आनन्द मार्ग साधना - एक आध्यात्मिक यात्रा है (Anand Marga meditation is a spiritual journey)




आज हम रुहानी यात्रा को निकलते हैं। उस अदभुत आनन्द से अपने आप  को लबालब भर देते हैं। यह आनन्द मार्ग है, यहाँ आनन्द ही आनन्द है। आनन्द मार्ग साधना, मनुष्य को सभी बंधनों से मुक्त कर करती है। इसलिए आज हम 'आनन्द मार्ग साधना - एक आध्यात्मिक यात्रा है' 
को समझने निकलते हैं। 

मनुष्य जीवन का उद्देश्य ब्रह्म सम्प्राप्ति हैं। जिसे तकनीक भाषा में मुक्ति अथवा मोक्ष कहते है। इसके लिए तारकब्रह्म की कृपा प्राप्त करनी होती है। तारकब्रह्म की कृपा पाने के लिए उनकी सेवा में उपस्थित होना होती है। तारकब्रह्म की सेवा में उपस्थित होने की विधा को 'ध्यान' नाम  दिया गया है। जिसे आनन्द मार्ग साधना को सबसे उपरी सोपान में रखा गया है। ध्यान, साधक को तारकब्रह्म का कृपापात्र बनता है। यह भी सत्य है कि ध्यान मात्र तारकब्रह्म का किया जाता है तथा ध्यान करने के लिए गुरुचक्र चयन किया जाता है। जहाँ तारकब्रह्म का अधिवास है। गुरुचक्र में जाने के लिए  साधक को चक्रों समझ होना आवश्यक है। चक्र की समझ को विकसित करने के लिए चक्र शोधन नामक साधना सिखनी होती है। इसलिए आनन्द मार्ग साधना में ध्यान के पूर्व सोपान पर चक्र शोधन को रखा गया है। 

चक्र शोधन के माध्यम से साधक चक्र के प्रति अपनी समझ को विकसित करता है तथा असमझ को दूरस्थ करता है। चक्र शोधन में साधक‌ चक्र को ज्योतिर्मय एवं प्राणवान देखता है। चक्रों प्राणवान देखने के लिए साधक को स्वयं ज्योतिर्मय एवं प्राणवान होता है। इसलिए आनन्द मार्ग साधना में प्राणायाम को चक्र शोधन से पूर्ववर्ती सोपान में रखा गया है। 

आनन्द मार्ग का प्राणायाम एक यौगिक प्रक्रिया ही नहीं ब्रह्म साधना भी है।‌ अतः प्राणायाम ब्रह्ममय होता है। प्राणायाम के माध्यम साधक अपने चेतना को विकसित करता तथा अचेतना को दूरस्थ करता है। इसके लिए साधक की पंच भौतिक संरचना का मजबूत होना आवश्यक है। इसलिए तत्व धारणा को प्राणायाम से पूर्ववर्ती सोपान पर रखा गया है। 

तत्व धारणा के द्वारा साधक अपने तन, मन एवं आत्मा में पंचमहाभूत को धारण कर उसके बीज की समझ को विकसित करता है तथा असमझ को दूरस्थ करता है। चूंकि आनन्द मार्ग का साधक ब्रह्म साधना करता है। अतः वह सर्वत्र ब्रह्म को देखना होता है। इसलिए आनन्द मार्ग साधना में मधुविद्या को तत्व धारणा से पूर्ववर्ती सोपान में रखा गया है। 

मधुविद्या साधक को सबको आनन्दमय अर्थात ब्रह्ममय देखना सिखाता है। उसके अभ्यास के माध्यम से साधक सबकुछ को ब्रह्म रुप में देखना सिख जाता है इसलिए उसके आध्यात्मिक यात्रा का प्रत्येक पड़ाव ब्रह्ममय आनन्दमय बन जाता है। सर्वत्र ब्रह्म को देखने के लिए स्वयं को ब्रह्ममय होना आवश्यक है। इससे साधक की सम्पूर्ण समझ विकसित होती है तथा असमझ दूरस्थ होती है। इसलिए आनन्द मार्ग साधना में ईश्वर प्रणिधान को मधुविद्या से पूर्व रखा गया है। मधुविद्या में साधक अपने बाहर सबकुछ को ज्योतिर्मय देखता है जबकि ईश्वर प्रणिधान के से अंदर ज्योतिर्मय देखता है। 

ईश्वर प्रणिधान के माध्यम से साधक स्वयं का ब्रह्ममय स्वरूप देखता है। एक साधक तभी साधना कर पाता है जब वह स्वयं ज्योतिर्मय है। वह सभी सभी में ब्रह्म तभी देख पाता जब वह स्वयं को ब्रह्ममय में पाता है। ईश्वर प्रणिधान आनन्द मार्ग साधना का प्रथम सोपान है। इस पायदान पर मजबूत से चढ़ने के लिए भजन कीर्तन करना मना नहीं है। 

भजन कीर्तन को आनन्द मार्ग ने अपनी आध्यात्मिक यात्रा से अछूता नहीं रखा है। भजन एवं कीर्तन साधक अपनी अनन्त तृप्ति के लिए करता है तथा साधना के लिए धरातल तैयार करता है। अतः प्रभात संगीत जो भजन की सच्ची महिमा है, उसे वह गाता है तथा कीर्तन के माध्यम से अपने परमपुरुष को समर्पित करता है। 

आनन्द मार्ग साधना सिखाती है कि आध्यात्मिक साधक को शारीरिक रूप स्वस्थ एवं हष्टपुष्ठ होना आवश्यक है। इसलिए आसन का आवश्यक रखे गए हैं। आसन साधक को तंदुरुस्त रखता है। 
आध्यात्मिक यात्रा के मन से भी तंदुरुस्त रहना होता है। इसलिए यम नियम की दीक्षा दी जाती है। यम नियम साधक को सच्चे अर्थ में साधक बनाते हैं। 

षोडश विधि में शारीरिक, मानसिक एवं आध्यात्मिक प्रगति का बीज नियत है। इसलिए षोडश विधि में दृढ़ व्यक्ति ही साधना कर सकता है। 

आनन्द मार्ग का साधक जगत के भूलभुलैया से अपने सचेत रखने के अपने सभी सामाजिक एवं निजी कार्यक्रम तथा दैनिक क्रियाकलाप को आध्यात्मिक भावधारा से सिंचता है। इसलिए अपने प्रत्येक उत्सव तथा नव शुरुआत आध्यात्मिकता की रसधार से करता है। उसके व्यष्टिगत एवं समष्टिगत कार्यक्रम आध्यात्मिकता से ओतप्रोत होते हैं। मनुष्य के सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक, मनोरंजनात्मक इत्यादि सभी क्रियाकलाप भी आनन्दमय होना भी आनन्द मार्ग साधना, एक आध्यात्मिक यात्रा में सिखता है। 

आनन्द मार्ग साधना एक आध्यात्मिक यात्रा है। यहाँ प्रत्येक सोपान पर ब्रह्मानंद रहते हैं। अतः मैं आनन्द मार्ग की आध्यात्मिक यात्रा को सोपात्मक यात्रा के रूप में देखता हूँ। जो मनुष्य धरातल से मुक्ति व मोक्ष रुपी चरम लक्ष्य में प्रतिष्ठित करती है। सामाजिक व निजी उत्सव को आनन्दोत्सव बनाने के आनन्दानुष्ठान करता है, यम नियम एवं आसन से शारीरिक एवं मानसिक तंदुरुस्त प्राप्त करता है, ईश्वर प्रणिधान के माध्यम ब्रह्ममय बनता है, मधुविद्या के माध्यम से सबको ब्रह्ममय देखता है, तत्व धारणा के माध्यम पंचमहाभूत को अपने समा देता है, प्राणायाम के माध्यम प्राणशक्ति पर कब्जा करता है, चक्र शोधन के माध्यम प्रकृतिजयी बनता है तथा ध्यान द्वारा जीवन लक्ष्य को प्राप्त करता है। 

[श्री] आनन्द किरण "देव"
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