तंत्र, मंत्र एवं यंत्र बनाम भारतवर्ष



आज का विषय ऋषि, महर्षि, देवर्षि, मुनि, संत, महात्मा, दार्शनिक, तात्विक, आचार्य एवं पुरोधाओं द्वारा भी आलोचित करना दुष्कर है। वह विषय मेरे जैसे निपट मुढ़ व्यक्ति के हाथ में लगना अंधे के हाथ बटेर तुल्य है। मैं इतना जानता हूँ कि यह विषय सब अधिक चर्चित, विश्लेषित एवं व्याख्यात्मक भारतवर्ष में रहा है। विश्व के अन्यन: स्थलों पर भी उपरोक्त विषय के विद्यमान होने के प्रमाण मिलते हैं लेकिन वह ऊँट के मुह में जीरे से अधिक कुछ नहीं है। इसलिए यह कहना अतिशयोक्ति अथवा निराधार नहीं होगा कि यह विषय विशुद्ध भारतीय है। मैं विडंबना कहूं अथवा अज्ञानता अथवा अल्प ज्ञान कि भारतवर्ष के अधिकांश व्यक्ति एवं व्यक्तियों का समूह उक्त विषय से अपरिचित अथवा भ्रमित है। मैं उन सौभाग्यशाली व्यक्तित्व को नमन करता हूँ जो इस विषय का ज्ञान रखते हैं। मैं उनका भी साधुवाद करना चाहता हूँ जो उक्त विषय से परिचित हैं। 
🔴👉 विषय का प्रथम बिन्दु तंत्र है। जिससे बहुत कम परिचित हैं तथा परिचितों में से अधिकांश भ्रमित है। स्वयं में भी गुरुदेव की शरण में आने से पूर्व तंत्र के संदर्भ में भ्रम में ही था। गुरुदेव की कृपा दृष्टि ने बताया कि जड़ता रुपी अज्ञानता से जो परित्राण देता है, उस विधा का नाम तंत्र है। तंत्र के अर्थ सिस्टम से भी लिया जाता है। जो भी हो तंत्र समझने योग्य विधा है। गुरुदेव ने बताया है कि तंत्र का अधिकांश अंश व्यवहारिक है तथा अल्पांश ही सैद्धांतिक है। इसलिए तंत्र अभ्यास करने समझा एवं जाना जाता है। तंत्र की दो विधा है। प्रथम विद्या तंत्र, जो स्थुलत्व सूक्ष्मता की ओर ले चलता है तथा द्वितीय अविद्या, जो सूक्ष्मत्व से जड़ता की ओर चलने वाली गति है। दोनों के प्रणेता भगवान सदाशिव है। प्रथम विधा मनुष्य के लिए वरदान है तो द्वितीय अभिशाप। प्रगतिशील समाज में प्रथम की नितांत आवश्यक है तो द्वितीय त्याज्य है।
🔴👉 मंत्र के संदर्भ में भारतीय समाज में सकारात्मक भाव है लेकिन अधिकांश व्यक्ति इससे भी अपरिचित है। मंत्र एक ऐसा शब्द है जो स्वयं में बहुत अधिक ताकतवर है। जिसकी शक्ति से परिचित व्यक्ति इसकी महत्ता से परिचित हैं। मंत्र के साथ एक शर्त जुड़ी रहती है, मंत्र चैतन्य। वस्तुतः मंत्र चैतन्य के अभाव में मंत्र भार तुल्य ही है। इसलिए यह विधा भी उपयोगी एवं गुणकारी है। मनुष्य के समाज को देर किए बिना इस विधा से मित्रता कर लेनी चाहिए।
🔴👉 यंत्र का आधुनिक समाज में बहुत अधिक बोलबाला है लेकिन आध्यात्मिक यंत्र की विधा मात्र ज्योतिष का खेल बनकर रह गया है। यह भी अनुसंधान करने योग्य है। मनुष्य अधिक इस विधा को ध्येय के रुप से रखने की मेरे विचार से आवश्यकता नहीं है। यंत्र को अधिकांश विशेषज्ञों ने रक्षा कवच के रुप चित्रित किया है लेकिन यह रक्षात्मक के अग्र गत्यात्मक भी है। यह भी रुचिकर बिन्दु है।
🔴👉 भारतवर्ष का इन विधाओं से रक्त एवं शरीर का संबंध रहा है, इसलिए भारतवर्ष को सम्पूर्ण रुपेण समझने के लिए उपरोक्त विधाओं से साक्षात्कार करना आवश्यक है। आज का विश्व इनसे दूर नहीं रह सकता है।
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|| धर्मयुद्ध मंच से ||
  
Karan Singh Rajpurohit (श्री आनन्द किरण ) 
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