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एक बात जो मेरे में दिल में आई उस को लिख रहा हूँ। मनुष्य अपना इतिहास खोजता, वह मातृकुल की ओर थोड़ा कुछ आगे बढ़ता है, पितृकुल की ओर बहुत कुछ आगे बढ़ता है। इससे उसको जो कुछ हासिल होता है। वह उसे अपना इतिहास मान लेता है। क्या यही मनुष्य का इतिहास है?
यह एक समुदाय का इतिहास है। मनुष्य का इतिहास तो कुछ ओर ही है। मनुष्य एक जीवात्मा है। जीवात्मा इतिहास पितृकुल एवं मातृकुल में नहीं गुरुकुल में निर्मित होता है। गुरुकुल मनुष्य अनुभव करता है कि वह एक अनन्त का राही अनन्त से आया है। इसके बीच अनेक पितृकुल एवं मातृकुल बने हैं। आज वह जिस पितृकुल एवं मातृकुल के इतिहास पर गर्व करता है। वह एक दिन उस लिए कुछ नहीं था तथा एक दिन बहुत तुच्छ रहेगा। गुरुकुल में जीवात्मा नामक मनुष्य इतिहास देखते वह मात्र मनुष्य में ही जीव जन्तु लतागुल्म, पेड़ पौधों एवं सजीव-निर्जीव की लम्बी यात्रा में समाज हुआ है। वह यह भी देखता है कि उसका इतिहास इस पृथ्वी, इस सौर परिवार, इस आकाश गंगा में भी नहीं समाता है। वह ब्राह्मण से उपर अनन्त में इतिहास देखता है। गुरुकुल में मनुष्य देखा एवं लिखा गया इतिहास उसे सभी प्रकार भाव जड़ता से उपर उठा देता है। उसकी बुद्धि मुक्ति की थाह पाती है। इसलिए भारत में इतिहास को विमुक्ति के लिए पढ़ाया जाता है। आज का पढ़ाया गया इतिहास, इस लक्ष्य को सिद्ध नहीं करता है।
इतिहास वह होता है, जिससे मनुष्य धर्म, अर्थ, काम व मोक्ष को सिद्ध कर सके। इतिहास वह नहीं है, जिससे मनुष्य कुंठा से भर जाए। इसलिए आज हमारे शिक्षाविदों को जानना होगा कि हमारा असली इतिहास क्या है तथा इसे कैसे पढ़ाना होगा? यह युग की सबसे बड़ी चुन्नौती है, इसीप्रकार विज्ञान, अर्थशास्त्र, राजनीति शास्त्र, समाजशास्त्र एवं इससे संबंधित अन्ययन: विषय भी पढ़ाने नूतन तकनीकी को खोजना। कानून एवं चिकित्सा सबके नितांत आवश्यक है, इसलिए इसको सरलतम बनाकर सबके लिए सुलभ कराना ही होगा तथा विशेषज्ञ भी निर्माण करने होगे। इसलिए तो विद्या को विमुक्ति का साधन कहा गया है। हमारी शिक्षा प्रणाली हमें पूर्णत्व में प्रतिष्ठित करती है, तो हमारे शिक्षा सही है, अन्यथा एक बोझ है, जिस हमारे शिक्षार्थी नित उठाते हैं।
मनुष्य इतिहास जाने के लिए निकले थे, अतः मनुष्य का इतिहास जाने की ओर बढ़ते हैं। पितृकुल एवं मातृकुल के आधार पर लिखी गई इतिकथा मनुष्य की जानकारी एवं जिज्ञासा को संतुष्ट करने का प्रयास करती है लेकिन गुरुकुल में जो मनुष्य अपना स्वयं इतिहास पढ़ता एवं देखता है, वे जिज्ञासा को शांत कर देती है। यही तो एक शिक्षक का कर्तव्य होता है कि अपने शिक्षार्थी के मन में उठने वाले सवाल का सही जबाब देकर उसे सम्पूर्ण संतुष्टि देना।
पितृकुल का इतिहास पिता, पितामह, पर पितामह से भी आगे ले चलकर, कुल, वंश, जाति, सम्प्रदाय तथा मानव जाति तक ले जाता है। मातृकुल का इतिहास माता, मातामही तथा उससे आगे जाकर रुक जाता है जबकि गुरुकुल में मनुष्य द्वारा पढ़ा गया इतिहास मनुष्य का आदि एवं अन्त में समाता है। सही गुरुकुल के अभाव में गुरुकुल का इतिहास गुरुओं की परंपरा पढ़ाकर एक सम्प्रदाय को जन्म देता है। यह सम्प्रदाय जाति में बदल जाता है। भारतवर्ष में बहुत सी जातियाँ तथा उपजातियाँ इन्हीं गुरुकुल के दोषपूर्ण स्वरूप के कारण बनी है। गुरुकुल शब्द का अर्थ गुरुओं की परंपरा का इतिहास नहीं, गुरुकुल का अर्थ जहाँ मनुष्य शारीरिक, मानसिक एवं आध्यात्मिक शक्ति का जागरण कर उसे धर्म के पथ पर ले चले। धर्म का पथ ही मनुष्य के इतिहास की सच्ची शिक्षा है।
आओ हम पढ़ते मनुष्य का असली इतिहास ओर पाते हैं आनन्द। शुरू करते आनन्द मार्ग की यात्रा......
[श्री] आनन्द किरण "देव"
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