अम्बेडकर का अपमान किसने किया ? ‌‌‌‌‌ (Who insulted Ambedkar?)


इन दिनों भीमराव अम्बेडकर के अपमान पर बहुत अधिक चर्चा गरमागरम है। विपक्ष कहता है कि अम्बेडकर का अपमान सत्ता पक्ष ने किया तथा सत्ता पक्ष कहता है कि अम्बेडकर का अपमान कांग्रेस ने किया। दलित कहते हैं कि अम्बेडकर का अपमान दलितों के अलावा समाज के सभी वर्गों ने किया। इसलिए हमें अम्बेडकर जी का अपमान करने वाले असली चहरे को खोज निकालना है। मैं माननीय गृहमंत्री के उस बयान का समर्थन नहीं करता जिसमें उन्होंने कहा कि "अम्बेडकर, अम्बेडकर, अम्बेडकर, अम्बेडकर, अम्बेडकर, अम्बेडकर करना फैशन बन गया है, इतना तो भगवान का नाम लिया होता तो भगवान आ जाते।" मैं तो गृहमंत्री जी यही पूछना चाहता हूँ कि आप के 1989 से  अब तक राम का नाम लेने पर क्या राम आ गए क्या?  छ: बार भगवान का नाम पुकारने से भगवान आ जाते हैं। तो माला में 1008 मणके रखने की जरूरत नहीं है। कुछ लोग बताते हैं कि पंचनाम पुकारने पर भगवान मिल जाते हैं। तो यह छठां नाम कौन सा है? थोड़े प्रश्न राजनैतिक जगत से ले लेते हैं। क्या अम्बेडकर का नाम लेना बुरा है अथवा फैशन है? अम्बेडकर का नाम क्यों नहीं लेना चाहिए। क्या राम राम करना भी फैशन है? इत्यादि इत्यादि इन सवालों से समस्या की जड़ में नहीं पहुंच सकते हैं। समस्या की जड़ तक जाने के लिए थोड़ी देर अम्बेडकर जी के पास चलते हैं। 

डॉ भीमराव अम्बेडकर  भारतीय राजनीति में एक प्रश्न बनकर आए थे, जिसका उत्तर आज दिन तक नहीं दिया गया है। वे भारतीय समाज से राजनीति की शब्दावली में प्रश्न पूछा कि क्या दलित होना अथवा दलित घर में जन्म लेना एक अपराध है? राजनीति ने इस प्रश्न का उत्तर देने के लिए पुरा संविधान उन्हें सौप दिया। उन्होंने इस प्रश्न के उत्तर में संविधान में वे सभी व्यवस्था की जो अस्पृश्यता का नामोनिशान मिटा दें। फिर भी न तो राजनीति इस प्रश्न को भूली तथा नहीं समाज ने इस प्रश्न का कोई सटीक उत्तर दिया। अतः आप ही बताइये कि अम्बेडकर जी का अपमान किसने किया। हमारा संविधान उस व्यवस्था को क्यों नहीं रोक पा रहा है, जो भेद सृष्ट व्यवस्था का समूल विनाश क्यों नहीं कर पा रहा है? मै यह नहीं कह रहा हूँ कि जब तक यह संविधान रहेगा तब तक अम्बेडकर जी का अपमान होता रहेगा। हमारा संविधान, संविधान सभा ने सुन्दर से सुन्दर बनाने की कोशिश की लेकिन उसके बाद राजनीति उसका चीरहरण करती गई, उसको हम लोग मिलकर नहीं रोक पाए। अतः आप ही बताइये कि अम्बेडकर जी का अपमान किसने किया? मैं ऐसा लिखकर अमित शाह का पक्ष नहीं ले रहा है।  मैं तो समझने की कोशिश कर रहा हूँ कि अम्बेडकर जी अपमान किसने किया? 

अम्बेडकर जी का अर्थ है जातिभेद द्वारा सृष्ट भारतीय समाज व्यवस्था को ढ़ाहना‌‌ है। मैं प्रथम प्रश्न अम्बेडकर वादियों से करता हूँ। क्या आपने समस्त दलित जातियों को मिलाकर एक दलित जाति की रचना की है? अथवा क्या आपने मिलकर दलित दलित  में ही  व्याप्त अस्पृश्यता का अंत किया है। यदि नहीं तो आप कैसे कह‌ सकते हैं अम्बेडकर जी का अपमान करने में आप सभी के साथ नहीं है। दूसरा प्रश्न हिन्दूत्ववादियों क्या आपने जातिभेद की इस व्यवस्था को समूल‌ मिटा पाये है? नहीं तो आप को हिंदू धर्म को पवित्र, पावन एवं महान कहने का क्या अधिकार है। क्या आपने अम्बेडकर जी के रूप में भारतवर्ष उठे प्रश्न का उत्तर नहीं दिया तो आप कैसे कह सकते हो की आपने अम्बेडकर जी का अपमान नहीं किया। अब मेरा प्रश्न मानवतावादी, समाजवादी राजनेताओं से आपने जातिभेद, सम्प्रदायिकता, जातियता एवं क्षेत्रियता क्या उत्तर दिया है। यह अभी जिन्दा क्यों है। अब हमे बताइये कि आपने कैसे अम्बेडकर जी का अपमान नहीं किया? 

अब हम चलते भारतीय समाज के पास पता लगाने की कोशिश करते हैं कि हमारे इस महान देश में अस्पृश्यता क्यों जन्मी?  यदि इसका में उत्तर यदि आप के पास इसका उत्तर नहीं है तो आप अम्बेडकर जी का अपमान करने वाले क्यों नहीं है। अब चलते तथाकथित धर्मगुरुओं एवं धर्म संस्थानों के पास धर्म भेद करना नहीं सिखाता है तो आपने भेदमूलक व्यवस्था के मिटाने की व्यवस्था क्यों नहीं बना पा रहे हैं? यदि ऐसा नहीं किया जा रहा है तो बताइये कि आप को अम्बेडकर जी का अपमान करने वाला क्यों नहीं कहा जाए? 

विषय के अन्त में चलते हैं कि इस धरा पर ऐसा कोई है, जो अम्बेडकर जी का अपमान नहीं कर सकता है। सबसे पहले बौद्ध धर्म के पास चलते हैं। क्योंकि अम्बेडकर जी ने आप का दामन थामा था क्या आपके प्रयास से भेद सृष्ट व्यवस्था का नाश हुआ है? वर्तमान दृश्य तो नहीं बता रहा है कि दलितों के बौद्ध धर्म में जाने के बाद अस्पृश्यता की पीड़ा शांत हो गई है। अतः हम कह सकते हैं कि बौद्ध अनुयायी तो बना सकता है। लेकिन एक मानव समाज नहीं बना पाता है। फिर कोई ऐसा है, जो एक अखंड एवं अविभाज्य मानव समाज बना सकता है? 

यह चिन्तन देने वाले श्री प्रभात रंजन सरकार के पास इसका उत्तर है। उन्होंने कहा कि जाति, सम्प्रदाय, क्षेत्र एवं देश रुपी सभी परिधियों ऊपर उठकर विवाह करना न केवल क्रांतिकारी विवाह अपितु यह विवाह विप्लवी है। समाज के सम्पूर्ण विप्लव के बिना एक अखंड अविभाज्य मानव समाज की रचना नहीं हो सकती है। विप्लवी विवाह उसका शंखनांद है। आर्थिक, सांस्कृतिक, धार्मिक, सामाजिक, राजनैतिक एवं समग्र क्षेत्र में अव्यवस्था तथा शोषण है तब तक कोई न कोई अम्बेडकर बनकर प्रश्न करता रहेगा कि हम पीछे क्यों? 

श्री प्रभात रंजन सरकार के पास अम्बेडकर के प्रश्न का उत्तर है तो हमें उनकी ओर चलना चाहिए। इसके आगे जो भी प्रश्न है उनका उत्तर कमेंट के रिपलाई में दूंगा

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   ✒ करण सिंह शिवतलाव की कलम से
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