हम नि:शुल्क शिक्षा कैसे दे सकते? (How can we provide free education?)


"जिस देश में शिक्षा एवं चिकित्सा बिकती है, वह देश कुछ भी हो सकता है लेकिन महान नहीं हो सकता।" उक्त कथन मैंने दिल्ली के जंतर मंतर से दृढ़ता से देश के समक्ष रखा था। उपस्थित श्रोताओं ने भी करतल ध्वनि से इसका स्वागत किया था। इसलिए यह सामयिक लग रहा है कि इस विषय पर गंभीरता से मंथन किया जाय। 

शिक्षा को व्यवसायिकरण से मुक्त कैसे किया जाए? यदि मैं सरकार होता तो आज ही एक फरमान जारी करता कि आज अभी से सभी व्यवसायिक शिक्षण केन्द्र बंद किये जाते हैं। लेकिन मैं तो सरकार नहीं हूँ, मैं एक जिम्मेदार नागरिक होने के नाते सरकार से शिक्षा एवं चिकित्सा को व्यवसायिकरण मुक्त करने की मांग करना अपना संवैधानिक दायित्व मानता हूँ। 

सरकारी स्कूलों में नि:शुल्क शिक्षा मिलती है। यहाँ के शिक्षक विद्वता के क्षेत्र में उच्च मापदंड को उत्तीर्ण करके आए हैं लेकिन यह विद्यालय पता नहीं किन कारणों से व्यवसायिक शिक्षा केन्द्रों के समक्ष प्रतियोगी बनकर खड़े नहीं हो पा रहे हैं। फिलहाल यह हमारा विषय नहीं है। इसलिए इस पर आज चर्चा नहीं करेंगे। हमारा विषय है कि क्या हम एक आम आदमी रहते हुए नि:शुल्क शिक्षा दे सकते हैं? इस प्रश्न का उत्तर तो हाँ ही है। लेकिन पूरक प्रश्न 'कैसे संभव है' का उत्तर तलाशने के लिए आज का विषय लिया गया है। 

गुरुदेव ने शिक्षा की जिम्मेदारी 'इरॉज' के कंधों पर डाली है। 'इरॉज' अपने इस दायित्व को क्या बखूबी निभा रहा है अथवा नहीं, यह चिन्तनीय एवं विचारणीय विषय है। लेकिन क्या नि:शुल्क शिक्षा 'इरॉज' दे सकता है अथवा नहीं, यही इस विषय का मूल है। 'इरॉज' (ERAWS- Education, Relief & Welfare Section) में एज्युकेशन, रिलिफ एवं वेलफेयर नामक तीन शाखाएँ हैं। संभवतया इन तीनों का सम्मिश्रण ही नि:शुल्क एवं उत्तरदायी शिक्षा दे सकता है। इसी पर अनुसंधान करने की आवश्यकता है। मैं अपना एक प्रयास कर रहा हूँ कि मेरा अध्ययन पत्र तैयार हो जाए। 

वेलफेयर सेक्शन के माध्यम नि:शुल्क शिक्षा की ओर

वेलफेयर सेक्शन का कार्य लोगों को भौतिक दु:खों से त्राण दिलाना है ताकि वे अपनी मानसिक प्रगति कर परित्राण के रास्ते पर आगे बढ़ सकें। सरकारी विधान के अनुसार निजी शिक्षण संस्थानों का संचालन एक वेलफेयर सोसायटी या ट्रस्ट के द्वारा होता है। इस विधान में एक प्रावधान है कि यदि वेलफेयर सोसायटी विद्यालय की आवश्यकता के अनुसार धन नहीं जुटा पाती है तब कुछ शिक्षण शुल्क ले सकती है। विधान की इस खिड़की ने निजी शिक्षण संस्थानों को शिक्षण शुल्कजीवी बना दिया है। वास्तव में निजी शिक्षण संस्थानों का स्वरूप पब्लिक स्कूल्स है। खैर यह हमारा विषय नहीं है इसलिए इस ओर नहीं जाएंगे। हमारा विषय वेलफेयर सेक्शन से नि:शुल्क शिक्षा की ओर जाना है। 

हम वेलफेयर सेक्शन की मदद से लोगों को अपने पैरों पर खड़ा होना सिखाते हैं। अर्थात हम एक व्यवसायिक कार्यशाला स्थापित करते है, जहाँ हम जरूरतमंदों को कौशल सिखाकर रोजगार उपलब्ध कराते हैं। समाज में कार्यरत सभी वाणिज्यिक संस्थान भी उक्त कार्य करती हैं लेकिन यह संस्थान वेलफेयर के मूल पर खड़े नही होने के कारण अपने दूसरे उद्देश्य को पूर्ण नहीं कर पाते हैं। सरकारी कानून के अनुसार प्रत्येक वाणिज्यिक संस्थान को कुछ वेलफेयर के कार्य करने होते हैं। सरकार की सुव्यवस्थित नीति नहीं होने के कारण उनके यह वेलफेयर कार्य आमजन से दूर रहते हैं तथा चंद अवसरवादी ही इस लाभ को प्राप्त करते हैं। खैर यह विषय भी हमारा नहीं है अतः इस ओर भी नहीं जाएंगे। हम अपने वेलफेयर सेक्शन से नि:शुल्क शिक्षा की ओर चलने का प्रयत्न करते हैं। हमारा प्रथम कर्तव्य है कि हमारे समाज के।लोगों को शतप्रतिशत रोजगार प्रदान करना। यह जिम्मेदारी हमारे वेलफेयर केन्द्रों को लेनी ही होगी। इसके लिए महात्मा गाँधी के साबरमती आश्रम जैसी कार्यशाला से प्रेरणा ले सकते हैं। हमारे प्रत्येक वेलफेयर केन्द्र को एक बहुआयामी कम्पनी की भांति कार्य करना ही होगा जहाँ हम आमजन को रोजगार के साथ धनार्जन भी उपलब्ध कर पाएंगे। वेलफेयर केन्द्र से होने वाले इस धनार्जन को राहत एवं नि:शुल्क शिक्षण केन्द्र चलाने में उपयोग में लाना चाहिए। सरकार भी आखिर कर से होने वाली आय के बल पर ही यह कार्य करती है। पूंजीपति इस प्रकार धन से अपने ऐश्वर्य की गाथा लिखते हैं। वेलफेयर केन्द्र इसे शिक्षा में उपयोग करेंगा। एक अच्छा बजट जुटाने में हम कामयाब हो जाएंगे। समाज से लिया धन समाज में बाँट धर्म की सिद्धि हो जाएंगी। 

क्या रिलिफ विभाग भी हमारी नि:शुल्क शिक्षा प्राप्ति में मदद कर सकते हैं?

 हमने वेलफेयर केन्द्रों को सशक्त बनाकर नि:शुल्क शिक्षा के सपने को साकार करने की पटकथा लिखी है। 
 हम रिलिफ के माध्यम से नि:शुल्क शिक्षा में मददगार बनने की दिशा में अनुसंधान करते हैं। आपदा में अवसर ढूँढना चतुर व्यक्तियों की कला है और आपदा में जनहित खोज निकालना सज्जन पुरुषों की दक्षता है। रिलिफ आपदा अथवा परिस्थितिवश अपनी सामान्य आवश्यकता पूर्ण नहीं करने वाले व्यष्टियों की सेवा करने का नाम है। जहाँ वेलफेयर मर्ज की स्थायी दवा है वही रिलिफ प्राथमिक उपचार है। चूंकि सृष्टि में आपदा एवं परिस्थिति की मार किसी को भी सहन करनी पड़ सकती है इसलिए समाज का दायित्व है कि एक विभाग इसके लिए भी सदैव तैयार रहे। यदि सच कहा जाए तो रिलिफ एवं वेलफेयर दोनों ही शिक्षा के ही अंग है। रिलिफ का फंड समाज से आता है जिसे स्वयंसेवक उचित पात्र तक पहुँचाते हैं। यह फंड अभावग्रस्त लोगों तक जाना ही चाहिए। इसको तनिक भी इधर उधर करने का अधिकार स्वयंसेवकों एवं रिलिफ प्रबंधन समिति को नहीं है। लेकिन रिलिफ कार्य में मददगार समाज के प्रबुद्ध जन को शिक्षालयों की ओर मददगार बनने के लिए तैयार किया जा सकता है अथवा करना चाहिए। शिक्षा दान से बढ़कर कोई दान नहीं है। अतः जहाँ हमारे वेलफेयर केन्द्र थक जाएं वहाँ रिलिफ में आगे आने वाले प्रबुद्ध जनों को शिक्षा साधनों की उपलब्धता कराने के लिए प्रभावित करना धर्म का पथ है। दूसरे अर्थात में कहा जाए तो यह भी एक रिलिफ कार्य है। शिक्षा का संचालन एक वेलफेयर कार्य है, वही विद्यालय भवन बनाना व शिक्षा हेतु भौतिक संसाधन जुटाना रिलिफ कार्य है। इस प्रकार वेलफेयर एवं रिलिफ कार्य में अपनी शाखा बनाकर हम नि:शुल्क एवं उत्तरदायी शिक्षा दे सकते हैं।  

क्या शिक्षा केन्द्र अपने बलबूते पर नि:शुल्क चल सकते हैं? 

हम वेलफेयर एवं रिलिफ विभाग के द्वारा नि:शुल्क एवं उत्तरदायी शिक्षा के लक्ष्य को प्राप्त करने की विधा से परिचित हुए। अब हम शिक्षा केन्द्र खुद के बलबूते पर कैसे शुल्क लिए बिना चल सकते हैं, उस पर अनुसंधान करते हैं। प्राचीन काल के गुरुकुल नि:शुल्क एवं उत्तरदायी शिक्षा देने के लिए  प्रधानाचार्य एवं आचार्यगण के आदर्श व्यक्तित्व एवं परिश्रम के बल पर चलते थे। प्रधानाचार्य एवं आचार्यगण अपने व्यक्तित्व को ऐसा निखारते थे कि जन सामान्य स्वेच्छा से अपना शैक्षणिक अंशदान गुरुकुल तक पहुँचाते थे। इसके अलावा प्रधानाचार्य, आचार्य एवं पूर्व व वरिष्ठ शिक्षार्थी गुरुकुल के लिए अंशदान लेने के लिए घर-घर तक जाते थे। आधुनिक युग में यदि एक प्रधानाचार्य उत्तरदायी शिक्षा की दिशा में काम करे तो जन जन की आशाओं को जीत तथा उन्हें विद्यालय में विद्यार्थियों के कल्याण करने के लिए खड़ा कर सकता है। आज बहुत सारा अंशदान एक व्यक्ति अथवा संस्था के विश्वास के बल पर ही आता है। अतः अनुसंधान पत्र कहता है कि यह असंभव नहीं है अथवा ऐसा हो सकता है। लेकिन एक बात सदैव याद रखें कि हमारे शिक्षा केन्द्र कभी भी व्यवसायिक केन्द्र नहीं बने। 

उक्त आलेख मात्र मेरा अध्ययन पत्र है।

यद्यपि इसका व्यवहारिक प्रयोग मेरे द्वारा अभी तक नहीं किया गया है तथापि एक प्रधानाचार्य के रूप में निजी संस्थानों में कार्य करने के लंबे अनुभव एवं आनन्द मार्ग की शिक्षा नीति का अध्ययन करने से मैं इस निष्कर्ष पर पहुंचा हूँ कि ऐसा बिल्कुल किया जा सकता है। इस अध्ययन पत्र को एक प्रारम्भिक विचार मानकर इसपर और अनुसंधान करने की आवश्यकता है जिससे इसकी एक ठोस कार्यप्रणाली विकसित की जा सके और इसे पूर्णतया व्यवहारिक बनाया जा सके। 

आओ हम महान शिक्षाविद् गुरुदेव श्री श्री आनन्दमूर्ति जी के शिक्षा, रिलिफ एवं वेलफेयर को एक साथ एक सेक्शन में रखने के महात्म्य को समझते हैं, जानते हैं तथा मानते हैं
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