आओ विश्वगुरु भारतवर्ष के दर्शन करने चलते हैं। भारतवर्ष के द्वारा विश्व को अंधकार से उजियारा में लाना, उसे विश्वगुरु के पद पर आसीन करता है। यदि सरल शब्दों में कहा जाए तो किसी देश की सभ्यता एवं संस्कृति विश्वजन के आकर्षण का केंद्र हो तथा वे इसे आदर्श मानकर उसके अनुसार चलने की कोशिश करें तो वह देश उनके लिए गुरु कहलाता है। विश्वगुरु भारतवर्ष के दर्शन करने के लिए सभ्यता के उषाकाल से अब तक की यात्रा करनी होगी।
(१) सभ्यता का उषाकाल एवं भारतवर्ष - इतिहास बताता है कि मानव इस धरा पर 10 लाख वर्ष पहले आया था लेकिन सभ्यता की प्रथम किरण 15 हजार वर्ष पहले निकली थी। 9 लाख 85 हजार वर्ष तक मनुष्य अंधकार में गोता खाता रहा था। हम अंधकार में गोता खा रहे मानव से नहीं मिलेंगे, इसलिए मानव उत्पत्ति का सिद्धांत हमारे महत्वपूर्ण नहीं है। अतः इतिहास के इस अध्याय में गोता लगाए बिना ही हम सभ्यता युग में प्रवेश करते हैं। पुरा एतिहासिक साक्ष्य एवं मान्यता के आधार पर कहा जाता है कि ऋग्वेद युग दुनिया का सबसे प्राचीन युग था। ऋग्वेद की रचना मध्य एशिया में हुई थी, इसके भी प्रमाण उपलब्ध है। ऋग्वेद युगीन के ऋषियों को जिस देश ने आकर्षित किया वह देश भारतवर्ष था। अतः सप्रमाण कहा जा सकता है कि सभ्यता के उषाकाल से ही भारतवर्ष विश्वगुरु था। ऋग्वेद कालीन ऋषियों का एक जत्था भारतवर्ष के आकर्षण से आविर्भूत होकर इस भूमि की ओर खिंचा आया, इतिहास में यह घटना आर्यों का भारत आगमन के नाम से दर्ज है। आर्यों के आने के बाद एक सभ्यता का अवसादन हुआ, वह भारतवर्ष की पुरा एतिहासिक सभ्यता थी। जिसे इतिहासकार ने सिन्धुघाटी सभ्यता नाम दिया। यद्यपि यह नाम इस सभ्यता के साथ न्याय नहीं है।यह सम्पूर्ण भारतवर्ष की सभ्यता है।अतः यह भारतीय सभ्यता है। यद्यपि इतिहासकार हडप्पा, मोहनजोदड़ो एवं समकालीन उत्खनन से प्राप्त स्थलों से मिले पुरातात्विक साक्ष्य के आधार पर इसका कालक्रम 2600 ईसापूर्व से 1900 ईसापूर्व करते हैं। इसका अर्थ कदापि यह नहीं है कि यह सभ्यता उसी कालावधि में निर्मित हुई। यह सभ्यता ऋग्वेद से प्राचीन थी तभी तो इसके आकर्षण ने आर्यों को भारतवर्ष की ओर खिंचा गया। इतिहासकार श्री प्रभात रंजन सरकार द्वारा अनुसंधान की गई राढ़ सभ्यता एक दिन बता देंगी कि विश्व सभी सभ्यताओं का आदि बिन्दु राढ़ है। तब भारतवर्ष की इस महत्वपूर्ण देने से विश्व लाभान्वित होगा। अब तक अध्ययन पत्र बताता है कि सभ्यता का उषाकाल भारतवर्ष के नाम लिखा गया था। अतः हम कह सकते हैं कि सभ्यता के उषाकाल ने ही भारतवर्ष को विश्वगुरु से अलंकृत किया था।
(२) भगवान सदाशिव एवं विश्वगुरु भारतवर्ष - आदिगुरु, आदिनाथ, आदिपुरुष एवं आदिपिता की उपमा एक ही व्यक्ति को वरण करती है, वह है भगवान सदाशिव। भगवान सदाशिव जिन्हें भगवान शिव भी कहा जाता है। भक्त समुदाय इन्हें महादेव भी कहता है। नमो शिवाय शान्ताय के अनुसार सदाशिव इस धरती पर आज से 7 हजार वर्ष पूर्व अर्थात लगभग 5 हजार ईसापूर्व आए थे। उस युग तक मानव सभ्यता अपने 8 हजार वर्ष पूर्ण कर चुकी थी। लेकिन इस लंबी समयावधि में मनुष्य सभ्यता का प्रथम अध्याय भी पूर्ण नहीं किया था। मात्र सभ्यता युग की भूमिका का बंधन किया था। सदाशिव ने इस मानव सभ्यता न केवल सबसे अधिक प्रभावित ही अपितु सदाशिव ने मानवता की इस बहुआयामी विचित्रता भरी सभ्यताओं का एक्किकरण भी किया। उनके प्रयास आर्य, मंगोल, आस्ट्रिक, निग्रो, द्राविड़ इत्यादि सभ्यता ने साथ चलना अंगीकार किया। इस कार्यों मूर्त देने के लिए सदाशिव ने आर्य कन्या पार्वती, मंगोल कन्या गंगा तथा आस्ट्रिक कन्या काली से शादी की तथा गण व्यवस्था के माध्यम से इस धरा पर विश्व एकता का प्रथम प्रयास किया था। एक सदाशिव ही ऐसे देव हुए जिन्हें तात्कालिक एवं उत्तरकालीन सभी सभ्यता ने आदर्श माना। इसलिए भगवान शिव को प्रथम तथा आदिगुरु स्वीकार किया तथा सम्पूर्ण विश्व भारतवर्ष को आशा भरी नजरों से देखा। सदाशिव ने तंत्र, योग एवं भक्ति के माध्यम से विश्वहित की साधना सिखाई थी। उन्होंने संगीत, नृत्य, नाट्य, कला, चिकित्सा (वैदक शास्त्र) इत्यादि से मानव समाज को लाभान्वित किया। सदाशिव के प्रयास से मानव सभ्यता निर्माण के महायज्ञ की शुरुआत हुई। भगवान सदाशिव तथा माता पार्वती का विवाह मानव इतिहास के युगान्तरकारी घटना थी। जिसने सभ्यता के युग शुरुआत की थी। संभवतया यह विवाह ही इतिहास का प्रथम विवाह कहलाया। इस प्रकार भगवान सदाशिव ने भारतवर्ष विश्वगुरु की पहचान दी।
(३) वैदिक युग एवं विश्वगुरु भारतवर्ष - वेदों के युग अर्थ ऋग्वेद एवं उत्तर वैदिक सभ्यता का नाम है। शेष तीन वेदों की रचना सदाशिव के बाद हुई। जिसमें यजुर्वेद पुराना है। यजुर्वेद के भाग देख जाते हैं- शुक्ल यजुर्वेद एवं कृष्ण यजुर्वेद। अर्थववेद वेदों में से सबसे आधुनिक है। सामवेद इन सबका संगीतमर अंश है। इस प्रकार इस युग में भारतवर्ष ज्ञान विज्ञान में विश्व का गुरु बना। वेदों, उपनिषदों एवं आरण्य, ब्राह्मण इत्यादि वैदिक साहित्य में जितना ज्ञान विज्ञान है, उतना विश्व में अन्यनन्त्र नहीं मिला है। इसलिए इनका भी योगदान भारतवर्ष को विश्व गुरु बनाने में अद्वितीय रहा है।
(४) महाकाव्य काल एवं विश्वगुरु भारतवर्ष - वैदिक सभ्यता के बाद महाभारत काल में सामाजिक मूल्यों को पुनः परिभाषित किया गया। उस युग में समाज राजतंत्र पूर्णतया प्रतिष्ठित हो गया था लेकिन समाज में आदर्श मूल्यों की प्रतिष्ठा थी। जब दुर्योधन-शकुनि ने राजकीय बल पर जीवन मूल्यों के साथ छेड़छाड़ करने की चेष्टा की तो सामाजिक, सांस्कृतिक तथा अन्ततोगत्वा राजनैतिक विरोध का समान करना पड़ा अर्थात हम कह सकते हैं। 1500 ईसापूर्व अर्थात आज से 3500 वर्ष पहले तक भारतवर्ष विश्वगुरु की परीक्षा में पास था। यदि इस युग श्रीकृष्ण के कार्य एवं राम के आदर्श चरित्र के चित्रण ने विश्वगुरु की प्रतियोगिता में भारत को अव्वल रखा।
(५) जैन-बौद्ध-सनातन काल एवं विश्वगुरु भारतवर्ष - ब्राह्मण मत बहुत अधिक जटिल हो जाने तथा आध्यात्मिक शिक्षकों की कमजोरी के कारण धर्म के नाम कर्मकांड प्रभावशाली हो जाने के कारण उसके विरुद्ध जैन तथा बौद्ध इत्यादि मतों ने आवाज उठाई तथा इसको रोकते हुए शंकराचार्य एवं नाथ सम्प्रदाय ज्ञान एवं योग के बल सनातन को मजबूती से पेश किया। इस युग में एक वैचारिक क्रांति का स्वरूप दिखाई देने लगा लेकिन समाज में आदर्श व्यवस्था की चाहत बनी रही। इस मुश्किल भरी स्थित में भारतवर्ष के समकक्ष रोम, ग्रिक, ईरानी इत्यादि सभ्यता टक्कर देने लगी फिर भी विश्वगुरु भारतवर्ष का पद बना रहा।
(६) महाजनपद युग एवं विश्वगुरु भारतवर्ष - भारतीय इतिहास में यह युग राजा महाराजाओं के नाम समर्पित रहा। धर्म की परिभाषा साधु संतों के स्थान पर इन सम्राटों के द्वारा तय होने लगी। यद्यपि विश्वगुरु भारतवर्ष आदर्श अपने स्थान काफी निचे आया लेकिन भारतवर्ष से यह पद नहीं छिना गया।
(७) राजपूत युग एवं विश्वगुरु भारतवर्ष - शक्ति राज्य की सीमा तय करने लग गई इस युग को राजपूत्र अथवा राजपूत युग कहा जाता है। इस युग भारतवर्ष में शक्तिशाली राजवंश नहीं होने अथवा सर्वमान्य समाज अथवा धर्म नेता के अभाव में भारतवर्ष के विश्वगुरु के पद को प्रश्न उठने लगे। वर्णव्यवस्था का प्राचीन भारतीय स्वरूप बिगड़ गया उसके स्थान पर जातिव्यवस्था के पाँव जमा लिए। यद्यपि इस युग में भारतवर्ष विश्वगुरु पद इसलिए आसीन रह पाया क्योंकि उस युग महात्मा ईसा एवं हजरत मुहम्मद जैसे प्रभावशाली शिक्षकों बावजूद वहाँ समाज विश्वगुरु के आदर्श की रचना नहीं कर पाया।
(८) मुस्लिम युग एवं विश्वगुरु भारतवर्ष - यद्यपि भारतवर्ष अरब- फारस संस्कृति के समक्ष अपनी अस्मिता नहीं बचा पाया तथापि समाज महान मूल्यों को आदर्श माना जाता रहा था। यद्यपि इस पर कुछ बिरले ही चल पाते थे तथापि पूण्य पवित्र भारतवर्ष का भाव मन एवं दिलों में बचता था। विश्वगुरु का पद इस युग रिक्त हो गया था। लेकिन भारतवर्ष यह आश कि जाती थी कि विश्वगुरु भारतवर्ष यही बनेगा। इस युग भारतवर्ष विश्वगुरु पद पर आसीन नहीं रहा।
(९) अंग्रेज युग एवं विश्वगुरु भारतवर्ष - यद्यपि भारतवर्ष के प्राण धर्म हमला जैनों के जिन् सिद्धांत, बौद्धों के शून्य दर्शन तथा आदि शंकराचार्य के जगत मिथ्या सिद्धांत ने बोल दिया था तथापि सबसे मजबूत हमला अंग्रेज युग में किया गया। मुस्लमानों की तलवार ने भारतवर्ष की आस्था पर जमकर हमले किये लेकिन लोगों दिलों से विश्वगुरु भारतवर्ष का आदर्श नहीं मिटा पाए। लेकिन अंग्रेज युरोपीय युग में भारतवर्ष के प्राण धर्म को नष्ट करने की भरपूर कोशिश की गई। विश्वगुरु भारतवर्ष इस युग में पाश्चात्य संस्कृति में चमकीली आश में खो गया। फिर भी इस युग स्वामी विवेकानंद जैसे संतों के प्रभावशाली व्यक्तित्व ने विश्वगुरु की आश को जिंदा रखा।
(१०) कांग्रेस युग एवं विश्वगुरु भारतवर्ष - स्वतंत्रता काल में अधिकांश नेताओं में विश्वगुरु भारतवर्ष के संस्कार झलके थे लेकिन आजादी के बाद कांग्रेस युग में धीरे धीरे यह धूमिल होते गए। एक आश अवश्य ही जगी रही कि विश्वगुरु भारतवर्ष किसी न किसी पाठशाला में बन रहा है। उस पाठशाला की खोज में कई सांस्कृतिक एवं आध्यात्मिक संगठनों ने दावा किया।
(११) कांग्रेस के बाद का युग एवं विश्वगुरु भारतवर्ष - कांग्रेस के बाद के युग में तथाकथित इन आध्यात्मिक एवं सांस्कृतिक संगठन को दावें थोड़े मजबूत दिखाई देने लगे। यह दावें राजनीति के सर पर चढ़कर भी उछल रहे हैं लेकिन विश्वगुरु भारतवर्ष की नब्ज को नहीं पकड़ पा रहे हैं।
(१२) विश्वगुरु भारतवर्ष का सच्चा दावा - जब तथाकथित आध्यात्मिक एवं सांस्कृतिक संगठनों के दावों में विश्वगुरु भारतवर्ष की नब्ज नहीं पकड़ी जा रही है तो विश्वगुरु भारतवर्ष के सच्चे दावें की खोज आवश्यक हो जाती है। विश्वगुरु भारतवर्ष सच्चा दावा आनन्द मार्ग दर्शन में निहित है। जहाँ उन्नत दर्शन, विश्व प्रेम एवं अति उग्र एकता पाठ है। विश्व के समक्ष एक आदर्श आध्यात्मिक दर्शन, व्यवहारिक सामाजिक आर्थिक सिद्धांत, सामाजिक सोच, सुव्यवस्थित साधना पद्धति, त्रि शास्त्र का सम्मान एवं प्रभावशाली प्रवर्तक है। नव्य मानवतावादी सोच, विश्व बंधुत्व का भाव, प्रगतिशील उपयोग तत्व तथा वैचारिक जागरण तथा भक्ति का पथ है। अतः आनन्द मार्ग दर्शन में विश्वगुरु भारतवर्ष के सभी लक्षण निहित है। आनन्द मार्ग के कार्यकर्ताओं की कर्म साधना ही बता पाएंगी कब महा विश्व का निर्माण कर विश्वगुरु भारतवर्ष के दर्शन कराता है।
उपसंहार - विश्वगुरु भारतवर्ष प्राचीन भारतवर्ष की संस्कृति, जीवन शैली एवं सामाजिक संगठन में निहित तथा यह आनन्द मार्ग के पास है इसलिए आनन्द मार्ग ही विश्वगुरु भारतवर्ष के दर्शन कराएगा।
श्री आनन्द किरण "देव"
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