जब कोई रोशनी मानव के लहू शोषण पर जलाया जाता है, उस ज्योति को रक्तदीप के नाम से जाना जाता है। इस धरा पर अनगिनत बार रक्तदीप को जलाया गया है। इस दीपक की बांति निरही मानवता के रक्त को पी जलती रही है। इस वसुंधरा का कोई कोना यह दावा नहीं कर सकता है कि मैंने रक्तदीप का स्पर्श नहीं पाया है। वह भाग अवश्य ही रक्तदीप की विभीषिका से अछूत रहा होगा जहां मानव के पांव नहीं पड़े होंगे। भूतकाल में भी रक्तदीप जले है, वर्तमान में भी जल रहे हैं तथा भविष्य में कुछ काल तक जलने की संभावना दिखती हैं। इन रक्तदीप का स्वरूप देश, काल एवं परिस्थिति के अनुकूल बदलते हैं।
विश्व ने इस रक्तदीप की ज्योति को निस्तेज करने के लिए भी मानवता को अनेक रूप में अवदान दिए हैं। उनके प्रयासों से रक्तदीप की धार को मंद भी किया गया है लेकिन कालांतर में वे अवदान दूषित होकर रक्तदीप का नया रूप प्रदान कर दिया। इसलिए मनुष्य समाज को इस रक्तदीप से अवश्य ही सावधान रहना होगा। इस लिए प्रश्न यह महत्वपूर्ण हो जाता है कि रक्तदीप की प्रज्वलन क्षमता को निस्तेज करने वाला मानवता का अवदान किया है। हमारे समाज ने उस अवदान का नाम धर्म दिया । धर्म एकमात्र ऐसा उपाय है जो विश्व में जल रहे शोषण के रक्तदीप को शून्य कर सकता है। धर्म एक सम्पूर्ण स्वरूप है। इसका क्षेत्राधिकार सर्वत्र है लेकिन इसके संदर्भ में दुखद बात यह है कि यह मजहब, रिलिजन, सम्प्रदाय, मत एवं पथ उलझकर रुग्ण हो जाता है तब रक्तदीप के समक्ष पराजित हो जाता है। एक सत्य है कि रक्तदीप में धर्म को क्षीण करने की क्षमता नहीं है। इसलिए धर्म के वास्तविक स्वरूप को समझने एवं धारण करने से ही विश्व स्वर्गमय बन सकता है। विश्व के लिए रक्तदीप की क्षमता को क्षीण कर धर्म का जय पताका लहराना चाहिए। धर्म जहाँ भी मिले वहाँ से लेना चाहिए इसमें साम्प्रदायिकता का लेबल नहीं लगना चाहिए। वेद, कुरान बाइबिल इत्यादि में धर्म को खोजो मजहब तथा रिलिजन इत्यादि दूषित तथ्यों को छोड़ो । धर्म के तथ्यों को जिन्होंने भी खोजों वे अवश्य विश्व के ज्योतिर्मय पुरुष बनें हैं। उन ज्योतिर्मय पुरुषों की भाँति अवश्य ही विश्व का प्रत्येक मनुष्य स्वयं के भीतर धर्म की ज्योति को प्रज्वलित करे तो वह दिन दूर नहीं रहेगा कि रक्तदीप क्षीरसागर में समा जाएगा।
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धर्मयुद्ध मंच से ----------------
----------------- करण सिंह राजपुरोहित( श्री आनन्द किरण)
विश्व ने इस रक्तदीप की ज्योति को निस्तेज करने के लिए भी मानवता को अनेक रूप में अवदान दिए हैं। उनके प्रयासों से रक्तदीप की धार को मंद भी किया गया है लेकिन कालांतर में वे अवदान दूषित होकर रक्तदीप का नया रूप प्रदान कर दिया। इसलिए मनुष्य समाज को इस रक्तदीप से अवश्य ही सावधान रहना होगा। इस लिए प्रश्न यह महत्वपूर्ण हो जाता है कि रक्तदीप की प्रज्वलन क्षमता को निस्तेज करने वाला मानवता का अवदान किया है। हमारे समाज ने उस अवदान का नाम धर्म दिया । धर्म एकमात्र ऐसा उपाय है जो विश्व में जल रहे शोषण के रक्तदीप को शून्य कर सकता है। धर्म एक सम्पूर्ण स्वरूप है। इसका क्षेत्राधिकार सर्वत्र है लेकिन इसके संदर्भ में दुखद बात यह है कि यह मजहब, रिलिजन, सम्प्रदाय, मत एवं पथ उलझकर रुग्ण हो जाता है तब रक्तदीप के समक्ष पराजित हो जाता है। एक सत्य है कि रक्तदीप में धर्म को क्षीण करने की क्षमता नहीं है। इसलिए धर्म के वास्तविक स्वरूप को समझने एवं धारण करने से ही विश्व स्वर्गमय बन सकता है। विश्व के लिए रक्तदीप की क्षमता को क्षीण कर धर्म का जय पताका लहराना चाहिए। धर्म जहाँ भी मिले वहाँ से लेना चाहिए इसमें साम्प्रदायिकता का लेबल नहीं लगना चाहिए। वेद, कुरान बाइबिल इत्यादि में धर्म को खोजो मजहब तथा रिलिजन इत्यादि दूषित तथ्यों को छोड़ो । धर्म के तथ्यों को जिन्होंने भी खोजों वे अवश्य विश्व के ज्योतिर्मय पुरुष बनें हैं। उन ज्योतिर्मय पुरुषों की भाँति अवश्य ही विश्व का प्रत्येक मनुष्य स्वयं के भीतर धर्म की ज्योति को प्रज्वलित करे तो वह दिन दूर नहीं रहेगा कि रक्तदीप क्षीरसागर में समा जाएगा।
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धर्मयुद्ध मंच से ----------------
----------------- करण सिंह राजपुरोहित( श्री आनन्द किरण)
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