इरोज़ का समाज निर्माण में योगदान (ERAWS's contribution in building society)

शिक्षा, राहत एवं कल्याण अनुभाग का समाज निर्माण में योगदान पर चर्चा करेंगे।  शिक्षा समाज निर्माण की बुनियादी आवश्यकता, राहत समाज निर्माण की राह तथा कल्याण समाज निर्माण की आधारशीला है। इसी को समझने की कोशिश करेंगे। 

(१) शिक्षा - शिक्षा डिग्री एवं नौकरी धारण करने की पूंजी नहीं है, यह मनुष्य के केरियर निर्माण का मर्म है। यदि एक डिग्रीधारी अथवा हाईप्रोफाइल व्यक्ति यदि समाज संगठन में अपनी भूमिका नहीं निभाते हैं तो उनकी डिग्री एवं उच्च पद मात्र ईधन है। जिसका जलकर भस्म होना ही भाग्य है। शिक्षा इसी मर्म को समझती तथा समझाती है। इसलिए शिक्षा के स्वरूप को समझने एवं समझाने के लिए इरोज़ अस्तित्व में आया है। वे शिक्षालय मृत्युघर है, जहाँ शिक्षार्थी को मानवीय गुणों से विभूषित नहीं करते हैं। अतः विद्यालय की प्रथम जिम्मेदारी मनुष्य निर्माण की है। मनुष्य भुख से समझौता नहीं कर सकता है। इसलिए पाठशाला की जिम्मेदारी रोजगार उपलब्ध कराना भी होनी चाहिए। आजकल वे शिक्षाकेंद्र सफल माने जाते हैं, जो‌ शतप्रतिशत प्लेसमेंट की गारंटी देते हैं। इरोज़ को यह जिम्मेदारी लेनी ही होगी। तभी इरोज़ एक सफल संगठन कहलाएगा। शतप्रतिशत प्लेसमेंट की गारंटी इरोज़ को मजबुत  बनाती है तथा मानव निर्माण की गारंटी इरोज़ को आदर्श बनाती है। 

(२) राहत -  राहत का कार्य जरुरतमंद की आवश्यकता पूर्ति करना ही नहीं है अपितु राहत शब्द का अर्थ जरूरत मंद को इस काबिल बनाना कि वह जरुरतमंद की सेवा कर सकें। वे राहत कार्य आधारहीन तथा धनिभूत नहीं है जहाँ जरुरतमंद सदैव जरुरतमंद ही रहता है। राहत इरोज़ अनुभाग में माध्यम से त्राण से परित्राण की ओर ले चलता है। 

(३) कल्याण(त्राण) - शिक्षा इरोज़ को दुनिया से परिचित करता है, राहत इरोज़ को दुनिया में प्रतिष्ठित करता तथा कल्याण इरोज़ को दुनिया का आदर्श बनाता है। वे कल्याण मूलक संस्थान असफल है, जहाँ समाज की संरचना का निर्माण नहीं होता है। कल्याण केन्द्र का काम मनुष्य के समाज की वह सुन्दर तस्वीर बनाना जहाँ सर्वजन हित, सर्वजन सुख की अवधारणा सफल होती हो। 

इरोज़ के बिना मानव समाज के निर्माण में निकल राही दुनिया का सबसे बड़ा मिथ्याचारी तथा कपटाचारी है। उसकी  करनी, कथनी एवं सोच में तारतम्य नहीं रहता है। अतः समाज निर्माण के लिए निकले राही को इरोज़ को समझना एवं आत्मसात करना आवश्यक है। 

शिक्षा, राहत एवं कल्याण तीनों को अलग देखना तीनों के साथ अन्याय करना है। इसलिए शिक्षाकेंद्र राहत केन्द्र व कल्याण (त्राण) केन्द्र के रूप में विकसित किया जाना जरुरी है। 

आओ मिलकर इरोज़ को स्थापित करते हैं। 
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           श्री आनन्द किरण "देव"
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