रामराज्य की चार स्तंभ (four pillars of Ramrajya)

इन दिनों रामराज्य एक संकल्प पत्र बनकर उभर रहा है। सता पक्ष एवं विपक्ष अच्छी व्यवस्था देने का वादा दे रहे हैं। एक महात्मा गाँधी में रामराज्य खोज रहा है तो दूसरा राममंदिर में। इसी बीच रामराज्य की वास्तविक तस्वीर बनकर तैयार हुई है। 

१. धार्मिक न्याय (आध्यात्मिक नैतिकवान समाज का निर्माण) -
जब तक समाज में आध्यात्मिक नैतिकता का वास नहीं है तब तक कितनी अच्छी व्यवस्था का कोई मूल्य नहीं है। अनैतिक, भ्रष्ट एवं चरित्रहीन लोग उसको तीन तेरह कर देंगे। इसलिए आध्यात्मिक नैतिकवान समाज का निर्माण करना अतिशीघ्र शुरू कर देना चाहिए। आध्यात्मिक नैतिकवान समाज का मूल है। आध्यात्मिक नैतिकवान व्यक्ति का संगठन। इसके लिए व्यक्ति को यम नियम एवं भूमाभाव की साधना की भित्ति पर स्थापित करना। शास्त्र में इसे ही धर्म संस्थापना कहा गया है, जहाँ हर व्यक्ति धर्म का पालन करें। स्मृति की भाषा यह धार्मिक न्याय है, जहाँ व्यक्ति को धर्म की सही समझ हो। 

२. सामाजिक न्याय ( सबको न्यूनतम आवश्यकता की गारंटी एवं गुणीजन का आदर) - जब तक समाज में एक दूसरे के प्रति आपसी विश्वास नहीं होगा तब तक सुराज एवं स्वराज का अनुभव नहीं होगा। इसके एहसास के बिना रामराज्य कल्पनातित है। अतः समाज की ओर से व्यक्ति को अन्न, वस्त्र, आवास, चिकित्सा एवं शिक्षा की गारंटी मिलना तथा उसके गुणों आदर होने की संभावना विद्यमान रहना। ऐसा होना ही सामाजिक न्याय है तथा रामराज्य का प्रत्येक व्यक्ति को एहसास करता है। यह एहसास तब ओर भी मजबूत होता है जब समाज मानक स्तर में निरंतर वृद्धि की सूचना देता हो। इन सबके अभाव में पडौसी व भाई को भी संदेह की नजर से देखता समाज मिलेगा। अतः अतिशीघ्र सार्वजनिक संरचना को व्यष्टि में सामाजिक न्याय का विश्वास की स्थापना करनी होगी। 

३. आर्थिक न्याय - (समतामूलक समाज की स्थापना) - एक अखंड अविभाज्य मानव समाज की संरचना ही रामराज्य है। इसके लिए समाज में विभेद की जितनी भी कृत्रिम एवं अकृत्रिम खाइयों का भर देना होगा। जातिभेद, साम्प्रदायिक भेद अथवा क्षेत्रियता इत्यादि संघर्ष का मूल है आर्थिक असमानता की विशाल खाई। अतः वैचित्र्यम्‌ प्रकृतिक धर्म का आदर करते हुए अधिकतम तथा न्यूनतम आय का मापदंड तय करना ही होगा। समाज के आदेश के बिना किसी को धन संचय का अधिकार बनाना आदर्श समाज के लिए धातक है। चरम उत्कर्ष, विवेकपूर्ण वितरण, अधिकतम उपयोग, सुसंतुलित शक्ति एवं परिवर्तनशील उपयोगिता का पाठ पढ़ाना ही होगा, यही आर्थिक न्याय की स्थापना करेंगा। यह आर्थिक न्याय ही मनुष्य को भेद मूलक समाज के विनाश की ओर ले चलेगा तथा एक अखंड अविभाज्य मानव की स्थापना करेगा। 

४. राजनैतिक न्याय (सदविप्र राज की स्थापना) - जब तक राजनीति में सद् चरित्रों का ही प्रवेश नहीं होगा तब तक रामराज्य संभव नहीं है। राजनीति को अपराधिक, अनैतिकवान एवं चरित्रहीन तत्वों मुक्त कर आदर्श व्यक्तियों का स्थान सुनिश्चित नहीं किया जाएगा तब तक आदर्श व्यवस्था की स्थापना असाकार है। अतः सद् चरित्रों का निर्माण करना अतिशीघ्र शुरू करना चाहिए। शास्त्र में इनके लिए सदविप्र शब्द का प्रयोग हुआ है। सदविप्र का अर्थ है यम नियम में प्रतिष्ठित भूमाभाव का वह साधक जिसके लिए व्यक्तिगत एवं सामाजिक आचरण संहिता पालन सुनिश्चित होता है। अर्थात व्यक्ति किसी परिस्थिति में धर्म नहीं छोड़ता वही सदविप्र है। ऐसे लोग ही राजनीति करने के अधिकारी है। इनके मन में सामाजिक जिम्मेदारी होती है। अतः लोकतंत्र का सही अर्थ है अभिभावक का चयन करना जो जनता की जिम्मेदारी अभिभावक बनकर उठा सकें। सदविप्र व्यक्तित्व ही समाज का सच्चा एवं पक्का अभिभावक है। इसलिए राजनीति की सम्पूर्ण जिम्मेदारी इनकी है। सदविप्र राज ही धर्मराज्य है तथा धर्म राज्य ही राम राज्य है। 

धर्म, अर्थ, काम एवं मोक्ष चार पुरुषार्थ की सिद्धि व्यष्टि एवं समष्टि  की जिम्मेदारी है। जो धार्मिक, सामाजिक, आर्थिक, सामाजिक एवं राजनैतिक न्याय में निहित है। अतः आध्यात्मिक नैतिकवान समाज, सुरक्षित व्यक्ति, समतामूलक व्यवस्था एवं सदविप्र राज ही रामराज्य की अभिव्यक्ति है। यही धर्म राज्य है, आदर्श राज्य है, जगत का सच्चा एवं पक्का राज्य है। 
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