प्रभात संगीत एवं रुहानी यात्रा (PS & ST)

संगीत का मानव मन की गहराइयों से गहरा रिश्ता है। एक भाव तंरग को दूसरी भाव तरंग से जोड़ता है तथा मानव मन में विशिष्ट रस की सरिता बहती है। मुझे गाना नहीं आता है इसलिए उस स्थित का रसास्वादन तो नहीं करा सकता लेकिन रुहानी यात्रा में ऐसी स्थितियाँ से रुबरु होना पड़ता है इसलिए इनके बारे में थोड़ी समझ रखता हूँ। मनुष्य का जीवन भाव से भरा हुआ है। भाव रस से अभिव्यक्त होता है। इसलिए संगीत का महत्व सभी के जीवन में अल्प एवं अधिक परिणाम में है। जो विभिन्न राग रागिनियों तथा लफ़्ज़ों से झलकता है। 

संगीत की दुनिया में आशा व निराशा, प्रेम एवं विरह, सकारात्मक एवं नकारात्मक तथा राग व द्वेष इत्यादि का संगम देखा है। जो संगीत मनुष्य को दुख के दलदल में ले जाकर रुलाते है, उदास करते हैं अथवा हताश करते हैं। यह मनुष्य की गति एवं प्रगति दोनों को रोक लेते हैं। इसके विपरीत जहाँ आनन्द प्रेम, उत्साह तथा ऊर्जा का संचार होता है। वे संगीत मनुष्य को गतिमान एवं प्रगतिशील बनाते हैं। संगीत शास्त्र की ऐसी शाखा को मनुष्य ने आनन्द संगीत नाम दिया है। जहाँ सुख शांति एवं कर्मशीलता का निवास होता है। आनन्द संगीत में प्रगति, अग्रगति एवं बृहद का आकर्षण दिखाई दे तो उस नूतन उषा की संज्ञा दी जाती है। इसलिए इसे एक नूतन विधा में रखना होता है। प्राचीन काल में जब भक्त रात्रि जागरण करते थे तब अपनी संगीत शास्त्र को दुनिया जगत से उठाकर ज्यौं ज्यौं निशा की घनघोर छाए में जाता था। वैराग्य तथा फकीरी में मन लिप्त होता था। फकीरी को गाते गाते जब एक नहीं उषा के नजदीक पहुँचता उसे ऐहसास होता था कि असली आनन्द प्रभु के साथ मिलकर प्रभु के कर्म करने है। इसलिए वह प्रभाती गाता था। भक्त एवं भगवान में एकरूपता दिखाई देती है। जो भक्त का है, वह भगवान‌ का है तथा जो भगवान है वह भक्त का है। सारे जहान से मोहब्बत करता है। वह फकीरी  पलायन में नहीं कर्तव्य कर्म में अनुभव करता है तथा जगत को साथ लेकर रुहानी यात्रा में निकलता है। जब प्रभात की यह अवस्था चौबीस घंटा, जीवनभर तथा हर क्षण रह जाए तो मनुष्य अपने जीवन को प्रफुल्लित, आनन्दित एवं प्रगतिशील बना देता है। इसलिए मनुष्य प्रभात संगीत की विधा एक पृथक विधा के रूप में आवश्यकता महसूस से कर रहा है।

मनुष्य की इस अभिलाषा को प्रतिफलित होने का आखिरकार अवसर मिली ही गया तथा मनुष्य ने परमपुरुष के कंठ से प्रभात संगीत को निकलवा ही दिया। परम पुरुष भक्त की इस आकूति को प्रभात संगीत का रुप देकर आनन्द मार्ग परिवार को प्रभात संगीत प्रदान किया। आनन्द मार्ग परिवार ने प्रथम प्रभात संगीत  14 सितम्बर 1982 सुना। उसके बाद आठ वर्ष तक परम पुरुष के मुख से एक पर एक 5018 संगीत का एक शास्त्र तैयार हो गया। 

प्रभात संगीत की हृदयस्पर्शी विधा को सजाए रखना भक्त का दायित्व है। साधक को अपने साधना में ओर भी प्रभात संगीत सुनाई देते रहेगें तथा अपनी मस्ती में गाता भी रहेगा। प्रभात संगीत एवं रूहानी यात्रा के बारे सबके अलग अलग अनुभव है इसलिए उसे एक सामान्य शब्दमाला में नहीं पिरोया जा सकता है। फिर भी प्रयास करना बुरा नहीं है। मनुष्य की आध्यात्मिक यात्रा को दर्शन पंचकोषात्मक के रूप में व्यष्टि  को तथा सप्तलोकत्मक कहकर समष्टि में समझाता है। भक्त अपने मन में उस अवस्था को देखकर जो नाम बन पाता है। दे देता है। इसलिए आध्यात्मिक जगत में आध्यात्मिक पड़ावों को अलग अलग नाम चित्रित किया गया। प्रभात संगीत प्रत्येक पड़ाव के साधक की मनोदशा का सुन्दर चित्रण प्रस्तुत करता है। कई बार साधक अनुभव करता है कि यह प्रभात संगीत एक वर्ष पहले गाता था तब अलग अनुभूति देता है आज अलग। मैं पुनः कहता हूँ कि मुझे गाना बजाना नहीं आता है इसलिए प्रभात संगीत की विधा को सही नहीं समझा पाता हूँ। लेकिन रुहानी यात्रा में जो अनुभव करता हूँ उसे लिख लेता हूँ। 

प्रभात संगीत के संग हम सबकी रूहानी यात्रा चिरस्मरणीय रहे। 
🙏🙏🙏🙏🙏
श्री आनन्द किरण "देव"

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