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करण सिंह
KARAN SINGH
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आज मैं यात्रा पर था किसी ने मुझे किसी ने पूछा चुनाव के बाद क्या होगा? मैंने कहा होना क्या है। दो दिन टीवी पर नेता लडेंगे, फिर प्रधानमंत्री जी शपथ लेंगे, फिर चुनाव की बात बंद हो जाएगी। फिर वही जो रोज होता है। मैंने कहा कि बुनियादी सवाल यही नहीं होना चाहिए कि चुनाव के बाद क्या होगा, सवाल यह होना चाहिए कि हमारा देश कैसा होना चाहिए? हमने सहयात्रियों से कहा कि आज हम चर्चा करेंगे कि क्या चुनाव के बाद हमें एक आदर्श राष्ट्र मिलेगा? तो उन्होंने पूछा आदर्श राष्ट्र कैसा होता है? तो हमने कहा चलो पहले आदर्श राष्ट्र कैसा होता है? यही समझ लेते हैं। करनी थी चर्चा लेकिन लेनी पड़ी क्लास। उस क्लास से ही एक आलेख तैयार हो गया जो आपके समक्ष रखता हूँ।
आदर्श राष्ट्र
(Ideal Nation)
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(१) शतप्रतिशत रोजगार (100% employment) - आदर्श राष्ट्र को सबसे पहला काम शतप्रतिशत रोजगार उपलब्ध कराना होता है। यदि एक भी नागरिक बेरोजगार रहता है तो आदर्श राष्ट्र की प्रथम मंजिल ही नहीं बन पाएंगी। रोजगार प्राप्त करना नागरिक का मौलिक अधिकार है। उस पर ही राष्ट्र की प्रगति नापी जाती है।
(२) क्रयशक्ति का अधिकार ( Right of Purchasing power) - शतप्रतिशत रोजगार उपलब्ध कराने के बाद राष्ट्र की दूसरी मंजिल क्रयशक्ति से बनते हैं। युग के अनुरूप न्यूनतम आवश्यक पूर्ण करने के लिए संतुलित एवं पौष्टिक आहार, पर्याप्त वस्त्र एवं एक आदर्श घर अपने खरीद ले उतनी आर्थिक ताकत हर नागरिक के पास होनी ही चाहिए। इसलिए क्रयशक्ति का अधिकार मौलिक अधिकार होना चाहिए। उसकी न्यूनतम आय मात्र पेट भरने जितनी नहीं अपितु उसकी न्यूनतम आय एक आदर्श नागरिक बनने जितनी होनी चाहिए।
(३) व्यवसायिकरण मुक्त नि:शुल्क चिकित्सा एवं शिक्षा (commercialization free medical care and education) - वह देश कभी भी आदर्श नहीं हो सकता, जहाँ शिक्षा एवं चिकित्सा बिकती है। एक आदर्श नागरिक बनाना राष्ट्र की जिम्मेदारी है। अतः केवल सरकारी स्कूल एवं सरकारी चिकित्सालय में नि:शुल्क व चिकित्सा शिक्षा रखना ही पर्याप्त नहीं है, इससे समाज में दो प्रकार के नागरिक तैयार होते हैं। जो देश के खतरनाक है। चिकित्सा में सरकारी चिकित्सालयों की नि:शुल्क चिकित्सा की चिकित्सक व्यासायीकरण की मानसिकता की भेंट चढ़ती है।
(४) किसान एवं मजदूरों के हितों की रक्षा करें (Protect the interests of farmers and laborers) - किसान एवं मजदूर अर्थतंत्र वे ध्रुव है, जिन्हें सरक्षण की परम आवश्यक है। किसानों को अपने उत्पाद का दाम तय करने का विशेषाधिकार मिले, इसलिए कृषि को उद्योग का दर्जा देना तथा मजदूरों को न्याय मिले इसलिए उस मालिक की व्यवसायिक फर्म का एक अंग में स्थापित करने के लिए लाभांश हिस्सेदार बनाना आवश्यक है। यह दोनों अपने पसीने से समाज की भाग्यरेखा बनाते हैं इसलिए इनकी कर्मरेखा किसी भी रुप में शोषण से मिटे नहीं इसका विशेष ध्यान रखना समाज का कर्तव्य है।
(५) गुणीजन का आदर, अर्थव्यवस्था का आदर (Respect for the virtuous, respect for the economy) - समाज में जो लोग अपने अपने विशेष योग्यता के कारण समाज को अतिविशिष्ट सेवाएं देते हैं। उनकी इस योग्यता का आदर करना तथा उचित आर्थिक एवं सामाजिक सम्मान देकर समाज अपना दायित्व निवहन करें तभी अर्थव्यवस्था का भविष्य सुरक्षित है। इनकी सेवा के बदौलत समाज सुरक्षित है। अत: इन गुणीजनों का मान ही, समाज का मान है।
(६) प्रगतिशील आर्थिक मानक (Progressive economic standards) - व्यक्ति का जीवन स्तर उत्तरोत्तर उन्नत होता जाए इसलिए समाज के आर्थिक मापदंड का वृद्धिमान होना आवश्यक है। इसके अभाव में समाज की रीढ़ कमजोर हो जाती है।
(७) धन संचय की प्रवृत्ति पर रोकथाम (Prevention of tendency to accumulate wealth) - नागरिक का एक्सिडेंट परिस्थिति समाज की जिम्मेदारी है। यह आदर्श समाज के लिए आवश्यक है। अतः धन संचय पर समाज की लगाम आवश्यक है। धन तिजोरी की नहीं अर्थव्यवस्था की संपदा है इसलिए इसका अर्थव्यवस्था में रहना आवश्यक है।
(८) भेद रहित एक अखंड अविभाज्य मानव समाज (A single, indivisible human society without discrimination) - मानव समाज में किसी प्रकार का सामाजिक भेद रहना घातक है। यह भेद घात लगाकर समाज को न निगल ले इसलिए प्रेम से अथवा दबाव से एक मानव समाज की छत्रछाया में लाना आवश्यक है। अतः एक अखंड अविभाज्य मानव समाज ही समाज है।
(९) सम सामाजिकता की आधारशिला पर समाज को स्थापित करना (To establish society on the foundation of equal sociality) - व्यक्ति आत्मसुख की मंशा रखता है लेकिन समाज की स्थापना सम सामाजिकता पर होती है। इसलिए व्यक्ति की अभिलाषा को व्यक्ति के धर्म की ओर मोड़कर समाज में एक आदर्श व्यवस्था स्थापित की जाती है।
(१०) उपयोग तत्व का प्रगतिशील होना आवश्यक (Utilization element must be progressive) - एक उन्नत सामाजिक आर्थिक एवं सांस्कृतिक व्यवस्था के उपयोग तत्व का प्रगतिशील होना परम आवश्यक है। जिसमें संपदा का अधिकतम उत्कर्ष, विवेकपूर्ण वितरण, मानवीय क्षमताओं का अधिकतम उपयोग एवं सुसंतुलन का ध्यान रखना तथा मूल्यों का देश, काल एवं पात्रानुसार परिवर्तन शील होना आवश्यक है।
(११) ईश्वर केन्द्रित सामाजिक आर्थिक व्यवस्था (God centered socioeconomic system) - समाज की सामाजिक आर्थिक व्यवस्था यदि ईश्वर केन्द्रित नहीं है तो सम्पूर्ण तंत्र अर्थहीन है। इसलिए स्व:केन्द्रित, पदार्थ केन्द्रित एवं भाव जड़ता (डोगमा) केन्द्रित सामाजिक आर्थिक व्यवस्था के स्थान पर ईश्वर केन्द्रित सामाजिक आर्थिक व्यवस्था उत्तम है। आध्यात्मिक जीवन की भित्ति है। इसे मजबूर ईश्वर केन्द्रित सामाजिक आर्थिक व्यवस्था ही कर सकती है।
(१२) शूद्र समाज की भित्ति है (Shudra is the wall of society) - शूद्रका अर्थ सहायक अर्थात व्यष्टि तथा समष्टि के कार्य में सहायता करने वाला। इन्हें सेवक भी कहा गया है। निस्वार्थ भाव से सेवा देने वाला। इन्हें भूल से दास भी कहा गया है।
तकनीक शब्द इनके लिए कामगार, मजदूर एवं कर्मचारी है। समाज की भित्ति शूद्र है। इसलिए उसका मजबूत होना आवश्यक है। इसके अभाव सम्पूर्ण महल ही अर्थहीन है। अतः समाज को सहायक की मजबूती की व्यवस्था देनी ही होती है।
मैने कहा आदर्श राष्ट्र की रुपरेखा आप के सामने है। क्या चुनाव के बाद में आदर्श राष्ट्र बनेगा? सभी मौन हो गए। सन्नाटे में हिलोरे उत्पन्न तब हुई जब एक नन्हा बालक बोला मेरा भारत महान, तभी एक भद्र बोले एक दिन आदर्श राष्ट्र अवश्य बनेगा लेकिन इस चुनाव के बाद तो कदापि नहीं। मैंने कहा आशावादी बनो अपने नेताओं को अपना जनबल को बोध करा दो, एक आदर्श राष्ट्र की रुप रेखा उनके सामने रखों, नहीं करे तब तक उनकी चैन की निंद मत सोने दो। तब इस चुनाव के बाद आदर्श राष्ट्र देख पाओगे। उस में से एक बोल आप नेता क्यों नहीं बनते? मैंने कहा आप नेता मुझे बनने नहीं देते हैं। सभी ने कौतुहल भरी दृष्टि से पूछा कैसे? मैंने कहा में आप का नहीं आपके समाज का ध्यान रखूँगा। यही बात आपको अच्छी नहीं लगती है। नेता आप ध्यान रखते हैं समाज का नहीं इसलिए आप उन्हें छंद स्वार्थ में दे देते हैं। वे जाति एवं सम्प्रदाय की भावना परोसते है, यह आपको भा जाती है। तुम हड्डी चबाने में अपना जबड़ा फाड़ देते हो। एक फिर सभी गंभीर सोच में चले गए। तभी वही बालक बोल भारत माता की जय, सभी हसने लगे तथा मेरा स्टेशन आ गया।
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