👑 कल्कि युग- दशम् संभूति 👑 ⛳⛳⛳⛳⛳⛳⛳⛳⛳⛳⛳⛳⛳⛳⛳⛳⛳
भारतीय विश्लेषकों द्वारा जिस युग में ऐतिहासिक तथ्यों को समावेशित कर विश्व को विष्णु को समर्पित किया था। उस युग में कल्कि एक काल्पनिक अवस्था थी। यह ठीक उसी प्रकार की आश थी। जिस प्रकार युहदी समाज में संसार को पापों से मुक्त करने के मसीह के आगमन की इंतजार थी। जब क्राइस्ट ने स्वयं मसीहा बताया तो युहदियों अस्वीकार कर दिया। जरथरुट्र व पैगंबर हजरत मोहम्मद को भी अस्वीकृत मिली तथा समाज खेमों बट गया। हम आज भी कल्कि भगवान की राह देख रहे है तथा सहस्रों कल्कि भगवान होने का दावा कर गए है।
तात्कालिक ऋषि परिषद की कल्कि भगवान की अवधारणा अवश्य किसी भावी स्थिति का संकेत कर रहा था। कल्कि संभूति, वास्तव में एक युग का चित्रण है। जो छल, कपट, कूटनीति एवं व्यक्तिगत स्वार्थ पर खेला जाने वाला था। इसे कलयुग नाम दिया गया है। लेकिन मैं ऋषि परिषद की इस राय से संतुष्ट नहीं हूँ। धर्म की जय हेतु छल का अभिनय तो द्वापर युग के मुख से शुरू हो गया था। कल्कि युग में तो मृत्यु के मुख में जाते। उसके बाद कलयुग की शरूआत होती है।
जो भी हो ऐतिहासिक गवेषणा का विषय है। इतिहास के क्रमिक विकास पर दृष्टिपात करेंगे। कल्कि युग 700 ईस्वी के बाद की अवधि है। बुद्ध युग का अंत हुआ एवं कल्कि युग की शुरुआत हुई। इस अवधि में मानसिकता धन की लोलुपता को समर्पित रही। किसी ने तलवार के बल पर तो किसी ने छल कपट के बल पर एक संगठित लूट को अंजाम दिया। आजकल धन, धन को लूट रहा है।
विश्व अब युग संधि के इस मोड़ पर चल पड़ा है। जहाँ तृतीय परिक्रान्ति के बाद एक नये युग के समाज चक्र की युग संधि शुरु हो गई है। इस युग में तृतीय महासंभूति श्री श्री आनन्दमूर्ति जी का विश्व को दीदार हुआ है। वे नये युग के प्रतिपादन की घोषणा कर चुके है।
कल्कि युग का ऐतिहासिक मूल्यांकन ➡ विश्व का इतिहास इस युग पर सबसे अधिक कलम चला चुका है। मैं ऐतिहासिक मूल्यांकन पर छन्द वाक्यों में ही इतिश्री करुंगा। राजनीति, राजतंत्र से लोकतंत्र को समर्पित हो गई। समाज, कलह में जीने लगा। धर्मनीति, धर्म निरपेक्षता की कोख में जा बैठी। अर्थनीति, पूंजीवाद-साम्यवाद में लूट गई। मनोरंजन, अश्लीलता की चादर ओढ़ ली। बुद्धि, .....वादों(......est) चली गई। विश्व को यांत्रिक, तकनीकी एवं कम्प्यूटर का युग मिला।
कल्कि युग प्रउत समाज चक्र के अनुसार वैश्य युग में है तथा भारतीय चिन्तन के अनुसार द्वापर युग का अन्तिम पायदान है। इसके बाद कल युग की शुरुआत हो रही है। द्वापर युग व्यापक पैमाने पर विप्र युग है।
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लेखक - श्री आनन्द किरण
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