हमारी ग्राम पंचायत एवं आदर्श गण व्यवस्था (Our Gram Panchayat and Ideal Gana System)

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                   A किरण M
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2025 में हमें नहीं ग्राम पंचायत चुननी है। हम सभी की इच्छा है कि हमारी ग्राम पंचायत सबसे अच्छी एवं सच्ची हो इसलिए हमें हमारी ग्राम पंचायत की तस्वीर बनानी होगी। उस तस्वीर को देखकर एक सुन्दर ग्राम पंचायत बनाने के लिए मिलित कोशिश करेंगे। 

हमारी ग्राम पंचायत का शिवतलाव ग्राम पंचायत है। अर्थात शिवतलाव ग्राम की पंचायत। शिवतलाव नाम हमारे आन, बान एवं शान का प्रतीक है। वह ग्राम जहाँ शिव का तालाब है, वही शिवतलाव है। हमारा प्रत्यक्ष एवं परोक्ष रुप से शिव से संबंध है। अतः हमें हमारी ग्राम पंचायत की तस्वीर शिव की गण व्यवस्था के जैसी बनानी चाहिए। आओ शिव की गण व्यवस्था के बारे में जानते हैं। 

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विश्व की राजनीति का पहला अध्याय जहाँ एक सुव्यवस्थित राजनैतिक इकाई का विकास हुआ, वह शिव की गण व्यवस्था है। शिव ने विश्व इतिहास में पहली बार एक राजनैतिक व्यवस्था का सूत्रपात किया, जो मूलतः एक सामाजिक एवं आर्थिक व्यवस्था थी। जिसकी तस्वीर राजनैतिक प्रशासनिक व्यवस्था के रूप में उभर कर आई। 

                 गण व्यवस्था

 शिव की गण व्यवस्था सम्पूर्ण विश्व के लिए थी। इसलिए हम उसी के अनुसार समझने की कोशिश करेंगे। शिव की गण व्यवस्था के अनुसार सम्पूर्ण विश्व को विभिन्न गणों में विभक्त किया गया। वहाँ शिव की आदर्श सामाजिक आर्थिक व्यवस्था का प्रतिनिधि गण के नाम से जाना जाता था। यही शिव प्रदत्त आदर्श व्यवस्था के नामकरण आधार है। इस गण व्यवस्था का नियंत्रण का भार गणपति के पास था। अतः गणपति एवं गण मिलकर शिव की गण व्यवस्था बनती है। यदि इसको एक ग्राम पंचायत के संदर्भ में समझने जाए तो पंच एवं सरपंच मिलकर एक ग्राम पंचायत बनाते हैं। पंच वार्ड का प्रतिनिधि कहलता है तथा सरपंच सम्पूर्ण ग्राम का प्रतिनिधि हैं। आज हम वैश्विक आदर्श व्यवस्था - शिव की गण व्यवस्था समझेंगे। अतः इस पर ही चर्चा करेंगे। 

                 गण कौन?
गण शब्द के दो अर्थ होते हैं। व्यष्टि गत अर्थ में गण शब्द का अर्थ व्यष्टि का स्वभाव एवं गुण का समुच्चय होता है। इस अर्थ में तीन प्रकार के गण बताए गए हैं। सत्वगुण की प्रधानता वाले व्यष्टि को देवगण, ऋषिगण(ब्रह्मर्षि, देवर्षि, महर्षि, राजर्षि तथा साधारण ऋषि नामक पांच श्रेणी होती थी) मुनिगण कहते थे।  रजोगुण की प्रधानता वाले व्यष्टि को मनुष्य गण में रखा गया था तथा तमोगुण की प्रधानता वाले व्यष्टि को राक्षस( असुर, दानव, दैत्य एवं पिशाच नामक चार श्रेणियाँ होती है) गण में रखा गया था। इन श्रेणियों में से प्रथम श्रेणी को श्रेष्ठ माना गया है। गण शब्द का दूसरा अर्थ दल, समूह अथवा समुदाय है। व्यष्टि एवं समष्टि शब्दावली को मिलाकर गण शब्द का अर्थ बनता है समूह तथा समूह का आदर्श प्रतिनिधि मिलकर गण शब्द बनता है। 

                 गण कैसा?
समष्टि के रूप में गण का एक सामाजिक आर्थिक इकाई होती है। यह धरा भौगोलिक विभिन्नता से परिपूर्ण है। अतः जमीन की भौगोलिक स्थिति एवं जमीन की उर्वरक क्षमता के आर्थिक समस्या एवं संभावना के निहित होने तथा भावनात्मक एकता एवं नस्लीय समानता के आधार पर एक क्षेत्र को सामाजिक आर्थिक इकाई के रूप में चिन्हित किया जाता था। वह गण के नाम जाना जाता था। व्यष्टिगत रुप गण एक गण इकाई का प्रतिनिधि होता था। गण इकाई सभी जन एक आदर्श प्रतिनिधि अर्थात गण की आश रखते थे। अतः स्वभाविक है। वह अपने गण को प्रथम श्रेणी का गण अर्थात देवगण के रूप देखना पसंद करते थे। कोई राक्षस गण को अपना प्रतिनिधि के रूप में नहीं देखना चाहते थे।  मनुष्य गण एक अच्छी श्रेणी होने के बावजूद भी एक आदर्श प्रतिनिधि देवगण की चाहते हैं। अतः देवगण अथवा आदर्श प्रतिनिधि के गुणों का अवलोकन करेंगे। 


आज की पंचायत व्यवस्था में एक प्रश्न है कि हमारा वार्ड पंच कैसा हो? वार्ड पंच एक आदर्श प्रतिनिधि हैं तो आशा की जाती है कि वार्ड वासियों समस्या का निराकार में सरलता, सुगमता एवं पारदर्शिता रहती है। शिव की गण व्यवस्था में कोई भी प्रतिनिधि नहीं बन सकता था। महादेव का प्रतिनिधि बनने के लिए देव के गुण का होना आवश्यक था। देव कोई आसमानी सत्ता नहीं यह मनुष्य की सबसे उच्चतम एवं आदर्श श्रेणी होती थी। जो निजी हित से उपर उठकर समूह हित के लिए जीते थे। अतः देव पुरुष के गुणों को समझकर आदर्श प्रतिनिधि की बात करते थे। 

 

सुंदरों दान शीलश्च मतिमान् सरल: सदा।
अल्पभोगी महाप्राज्ञो तरो देवगणे भवेत्।।

( देव गण व्यक्तित्व सुंदर मन वाला, दानी, शीलवान, विचारों में श्रेष्ठ, बुद्धिमान होते हैं. इनको सादगी बेहद प्रिय है, जिस काम को करने का प्रण लेते हैं उसको करके ही मानते हैं। ) 


मानी धनी विशालाक्षो लक्ष्यवेधी धनुर्धर:।
गौर: पोरजन ग्राही जायते मानवे गणे।।

(स्वाभिमानी, विचार एवं व्यवहार का धनी, विशाल दृष्टि वाला, धनुर्धर की तरह लक्ष्य पर केन्द्रित रहने वाला, साथियों पर छाप छोड़ने वाला, सदाजयी मनोभाव वाला मानव गण का है। 


उन्मादी भीषणाकार: सर्वदा कलहप्रिय:।
पुरुषों दुस्सहं बूते प्रमे ही राक्षसे गण।।

(उन्माद से भरपूर, हमेशा कलह करने वाले, भीषण रूप वाले यानी हमेशा बिगड़े हुए दिखने वाले, दूसरों से अवगुणों को धारण करने वाले होते हैं। इनको हर गलत चीज़ों में रुचि होती है।)

शिव ने अपने गण में देवगुण वाले गण को शामिल किया। यही आदर्श प्रतिनिधित्व के गुण है। 


जिस प्रकार पंचायत का मुख्य आधार सरपंच होता है उसी प्रकार शिव की गण व्यवस्था का मुख्य आधार गणपति था। सभी गणों का अधिपति गणपति अथवा गणों का नायक गणनायक है। सभी गण, गणपति को रिपोर्ट करते थे तथा सभी गण गणपति के अधीन थे। इसलिए इन्हें विशेष नायक इति विनायक भी कहते हैं। गण अपने अपने क्षेत्र में शिव के प्रतिनिधि थे। गणपति भी शिव के मुख्य प्रतिनिधि थे। इसे गणों के ईश्वर गणेश भी कहा गया है। शिव के गण में देवगुण होने आवश्यक थे तो गणपति में ईश्वरीय गुण होना आवश्यक है। ईश्वर शब्द का अर्थ है नियंता। अतः गणपति गण व्यवस्था के नियंता थे।

नोट - इस आलेख का उद्देश्य किसी की धार्मिक व्यवस्था को ठेस पहूँचाना नहीं है। यदि इस से किसी की धार्मिक भावनाओं को आघात हुआ है, तो हमें खेद है।

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