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वर्तमान युग में विज्ञान ने सम्पूर्ण विश्व को जगाया तथा वसुंधरा को एक कुटुबं में समाकर रख दिया है। वेदों में वसुधैव कुटुबंकम् की शिक्षा दी जाती थी। इसलिए वेद, विज्ञान एवं विश्व आलोच्य विषय चुना गया है।
वेद से अभिप्राय ज्ञान से है। अध्ययन की सुविधा एवं समझ को विकसित करने के लिए ज्ञान शब्द को परा एवं अपरा दो विभाग में रखा गया है। भौतिक एवं मानसिक स्तर के ज्ञान को परा तथा आध्यात्मिक ज्ञान को अपरा ज्ञान कहा जाता है। ज्ञान को मुख्य स्रोत आत्म तत्व को माना गया है। इसलिए आत्मज्ञान को ज्ञान की परिधि में रखा गया है। शास्त्र में इस आत्मज्ञान को अपौरुषेय कहा गया है। वेद एवं विज्ञान दोनों ही अपौरुषेय है। दोनों का उदभव क्रमशः ऋषियों एवं वैज्ञानिकों के अपौरुषेय से हुआ है। अन्तर केवल इतना ही है कि ऋषियों ने अपने इस आत्मज्ञान को परमपुरुष को समर्पित कर दिया है लेकिन वैज्ञानिकों ने अपने इस ज्ञान को संसार को समर्पित किया है। वेद भी ऋषि को मंत्रदृष्टा कहता तथा विज्ञान भी वैज्ञानिक को शोधकर्ता कहता है। अन्तर इतना है कि वेद यह मानता है कि ज्ञान पहले से विद्यमान है उक्त ऋषि ने इसे प्रथम बार देखा जबकि विज्ञान मानता है कि अदृश्य ज्ञान को प्रथम बार उक्त वैज्ञानिक द्वारा खोजा गया। अतः वेद एवं विज्ञान में कोई प्रतिस्पर्धा नहीं है। यह युग के अनुरूप चलने वाले विधाएँ है।
वेद एवं विज्ञान दोनों का संबंध किसी मत, पथ, सम्प्रदाय, मजहब अथवा रिलिजन से नहीं है। दोनों ही विश्व की अपनी धरोहर है। कुछ नासमझ लोग एवं धुर्त राजनेता वेद एवं विज्ञान को अलग कर विश्व में अशांति पैदा करते हैं। वेद का अर्थ मात्र ऋग्वेद, यर्जुवेद, सामवेद व अर्थववेद संहिता अथवा उनके ब्राह्मण, अरण्यक व उपनिषद ही नहीं है। यह ज्ञान के वे सभी स्रोत है जो सृष्टि के आरंभ से अब तक एक अबतक से भविष्य में जो भी नूतन खोजा जाएगा यह वेद की परिधि में है अथवा यह सभी वेद परिवार के सदस्य है। अतः गीता, बाइबिल, कुरान, जैन, बौद्ध, पारसी एवं यहुदी इत्यादि सभी साहित्य जो एक शोध अथवा आत्मज्ञान है, वह वेद परिवार के ही सदस्य है। हमारी इस धरा पर कतिपय ग्रंथों अथवा किताबों को आकाशीय ग्रंथ माना जाता है। अतः इस स्वयंभू परमेश्वर अथवा खुदा की मोहर लगा दी गई है। यह मोहर अपौरुषेय शब्द का परिचय है। अपौरुषेय में भी मंत्रदृष्टा रहता है तथा आकाशीय ग्रंथ में भी सुनने वाला रहता है। अतः इसको लेकर वादविवाद को खत्म कर लेना चाहिए। वेद एवं विज्ञान में मात्र यही अन्तर है कि प्रथम ईश्वर तत्व को खोज लेता जबकि द्वितीय इसे खोज पाने में अभी तक असर्थ है। वेद भौतिक, मानसिक एवं आध्यात्मिक तीनों प्रयोगशाला को मान्यता देता है जबकि विज्ञान भौतिक प्रयोगशाला को ही अधिक गुरुत्व देता आया है। दार्शनिक एवं विज्ञान का सैद्धांतिक पक्ष मानसिक प्रयोगशाला को स्वीकारता है। आध्यात्मिक प्रयोगशाला को पहचानने की ओर विज्ञान अग्रसर है। अतः वेद एवं विज्ञान में कोई पार्थक्य नहीं है। पार्थक्य समझ की भिन्नता के कारण दिखाई देता है। कुछ असमझ तथाकथित ज्ञानियों ने इसमें पार्थक्य बनाकर रखा है। विज्ञान से कहला दिया ईश्वर नहीं है तथा वेद से कहला दिया ईश्वर पर कोई शंका अथवा प्रश्न नही करना है। विज्ञान अपनी शोधशाला कभी बंद नहीं करती तथा वेद कभी भी जिज्ञासा का वध नहीं करता है। अतः वेद एवं विज्ञान के प्रति अपनी समझ विकसित करनी चाहिए तथा अंधता का अंत करना चाहिए।
वेद, विज्ञान एवं विश्व नामक विषय कहना चाहते हैं कि वेद व विज्ञान दोनों ही विश्व के है। कोई देश अथवा जाति सम्प्रदाय इन पर अपना दावा नहीं कर सकते हैं क्योंकि ऋषि एवं वैज्ञानिक ने अपना अनुसंधान विश्व को समर्पित किया है। अतः यह विश्व वेद ही विज्ञान है तथा विज्ञान ही वेद है। अतः स्पष्ट होता है कि दोनों ही विश्व है। वेद एवं विज्ञान को समझने के लिए नव्य मानवतावादी बुद्धि की आवश्यकता है। यदि कोई इससे कम बुद्धि को लेकर वेद, विज्ञान एवं विश्व को समझने निकलता है तो उसके समझ में कुछ नहीं आता है। यदि भूलवश कुछ समझ ही लेता है तो अपने ज्ञान का कचरा कर लेता है। इससे लेकर विश्व में व्याधि फैलाते हैं। आओ व्याधि फैलाने वाले शैतानों से विश्व को मुक्त करते हैं वेद एवं विज्ञान का सर्वजन हित एवं सुख में प्रयोग करते हैं।
भारतवर्ष एक कहानी है कि एक हयग्रीवासुर ने वेदों को चुरा लिया तथा सागर की गहराई में छिप गया। भगवान विष्णु ने मत्स्य रुप धारण करके इस असुर का वध कर वेदों को मुक्त कराया तथा प्रलय के बाद ब्रह्मा को पुनः सौप दिया। इस कहानी से यह शिक्षा मिलती है कि जब ज्ञान की गंगा अपनी पवित्र ज्ञान रुपी पवित्र धारा को दलदल में ओझल कर देती है। तब अज्ञान नृत्य करता है तथा विनाश के बादल मंडराते है। इसे प्रलय माना जा सकता है। उस स्थित मनुज तथा ज्ञान (वेद) को बसाना परमपुरुष की अपनी जिम्मेदारी होती है। वे अपनी जिम्मेदारी को बेखुबी निभाते हैं।
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[श्री] आनन्द किरण "देव"
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