ण अष्टमी को भगवान श्री कृष्ण के जन्मोत्सव के रूप में मानाया जाता है। कथा के अनुसार कंस के अत्याचार से अतृप्त मथुरा राज्य की जनता को बचाने के लिए पूर्व घोषणा के अनुसार उसी की बहन देवकी की अष्टम् संतान के रूप में मथुरा की जेल में श्री कृष्ण का जन्म हुआ। दैविक चमत्कार से जेल के सभी द्वार खुल जाते है तथा संतरी मुर्छित हो जाते है। श्री कृष्ण के पिता वसुदेव एक टोकरी में बैठाकर अतिवृष्टि के बीच यमुना नदी के उस पार गोकुल ले जाते है। गोकुल के मुखिया नंद को श्री कृष्ण को सोप कर उसी समय जन्मी यशोदा की पुत्री की पुत्री को मथुरा ले आता है। उसी समय दैवीय चमत्कार से द्वार स्वत: ही बंद हो जाते है एवं पहरियों की चेतना पुनः लौट आती है। उसके बाद सूचना पाते ही मथुरा का दुराचारि सम्राट कंस आकर पूर्व की भाँति देवकी उस नवजात बालिका शिशु को छिन्न कर पथ्थर पर पटकता है तभी वह अष्ट भुजा देवी के रूप धारण कर बताती है कि तुमे मारने वाला जन्म ले चुका है। उसके बाद मथुरा राष्ट्र के सभी नवजात शिशुओं को कंस मरवा देता है लेकिन नंद का शिशु उसकी पूतना को ही मार देता है। इस प्रकार विभिन्न षड्यंत्रों के बीच बारह वर्ष की अवस्था में श्री कृष्ण कंस को मार देते है। उसी श्री कृष्ण के जन्म दिवस को जन्माष्टमी के रूप में मनाने की परंपरा चल पड़ी। धर्मयुद्ध मंच के समक्ष कथा ने सहस्त्र प्रश्न किये है। यहाँ आस्था एवं विश्वास का सवाल है, इसलिए धर्मयुद्ध मंच ये प्रश्न पाठक की समालोचना के लिए छोड़कर आगे बढ़ जाता है।
                  जन्माष्टमी का मुख्य प्रश्न क्या ब्रह्म का भी जन्म मरण होता है? शास्त्र में बताई गई सर्वोच्च सत्ता की परिभाषा एवं जन्माष्टमी उत्सव में मेल मिलाप समालोचना का विषय है। यहाँ कुछ समय के लिए रुककर ब्रह्म को समझना आवश्यक है। इस ब्रह्माण्ड की सर्वोच्च सत्ता एवं नियंत्रक को संस्कृत में ब्रह्म नाम दिया गया है। आनन्द सूत्रम के अनुसार वह शिवशक्तयात्मक है। शिव का माने चैतन्य पुरुष एवं शक्ति उसकी प्रकृति है। प्रकृति का पुरुष पर बंधन के आधार पर उस एक ब्रह्म की दो अवस्था के दर्शन होते है। गुणाधिश अवस्था को निर्गुण ब्रह्म एवं गुणाधिन अवस्था को सगुण ब्रह्म नाम दिए गए है। इन दोनों के सेतु बिन्दु को तारकब्रह्म नाम दिया गया है। शास्त्र कहता है कि धर्म की ग्लानि एवं अधर्म के अभ्युत्थान के समय यह तारकब्रह्म महासंभूति रुप ग्रहण कर विभिन्न ग्रहों पर आकर धर्म की संस्थापना, साधुओं के परित्राण एवं दुष्टों के विनाश का कार्य करते है। शास्त्र की इस उक्ति पर खरी उतरते जन्माष्टमी प्रभु के आगमन प्रमाणित करती है।
           प्रत्येक साधक के जीवन में एक क्षण ऐसा होता है। जब उसके व्यष्टिगत जीवन में प्रभु का आगमन होता है। वह क्षण उस साधक के लिए चिरस्मरणीय रहता है। सार्वजनिक जीवन में भी एक अवस्था ऐसी होती है। जब धर्म किंकर्तव्यविमूढ़ अवस्था में खड़ा हो जाता है। उस अवस्था में किसी महानायक के द्वारा युग की आवश्यकता के अनुसार धर्म को परिभाषित, परिशोधित एवं परिस्कृत कर पुनः उसे निर्धारित स्थान पर संस्थापित करने का कार्य समपन्न करते है। उस महानायक, युगपुरुष के आगमन दिवस को समाज आनन्दोत्सव के रूप में मनाया है। वह महानायक ब्रह्म का सम्पूर्ण अभिप्रकाश है अथवा नहीं यह गहन शोध का विषय एवं आध्यात्म द्वारा साक्षात्कार करने का विषय है। इसलिए धर्मयुद्ध मंच इस पाठक के शोध के लिए छोड़ देता है।
         जन्माष्टमी क्या❓ प्रश्न का उत्तर धर्मयुद्ध मंच से यह निकल आया है कि व्यष्टिगत एवं समष्टिगत जीवन में नवप्रवर्तन की शुभवेला से है। अष्टक एक ज्यामितीय एवं अंकगणितीय संयोजन की वह अवस्था है। जब व्यष्टिगत एवं समष्टिगत में पूर्णत्व को प्राप्त करता है। यह पंचाग निर्माण की आधार रही है। यह एक यंत्र विज्ञान है। जिसे समझने के लिए यांत्रिक बुद्धि की आवश्यकता है। जो आज का विषय नहीं है।
                जन्माष्टमी क्यों❓  इस प्रश्न का उत्तर साधक जीवन को ऊर्जावान बनाने के लिए जन्माष्टमी है। इसे साधक अपनी प्रगाढ़ अवस्था में आनन्द पूर्णिमा भी कहता है। अष्टमी अष्टक् की एकांगी है जबकि पूर्णिमा अष्टक का चतुष्फलकीय पूर्ण रूप है। यह यंत्र विज्ञान को समझने पर अधिक स्पष्ट हो जाता है।
              धर्मयुद्ध मंच इस निष्कर्ष पर पहुँच की जन्माष्टमी आस्था एवं विश्वास का विषय है तथा आध्यात्म जीवन निर्माण का विषय है।
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श्री आनन्द किरण @ यंत्र, मंत्र एवं तंत्र
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