आनन्द मार्ग संगठन पर - नाट्यमाला (On Anand Marg Organization - Natyamala)


 
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 `एकांकीकार -[श्री] आनन्द किरण "देव"`


पात्र:
 * *आनन्द* : एक अनुभवी और ज्ञानी व्यक्ति।
 * *किरण* : एक जिज्ञासु पुरुष।

(एक शांत पार्क का दृश्य। शाम का समय है। बेंच पर आनंद बैठा है और कुछ पढ़ रहा है। किरण पास आकर बैठता है।)

 *किरण* : (विनम्रता से) नमस्कार दादाजी। 

 *आनंद* : (किरण को देखकर मुस्कुराते हुए) नमस्कार किरण। आओ, बैठो। आज कैसे आना हुआ?

 *किरण* : बस ऐसे ही, आपको देखकर रुक गया। आप हमेशा कुछ न कुछ ज्ञानवर्धक पढ़ते रहते हैं। मेरा एक सवाल था, अगर आप बुरा न मानें तो?

 *आनंद* : पूछो, क्या बात है?
किरण: मैंने एक जगह 'ईरॉज़' (ERAWS) शब्द पढ़ा था। इसका पूरा नाम तो समझ आ गया – शिक्षा, राहत और त्राण अनुभाग (Education, Relief And Welfare Section)। लेकिन मुझे यह श्री श्री आनंदमूर्ति जी की अवधारणा के रूप में ठीक से समझ नहीं आया। क्या आप इस पर कुछ प्रकाश डाल सकते हैं?

 *आनंद* : (गंभीरता से) बहुत अच्छा प्रश्न है किरण। ईरॉज़ केवल एक नाम नहीं, यह श्री श्री आनंदमूर्ति जी के एक व्यापक दृष्टिकोण का महत्वपूर्ण हिस्सा है। यह एक ऐसी व्यवस्था है जो समाज के सर्वांगीण विकास के लिए काम करती है।

 *किरण* : सर्वांगीण विकास? मतलब कैसे?

 *आनंद* : देखो, इसका पहला अक्षर है E – Education (शिक्षा)। शिक्षा केवल किताबें पढ़कर डिग्री हासिल करना नहीं है। यह व्यक्तित्व का सम्पूर्ण विकास है – भौतिक, मानसिक और नैतिक। यहाँ तक ही सीमित नहीं प्रगति का पथ भी दिखाता है। प्रगति मात्र आध्यात्मिक जगत में होती है।श्री श्री आनंदमूर्ति जी हमेशा कहते थे कि शिक्षा ऐसी होनी चाहिए जो मनुष्य को सच्चा मनुष्य बनाए, उसमें आध्यात्मिक,नैतिकता और सेवा भाव जगाए। ईरॉज़ के तहत ऐसी ही शिक्षा पर जोर दिया जाता है, ताकि व्यक्ति केवल खुद के लिए ही नहीं, बल्कि समाज के लिए भी उपयोगी बन सके।

 *किरण* : यह तो बहुत महत्वपूर्ण है। अक्सर हम शिक्षा को केवल रोज़गार से जोड़कर देखते हैं।

 *आनन्द* : - रोजगार भी शिक्षा का जरूरी अंग है। अतः श्री श्री आनन्दमूर्ति का कहना है कि शिक्षा, वह है जो शिक्षार्थी को रोजगार की चिंता से मुक्त करें। 

 *किरण* : वो कैसे? 

 *आनन्द* : शतप्रतिशत रोजगार गारंटी नीति के तहत। 

 *किरण* : अति उत्तम सिद्धांत

 *आनंद* : बिलकुल। फिर आता है R – Relief (राहत)। जब भी कोई प्राकृतिक आपदा आती है, जैसे बाढ़, भूकंप या सूखा, तब लोगों को तत्काल मदद की ज़रूरत होती है। ईरॉज़ का एक मुख्य कार्य ऐसे समय में पीड़ितों तक तुरंत राहत पहुँचाना है – भोजन, पानी, आश्रय और चिकित्सा सहायता। यह केवल मानवीयता का प्रदर्शन नहीं, बल्कि लोगों में विश्वास जगाने का भी काम है कि दुख की घड़ी में कोई उनके साथ खड़ा है।

 *किरण* : यह तो बहुत नेक काम है। मैंने कई बार देखा है कि ऐसी स्थितियों में लोगों को कितनी मदद की ज़रूरत पड़ती है।

 *आनन्द* : और फिर है A – And (और), जो इन सभी को जोड़ता है। इसके बाद आता है W – Welfare (त्राण)। त्राण का अर्थ है कल्याण, लेकिन यह राहत से थोड़ा अलग है। राहत तात्कालिक होती है, जबकि त्राण दीर्घकालिक कल्याण पर केंद्रित होता है। इसमें समाज के वंचित और गरीब वर्गों के लिए स्थायी समाधान खोजना शामिल है। जैसे, अनाथ बच्चों के लिए अनाथालय, निराश्रितों के लिए वृद्धाश्रम, या कौशल विकास कार्यक्रम ताकि वे आत्मनिर्भर बन सकें। यह लोगों को अपने पैरों पर खड़ा होने में मदद करता है।

 *किरण* : यानी, केवल संकट के समय मदद नहीं, बल्कि जीवन भर के लिए उन्हें सशक्त बनाना।

 *आनंद* : बिल्कुल सही। और अंत में आता है S – Section (अनुभाग)। यह दर्शाता है कि यह एक संगठित इकाई है जो इन सभी कार्यों को व्यवस्थित तरीके से करती है। यह एक ऐसा ढाँचा है जिसके माध्यम से श्री श्री आनंदमूर्ति जी के सामाजिक सेवा के आदर्शों को ज़मीन पर उतारा जाता है। इसका लक्ष्य है एक ऐसा समाज बनाना जहाँ कोई भी व्यक्ति मूलभूत ज़रूरतों से वंचित न रहे और हर किसी को गरिमापूर्ण जीवन जीने का अवसर मिले।

 *किरण* : (सोचते हुए) यह तो एक बहुत ही दूरदर्शी और व्यापक अवधारणा है। शिक्षा से इंसान का निर्माण, राहत से आपातकाल में मदद, और त्राण से दीर्घकालिक कल्याण – यह सब मिलकर एक मजबूत और संवेदनशील समाज का निर्माण करते हैं।

 *आनंद* : हाँ किरण, श्री श्री आनंदमूर्ति जी का मानना था कि समाज के हर व्यक्ति का विकास और कल्याण सुनिश्चित करना हमारा नैतिक दायित्व है। ईरॉज़ उसी दिशा में उठाया गया एक ठोस कदम है। यह केवल एक अनुभाग नहीं, बल्कि सेवा और करुणा का एक जीवित उदाहरण है।

 *किरण* : मुझे अब बहुत स्पष्ट रूप से समझ आ गया है। आपने बहुत सरलता से समझाया। यह जानकर खुशी हुई कि ऐसे महत्वपूर्ण कार्य के लिए एक पूरी संरचना मौजूद है।

 *आनंद* : यही तो है। जब विचार बड़े हों, तो उन्हें व्यवस्थित रूप से लागू करने के लिए ऐसे ही अनुभागों की आवश्यकता होती है। ईरॉज़ उसी सोच का परिणाम है।

 *किरण* : आपका बहुत-बहुत धन्यवाद दादाजी। आज आपने मेरी बहुत बड़ी जिज्ञासा शांत कर दी।

 *आनंद* : (मुस्कुराते हुए) इसमें धन्यवाद की क्या बात है किरण। ज्ञान बाँटने से बढ़ता है। बस, अब तुम भी इस अवधारणा को समझो और जितना हो सके, इसे फैलाने में मदद करो।

 *किरण* : ज़रूर, मैं अब इसे और गहराई से समझने और इसके बारे में दूसरों को बताने की कोशिश करूँगा।

(दोनों मुस्कुराते हैं। सूरज ढल रहा है और एक शांत माहौल में बातचीत समाप्त होती है।)

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: `एकांकीकार - [श्री] आनन्द किरण "देव"`


पात्र:
 * *आनंद* : VSS और SSAC के अनुभवी मार्गदर्शक (विशेषज्ञ)
 * *किरण* : समाज सेवा के प्रति उत्साही 

 *दृश्य* : एक शांत, प्रेरक प्रशिक्षण कक्ष। मेज पर कुछ किताबें, एक छोटा ग्लोब और एक VSS का लोगो रखा है।

(पर्दा उठता है। आनंद कुर्सी पर बैठे कुछ लिख रहे हैं। किरण थोड़ा हिचकिचाते हुए प्रवेश करता है।)

 *किरण* : (धीरे से) नमस्कार दादाजी, क्या मैं अंदर आ सकता हूँ? 

 *आनंद* : (मुस्कुराते हुए सिर उठाते हुए) आओ किरण, आओ। मैं तुम्हारा ही इंतजार कर रहा था। बैठो।

(किरण बैठ जाता है। थोड़ी देर शांति रहती है।)

 *किरण* : दादाजी, मैं VSS में शामिल होने को लेकर बहुत उत्साहित हूँ। मैंने सुना है कि यह समाज सेवा का एक अद्भुत माध्यम है। लेकिन, मुझे यह पूरी तरह समझ नहीं आ रहा कि यह श्री श्री आनंदमूर्ति जी की अवधारणा से कैसे जुड़ा है, खासकर SSAC?

 *आनंद* : (गंभीरता से) बहुत अच्छा प्रश्न है किरण। यही तो मूल बात है। देखो, VSS – वोलियंटर्स ऑफ सोसियल सर्विस – केवल सेवा करने वाले स्वयंसेवकों का समूह नहीं है। यह एक गहरी विचारधारा पर आधारित है। श्री श्री आनंदमूर्ति जी का मानना था कि सच्ची समाज सेवा तभी हो सकती है जब व्यक्ति स्वयं भी अंदर से सशक्त हो, अनुशासित हो और आध्यात्मिक रूप से जागरूक हो। VSS सिर्फ एक संस्था नहीं, एक आंदोलन है जो व्यक्तिगत और सामाजिक उत्थान का मार्ग प्रशस्त करता है।

 *किरण* : आध्यात्मिक जागरूकता? समाज सेवा में इसका क्या काम?

 *आनंद* : (ग्लोब की ओर इशारा करते हुए) कल्पना करो, किरण। यह दुनिया एक बड़ा परिवार है। जब हम किसी की सेवा करते हैं, तो हम सिर्फ बाहरी मदद नहीं कर रहे होते, हम उस व्यक्ति के साथ एक मानवीय संबंध स्थापित कर रहे होते हैं। इस संबंध को मजबूत बनाने के लिए हमें स्वयं को समझना होगा, अपनी आंतरिक शक्तियों को पहचानना होगा। यहीं पर SSAC – स्पिरिचुअलिस्ट स्पोर्ट्स एडवेंचरर्स क्लब – की भूमिका आती है। यह हमें वह आधारभूत तैयारी देता है जिससे हम VSS के माध्यम से सार्थक सेवा कर सकें।

 *किरण* : SSAC... यह खेलकूद और रोमांच से जुड़ा है, है ना? मुझे लगा था कि यह सिर्फ शारीरिक फिटनेस के लिए होगा।

 *आनंद* : शारीरिक फिटनेस तो इसका एक हिस्सा है, लेकिन यह उससे कहीं बढ़कर है। SSAC के माध्यम से हम "कैडर" तैयार करते हैं। कैडर का अर्थ है ऐसे समर्पित और प्रशिक्षित व्यक्ति जो किसी भी परिस्थिति में समाज सेवा के लिए तैयार रहें। SSAC उन्हें तीन प्रमुख क्षेत्रों में सशक्त करता है:

 * *S - स्पिरिचुअलिस्ट (आध्यात्मवादी)* : यह हमें सिखाता है कि हम दूसरों की सेवा करते हुए भी अपनी आंतरिक शांति और नैतिक मूल्यों को कैसे बनाए रखें। यह हमें स्वार्थ से ऊपर उठकर निस्वार्थ भाव से कार्य करने की प्रेरणा देता है। VSS में रहते हुए, यह आध्यात्मिक आधार ही हमें हर चुनौती का सामना करने की शक्ति देता है, चाहे हम किसी प्राकृतिक आपदा में फंसे लोगों की मदद कर रहे हों या वंचित बच्चों को पढ़ा रहे हों। यह हमें 'एक्यूप्रेशर सर्विस' सिखाता है – यानी छोटी मदद से बड़े बदलाव लाना।

 * *S - स्पोर्ट्स (खेलकूद):* यह हमें शारीरिक रूप से मजबूत बनाता है। समाज सेवा के कई कार्य ऐसे होते हैं जिनमें शारीरिक सहनशीलता की आवश्यकता होती है। खेल हमें टीमवर्क, अनुशासन और त्वरित निर्णय लेने की क्षमता भी सिखाते हैं। VSS के तहत, चाहे आपको दूरदराज के इलाकों में जाकर चिकित्सा सहायता पहुंचानी हो, या गाँव-गाँव घूमकर स्वच्छता अभियान चलाना हो, यह शारीरिक दृढ़ता ही आपकी सबसे बड़ी साथी होती है। खेल हमें सिखाते हैं कि कैसे एक टीम के रूप में मिलकर बड़े लक्ष्य हासिल किए जा सकते हैं, जो VSS के सामूहिक प्रयासों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है।

 * *A - एडवेंचरर्स (साहसिक):* यह हमें चुनौतियों का सामना करना सिखाता है। समाज सेवा में अक्सर अप्रत्याशित बाधाएं आती हैं। रोमांचक गतिविधियाँ हमें साहसी बनाती हैं, जिससे हम मुश्किल परिस्थितियों में भी हार नहीं मानते। VSS के कार्यकर्ता अक्सर ऐसी जगहों पर पहुँचते हैं जहाँ सामान्य लोग जाने से डरते हैं – चाहे वह कोई नक्सल प्रभावित क्षेत्र हो, या अकाल से जूझता गाँव। एडवेंचरर्स ट्रेनिंग हमें इन्हीं मुश्किलों से पार पाने का हौसला देती है, हमें लीडरशिप क्वालिटीज सिखाती है ताकि हम आपातकालीन स्थितियों में सही निर्णय ले सकें और दूसरों का मार्गदर्शन कर सकें।

 *किरण* : तो, SSAC के माध्यम से हम शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक रूप से इतने मजबूत हो जाते हैं कि हम एक अनुशासित समाज सेवा के स्वयंसेवक बन सकें?

 *आनंद* : बिल्कुल सही समझा किरण! वाहिनी, जिसके बारे में तुमने सुना होगा, इसी पूरी प्रक्रिया को संचालित करती है। वह इन तीनों पहलुओं को मिलाकर ऐसे स्वयंसेवक तैयार करती है जो न केवल प्रभावी हों, बल्कि दूसरों के लिए प्रेरणास्रोत भी बनें। जब तुम VSS में सेवा करोगे, तो तुम्हें अपने SSAC प्रशिक्षण का महत्व समझ आएगा। जब तुम किसी बाढ़ प्रभावित क्षेत्र में मदद करने जाओगे या किसी गाँव में शिक्षा का दीप जलाओगे, तो तुम्हारी शारीरिक शक्ति, तुम्हारा मानसिक संतुलन और तुम्हारी निस्वार्थ भावना ही तुम्हें आगे बढ़ने में मदद करेगी।
VSS की भूमिका यहीं तक सीमित नहीं है, किरण। यह सिर्फ राहत कार्य नहीं करता। यह समाज में स्थायी बदलाव लाने का प्रयास करता है।

 * *शिक्षा के क्षेत्र में* : हम ऐसे बच्चों को शिक्षित करते हैं जो स्कूल नहीं जा पाते, प्रौढ़ शिक्षा के कार्यक्रम चलाते हैं और नैतिक शिक्षा पर जोर देते हैं ताकि भविष्य की पीढ़ी बेहतर बन सके।

 * *स्वास्थ्य के क्षेत्र में:* दूरस्थ इलाकों में मेडिकल कैंप लगाते हैं, स्वच्छता अभियान चलाते हैं और लोगों को बीमारियों से बचाव के प्रति जागरूक करते हैं।

 * *पर्यावरण संरक्षण में:* वृक्षारोपण करते हैं, जल संरक्षण के महत्व को समझाते हैं और प्लास्टिक मुक्त समाज बनाने की दिशा में काम करते हैं।

 * *आपदा प्रबंधन में:* जब भी कोई प्राकृतिक आपदा आती है, VSS के प्रशिक्षित स्वयंसेवक सबसे पहले पहुँचने वालों में से होते हैं। वे न केवल राहत सामग्री पहुँचाते हैं, बल्कि पुनर्वास कार्यों में भी सक्रिय भूमिका निभाते हैं।

 * *महिला सशक्तिकरण और ग्रामीण विकास* : महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने के लिए प्रशिक्षण कार्यक्रम चलाते हैं, छोटे उद्योगों को बढ़ावा देते हैं और ग्रामीण क्षेत्रों में आधारभूत सुविधाओं को बेहतर बनाने में मदद करते हैं। यह GV द्वारा संचालित होता है। G - गर्ल्स (Girls) V - वोलियंटर्स (Volunteers)। 

 *आनन्द* : संक्षेप में कहें तो, VSS श्री श्री आनंदमूर्ति जी के 'नीओ-ह्यूमैनिज्म' के सिद्धांत को व्यवहार में लाता है – जहां मानवता का दायरा सिर्फ मनुष्य तक सीमित न होकर पूरे जीव जगत तक फैलता है। हम सिर्फ मदद नहीं करते, हम लोगों को स्वावलंबी बनाते हैं, उन्हें जीवन में आगे बढ़ने के लिए सशक्त करते हैं।

 *किरण* : मुझे अब सब कुछ स्पष्ट हो रहा है, दादाजी! यह सिर्फ सेवा नहीं है, यह स्वयं को सशक्त करते हुए समाज को सशक्त करने का एक तरीका है। यह एक समग्र दृष्टिकोण है! मैं SSAC प्रशिक्षण के लिए और भी अधिक उत्साहित हूँ। मैं एक ऐसा स्वयंसेवक बनना चाहता हूँ जो श्री श्री आनंदमूर्ति जी की अवधारणा को सही मायने में आगे बढ़ा सके और VSS के इस महान कार्य का हिस्सा बन सकूं।

 *आनंद* : (मुस्कुराते हुए, किरण के कंधे पर हाथ रखते हुए) मुझे तुम पर विश्वास है किरण। तुम्हारे अंदर वह लगन है। याद रखना, प्रत्येक स्वयंसेवक एक किरण होता है जो समाज में अंधकार को दूर करता है। और तुम तो खुद किरण हो! चलो, अब हम तुम्हारी आगे की योजना बनाते हैं कि तुम VSS के किस क्षेत्र में सबसे अधिक योगदान दे सकते हो।

(दोनों एक-दूसरे को देखकर मुस्कुराते हैं। आनंद किरण को VSS ब्रोशर देता है। पर्दा गिरता है।)

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 `एकांकीकार-[श्री] आनन्द किरण "देव"`


पात्र:
 * *आनंद* : सेवा धर्म मिशन (SDM) विशेषज्ञ
 * *किरण* : एक जिज्ञासु भक्त
 
 *दृश्य* :
(एक शांत सभागार। मंच पर एक साधारण पृष्ठभूमि है जो आध्यात्मिक शांति को दर्शाती है। आनंद एक कुर्सी पर बैठे हैं, उनके सामने किरण उत्साह से खड़ी है।)

 *किरण* : (उत्साह से) दादाजी, नमस्कार! मैं श्री श्री आनंदमूर्ति जी की अवधारणाओं, विशेषकर सेवा धर्म मिशन(SDM) और हरि परिमंडल गोष्ठी के बारे में जानने के लिए बहुत उत्सुक हूँ। इनके बारे में सुनकर मुझे बहुत प्रेरणा मिली है।

 *आनंद* : (मुस्कुराते हुए) नमस्कार किरण! मुझे खुशी है कि आप इस पवित्र कार्य में रुचि ले रही हैं। श्री श्री आनंदमूर्ति जी का विजन बहुत गहरा और व्यावहारिक है। आइए, इसे थोड़ा विस्तार से समझते हैं।

 *किरण* : हाँ, कृपया! मुझे SDM के बारे में जानने की बहुत इच्छा है। "सेवा धर्म मिशन" नाम ही कितना पवित्र लगता है।

 *आनंद* : बिल्कुल। सेवा धर्म मिशन (SDM) श्री श्री आनंदमूर्ति जी की एक मूलभूत अवधारणा है। यह केवल एक संस्था नहीं, बल्कि एक जीवन शैली है। इसका मूल उद्देश्य कथा कीर्तन के माध्यम से भक्ति और आध्यात्मिक जागरण का अभियान चलाना है। आनंदमूर्ति जी का मानना था कि आज के भौतिकवादी युग में मनुष्य अपनी आध्यात्मिक जड़ों से कट गया है। इस खालीपन को भरने के लिए, हमें भक्ति और धर्म के माध्यम से लोगों को जोड़ना होगा।

 *किरण* : कथा कीर्तन? तो क्या यह केवल भजन-गायन और धार्मिक कहानियाँ सुनाना है?

 *आनंद* : नहीं, केवल इतना ही नहीं। यह उससे कहीं बढ़कर है। कथा कीर्तन का अर्थ है भगवान के गुणों का गुणगान करना (कथा) और कीर्तन के माध्यम से भावविभोर होकर ईश्वर से जुड़ना (कीर्तन)। यह एक ऐसा माध्यम है जो मन को शांत करता है, अहंकार को मिटाता है और प्रेम तथा करुणा के भाव जागृत करता है। SDM का लक्ष्य है कि ये कथाएं और कीर्तन केवल जागृतियों, आश्रमों एवं देवालयों तक सीमित न रहें, बल्कि घर-घर तक पहुँचें, हर व्यक्ति के जीवन का हिस्सा बनें। यह आध्यात्मिक ऊर्जा का संचार करता है।

 *किरण* : यह तो बहुत प्रेरणादायक है! तो फिर हरि परिमंडल गोष्ठी (HPMG) क्या है? यह SDM से कैसे संबंधित है?

 *आनंद* : (गहराई से समझाते हुए) बहुत अच्छा प्रश्न है। हरि परिमंडल गोष्ठी (HPMG) SDM का ही एक महत्वपूर्ण अंग है। हरि का अर्थ है 'भक्त के दुःख हरने वाला', यानी परमात्मा। परिमंडल का अर्थ है 'हरि को भेजने वाले लोग' और गोष्ठी का अर्थ है 'समूह'।

 *किरण* : 'हरि को भेजने वाले लोग'? इसका क्या अर्थ है?

 *आनंद* : इसका अर्थ है कि हम, जो हरि के भक्त हैं, वे माध्यम बनें जिसके द्वारा हरि की कृपा और प्रेम दूसरों तक पहुंचे। हम स्वयं में हरि का वास महसूस करें और उस प्रेम और सेवा भाव को अपने चारों ओर फैलाएं। HPMG वे छोटे-छोटे समूह हैं जो नियमित रूप से एक साथ बैठकर साधना, चिंतन, और सेवा के कार्यों पर विचार-विमर्श करते हैं। यह एक ऐसा मंच है जहाँ भक्तगण एक-दूसरे का समर्थन करते हैं, सामूहिक रूप से अपनी आध्यात्मिक यात्रा को आगे बढ़ाते हैं और समाज में सकारात्मक परिवर्तन लाने के लिए मिलकर काम करते हैं।

 *किरण* : (आँखों में चमक के साथ) तो SDM एक व्यापक आंदोलन है जो कथा कीर्तन के माध्यम से आध्यात्मिक चेतना फैलाता है, और HPMG उस आंदोलन की छोटी, सक्रिय इकाइयाँ हैं जो भक्तों को संगठित करती हैं ताकि वे व्यक्तिगत और सामूहिक रूप से हरि की कृपा को दूसरों तक पहुंचा सकें?

 *आनंद* : बिल्कुल सही पकड़ा आपने, किरण! श्री श्री आनंदमूर्ति जी का विजन था कि समाज को सिर्फ बाहरी बदलावों से नहीं बदला जा सकता, बल्कि हमें हर व्यक्ति के भीतर आध्यात्मिक क्रांति लानी होगी। जब व्यक्ति प्रेम, सेवा और आध्यात्मिकता से ओत-प्रोत होगा, तभी एक सच्चा, न्यायपूर्ण और आनंदमय समाज बन पाएगा। SDM और HPMG इसी विजन को साकार करने के साधन हैं – भक्ति, सेवा और सामूहिक चेतना के माध्यम से।

 *किरण* : (गहरी सांस लेते हुए) मुझे अब श्री श्री आनंदमूर्ति जी का विजन बहुत स्पष्ट हो गया है। यह सिर्फ धर्म का पालन नहीं, बल्कि एक समग्र जीवन दृष्टि है जो हमें सेवा और प्रेम के मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करती है। दादाजी, आपका बहुत-बहुत धन्यवाद। मैं इस कार्य में अपनी पूरी श्रद्धा से जुड़ना चाहूंगा। 

आनंद: (प्रसन्नता से) आपका स्वागत है, किरण। यही तो आनंदमूर्ति जी का स्वप्न था – कि प्रत्येक व्यक्ति अपने भीतर के 'हरि' को पहचाने और उस प्रकाश को दूसरों तक फैलाए। आओ, हम सब मिलकर इस मिशन को आगे बढ़ाएं।

(आनंद और किरण एक-दूसरे को देखकर मुस्कुराते हैं, उनके चेहरों पर एक नई आशा और संकल्प दिखाई देता है।)
(पर्दा गिरता है)


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 एकांकीकार - [श्री] आनन्द किरण "देव"


पात्र:
 * *आनंद* : अनुभवी आनंद मार्गी और सेवादल विशेषज्ञ।
 * *किरण* : युवा और उत्साही सेवादल कार्यकर्ता।

 *दृश्य* : एक शांतिपूर्ण आश्रम का प्रांगण, जहाँ कुछ सेवादल कार्यकर्ता सेवा कार्यों में लगे हुए हैं।

(किरण कुछ पौधों को पानी दे रही है, जबकि आनंद उसे देख रहे हैं।)

 *किरण* : (मुस्कुराते हुए) दादाजी नमस्कार, आज सुबह की सेवा में बड़ा आनंद आया। पौधों को पानी देना और इस जगह को साफ रखना, यह सब करते हुए एक अजीब सी शांति मिलती है।

 *आनंद* : (पास आते हुए) नमस्कार किरण। यही तो सेवा का सार है। श्री श्री आनंदमूर्ति जी ने सेवादल की कल्पना इसी भावना के साथ की थी। यह सिर्फ़ काम करना नहीं, बल्कि स्वयं को सेवा में अर्पित करना है।

 *किरण* : हाँ, मैंने सुना है कि बाबा (श्री श्री आनंदमूर्ति जी) सेवादल को बहुत महत्वपूर्ण मानते थे। लेकिन कभी-कभी मुझे लगता है कि लोग इसके महत्व को पूरी तरह समझ नहीं पाते। वे सोचते हैं कि यह बस 'काम करने वालों का समूह' है।

 *आनंद* : तुम्हारी बात सही है, किरण। बहुत से लोग सेवादल को सिर्फ़ एक 'समूह' के रूप में देखते हैं, जो काम करता है। लेकिन बाबा का दृष्टिकोण बहुत गहरा था। "सेवादल हमारा।" इसका अर्थ है यह हमारा अपना है, हमारी संस्था का अभिन्न अंग है।

 *किरण* : तो इसका क्या अर्थ है कि "सेवादल हमारा" है?

 *आनंद* : देखो, आनंद मार्ग में हम ERAWS (एजुकेशनल, रिलीफ एंड वेलफेयर सेक्शन), VSS (वोलियंटर्स ऑफ सोसियल सर्विस ), SDM (सेवा धर्म मिशन), PU (प्राउटिस्ट यूनिवर्सल) जैसी हमारी शाखाओं में काम करते हैं। ये सभी संस्थाएँ समाज कल्याण और आध्यात्मिक विकास के लिए बनी हैं। लेकिन सोचो, क्या कोई भी भव्य योजना, कोई भी बड़ा प्रोजेक्ट बिना कुशल और समर्पित हाथों के पूरा हो सकता है?

 *किरण* : नहीं, बिलकुल नहीं। हमें कुशल लोगों की ज़रूरत होगी।

 *आनंद* : बिल्कुल! और यहीं सेवादल की भूमिका आती है। सेवादल स्वयंसेवकों का एक दल है जो इन सभी संस्थाओं को सेवा के लिए प्रशिक्षित कार्यकर्ता उपलब्ध कराता है। यह वह आधारशिला है जिस पर हमारे सभी संगठन टिके हैं। इसके बिना, ERAWS की शिक्षा, राहत व त्राण VSS का आध्यात्म व साहस, SDM का धर्म व सेवा या PU की सम्पूर्ण व्यवस्था, सब कुछ अधूरा रहेगा। जैसे एक मजबूत भवन बिना मजबूत नींव के खड़ा नहीं हो सकता, वैसे ही हमारी संस्था बिना सेवादल के पूर्ण नहीं हो सकती।

 *किरण* : अच्छा, अब मैं समझा! जैसे समाज की सबसे मजबूत दीवार 'शूद्र' होते हैं, जो अपनी मेहनत और सेवा से समाज को थामे रखते हैं, वैसे ही सेवादल संस्था की सबसे मजबूत नींव है।

 *आनंद* : (मुस्कुराते हुए) तुमने बाबा की अवधारणा को सही ढंग से समझा, किरण। "जिस प्रकार समाज की दृढ़तम भित्ति शूद्र है, उसी प्रकार संस्था की दृढ़तम भित्ति सेवादल है।" यह सेवादल ही है जो निस्वार्थ भाव से, बिना किसी व्यक्तिगत लाभ की इच्छा के, हर कार्य में अपना योगदान देता है। ये वे हाथ और पैर हैं जो पूरे शरीर को कार्यशील रखते हैं।

 *किरण* : तो सेवादल का मुख्य उद्देश्य सिर्फ़ सेवा के कार्यकर्ता ही तैयार करना नहीं, बल्कि उन्हें 'सेवा भाव' से ओत-प्रोत करना है?

 *आनंद* : बिलकुल! सेवादल सिर्फ़ शारीरिक श्रम के लिए नहीं है, बल्कि यह व्यक्तियों में सेवा, त्याग और समर्पण के गुणों का विकास करता है। एक सेवादल कार्यकर्ता को प्रशिक्षित किया जाता है ताकि वह किसी भी परिस्थिति में, किसी भी सेवा कार्य के लिए तैयार रहे। चाहे प्राकृतिक आपदा हो, कोई आध्यात्मिक कार्यक्रम हो, या सामान्य आश्रम का रखरखाव, सेवादल हमेशा आगे रहता है। यह हमें सिखाता है कि हम अपने 'अहम्' को छोड़कर 'परमार्थ' के लिए कार्य करें।

 *किरण* : यह तो बहुत बड़ी बात है। जब हम छोटे-छोटे सेवा कार्य करते हैं, तो हमें लगता है कि हम कुछ मामूली काम कर रहे हैं। लेकिन वास्तव में हम एक बहुत बड़ी व्यवस्था का हिस्सा हैं, जो बाबा के आदर्शों को साकार कर रहे है।

 *आनंद* : यही तो आनंद मार्ग का आदर्श है, किरण। व्यक्तिगत विकास के साथ-साथ सामाजिक उत्थान। और सेवादल इसी का जीता-जागता उदाहरण है। यह हमें यह भी सिखाता है कि हर कार्य, चाहे कितना भी छोटा क्यों न लगे, महत्वपूर्ण है जब वह सेवा भावना से किया जाता है। सेवादल कार्यकर्ता हमारे समाज में बदलाव लाने वाले वास्तविक नायक हैं, जो बिना किसी दिखावे के अपना काम करते रहते हैं।

 *किरण* : मैं गर्व महसूस करता हूँ कि मैं सेवादल का हिस्सा हूँ। अब मुझे इसका महत्व और भी गहराई से समझ में आया है। मुझे लगता है कि हमें और अधिक लोगों को सेवादल से जुड़ने के लिए प्रेरित करना चाहिए, ताकि वे भी इस सेवा के आनंद को अनुभव कर सकें।

 *आनंद* : (किरण के कंधे पर हाथ रखते हुए) बिलकुल, किरण। यही हमारा लक्ष्य है। सेवादल केवल एक समूह नहीं, बल्कि एक आंदोलन है। एक ऐसा आंदोलन जो निःस्वार्थ सेवा, समर्पण और प्रेम के आधार पर एक बेहतर समाज का निर्माण कर रहा है।

(दोनों मुस्कुराते हैं, और किरण फिर से अपने पौधों को पानी देने लगती है, अब और भी अधिक उत्साह के साथ। पर्दा गिरता है।)



`एकांकीकार - [श्री] आनन्द किरण "देव"`

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 *पात्र* :
 * *आनंद* : प्रउत विशेषज्ञ, प्रज्ञावान और प्रेरक।
 * *किरण* : जिज्ञासु पुरुष, समाज में बदलाव की इच्छा रखने वाला।


 *दृश्य 1: शिक्षा का सूर्योदय – UPSF (यूनिवर्सल प्राउटिस्ट स्टूडेंट फैडरेशन)* 

 *सेट* : एक कॉलेज कैंपस का दृश्य, जहाँ कुछ छात्र आपस में बातचीत कर रहे हैं। आनंद और किरण एक बेंच पर बैठे हैं।
(किरण कुछ किताबों के पन्ने पलटते हुए चिंतित दिखता है)

 *किरण* : नमस्कार दादाजी, ये शिक्षा प्रणाली मुझे दिन-ब-दिन निराश करती जा रही है। ऐसा लगता है जैसे यह ज्ञान देने के बजाय केवल डिग्री बाँटने का एक कारखाना बन गई है। हर जगह राजनीति और पैसे का खेल है।

 *आनंद* : (मुस्कुराते हुए) किरण, तुम्हारी चिंता जायज है। श्री प्रभात रंजन सरकार ने भी इस बात पर जोर दिया था कि शिक्षा को राजनीति से मुक्त किया जाना चाहिए और इसका व्यवसायीकरण बंद होना चाहिए।

 *किरण* : लेकिन कैसे? यह तो बहुत गहरी समस्या है।

 *आनंद* : इसी के लिए यूनिवर्सल प्राउटिस्ट स्टूडेंट फेडरेशन (UPSF) काम कर रहा है। उनकी प्रमुख मांगें यही हैं कि शिक्षा का उद्देश्य केवल नौकरी दिलाना नहीं, बल्कि व्यक्ति का सर्वांगीण विकास करना हो। नैतिक और आध्यात्मिक मूल्यों के साथ-साथ व्यावहारिक ज्ञान भी मिले। शिक्षा को सबके लिए सुलभ और समान बनाना होगा, न कि केवल अमीरों के लिए।

 *किरण* : मतलब, शिक्षा को सही मायने में 'ज्ञान' बनाना है, न कि 'व्यापार'?

 *आनंद* : बिल्कुल। तभी हम ऐसे युवा तैयार कर पाएंगे जो सिर्फ डिग्रीधारी नहीं, बल्कि जागरूक और जिम्मेदार नागरिक हों। शिक्षा को हर व्यक्ति का जन्मसिद्ध अधिकार मानना चाहिए, न कि व्यापारिक वस्तु।

 *दृश्य 2: युवा शक्ति का उद्घोष – UPYF (यूनिवर्सल प्राउटिस्ट युथ फैडरेशन)* 

 *सेट* : एक युवा कैफे, जहाँ कुछ युवा बेरोजगारों की भीड़ दिखाई दे रही है, वे हताश और चिंतित हैं। आनंद और किरण जूस पी रहे हैं।
(एक युवा अपने फोन पर नौकरी ढूंढते हुए आह भरता है)

 *किरण* : दादाजी, इस देश में युवाओं की सबसे बड़ी समस्या रोजगार है। डिग्री होने के बावजूद नौकरी नहीं मिलती। बेरोजगारी की वजह से कितनी हताशा है!

 *आनंद* : हाँ, यह एक गंभीर चुनौती है। श्री प्रभात रंजन सरकार जी ने शत-प्रतिशत रोजगार नीति की वकालत की थी। उनका मानना था कि समाज में किसी को भी बेकार नहीं बैठना चाहिए।

 *किरण* : शत-प्रतिशत रोजगार? क्या यह संभव है?

 *आनंद* : बिल्कुल संभव है। यूनिवर्सल प्राउटिस्ट यूथ फेडरेशन (UPYF) इसी के लिए प्रयासरत है। उनकी प्रमुख मांग है कि सरकार प्रत्येक युवक को रोजगार की गारंटी दे। इसका मतलब सिर्फ सरकारी नौकरी नहीं, बल्कि कृषि आधारित उद्योग, कुटीर उद्योग और सहकारी समितियों के माध्यम से स्थानीय स्तर पर रोजगार सृजन। जब हर हाथ को काम मिलेगा, तभी समाज में खुशहाली आएगी।

 *किरण* : यह तो सचमुच क्रांतिकारी विचार है। हर व्यक्ति आत्मनिर्भर होगा!

 *आनंद* : यही तो प्रउत का लक्ष्य है – स्वयं पर निर्भरता और सामूहिक प्रगति।

 *दृश्य 3: श्रम का सम्मान – UPLF (यूनिवर्सल प्राउटिस्ट लेबर फैडरेशन)* 

 *सेट* : एक फैक्ट्री का प्रवेश द्वार, जहाँ कुछ मजदूर काम के बाद थककर बैठे हैं। आनंद और किरण पास से गुजर रहे हैं।

(एक मजदूर दूसरे से फुसफुसाते हुए कहता है, "इस महीने भी पगार पूरी नहीं मिली।")

 *किरण* : ये मजदूर दिन-रात मेहनत करते हैं, लेकिन उनकी मेहनत का सही दाम नहीं मिलता। महंगाई बढ़ती जा रही है, लेकिन उनकी क्रयशक्ति कम होती जा रही है।

 *आनंद* : किरण, यह बहुत ही अन्यायपूर्ण स्थिति है। यूनिवर्सल प्राउटिस्ट लेबर फेडरेशन (UPLF) इसी असमानता को दूर करने के लिए काम कर रहा है। उनकी प्रमुख मांग है कि क्रयशक्ति का अधिकार सभी का मूल अधिकार होना चाहिए।

 *किरण* : क्रयशक्ति का अधिकार? यह क्या है?

 *आनंद* : इसका अर्थ है कि एक व्यक्ति को इतनी मजदूरी मिलनी चाहिए जिससे वह अपनी और अपने परिवार की मूलभूत आवश्यकताओं (भोजन, वस्त्र, आवास, शिक्षा, चिकित्सा) को सम्मानपूर्वक पूरा कर सके। इसके अलावा, मध्यम, लघु व कुटीर उद्योगों के संचालन में सहकारिता को प्राथमिकता मिलनी चाहिए, ताकि शोषण कम हो। और हाँ, श्री प्रभात रंजन सरकारजी ने यह भी कहा था कि प्रत्येक फर्म के लाभांश में श्रमिक की भागीदारी सुनिश्चित होनी चाहिए।

 *किरण* : वाह! यह तो मालिक और मजदूर के बीच के अंतर को खत्म कर देगा।

 *आनंद* : सही कहा। जब श्रमिक को लगेगा कि वह भी कंपनी का एक हिस्सा है, तो उसकी कार्यक्षमता और समर्पण दोनों बढ़ेंगे।


 *दृश्य 4: खेतों में समृद्धि – UPFF (यूनिवर्सल प्राउटिस्ट फार्मर फैडरेशन)* 

 *सेट* : एक गाँव का चौपाल, जहाँ कुछ किसान सूखे चेहरों के साथ बैठे हैं। आनंद और किरण उनके पास आते हैं।

(एक बूढ़ा किसान गहरी साँस लेता है और सिर खुजाता है)

 *किसान 1:* क्या करें बेटा, खेती में अब कुछ नहीं बचा। न सही दाम मिलता है, न पानी। उद्योगपतियों को सब मिलता है, हमें कुछ नहीं।

 *आनंद* : आपकी व्यथा समझ सकता हूँ। इसी समस्या को हल करने के लिए यूनिवर्सल प्राउटिस्ट फार्मर फेडरेशन (UPFF) संघर्ष कर रहा है। उनकी प्रमुख मांग है कि कृषि को उद्योग का दर्जा दिया जाए।

 *किरण* : कृषि को उद्योग का दर्जा? इससे क्या होगा?
आनंद: इसका मतलब है कि कृषि क्षेत्र को भी उद्योगों को मिलने वाली ऋण, बिजली और पानी की व्यवस्था समान रूप से मिलनी चाहिए। किसानों को कम ब्याज पर कर्ज मिले, सस्ती बिजली और पानी उपलब्ध हो। इसके अलावा, कृषि आधारित और कृषि सहायक उद्योगों का संचालन सहकारिता के आधार पर होना चाहिए, और इसमें किसानों की पूर्ण भागीदारी होनी चाहिए। इससे किसान सिर्फ अन्नदाता नहीं, बल्कि उद्यमी भी बनेंगे।

 *किसान 2:* (आशा भरी निगाहों से) अगर ऐसा हो जाए तो हमारे दिन फिर जाएंगे।

 *आनंद* : यही प्रउत का लक्ष्य है - गाँव को आत्मनिर्भर और समृद्ध बनाना।


 *दृश्य 5: नए अर्थशास्त्र का स्वप्न – UPIF (यूनिवर्सल प्राउटिस्ट इंटेलेक्चुअल फैडरेशन)* 

 *सेट* : एक संगोष्ठी कक्ष, जहाँ कुछ बुद्धिजीवी आपस में बहस कर रहे हैं। आनंद और किरण उन्हें सुन रहे हैं।

(एक अर्थशास्त्री निराशा में सिर हिलाता है)

 *किरण* : दादाजी, यह आर्थिक असमानता और भ्रष्टाचार देखकर तो मन करता है कि सब छोड़ छाड़ दूं। अमीर और अमीर होते जा रहे हैं, गरीब और गरीब।

 *आनंद* : किरण, यह केवल आर्थिक समस्या नहीं, बल्कि नैतिक पतन की भी निशानी है। यूनिवर्सल प्राउटिस्ट इंटेलेक्चुअल फेडरेशन (UPIF) इसी आर्थिक असमानता और केंद्रीकरण के खिलाफ खड़ा है। उनकी प्रमुख मांग है कि आयकर खत्म किया जाए और आर्थिक लोकतंत्र स्थापित किया जाए।

 *किरण* : आयकर खत्म? यह कैसे संभव है?

 *आनंद* : श्री प्रभात रंजन सरकार जी का मानना था कि आयकर से भ्रष्टाचार बढ़ता है और यह एक शोषणकारी कर प्रणाली है। इसके बजाय, आर्थिक विकेन्द्रीकरण लागू होना चाहिए। इसका मतलब है कि धन और संसाधनों का वितरण कुछ हाथों में केंद्रित न होकर समाज के सभी वर्गों में समान रूप से हो। प्रउत (प्रोग्रेसिव यूटिलाइजेशन थ्योरी) को लागू करना ही इसका समाधान है।

 *किरण* : प्रउत क्या है?

 *आनंद* : प्रउत एक समग्र सामाजिक-आर्थिक दर्शन है जो मानव समाज के सर्वांगीण विकास पर केंद्रित है। इसमें सभी संसाधनों का अधिकतम उपयोग, सभी व्यक्तियों का सर्वांगीण विकास और एक न्यायपूर्ण समाज की स्थापना शामिल है। यह केवल भौतिक समृद्धि ही नहीं, बल्कि बौद्धिक और आध्यात्मिक प्रगति पर भी जोर देता है।

 *दृश्य 6: प्रउत: नव समाज का आधार – PU (प्राउटिस्ट यूनिवर्सल)* 

 *सेट* : सभी पात्र (छात्र, युवा, मजदूर, किसान, बुद्धिजीवी) एक मंच पर एक साथ खड़े हैं। आनंद और किरण मंच के बीच में हैं।

 *आनंद* : (सबको संबोधित करते हुए) मित्रों! हमने देखा कि कैसे प्राउटिस्ट यूनिवर्सल (PU) अपने पाँच अंगों के माध्यम से समाज के हर वर्ग की समस्याओं का समाधान प्रस्तुत करता है। यह केवल एक संगठन नहीं, बल्कि एक समग्र आंदोलन है। अपने आप एक संस्था है। 

 *किरण* : (उत्साहित होकर) तो इसका मतलब है कि ये सारे अंग मिलकर एक बड़े लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए काम करते हैं?

 *आनंद* : बिल्कुल! श्री श्री आनंदमूर्ति जी का प्रउत दर्शन एक ऐसे समाज की कल्पना करता है जहाँ किसी का शोषण न हो, जहाँ हर व्यक्ति को अपनी मूलभूत आवश्यकताएं पूरी करने का अधिकार हो, जहाँ सबको समान अवसर मिलें, और जहाँ हर कोई अपनी उच्चतम क्षमता तक पहुंच सके।

 *एक छात्र* : तो शिक्षा को राजनीति से मुक्त करना...

 *एक युवा:* और हर हाथ को रोजगार देना...

 *एक मजदूर:* श्रमिक की क्रयशक्ति का अधिकार सुनिश्चित करना...

 *एक किसान* : कृषि को उद्योग का दर्जा दिलाना...

 *एक बुद्धिजीवी* : और आर्थिक लोकतंत्र स्थापित करना...

 *आनंद* : (दृढ़ता से) ये सभी माँगें एक ही लक्ष्य की ओर ले जाती हैं – एक न्यायपूर्ण, शोषणमुक्त और प्रगतिशील समाज की स्थापना! यही श्री श्री आनंदमूर्ति जी का स्वप्न है और यही प्राउटिस्ट यूनिवर्सल का संकल्प है।

 *किरण* : (तालियाँ बजाते हुए) एक नई आशा है, एक नया मार्ग है!

 *आनंद* : (मुस्कुराते हुए) हाँ किरण, यह नवसमाज की ओर: प्रउत का आह्वान है। हमें बस इस विचार को जन-जन तक पहुंचाना है और इसे साकार करने के लिए मिलकर काम करना है।

(सभी पात्र एक साथ "प्रउत जिंदाबाद! P. R. सरकार जिंदाबाद!" के नारे लगाते हैं। रोशनी धीरे-धीरे मंद होती है और पर्दा गिरता है।)


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`एकांकीकार - [श्री] आनन्द किरण "देव"`


पात्र:
 * *आनंद* : एक अनुभवी प्रउत विशेषज्ञ।
 * *किरण* : एक उत्साही युवा जो समाज को बेहतर बनाने के तरीके खोज रहा है।

 *दृश्य* 1: एक सामाजिक आर्थिक में चर्चा‌। 

(आनंद और किरण एक छोटे से सामुदायिक केंद्र में बैठे हैं। दीवारों पर कुछ चार्ट और पोस्टर लगे हैं जो स्थानीय सामाजिक आर्थिक इकाई की तस्वीरें दिखाते हैं।)

 *किरण* : (उत्साहित होकर) दादाजी नमस्कार, मैंने आपके समाज आंदोलन के विचार के बारे में बहुत सुना है, लेकिन मुझे अभी भी यह पूरी तरह से समझ नहीं आता कि यह कैसे काम करता है। क्या आप मुझे समझा सकते हैं कि सामाजिक आर्थिक इकाइयाँ वास्तव में क्या हैं?

 *आनंद* : (मुस्कुराते हुए) बिल्कुल, किरण। बहुत अच्छा सवाल है। देखो, सामाजिक आर्थिक इकाई, जिसे हम समाज भी कहते हैं, एक ऐसा क्षेत्र है जो खुद को आत्मनिर्भर बना सकता है। इसका संगठन चार मुख्य बिंदुओं पर आधारित एक संकल्पना है।

 *किरण* : चार बिंदु? कृपया बताइए।

 *आनंद* : _पहला है समान आर्थिक समस्या।_ इसका मतलब है कि उस भौगोलिक क्षेत्र के लोगों के सामने एक जैसी आर्थिक चुनौतियाँ हों। जैसे, मान लो किसी क्षेत्र में सूखे की समस्या है, तो वहाँ के किसानों की समस्याएँ एक जैसी होंगी।

 *किरण* : ठीक है, समझ गया। तो दूसरा बिंदु क्या है?

 *आनंद* : दूसरा है समान आर्थिक संभावना। यानी, उन समस्याओं के बावजूद, उस क्षेत्र में विकास के समान अवसर भी हों। अगर पानी की कमी है, तो क्या वहाँ ऐसी तकनीकें या फसलें उगाई जा सकती हैं जो कम पानी में उगें? या क्या कोई ऐसा स्थानीय उद्योग है जिसमें सभी मिलकर काम कर सकें?

 *किरण* : तो समस्या और समाधान दोनों पर आधारित? दिलचस्प! और बाकी के दो?

 *आनंद* : तीसरा है नस्लीय समानता। यद्यपि‌‌ प्रउत किसी भी तरह के जातीय भेदभाव को स्वीकार नहीं करता है तथापि समाज इकाई के संगठन नस्लीय समानता को अंगीकार करता है। इस का अर्थ समझना आवश्यक है। नस्ल शब्द जाति का सूचक नहीं है, नस्ल का अर्थ है, "एक ही प्रजाति के जीवों का एक समूह जो कुछ विशिष्ट शारीरिक या व्यवहारिक विशेषताओं को साझा करता है।" अर्थात स्थानीय क्षेत्र में रहने वाले लोगों का वह समूह जो जाति या अन्य किसी काल्पनिक भेद में बटे बिना शारीरिक एवं व्यवहारिक संगठन में समानता रखता हो। इन इकाइयों में सभी शारीरिक एवं मानसिक संगठन लोग का समान मानना आवश्यक है। और चौथा है भावनात्मक एकता। यह सबसे महत्वपूर्ण में से एक है। इसमें आती है भाषा, संस्कृति और समान इतिहास। जब लोग एक ही भाषा बोलते हैं, एक ही संस्कृति का पालन करते हैं और उनका इतिहास समान होता है, तो वे एक-दूसरे से भावनात्मक रूप से जुड़ते हैं। यह जुड़ाव उन्हें एक साथ काम करने और एक-दूसरे का समर्थन करने में, समझने में तथा सहयोग करने में मदद करता है।

 *किरण* : (सोचते हुए) तो, यह सिर्फ भौगोलिक निकटता नहीं है, बल्कि विचारों और अनुभवों की निकटता भी है। यह तो काफी गहन है! लेकिन इन इकाइयों का उद्देश्य क्या है?

 *आनंद* : इनका अंतिम उद्देश्य है आत्मनिर्भरता। जब ये इकाइ अपनी समस्याओं और संभावनाओं को समझकर, नस्लीय समानता और भावनात्मक एकता के साथ मिलकर काम करती हैं, तो वे अपनी आर्थिक और सामाजिक ज़रूरतों को खुद पूरा कर पाती हैं। उन्हें बाहर से मदद के लिए कम निर्भर रहना पड़ता है। यह प्रउत की आदर्श व्यवस्था की स्थापना की दिशा में पहला कदम है, जहाँ हर क्षेत्र अपनी पूरी क्षमता का उपयोग कर सके।

 *किरण* : यह तो बहुत प्रेरणादायक है! लेकिन विश्व के इतने सारे समाजों को एक साथ कैसे लाया जाएगा? क्या वे अलग-अलग नहीं होंगे?

 *दृश्य 2: प्राउटिस्ट सर्व समाज समिति (PSSS) की भूमिका* 

(आनंद और किरण अभी भी उसी सामुदायिक केंद्र में बैठे हैं, लेकिन अब वे एक बड़े पोस्टर की ओर देख रहे हैं जिस पर "प्राउटिस्ट सर्व समाज समिति" लिखा है।)

 *किरण* : (पोस्टर की ओर इशारा करते हुए) दादाजी, यहाँ "प्राउटिस्ट सर्व समाज समिति" लिखा है। यह क्या है? क्या इसका संबंध इन सामाजिक आर्थिक इकाइयों से है?

 *आनंद* : (पोस्टर की ओर देखकर) बिल्कुल, किरण! तुमने सही पकड़ा। प्राउटिस्ट सर्व समाज समिति, जिसे हम PSSS कहते हैं, वही छत्रक संगठन (umbrella organization) है जिसके बारे में तुम पूछ रहे थे।

 *किरण* : छत्रक संगठन? इसका क्या मतलब है?

 *आनंद* : इसका मतलब है कि यह एक ऐसा संगठन है जो इन सभी सामाजिक आर्थिक इकाइयों में सामंजस्य स्थापित करता है। सोचो, हर इकाई अपनी आत्मनिर्भरता के लिए काम कर रही है, लेकिन उन्हें एक बड़े दृष्टिकोण और दिशा की भी आवश्यकता होती है। PSSS एक पुल का काम करती है।

 *किरण* : तो, यह विभिन्न इकाइयों के बीच समन्वय स्थापित करती है?

 *आनंद* : हाँ, बिल्कुल। यह यह सुनिश्चित करती है कि कोई भी इकाई अकेली न पड़े। अगर किसी इकाई को मदद की ज़रूरत है, या किसी दूसरी इकाई से कुछ सीखने की ज़रूरत है, तो PSSS उन्हें जोड़ती है। यह ज्ञान और अनुभवों को साझा करने का एक मंच प्रदान करती है। यह प्रउत विचारधारा को जमीनी स्तर पर लागू करने में मदद करती है।

 *किरण* : तो यह एक तरह से एक मार्गदर्शक और सहायक संगठन है?

 *आनंद* : सही कहा। इसका मुख्य काम विभिन्न इकाइयों को प्रउत के आदर्शों पर चलना सिखाना, उन्हें सशक्त बनाना और यह सुनिश्चित करना है कि वे एक-दूसरे के साथ मिलकर आगे बढ़ें। यह एक एकीकृत शक्ति के रूप में काम करती है, जो सभी इकाइयों को एक बड़े, समृद्ध और न्यायपूर्ण समाज के निर्माण के लिए प्रेरित करती है।

 *किरण* : (आँखों में चमक के साथ) यह तो कमाल का विचार है, दादाजी! सामाजिक आर्थिक इकाइयाँ आत्मनिर्भरता की नींव हैं, और PSSS उन्हें एक साथ जोड़कर एक मजबूत और एकीकृत समाज बनाती है। यह सिर्फ एक सिद्धांत नहीं, बल्कि एक व्यावहारिक समाधान लगता है!

 *आनंद* : (मुस्कुराते हुए) यही प्रउत का लक्ष्य है, किरण। एक ऐसा समाज जहाँ हर व्यक्ति अपनी पूरी क्षमता का उपयोग कर सके, जहाँ कोई अभाव न हो और सभी मिलकर एक बेहतर भविष्य का निर्माण करें।

 *किरण* : मैं इसमें और अधिक जानना चाहूँगा और शायद इसमें शामिल भी होना चाहूँगा।

 *आनंद* : तुम्हारा स्वागत है, किरण! आत्मनिर्भरता की इस यात्रा में हमारे साथ आओ।

(दोनों मुस्कुराते हैं और दृश्य समाप्त होता है।)

*दृश्य 3: समाज आंदोलन* 

(आनंद और किरण अभी भी सामुदायिक केंद्र में बैठे हैं। आनंद अब एक छोटे व्हाइटबोर्ड पर कुछ बिंदु लिख रहे हैं।)

 *किरण* : दादाजी, आपने पहले कहा था कि यह प्रउत समाज आंदोलन है। इसके मुख्य विषय क्या हैं?

 *आनंद* : (किरण की ओर मुड़ते हुए) बहुत अच्छा सवाल, किरण! अब हम आंदोलन के बिल्कुल केंद्र में आ रहे हैं। इस समाज आंदोलन के छः मुख्य विषय हैं, जो किसी भी सामाजिक आर्थिक इकाई की आत्मनिर्भरता और प्रगति के लिए आवश्यक हैं। ये ऐसे सिद्धांत हैं जिन पर चलकर कोई भी समाज सही मायने में सशक्त बन सकता है।

 *किरण* : कृपया बताइए। मैं उन्हें जानना चाहता हूँ।

 *आनंद* : देखो, पहला विषय है *स्थानीय लोगों को शत-प्रतिशत रोज़गार* । हमारा लक्ष्य यह सुनिश्चित करना है कि उस सामाजिक आर्थिक इकाई में रहने वाले हर सक्षम व्यक्ति को स्थानीय स्तर पर ही सम्मानजनक और उत्पादक काम मिले। कोई भी बेरोज़गार न रहे।

 *किरण* : यह तो बहुत ज़रूरी है! स्थानीय रोज़गार से लोग पलायन नहीं करेंगे।

 *आनंद* : बिल्कुल! और दूसरा विषय है *स्थानीय क्षेत्र का अधिकतम औद्योगिक विकास।* इसका मतलब है कि हमें उस क्षेत्र की सभी प्राकृतिक और मानवीय संसाधनों का उपयोग करके उद्योगों का विकास करना होगा। ऐसे उद्योग जो स्थानीय आवश्यकताओं को पूरा करें और अतिरिक्त उत्पादन का भी मार्ग प्रशस्त करें।

 *किरण* : तो, अपनी चीज़ें खुद बनाने पर ज़ोर?

 *आनंद* : हाँ, ठीक समझे। और इससे जुड़ा हुआ तीसरा बिंदु है *बाहरी वस्तुओं के आयातों को टालना।* अगर हम अपनी ज़रूरत की चीज़ें स्थानीय स्तर पर बना सकते हैं, तो हमें उन्हें बाहर से आयात करने की क्या ज़रूरत? यह न केवल हमारी अर्थव्यवस्था को मज़बूत करता है, बल्कि हमें बाहरी निर्भरता से भी बचाता है।

 *किरण* : यह तो आत्मनिर्भरता का सीधा रास्ता है!

 *आनंद* : चौथा विषय है *स्थानीय भाषा को ही शिक्षा के माध्यम के रूप में स्वीकार करना।* शिक्षा अपनी मातृभाषा में सबसे प्रभावी होती है। जब बच्चे अपनी स्थानीय भाषा में सीखते हैं, तो वे अवधारणाओं को बेहतर ढंग से समझते हैं और अपनी संस्कृति से जुड़े रहते हैं।

 *किरण* : यह तो बहुत तर्कसंगत है। अपनी भाषा में सीखना हमेशा आसान होता है।

 *आनंद* : सही! और पाँचवाँ विषय है *स्थानीय भाषा को जनसंपर्क की मुख्य भाषा का दर्जा।* सरकारी कामकाज से लेकर सार्वजनिक घोषणाओं तक, हर जगह स्थानीय भाषा का ही प्रयोग होना चाहिए। यह लोगों के बीच संचार को आसान बनाता है और स्थानीय पहचान को मज़बूत करता है।

 *किरण* : तो भाषा और संस्कृति को बढ़ावा देना भी इसका हिस्सा है। और छठा विषय?

 *आनंद* : छठा और आखिरी विषय है *स्थानीय सामाजिक-आर्थिक दावे -* इनको प्राथमिकता देना। इसका अर्थ है कि उस क्षेत्र के लोगों की विशिष्ट सामाजिक और आर्थिक ज़रूरतों और आकांक्षाओं को सर्वोच्च प्राथमिकता मिलनी चाहिए। उनके मुद्दों को सबसे पहले सुलझाया जाना चाहिए और उनके विकास की योजनाओं में उन्हें केंद्र में रखा जाना चाहिए।

 *किरण* : (सोचते हुए) तो यह सिर्फ आर्थिक आत्मनिर्भरता नहीं है, बल्कि सांस्कृतिक और सामाजिक पहचान को भी मज़बूत करना है। यह एक सर्वांगीण विकास का मॉडल है!

 *आनंद* : (मुस्कुराते हुए) बिल्कुल, किरण। यही प्रउत का लक्ष्य है - एक समग्र और प्रगतिशील समाज का निर्माण करना, जहाँ हर व्यक्ति गरिमा और सम्मान के साथ जी सके और जहाँ कोई शोषण न हो। ये छः विषय उस आदर्श समाज की नींव रखते हैं।
किरण: मैं अब पूरी तरह से समझ गया हूँ, दादाजी! यह आंदोलन सिर्फ सिद्धांतों का समूह नहीं, बल्कि एक जीवन शैली है जो वास्तविक बदलाव ला सकती है। मैं इस आंदोलन का हिस्सा बनना चाहता हूँ!

 *आनंद* : तुम्हारा स्वागत है, किरण! एक बेहतर भविष्य के निर्माण के लिए युवाओं की ही ज़रूरत है। चलो, इस यात्रा को आगे बढ़ाते हैं।

(आनंद और किरण एक-दूसरे को देखकर मुस्कुराते हैं। मंच पर धीरे-धीरे रोशनी कम होती जाती है।)


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`एकांकीकार - [श्री] आनन्द किरण "देव"`


 *पात्र:* 
 * *आनंद* : आनंद मार्ग के नियमों और सिद्धांतों के विशेषज्ञ।
 * *किरण* : एक अनजान व्यक्ति, जो आनंद मार्ग की भुक्ति व्यवस्था के बारे में जानना चाहता है।

 *दृश्य 1: परिचय और भुक्ति की अवधारणा* 

(एक शांत बगीचा। आनंद एक बेंच पर बैठे एक किताब पढ़ रहे हैं। किरण उनके पास आता है।)

किरण: नमस्कार दादाजी! क्या मैं यहाँ बैठ सकता हूँ?

 *आनंद* : नमस्कार अवश्य, पधारिए।

 *किरण* : मेरा नाम किरण है। मैं आनंद मार्ग संगठन के बारे में कुछ जानना चाहता हूँ।और मुझे 'भुक्ति' शब्द सुनकर थोड़ी जिज्ञासा हुई। क्या आप इस बारे में कुछ बता सकते हैं?

 *आनंद* : (मुस्कुराते हुए) बिलकुल। आनंद मार्ग में, भुक्ति एक महत्वपूर्ण प्रशासनिक इकाई है। इसे भारत में जिले और ब्रिटेन में काउंटी के बराबर माना गया है। यह आनंद मार्ग प्रचारक संघ की सबसे महत्वपूर्ण इकाई है।

 *किरण* : और भुक्ति प्रधान?

 *आनंद* : भुक्ति प्रधान, जैसा कि नाम से स्पष्ट है, आनंद मार्ग प्रचारक संघ के जिला स्तरीय सचिव होते हैं जो इस भुक्ति इकाई का प्रधान होता हैं।

 *दृश्य 2: भुक्ति प्रधान के कर्तव्य और उत्तरदायित्व

* *(स्थान बदल जाता है - एक छोटा सा मीटिंग हॉल, जहां चार्ट लगे हुए हैं।)*

 *किरण* : तो, इस भुक्ति प्रधान के क्या कर्तव्य होते हैं? मुझे लगा था कि यह सिर्फ आध्यात्मिक कार्य होते होंगे।

 *आनंद* : नहीं, किरण। भुक्ति प्रधान के उत्तरदायित्व बहुत व्यापक हैं। इन्हें आनंद मार्ग चर्याचर्य खंड 1 के अध्याय 3 में स्पष्ट रूप से बताया गया है। हम इन्हें समझने की सुविधा के लिए हम कुछ वर्गों में बांट सकते हैं।

(आनंद एक चार्ट की ओर इशारा करते हैं।)

 *आनंद* : पहला है *सामाजिक कर्तव्य* :-  आनंद मार्ग का लक्ष्य एक बेहतर मानव समाज बनाना है, इसलिए भुक्ति प्रधान को जन्म, जातकर्म, विवाह, प्रीतिभोज, नारायण सेवा, विवाह विच्छेद, मृत्यु, श्राद्ध और दीक्षादान जैसे सभी महत्वपूर्ण सामाजिक आयोजनों के रिकॉर्ड रखने होते हैं।

 *किरण* : यह तो बहुत व्यवस्थित है।

 *आनन्द* : जी हाँ। फिर आते हैं दूसरे कर्तव्य *आध्यात्मिक कर्तव्य* :-  इसमें जागृति, ध्वज, प्रतीक और प्रतिकृति की पवित्रता की रक्षा करना शामिल है। इसमें भुक्ति प्रधान, जागृति सचिव और अन्य लोगों की सहायता ले सकते हैं। *दीक्षादान* भी एक महत्वपूर्ण आध्यात्मिक कर्तव्य है।

 *किरण* : तो क्या वे सिर्फ आध्यात्मिक मामलों में ही लिप्त रहते हैं?

आनंद: बिल्कुल नहीं! उनके पास *न्यायिक दायित्व* भी हैं। भुक्ति प्रधान को सभी प्रकार के दीवानी और फौजदारी विवादों को निपटाना होता है। इसके लिए, वे वादी और प्रतिवादी दोनों को सदविप्र में से एक -एक वकील उपलब्ध कराने की व्यवस्था करते हैं। यह वकील या तो निःशुल्क सेवा देता है या भुक्ति की ओर से पारिश्रमिक प्राप्त करता है। वादी एवं प्रतिवादी इन्हें कोई शुल्क नहीं देगा। 

 *किरण* : यह तो काफी अनोखा है! एक स्वयंसेवी संस्था में न्यायिक प्रणाली भी? वह भी नि:शुल्क! 

 *आनंद* : यही आनंद मार्ग की समग्रता है। इसके अलावा, *संस्थागत दायित्व* भी होते हैं। भुक्ति प्रधान निरीक्षण, सेमिनार, कार्यकलाप, उपयोग और पर्षद के लिए उत्तरदायी होते हैं। ये सभी 'इसमबु' विभाग के कार्य हैं। 

 *किरण* : और ...... 

 *आनन्द* : अंत में, *सामान्य दायित्व*  :- इसमें सामाजिक एकता को मजबूत बनाए रखना सबसे ऊपर है, जिसके लिए सामूहिक हित को व्यक्तिगत हित से आगे रखना होता है। आनंद मार्ग की जनकल्याण योजनाओं और कार्यक्रमों को लागू करने के लिए उन्हें रूपये, समान, मानवशक्ति और भौतिक एवं बौद्धिक शक्तियों में सहायता करनी होती है। और हाँ, सोलह विधि से विचलित होने के आरोप पर अनुशासनात्मक कार्यवाही करने का भी प्रावधान है, जिसमें भुक्ति कार्यकारिणी की सलाह ली जाती है।

 *दृश्य 3: कर्तव्यों का सीमांकन और प्रोत्साहन* 

(स्थान फिर बदलता है - एक शांत अध्ययन कक्ष।)

 *किरण* : यह तो एक बहुत ही महत्व पद है, जिसमें बहुत शक्ति है। क्या इन कर्तव्यों की कोई सीमा भी है?

 *आनंद* : बिल्कुल। पुरोधा प्रमुख भुक्ति प्रधान के कर्तव्यों और उत्तरदायित्वों को घटा-बढ़ा सकते हैं। इसमें वे केन्द्रीय पुरोधा पर्षद की सलाह ले भी सकते हैं और नहीं भी।

 *किरण* : और अगर कोई भुक्ति प्रधान बहुत अच्छा काम करे तो? क्या कोई प्रोत्साहन भी है?
 *आनंद* : यह बहुत अच्छा सवाल है, किरण! आनंद मार्ग चर्याचर्य खंड 1 के अध्याय 4 में भुक्ति प्रधान को प्रोत्साहन देने का भी प्रावधान है। यह सिर्फ उत्तरदायित्वों की डोर में बांधना नहीं है।

(आनंद फिर से एक चार्ट दिखाते हैं, जिस पर उपाधियों के नाम लिखे हैं।)

 *आनंद* : यदि किसी भुक्ति प्रधान के अधीन सर्वाधिक प्रथम श्रेणी की आनंद मार्ग प्रचारक संघ की समितियाँ हैं, तो उन्हें एक अर्ध वर्ष के लिए विशेष उपाधियाँ मिलती हैं। दुनिया में होने पर उन्हें 'हो तो जीवमित्रम्' और सेक्टर में होने पर 'समाजमित्रम्' की उपाधि दी जाती है। यह उपाधि तब तक रहती है जब तक इस उपाधिधारी से  कोई नया व्यक्ति नहीं आता। यानी, यह एक अर्ध वर्ष से अधिक समय तक भी रह सकती है।

 *किरण* : वाह! यह तो बहुत सम्मान की बात है।

 *आनंद* : और भी है! यदि कोई व्यक्ति चार अर्ध वर्ष तक इन पदों पर रहता है, तो वह स्थायी समाजमित्रम् अथवा जीवमित्रम् बन जाता है। ये स्थायी पदवीधारी अपने नाम के आगे यह उपाधि जीवन भर धारण कर सकते हैं, लेकिन यह वंशानुगत नहीं होती। समाजमित्रम् और जीवमित्रम् को समाज में आचार्य के समान सम्मान मिलता है। उनके विरुद्ध अनुशासनात्मक कार्यवाही की आवश्यकता होने पर पुरोधा ही कार्यवाही करने का अधिकार रखते हैं। उन्हें यह विशेषाधिकार भी प्राप्त है।

 *किरण* : और क्या आचार्य या तात्विक भी ये पदवी धारण कर सकते हैं?

 *आनंद* : हाँ। यदि इस पदवी की योग्यता रखने वाला भुक्ति प्रधान गृही आचार्य अथवा तात्विक है, तो वह समाजमित्रम् के स्थान पर 'स्मार्त्त' और जीवमित्रम् के स्थान पर 'धर्ममित्रम्' पदवी धारण करेंगे। हालांकि, ऐसे स्थायी पदवीधारी भुक्ति प्रधान का पद ग्रहण नहीं कर सकते।

 *दृश्य 4: योग्यता, कार्यकाल और चुनाव* 

**(स्थान: एक छोटा सभागार, चुनाव की तैयारियों का दृश्य।)
**

 *किरण* : तो, इस महत्वपूर्ण पद के लिए योग्यता क्या है? क्या हर कोई भुक्ति प्रधान बन सकता है?

 *आनंद* : नहीं। भुक्ति प्रधान की योग्यता है कि वह एक शिक्षित गृही सदविप्र होना चाहिए। आचार्य एवं तात्विक होना आवश्यक नहीं है।

 *किरण* : उनका कार्यकाल कितना होता है?

आनंद: तीन वर्ष।

 *किरण* : और उनका चुनाव कैसे होता है? क्या कोई खास प्रक्रिया है?

 *आनंद* : हाँ। भुक्ति क्षेत्र के गृही सदविप्र अपने मत से भुक्ति प्रधान का चुनाव करेंगे। एक ही उम्मीदवार होने पर भी मतदान आवश्यक है। संभवतया, 50 प्रतिशत + 1 मत अनिवार्य है। यह सुनिश्चित करता है कि भुक्ति प्रधान को वास्तविक समर्थन प्राप्त हो।

 *दृश्य 5: भुक्ति समितियाँ* 

(स्थान: एक कार्यालय, जहाँ कुछ लोग बैठक कर रहे हैं।)

 *किरण* : भुक्ति प्रधान के सहयोग के लिए क्या कोई समिति भी होती है?

 *आनंद* : बिलकुल! आनंद मार्ग चर्याचर्य खंड 1 के अध्याय 3 के अनुसार, भुक्ति प्रधान के सहयोग और सलाह के लिए दो प्रकार की भुक्ति समितियाँ बताई गई हैं।

(आनंद एक और चार्ट की ओर इशारा करते हैं।)

 *आनंद* : पहली है भुक्ति सामान्य समिति। इसमें अधिकतम 25 और न्यूनतम 15 सदस्य होते हैं, जो सदविप्रों में से और सदविप्रों द्वारा ही चुने जाते हैं। इस समिति का अध्यक्ष स्वयं भुक्ति प्रधान होता है।

 *किरण* : और दूसरी समिति?

 *आनंद* : दूसरी है भुक्ति कार्यकारिणी समिति। इसका गठन भुक्ति प्रधान अपने विवेक से करते हैं। इसमें सदस्यों की संख्या भी भुक्ति प्रधान के विवेक के अधीन होती है। इसमें अधिकतम तीन सदस्य भुक्ति सामान्य समिति के बाहर के सदविप्र हो सकते हैं। यह भुक्ति प्रधान को अपने कार्य में अधिक लचीलापन और विशिष्ट विशेषज्ञता प्राप्त करने में मदद करता है।

 *किरण* : यह सब सुनकर मुझे भुक्ति और भुक्ति प्रधान के बारे में बहुत स्पष्ट जानकारी मिल गई। यह सिर्फ एक धार्मिक संगठन नहीं, बल्कि एक सुव्यवस्थित सामाजिक-आध्यात्मिक संरचना है।

 *आनंद* : (मुस्कुराते हुए) आपकी बात सही है, किरण जी। आनंद मार्ग का उद्देश्य एक आदर्श समाज का निर्माण करना है, और भुक्ति व्यवस्था उसका एक महत्वपूर्ण स्तंभ है। यह वास्तव में *हमारी भुक्ति - हमारी शक्ति का प्रतीक है।* 

(आनंद और किरण एक-दूसरे की ओर देखते हैं, उनके चेहरे पर संतुष्टि का भाव है।)




                        30

`एकांकीकार - [श्री] आनन्द किरण "देव"`



पात्र:
 * *आनन्द* : विशेषज्ञ, आनंद मार्ग के उपभुक्ति व्यवस्था के जानकार
 * *किरण* : एक अनजान व्यक्ति, जो उपभुक्ति के बारे में जानना चाहता है

 *दृश्य* : एक पार्क में, जहाँ आनन्द और किरण आपस में मिलते हैं।

(दृश्य की शुरुआत)

 *किरण* : (अपने मोबाइल पर कुछ पढ़ते हुए, थोड़ा भ्रमित) उम्म... ये उपभुक्ति क्या चीज़ है? और ये उपभुक्ति प्रमुख क्या  है?

 *आनन्द* : (किरण के पास आकर मुस्कुराते हुए)  नमस्कार क्या आप आनंद मार्ग की व्यवस्था के बारे में जानना चाहते हैं? मैं आपकी मदद कर सकता हूँ।

किरण: नमस्कार दादाजी अरे! हाँ, बिल्कुल। मैं अभी-अभी इसके बारे में पढ़ रहा था, पर कुछ समझ नहीं आ रहा। ये 'उपभुक्ति' और 'उपभुक्ति प्रमुख' क्या हैं?

 *आनन्द* : बहुत अच्छा सवाल है, किरण। आनंद मार्ग में उपभुक्ति एक बहुत ही महत्वपूर्ण इकाई है। आप इसे एक छोटे से हमेंआत्मनिर्भर क्षेत्र के रूप में समझ सकते हैं।

 *किरण* : छोटा संसार? कैसा छोटा संसार?

 *आनन्द* : देखिए, उपभुक्ति का गठन आमतौर पर एक प्रखण्ड (ब्लॉक) या एक प्रखण्ड और म्युनिसिपैलिटी क्षेत्र, या फिर एक पुलिस थाना क्षेत्र को मिलाकर किया जाता है। अगर यह सब न हो, तो लगभग 1 लाख जनसंख्या वाले क्षेत्र को भी उपभुक्ति बनाया जा सकता है। इसका मुख्य विचार यह है कि यह एक ऐसा क्षेत्र हो जहाँ के लोग मिलकर अपनी आवश्यकताओं को पूरा कर सकें।

 *किरण* : अच्छा, तो ये 'उपभुक्ति प्रमुख' कौन होता है?

 *आनन्द* : उपभुक्ति प्रमुख (UBP) उस उपभुक्ति में आनंद मार्ग प्रचारक संघ का सचिव होता है। वह उस छोटे संसार का एक तरह से नेता होता है, जो यह सुनिश्चित करता है कि सब कुछ ठीक से चले।

 *किरण* : तो उसके क्या काम होते हैं? सिर्फ नेतागिरी?

 *आनन्द* : (हँसते हुए) नहीं, नहीं! उसके बहुत महत्वपूर्ण कर्तव्य और उत्तरदायित्व होते हैं। आइए, मैं आपको एक-एक करके बताता हूँ:

 (*उपभुक्ति प्रमुख के कर्तव्य और उत्तरदायित्व* ) 

 *आनन्द* : सबसे पहले, *शिक्षा और नैतिक कर्तव्य* : -  उपभुक्ति प्रमुख का काम है साक्षरता बढ़ाने के लिए ज़्यादा से ज़्यादा स्कूल खोलना और समाज में नैतिकता का स्तर ऊँचा उठाना।

 *किरण* : (सिर हिलाते हुए) शिक्षा तो बहुत ज़रूरी है।

 *आनन्द* : बिल्कुल! दूसरा है, *जनकल्याणकारी कर्तव्य* :- उपभुक्ति प्रमुख यह सुनिश्चित करता है कि स्थानीय लोगों की क्रयशक्ति बढ़े। इसमें स्थानीय जनता की ज़रूरतों को पूरा करने के लिए ज़्यादा से ज़्यादा सार्वजनिक भंडार खोलना भी शामिल है, ताकि सभी को ज़रूरी सामान मिल सके। वह इस कार्य में प्राउटिस्टों और अन्य सदविप्रों का सहयोग लेता है।

 *किरण* : यह तो लोगों को आत्मनिर्भर बनाने जैसा है।

 *आनन्द* : हाँ, एकदम सही कहा आपने। तीसरा है, *उद्योग और कृषिगत कर्तव्य* :-  उपभुक्ति प्रमुख अपने क्षेत्र में कृषि और औद्योगिक उत्पादन बढ़ाने के लिए काम करता है, जिससे स्थानीय अर्थव्यवस्था मज़बूत हो।

 *किरण* : यानी, विकास पर भी ध्यान दिया जाता है।

 *आनन्द* : बिल्कुल! और चौथा है, *सेवामूलक कर्तव्य* :- उपभुक्ति के लोगों के लिए अच्छी स्वास्थ्य सेवाएँ हों, इसके लिए औषधि इकाइयाँ और चैरिटी गृहों का विकास करना उसका काम है। इसमें आनंद मार्ग प्रचारक संघ के अन्य विभाग भी मदद करते हैं।

 *किरण* : यह तो बहुत अच्छी बात है। बीमार होने पर इलाज मिले और ज़रूरतमंदों को सहारा।

 *आनन्द* : और पाँचवाँ, *भुक्ति के प्रति कर्तव्य* :-  उपभुक्ति प्रमुख को भुक्ति कार्यकारिणी में शामिल किया जा सकता है, लेकिन उसके पास कोई विशेष विभाग नहीं होता। वह बस अपनी उपभुक्ति का प्रतिनिधित्व करता है।

 *किरण* : ये तो एक मिनी सरकार जैसा लग रहा है!

 (*उपभुक्ति प्रमुख की योग्यता और चुनाव* ) 

 *आनन्द* : आप कह सकते हैं। अब बात करते हैं उपभुक्ति प्रमुख की योग्यता की। उसे एक शिक्षित सदविप्र होना ज़रूरी है। ज़रूरी नहीं कि वह आचार्य या तात्विक हो। कोई भी शिक्षित और नेक व्यक्ति यह पद संभाल सकता है।

 *किरण* : और उसे चुनता कौन है?

 *आनन्द* : उपभुक्ति का चुनाव उस क्षेत्र के सभी सदविप्र मिलकर करते हैं। वे अपने में से ही किसी एक को चुनते हैं। यह एक लोकतांत्रिक प्रक्रिया है।

 *किरण* : और ये 'उपभुक्ति समिति' क्या होती है?

 *आनन्द* : उपभुक्ति प्रमुख द्वारा उपभुक्ति के विभिन्न भागों से चुने गए सदविप्र में से उपभुक्ति समिति का गठन किया जाता है। सदस्यों की संख्या उपभुक्ति प्रमुख के विवेक पर निर्भर करती है। यह समिति उपभुक्ति प्रमुख के काम में मदद करती है।

 (*प्रोत्साहन और उपाधियाँ* ) 

 *किरण* : यह तो बहुत व्यवस्थित लग रहा है। क्या इन प्रमुखों को कोई प्रोत्साहन भी मिलता है?

 *आनन्द* : जी हाँ! उपभुक्ति प्रमुख को प्रोत्साहन भी दिया जाता है। आनंद मार्ग चर्याचर्य भाग प्रथम के अध्याय ७ में यह व्यवस्था है कि उन्हें विश्व स्तर पर पहचान बनाने के लिए प्रोत्साहित किया जाए।

 *किरण* : विश्व स्तर पर पहचान? यह कैसे?

 *आनन्द* : यहीं पर आती हैं कुछ खास उपाधियाँ - सान्धिविग्राहिक, जनमित्रम् और लोकमित्रम्।

 *किरण* : यह क्या है? कुछ समझ नहीं आया।

 *आनन्द* : मैं समझाता हूँ।  अगर किसी रिजनल के किसी उपभुक्ति क्षेत्र में किसी एक छमाही में सबसे ज़्यादा कार्यरत उत्पादक और उपभोक्ता सहकारी संस्थाएँ हों, साक्षरता दर 25% से ज़्यादा हो, और उस क्षेत्र में भूख या कुपोषण से कोई मौत न हुई हो, तो उस उपभुक्ति को उस छमाही के लिए सान्धिविग्राहिक के रूप में जाना जाता है। उपभुक्ति प्रमुख इस उपाधि का उपयोग तब तक कर सकता है जब तक कोई और इसे हासिल न कर ले।

 *किरण* : वाह! यह तो उपलब्धि हुई!

 *आनन्द* : बिल्कुल! और अगर कोई लगातार चार छमाही तक सान्धिविग्राहिक पद पर रहता है, तो वह स्थायी सान्धिविग्राहिक बन जाता है। वह अपने नाम के आगे इस शब्द का आजीवन उपयोग कर सकता है, लेकिन यह वंशानुगत नहीं होता।

 *किरण* : और जनमित्रम् और लोकमित्रम्?

 *आनन्द* : इसी तरह, अगर कोई उपभुक्ति पूरे सेक्टर में सबसे अच्छा प्रदर्शन करती है, तो उसे जनमित्रम् कहा जाता है। और जो उपभुक्ति पूरे विश्व में सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करती है, उसे लोकमित्रम् कहा जाता है। बाकी सभी व्यवस्थाएँ सान्धिविग्राहिक जैसी ही हैं।

 *किरण* : (हैरानी से) यह तो बहुत बड़ी बात है! यानी, आनंद मार्ग सिर्फ आध्यात्मिक ही नहीं, बल्कि सामाजिक और आर्थिक विकास पर भी बहुत ध्यान देता है।

 *आनन्द* : जी हाँ, किरण जी। आनंद मार्ग का उद्देश्य एक ऐसा समाज बनाना है जहाँ हर व्यक्ति शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक रूप से विकसित हो, और जहाँ कोई दुखिया न रहे। उपभुक्ति व्यवस्था इसी दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है, जिससे छोटे स्तर पर ही आत्मनिर्भरता और समृद्धि लाई जा सके।

 *किरण* : मुझे अब समझ में आया कि क्यों इसे "हमारा छोटा संसार" कहा जा सकता है। यह तो एक आदर्श समाज बनाने जैसा है, जहाँ सब मिलकर काम करते हैं। बहुत-बहुत धन्यवाद, दादाजी! आपने मेरी सारी शंकाएँ दूर कर दीं।

 *आनन्द* : इसमें खुशी है मुझे, किरण। आनंद मार्ग में आपका स्वागत है। अगर आप और जानना चाहें, तो बेझिझक पूछ सकते हैं।

(दोनों मुस्कुराते हैं और नाटक समाप्त होता है)


                          31

 `एकांकीकार - [श्री] आनन्द किरण "देव"`

 *हमारा ग्राम: हमारा आनन्द मार्ग* 

पात्र:
 * *आनन्द* : (एक शांत और ज्ञानी व्यक्ति, जो आनन्द मार्ग के सिद्धांतों का विशेषज्ञ है)
 * *किरण* : (एक जिज्ञासु ग्रामवासी, जिसे आनन्द मार्ग के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं है)

 *दृश्य* : ग्राम पंचायत भवन के सामने का चौक। कुछ ग्रामवासी बैठे हैं।

(नाटक शुरू होता है)

 *किरण* : (परेशान दिखते हुए) दादाजी नमस्कार, ये क्या चल रहा है? हमारे गाँव में आजकल "आनन्द मार्ग" की बहुत चर्चा हो रही है। लोग कह रहे हैं कि ग्राम समिति बनेगी, ग्राम संघटक चुना जाएगा। ये सब क्या है, कुछ समझ नहीं आ रहा।

 *आनन्द* : (मुस्कुराते हुए) नमस्कार बैठो किरण, मैं तुम्हें सब समझाता हूँ। दरअसल, यह हमारे गाँव के लिए बहुत अच्छी बात है। आनन्द मार्ग चर्याचर्य खंड प्रथम अध्याय ३६ में हमारे संगठन की ग्राम स्तर पर व्यवस्था का उल्लेख है।

 *किरण* : (जिज्ञासा से) व्यवस्था? कैसी व्यवस्था?

 *आनन्द* : देखो, सबसे पहले बात आती है ग्राम संघटक की। यह वो व्यक्ति होगा जो हमारे गाँव में आनन्द मार्ग के सिद्धांतों को लागू करने और ग्राम समिति का गठन करने का कार्य करेगा।

 *किरण* : तो इसे कौन चुनेगा? गाँव वाले वोट देंगे क्या?

 *आनन्द* : नहीं, यह चुनाव की प्रक्रिया से थोड़ा अलग है। ग्राम संघटक का मनोनयन जिला समिति के चैयरमेन द्वारा किया जाता है।

 *किरण* : जिला समिति? मान लो, जिला समिति के चैयरमेन न हों तो?

 *आनन्द* : बहुत अच्छा सवाल! अगर जिला समिति के चैयरमेन उपलब्ध न हों, तो उनके अभाव में ऊर्ध्वतन समिति के चेयरमैन ग्राम संघटक का मनोनयन करेंगे।

 *किरण* : और अगर वो भी न हों? क्या ऐसा भी हो सकता है?

 *आनन्द* : बिल्कुल हो सकता है। ऐसे में, उनके अभाव में केन्द्रीय समिति के प्रेसिडेन्ट द्वारा ग्राम संघटक का मनोनयन किया जाएगा। कहने का मतलब है कि यह नियुक्ति एक सुनिश्चित प्रक्रिया के तहत ही होती है।

 *किरण* : अच्छा, तो एक बार ग्राम संघटक चुन लिया गया, फिर वो क्या करेगा?

 *आनन्द* : ग्राम संघटक का सबसे महत्वपूर्ण कार्य है ग्राम समिति और कार्यकारिणी समिति का गठन करना। यह उसकी इच्छा पर निर्भर करता है कि वह कैसे और किन लोगों के साथ मिलकर इन समितियों को बनाएगा।

 *किरण* : अपनी इच्छा से? तो क्या कोई भी व्यक्ति बन सकता है?

 *आनन्द* : सिद्धांत यह कहता है कि यदि ग्राम संघटक आचार्य व तात्विक हो तो अच्छा है। यानी, उसे आनन्द मार्ग के सिद्धांतों का ज्ञान हो और वह उन पर चलता हो। इससे समिति का कार्य बेहतर ढंग से हो पाता है।

 *किरण* : (कुछ सोचते हुए) ये तो ठीक है। लेकिन मान लो, कोई ग्राम संघटक सही से काम न करे, या गाँव वाले उससे खुश न हों तो? क्या उसे हटाया जा सकता है?

 *आनन्द* : बिल्कुल! यह एक महत्वपूर्ण बिंदु है। ग्राम संघटक का पद मृत्युपर्यन्त होता है, यानी जब तक वह जीवित है, तब तक वह इस पद पर बना रह सकता है। लेकिन हाँ, अगर ग्रामवासी उससे असंतुष्ट हों, तो उसे पूर्व ही पदच्युत किया जा सकता है।

 *किरण* : तो गाँव वालों की बात सुनी जाएगी? यह जानकर अच्छा लगा। इसका मतलब ये है कि ये सब हमारे गाँव की भलाई के लिए ही है?

 *आनन्द* : (हँसते हुए) बिल्कुल, किरण! इसका मुख्य उद्देश्य हमारे गाँव में आनन्द मार्ग के आदर्शों को स्थापित करना है, जिससे हमारे जीवन में सुख और शांति आए। जब हम सब मिलकर काम करेंगे, तो हमारा गाँव सच में हमारा आनन्द मार्ग बन जाएगा। यह एक व्यवस्था है जो हमें संगठित करती है और हमें एक बेहतर समाज की ओर ले जाती है।

 *किरण* : (राहत और उत्साह के साथ) अब मुझे सब समझ आ गया दादाजी। यह तो बहुत अच्छी पहल है। मैं भी इसमें पूराछ सहयोग करूँगा। धन्यवाद!

 *आनन्द* : यही तो असली आनन्द है, किरण! जब हम सब मिलकर एक लक्ष्य की ओर बढ़ते हैं।

(पटाक्षेप)

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 `एकांकीकार - [श्री] आनन्द किरण "देव"`


पात्र:
 * *आनन्द* - विषय विशेषज्ञ
 * *किरण* - अज्ञेय पुरुष

 *दृश्य १: केन्द्रीय संस्था का कार्यालय* 

 *पृष्ठभूमि* : आध्यात्मिक तंरग से ओतप्रोत एक आधुनिक कार्यालय का कमरा। मेज़ पर कुछ फाइलें रखी हैं।

(आनन्द अपनी कुर्सी पर बैठे कुछ फाइलों को देख रहे हैं। किरण उनके सामने की कुर्सी पर उत्सुकता से बैठे हैं।)

 *किरण* : दादाजी मैंने अभी-अभी आनंद मार्ग चर्याचर्य का अध्ययन किया। केन्द्रीय संस्था के बारे में कुछ समझ नहीं हो पा रहा हूँ। क्या आप मुझे समझा सकते हैं कि इसका चुनाव कैसे होता है और प्रेसिडेंट कौन होता है?

 *आनन्द* : (मुस्कुराते हुए) बिलकुल, किरण। देखो, अध्याय ३६ में साफ लिखा है कि केन्द्रीय संस्था का चुनाव पुरोधाओं द्वारा किया जाता है। ये पुरोधा ही चुनते हैं कि संस्था का संचालन कौन करेगा।

 *किरण* : अच्छा, तो प्रेसिडेंट कौन होता है?


 *आनन्द* : इसके प्रेसिडेंट पुरोधा प्रमुख होते हैं। वही केन्द्रीय संस्था के अध्यक्ष बनते हैं। लेकिन हाँ, एक वैकल्पिक व्यवस्था भी है। पुरोधा प्रमुख चाहें तो किसी और योग्य व्यक्ति को एक निश्चित समय के लिए इस पद पर नियुक्त कर सकते हैं।

 *किरण* : और फिर ये प्रेसिडेंट क्या करते हैं?

 *आनन्द* : प्रेसिडेंट को बहुत अधिकार होते हैं। वे अपनी इच्छानुसार केन्द्रीय कार्य समिति अथवा केन्द्रीय कार्यकारणी समिति का गठन करते हैं। कार्य समिति में १५ से ६० सदस्य हो सकते हैं, जबकि कार्यकारणी समिति में सदस्यों की संख्या अध्यक्ष की इच्छा पर निर्भर करती है।

 *किरण* : क्या ये सभी सदस्य केन्द्रीय संस्था के ही होने चाहिए?

 *आनन्द* : मूल रूप से तो हाँ, कार्यकारणी में केन्द्रीय संस्था के सदस्यों को ही लिया जाता है। लेकिन अगर प्रेसिडेंट को लगता है कि बाहर से भी किसी की विशेषज्ञता की ज़रूरत है, तो वे तीन सदस्य बाहर से भी ले सकते हैं। और इनकी कार्य अवधि कौन तय करता है, पता है?

 *किरण* : नहीं, ये तो मुझे नहीं पता।

 *आनन्द* : इनकी कार्य अवधि केन्द्रीय संस्था ही तय करती है। यह बहुत ही सुव्यवस्थित प्रक्रिया है, ताकि संगठन सुचारू रूप से चल सके।

 *किरण* : यह तो बहुत विस्तृत जानकारी है। धन्यवाद, दादाजी! 

 *दृश्य २:* एक अलग मीटिंग रूम

 *पृष्ठभूमि* : एक छोटा मीटिंग रूम, जिसमें एक व्हाइटबोर्ड लगा है।

(किरण व्हाइटबोर्ड पर कुछ लिख रहे हैं। आनन्द उन्हें देख रहे हैं।)

 *किरण* : दादाजी, केन्द्रीय संस्था के बारे में तो समझ आ गया। लेकिन ये राज्य समिति और देश समिति क्या होती हैं? और इनका क्या काम होता है?

 *आनन्द* : (व्हाइटबोर्ड की ओर देखते हुए) किरण, जिला और केन्द्रीय समिति के बीच आवश्यकता होने पर प्रदेश, राज्य एवं देश समिति का गठन किया जा सकता है। यह एक तरह से संगठन को ज़मीनी स्तर तक मज़बूत बनाने की व्यवस्था है।

 *किरण* : तो इनके चेयरमैन का चुनाव कौन करता है?

 *आनन्द* : इसके चेयरमैन का चुनाव केन्द्रीय संस्था के प्रेसीडेंट द्वारा किया जाता है। यानी, केन्द्रीय संस्था के प्रेसिडेंट ही इन समितियों के चेयरमैन को नियुक्त करते हैं।

 *किरण* : और ये चेयरमैन अपनी समिति कैसे बनाते हैं?

 *आनन्द* : ये चेयरमैन फिर आचार्य एवं तात्विकों को लेकर कार्यकारणी समिति का गठन करते हैं। और हाँ, अगर ज़रूरत पड़े, तो ये साधारण समिति का भी गठन कर सकते हैं।

 *किरण* : क्या यहाँ भी आचार्य और तात्विकों को ही लेना ज़रूरी है?

 *आनन्द* : हाँ, इसमें भी आचार्य एवं तात्विक लेने का प्रावधान है। लेकिन, यदि योग्य व्यक्ति नहीं मिलते हैं, तो अन्य व्यक्ति भी लिए जा सकते हैं। सदस्यों की संख्या निर्धारित करने का अधिकार इनके चेयरमैन के पास ही होता है।

 *किरण* : और इनकी कार्य अवधि?

 *आनन्द* : इनकी कार्यावधि केन्द्रीय संस्था द्वारा ही तय की जाएगी। यह एक वैकल्पिक व्यवस्था है, यानी इसे आवश्यकतानुसार बनाया जाता है, लेकिन इसे स्थायी भी किया जा सकता है यदि संगठन को इसकी निरंतर आवश्यकता महसूस हो।

 *किरण* : यह सब सुनकर मुझे संगठन की संरचना बहुत स्पष्ट हो गई है। दादाजी, आपका बहुत-बहुत धन्यवाद!

 *आनन्द* : (मुस्कुराते हुए) कभी भी, किरण। संगठन की बारीकियों को समझना बहुत ज़रूरी है ताकि हम सब मिलकर काम कर सकें।

(दोनों मुस्कुराते हैं और पर्दा गिरता है।)




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 `एकांकीकार - [श्री] आनन्द किरण "देव"`


 *_पात्र_* :
 * *आनंद* : आनंद मार्ग दर्शन के विशेषज्ञ।
 * *किरण* : आनंद मार्ग का एक उत्साही साधक।

 *दृश्य* 1: *परिचय और जिज्ञासा* 

 *स्थान* : एक शांत उद्यान, जहाँ आनंद और किरण बैठे हैं।

 *समय* : शाम का वक्त।

(आनंद एक पुस्तक पढ़ रहे हैं, किरण उत्सुकता से उनके पास आते हैं।)

 *किरण* : दादाजी, नमस्कार! आप यहाँ भी अध्ययन कर रहे हैं?

 *आनंद* : (मुस्कुराते हुए) नमस्कार किरण। हाँ, थोड़ा समय मिला तो सोचा 'चर्याचर्य' का पुनरावलोकन कर लूँ। तुम कैसे हो?

 *किरण* : मैं ठीक हूँ, दादाजी। दरअसल, मेरे मन में कुछ प्रश्न उठ रहे थे। आनंद मार्ग में "तात्विक", "आचार्य" और "पुरोधा" की भूमिकाओं को लेकर मैं जिज्ञासु हूँ। क्या आप मुझे इनके बारे में सरल शब्दों में समझा सकते हैं?

 *आनंद* : (पुस्तक बंद करते हुए) बिल्कुल, किरण। यह बहुत महत्वपूर्ण प्रश्न है। आनंद मार्ग ने अपने दर्शन और आदर्शों को जन-जन तक पहुँचाने और मनुष्य के जीवन निर्माण के लिए तीन आध्यात्मिक अति विशिष्ट मानवों की संरचना की है: पहला पुरोधा, द्वितीय आचार्य, और तृतीय तात्विक। यह एक सोपानिक व्यवस्था है, जो आध्यात्मिक उन्नति और सेवा के विभिन्न स्तरों को दर्शाती है।

 *तात्विक एवं तात्विक पर्षद* 

 *किरण* : तो सबसे पहले तात्विक क्या होते हैं?

 *आनंद* : "तात्विक" शब्द का शाब्दिक अर्थ है 'तत्व का ज्ञाता एवं दृष्टा'। ये वो व्यक्ति होते हैं जिनकी बुद्धि तीक्ष्ण होती है। वे हमारे दर्शन और आदर्शों को गहराई से समझते हैं और उन्हें दूसरों को समझाने में सक्षम होते हैं। 'चर्याचर्य प्रथम खंड' के अध्याय 2 के अनुसार, तात्विक बनने से पहले उन्हें कम से कम 20 लोगों को, या विशेष परिस्थिति में 5 लोगों को, आध्यात्मिक भावधारा में दीक्षित करना होता है।

 *किरण* : और इनकी परीक्षा कैसे होती है?

 *आनंद* : अध्याय 37 के अनुसार, इन्हें किसी उपयुक्त योग्यता संपन्न व्यक्ति से शिक्षा लेनी होती है और फिर पाँच तात्विकों के पैनल के सामने परीक्षा देनी होती है। इस परीक्षा के परिणाम के आधार पर तात्विक पर्षद इन्हें एक अभिज्ञान पत्र (पहचान पत्र) देता है, जिसमें रजिस्टर्ड नंबर और परीक्षकों के हस्ताक्षर होते हैं।

 *किरण* : तात्विक पर्षद क्या है?

 *आनंद* : तात्विक पर्षद एक ऐसा निकाय है जो तात्विकों से संबंधित सभी नियम-कानून, दंड, अनुशासन और अन्य सभी चीजों को निर्धारित करता है। इसमें एक सचिव सहित 12 तात्विक होते हैं। इनके द्वारा लिए गए सिद्धांतों को अंतिम अनुमोदन के लिए आचार्य पर्षद की सिफारिश के साथ पुरोधा प्रमुख के पास भेजा जाता है।

 *किरण* : (सोचते हुए) यह तो बहुत व्यवस्थित लगता है।

 *दृश्य 2: आचार्य की भूमिका* 

 *स्थान* : वही उद्यान।
 *समय* : कुछ देर बाद।

  *आचार्य एवं आचार्य पर्षद* 

 *किरण* : दादाजी, अब आचार्य के बारे में बताइए। आचार्य कौन होते हैं?

 *आनंद* : "आचार्य" शब्द का अर्थ है 'आचरण से दूसरों को प्रभावित करने वाला'। 'चर्याचर्य प्रथम खंड' के अध्याय 2 के अनुसार, आचार्य वो व्यक्ति होते हैं जो निष्ठावान, तेजस्वी और तीक्ष्ण बुद्धि के होते हैं। वे दर्शन और आदर्श को न केवल समझते हैं, बल्कि दूसरों को भी समझा सकते हैं।

 *किरण* : इनकी योग्यता और परीक्षा प्रक्रिया कैसी होती है?

 *आनंद* : तात्विकों के समान ही, अध्याय 37 के अनुसार, इन्हें भी उपयुक्त योग्यता संपन्न व्यक्ति से शिक्षा लेनी होती है और फिर पाँच आचार्यों के पैनल के सामने परीक्षा देनी होती है। सफल होने पर आचार्य पर्षद इन्हें अभिज्ञान पत्र प्रदान करता है।

 *किरण* : तो क्या आचार्य पर्षद भी तात्विक पर्षद की तरह ही काम करता है?

 *आनंद* : हाँ, बिल्कुल। आचार्य पर्षद, अध्याय 39 के अनुसार, आचार्यों से संबंधित समस्त नियम, कानून, दंड और अनुशासन निर्धारित करता है। इसमें एक सचिव सहित 8 आचार्य होते हैं। इनके द्वारा गृहीत सिद्धांत अंतिम अनुमोदन के लिए सीधे पुरोधा प्रमुख के पास भेजे जाते हैं। यहाँ आचार्य पर्षद तात्विक पर्षद से उच्च होता है, क्योंकि तात्विक पर्षद को अपनी सिफारिशें आचार्य पर्षद के माध्यम से भेजनी होती हैं।

 *किरण* : यह सोपान मुझे अब थोड़ा-थोड़ा समझ आ रहा है।

 *दृश्य 3: पुरोधा और पुरोधा प्रमुख* 

 *स्थान* : वही उद्यान।
 *समय* : शाम गहरा रही है।

 *किरण* : अब सबसे उच्च स्तर पर पुरोधा कौन होते हैं?

 *आनंद* : पुरोधा वो आचार्य होते हैं जिनके कम से कम 500 शिष्य हों और जो दुरुह (कठिन) विशेष योग में निपुण हों। 'चर्याचर्य प्रथम खंड' के अध्याय 2 के अनुसार, ऐसे आचार्य ही पुरोधा की शिक्षा पाने के योग्य होते हैं। यह एक बहुत ही उच्च आध्यात्मिक और संगठनात्मक पद है।

 *किरण* : इनकी भी परीक्षा होती है क्या?

 *आनंद* : हाँ, अध्याय 37 के अनुसार, इन्हें भी उपयुक्त योग्यता संपन्न व्यक्ति से शिक्षा प्राप्त कर पाँच पुरोधाओं के पैनल के समक्ष परीक्षा देनी होती है। सफल होने पर पुरोधा पर्षद इन्हें अभिज्ञान पत्र प्रदान करता है।

 *किरण* : और पुरोधा पर्षद का क्या कार्य है?

 *आनंद* : पुरोधा पर्षद, अध्याय 37 के अनुसार, पुरोधाओं से संबंधित सभी नियम, कानून, दंड और अनुशासन निर्धारित करता है। इसमें एक सचिव सहित 4 पुरोधा होते हैं। इनके द्वारा लिए गए सिद्धांत अंतिम अनुमोदन के लिए पुरोधा प्रमुख के पास भेजे जाते हैं।

 *किरण* : *पुरोधा प्रमुख* कौन होते हैं?

 *आनंद* : पुरोधा प्रमुख आनंद मार्ग के सर्वोच्च आध्यात्मिक और संगठनात्मक प्रमुख होते हैं। अध्याय 37 के अनुसार, पुरोधाओं के वोट से पुरोधा प्रमुख का चुनाव होता है। एक बार चुने जाने के बाद, वे *आजीवन* पद पर बने रहते हैं, लेकिन *यह पद वंशानुगत नहीं होता।* उन्हें पद से हटाने की कोई व्यवस्था नहीं है, यद्यपि यह माना जाता है कि स्वयं मार्ग गुरुदेव को यह अधिकार हो सकता है (हालांकि चर्याचर्य में इसका स्पष्ट उल्लेख नहीं है)। पुरोधा प्रमुख स्वयं चाहें तो बीमारी या अन्य किसी कारण से पदमुक्त हो सकते हैं।


 *स्थान* : वही उद्यान।
 *समय* : रात होने वाली है।

 *किरण* : आचार्य जी, आपने एक वैकल्पिक व्यवस्था 'अवधूत' के बारे में भी बताया था। वह क्या है?

 *आनंद* : हाँ, 'आनंद मार्ग चर्याचर्य खंड प्रथम' के अध्याय 38 में संन्यासी व्यवस्था के रूप में अवधूतों का उल्लेख है। ये वे व्यक्ति होते हैं जो धर्म प्रचार और जनसेवा के कार्य में इतने व्यस्त रहते हैं कि उनके लिए पारिवारिक कर्तव्यों का निर्वाह करना संभव नहीं होता। ऐसे में वे अनुष्ठानिक भाव से संन्यास ग्रहण करते हैं और अवधूत कहलाते हैं।

 *किरण* : और अवधूत पर्षद क्या है?

 *आनंद* : पुरोधा प्रमुख की स्वीकृति से, अवधूतों द्वारा निर्वाचित सदस्यों को लेकर अवधूत बोर्ड (जिसे अवधूत पर्षद भी कहा जा सकता है) का गठन किया जाता है। इसका एक सचिव होता है। यह बोर्ड अवधूतों से संबंधित सभी नियम-कानून, दंड और अनुशासन निर्धारित करता है। अवधूत बोर्ड द्वारा बनाए गए सिद्धांत अंतिम अनुमोदन के लिए पुरोधा प्रमुख के पास भेजे जाते हैं। अवधूत हमेशा पुरोधा प्रमुख को मानकर चलते हैं और उनके अनुमोदन के बिना अवधूत बोर्ड कोई भी सिद्धांत बलपूर्वक स्थापित नहीं कर सकता। अवधूत पद जनकल्याण में लगने के लिए है।

 *किरण* : (गहरी सांस लेते हुए) दादाजी, अब मुझे तात्विक, आचार्य, पुरोधा और अवधूत की भूमिकाएं स्पष्ट हो गई हैं। यह एक बहुत ही सुव्यवस्थित और गहरा आध्यात्मिक ढाँचा है। आपका बहुत-बहुत धन्यवाद!

 *आनंद* : (मुस्कुराते हुए) तुम्हारा स्वागत है, किरण। यह समझना बहुत जरूरी है कि यह व्यवस्था केवल पदनामों की नहीं, बल्कि आध्यात्मिक विकास और सेवा के विभिन्न चरणों की है। हर स्तर पर व्यक्ति को अपनी क्षमताएं बढ़ानी होती हैं और समाज के प्रति अपनी जिम्मेदारियां निभानी होती हैं। मुझे खुशी है कि तुम्हारी जिज्ञासा शांत हुई।


 *स्थान* : वही उद्यान।
 *समय* : नूतन प्रातः 
( एक नया प्रकाश सबका चेहरा खिला हुआ) 

किरण : आज सूर्य कुछ अलग तरह लग रहा है। मनमोहक दृश्य! 

 *आनन्द* : आज सचमुच अच्छा है , आज हम चर्चा सदविप्र बोर्ड पर करेंगे। 

 *किरण* : मैं सदविप्र हूँ! अतिसुन्दर चर्चा थी। 

 *आनन्द* : सदविप्र बनना व्यष्टि तथा समष्टि के लिए नितांत आवश्यक है। लेकिन एक सदविप्र समाज की व्यवस्था के सदविप्र बोर्ड की व्यवस्था दी गई है। 

 *किरण* : सदविप्र बोर्ड क्या होता है। 

 *आनन्द* : संस्था की भांति एक आदर्श समाज के संचालन के लिए सदविप्र बोर्ड क्रियाशील होता है। 

 *किरण* : (जिज्ञासा भाव से) विस्तार से समझाओ। 

 *आनन्द* : सुनो किरण! सदविप्र बोर्ड की संरचना निम्न प्रकार के होंगे -
१. *सद्विप्रों का सर्वोच्च बोर्ड‌* - नीति निर्धारण के मामले में और समाज के अन्याय बोर्ड के क्रियाकलाप की सही तरीके से देखभाल करने के लिए यह बोर्ड सर्वोच्च स्तर का सामूहिक प्रतिष्ठान।
२. *कानून बोर्ड* - जो सद्विप्र कानून बनाने के विषय में अनुभवी है, उन्हीं के द्वारा यह बोर्ड गठित होगा। प्रउत की मूलनीति के अनुसार सर्वोच्च बोर्ड जो कार्यक्रम निर्धारित करेगा उसी के अनुसार कानून बनाना ही इस बोर्ड का काम होगा।
३. *शासन कार्य संचालन बोर्ड* - जो सद्विप्र शासन व्यवस्था के काम में अनुभवी हैं उन्हीं के द्वारा यह बोर्ड गठित होगा सद्विप्रों का कानून बनाने संबंधी बोर्ड जो कानून और शासन नीति तैयार करेगा उन्हें लागू करने का दायित्व इसी बोर्ड के ऊपर होगा। जो प्रशासनिक दायित्व में नियोजित रहेंगे उनका चयन सही तरीके से करना और नियुक्ति देने की देखरेख यह बोर्ड करेगा। शासन व्यवस्था के विभिन्न शाखों में जो सब बोर्ड गठित होंगे, उनके क्रिया-कलापों की देखभाल यह बोर्ड करेगा।
४. *न्याय व्यवस्था बोर्ड* - जो सद्विप्र न्याय व्यवस्था के विषय में अनुभव है, उन्हीं के बीच बीच से चुने गए सदस्यों द्वारा यह बोर्ड गठित होगा। न्यायाधीशों की नियुक्ति और न्याय व्यवस्था के अन्यान् कर्मचारियों की नियुक्ति से संबंधित विषय पर विभिन्न नियम और पद्धतियों का निर्धारण यह बोर्ड करेगा।
५. *शासन व्यवस्था की विभिन्न शाखों के लिए सद्विप्रों का सब बोर्ड* - शासन व्यवस्था के विभिन्न कामों में जो दक्ष है उन्हीं सद्विप्रों को इन सब बोर्ड में नियुक्त किया जाएगा। सद्विप्रों का शासन कार्य संबंधित-बोर्ड इन सब-बोर्डों के प्रतिनिधियों के संभावित नाम की तालिका तैयार करके कानून संबंधी बोर्ड में भेजेगा। कानून बनाने संबंधी बोर्ड फिर से जरूरी संशोधन करके तालिका सद्विप्रों के सर्वोच्च बोर्ड के पास से पास करके भेजेगा। सर्वोच्च बोर्ड इस तालिका को अंतिम अनुभव करें अनुमोदन करेगा।

 *किरण* : बहुत सुन्दर एवं एक आदर्श व्यवस्था है। 

 *आनन्द* : इसका उल्लेख श्री प्रभात रंजन सरकार की प्रउत अर्थव्यवस्था नाम पुस्तक में मिलता है। 

( किरण व आनन्द एक दूसरे को देखते हैं तथा नमस्कार अभिवादन के साथ ही पर्दा गिरता है।)
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