श्री प्रभात रंजन सरकार जी के शब्दकोष से एक शब्द मिला जिस पर मेरी बारबार नजर गई लेकिन उसका अर्थ समझ में नहीं आया इसलिए आप लोगो से उसका अर्थ समझने के लिए निकल पड़ा हूँ। वह शब्द है 'सामूहिक नेतृत्व' अंग्रेजी में collective leadership कहते हैं। श्री प्रभात रंजन सरकार ने एकल नेतृत्व के स्थान पर सामूहिक नेतृत्व को अंगीकार किया है। उनके संगठन में पुरोधा बोर्ड, आचार्य बोर्ड, तात्विक बोर्ड, अवधूत बोर्ड, सदविप्र बोर्ड आदि शब्दों का उल्लेख मिलता है। क्या इन शब्दों से सामूहिक नेतृत्व शब्द को समझा जा सकता है? आखिर सामूहिक नेतृत्व शब्द की जरूरत क्यों आ पड़ी? ऐसे कई प्रश्न मेरे सामने आते गए तथा मैं इन प्रश्नों की गहराई जाता गया, लेकिन मेरी अल्प समझ में इनका रहस्य नहीं आया। आखिर आता भी कैसे, जिस शब्द की उत्पत्ति महासागर से हुई हो जल की एक बूंद की समझ में आना कैसे संभव है? फिर भी महासागर की जलराशि एवं एक बूंद की जलराशि का सूत्र तो एक ही है। तो हम समझ तो सकते हैं। चलो आप लोगों की मदद से सामूहिक नेतृत्व को समझने की कोशिश करते हैं।
नेतृत्व शब्द का अर्थ है कि आगे बढ़ने वाला अथवा किसी सिद्धांत, प्रणाली अथवा व्यवस्था में सबसे आगे चलने वाला नेता है। इस अर्थ में तो नेता शब्द की मूल में एक छिपा हुआ है। लेकिन हमें तो सामूहिक नेतृत्व का आदेश मिला हुआ है। इसलिए एकल नेतृत्व पर सामूहिक नेतृत्व को भारी देखना है। यह सत्य है कि नेतृत्व शब्द का गुणधर्म एकल नेतृत्व है मगर एकल नेतृत्व सफल सिद्ध नहीं हुआ है अथवा अच्छा सिद्ध नहीं हुआ है। अथवा स्पष्ट कहा जाए तो एकल नेतृत्व इस धरती पर कभी भी नहीं दिखा है। लगता है कि यह वाक्यांश सुनते ही इतिहासकार मुझे पीटने के दौड़े आएंगे। राजतंत्र के राजा महाराजा तथा सरदारगीरी का इतिहास बताकर मेरी खाल ही उधेड़ देंगे। मैं मार भी अकेले नहीं खाऊंगा क्योंकि इसमें आप लोग साथ में है।इसलिए आप भी बराबर के भागीदार है। हम मार कैसे खा सकते हैं। यह तो अब आप्त वाक्य बन गया है। जो कभी भी असत्य नहीं हो सकता है।राजतंत्र में तथा सरदारों में जितने भी अच्छे नेता हुए हैं, वे सबकी राय, सलाह तथा हित को देखकर निर्णय लेते हैं। उनके निर्णय में एक सामूहिक ताकत होती थी। इसलिए उन्हें सद् चरित्र कहा जाता है। जहाँ ऐसा नहीं होता था उन्हें सद् चरित्र में नहीं रखा जाता है। अति एकलगीरी अथवा मनमानी करने वाले को कु नेतृत्व कहा जाता है। हम जीत गए क्योंकि एकल नेतृत्व होता ही नहीं। इसलिए तो हमारे पथ प्रदर्शक हमें सामूहिक नेतृत्व का पाठ पढ़ा गए। लोकतंत्र का विद्यार्थी तो सामूहिक नेतृत्व का ही समर्थन करेगा। क्योंकि लोकतंत्र की नींव ही सामूहिक नेतृत्व पर रखी गई है। इसका मतलब हमें सामूहिक नेतृत्व समझना ही होगा।
सामूहिक नेतृत्व को समझने की यात्रा पर है। एक भाषण कर्ता अथवा लेखक एकल नेतृत्व के अच्छे उदाहरण के रूप में पेश किये जाते हैं। इसी सामूहिक नेतृत्व को समझने की कोशिश करते हैं। भाषणकर्ता अथवा लेखनकर्ता तभी सफल सिद्ध होता है जब वह श्रोता एवं पाठक के मन को प्रभावित कर लेता है। इसलिए वक्ता एवं लेखक एकल नेतृत्व नहीं करता सामूहिक अभिव्यक्ति को अपने शब्दों में पिरोकर लाता है। वक्ता एवं लेखक श्रोता एवं पाठकों के मन को भलिभाँति पढ़ लेता है, उसी के अनुरूप अपनी शब्द माला परोसता यदि वह ऐसा नहीं करता है तो श्रोता एवं पाठकों के कोप का भाजन बनता है। अतः कई भी एकल नेतृत्व का स्थान। एकला चलो शब्द कहने में अच्छा लगता है लेकिन एकला कोई नहीं चलता है। अतः प्रमाणित होता है कि सामूहिक नेतृत्व एकल नेतृत्व पर भारी है।
सामूहिक नेतृत्व शब्द का अर्थ - वह नेतृत्व जिसमें निर्णय लेने की शक्ति एक व्यक्ति में नहीं एक संस्था में निहित हो, वह सामूहिक नेतृत्व कहलाता है। इसलिए समाज एवं राष्ट्र का नेतृत्व एकल की बजाए एक बोर्ड का होना चाहिए। उसी को सामूहिक नेतृत्व कहा जाता है। उदाहरण के तौर पर एक अध्यक्ष नहीं अध्यक्षीय बोर्ड में नेतृत्व को रखना सामूहिक नेतृत्व का सिद्धांत है।
सामूहिक नेतृत्व के फायदे - सामूहिक नेतृत्व में निर्णय पारदर्शिता तथा मंथन की शक्ति होती है। जब भी कोई निर्णय लेना होता है तो सबसे पहले बोर्ड में मंथन होता है तत्पश्चात सभी पहलू पर घोर करता है। दूसरी निर्णय एकदम पारदर्शी रहता है। उसमें किसी प्रकार ट्रांसफरेंसी कमी दिखाई नहीं देती है। सामूहिक नेतृत्व का दूसरा फायदा यह है कि नेता स्वयं की मनमानी नहीं कर सकता है अथवा गोपनीय समझौता नहीं कर सकता है। उस पर बोर्ड की नजर एवं लगाम रहती है। तीसरा फायदा लोकतंत्र की मजबूती के लिए सामूहिक नेतृत्व ही कारगर है। अतः संविधान में सामूहिक नेतृत्व की धारण एवं सिद्धांत को स्पष्ट कर देना चाहिए। सामूहिक नेतृत्व के फायदों के अन्तिम कर्म में निर्णय में सबकी साझेदारी का स्थान आता है। इस प्रक्रिया में बोर्ड का प्रत्येक घटक अपने निर्णय देता है। सामूहिक नेतृत्व का अर्थ जूरी में दिये गये निर्णय का संख्यात्मक गणित नहीं है। अपितु सभी का निर्णय के प्रति सहमत होना होता है। यदि यह प्रक्रिया नहीं होने की स्थिति में संख्यात्मक आधिक्य का सूत्र हो सकता है। इसपर भी मत व्यापार में बराबर का पलड़ा होने पर सचिव का मत अंतिम गण्य हो सकता है। यह दोनों आपात स्थितियां है। सचिव का निषेधाधिकार नहीं है।
सामूहिक नेतृत्व पर दोषारोपण होता है कि निर्णय में त्वरितता व कठोरता का अभाव होता है। लेकिन ऐसा मानना एकल नेतृत्व को बढ़ावा देने वाले करते हैं। सामूहिक नेतृत्व का त्वरित एवं कठोर दोनों ही प्रकार के होते हैं। केवल निर्णय में विशुद्धता लाने के कारण त्वरित को समझ नहीं पाते हैं।
सामूहिक नेतृत्व एवं प्रशासन व्यवस्था
१. शीर्ष बोर्ड (सदविप्र बोर्ड) - समाज की व्यवस्था का सर्वोच्च बोर्ड जिन्हें सदविप्र बोर्ड कहा गया है। वह एक बोर्ड होगा जो समाज का नेतृत्व करेगा। आजकल व्यवस्था में इसका अभाव है लेकिन यह प्रेसिडेंट के रूप में दिखता है।
२. व्यवस्थापन बोर्ड - राज्य की व्यवस्था बनाए रखने के लिए व्यवस्थापन बोर्ड होगा। यह आजकल व्यवस्थापिका जैसा ही दिखता है लेकिन यह समाज के प्रति जिम्मेदार होगा।
(६) कार्यकरण बोर्ड - काम करने के लिए आजकल के मंत्री परिषद की भाँति कार्यकरण बोर्ड होता है। लेकिन इसमें प्रधानमंत्री विशेष नहीं होता है। सभी समान होते हैं।
(४) न्यायपालन बोर्ड - न्याय व्यवस्था का सुचारू संचालन की जिम्मेदारी इस बोर्ड की है।
(५) वित्तीय प्रबंधन बोर्ड - वित्त व्यवस्था का प्रबंध के एक अलग बोर्ड होगा।
(६) सचिवालय - उपरोक्त अन्तिम चार बोर्ड एवं सदविप्र बोर्ड के बीच समन्वयन की कड़ी सचिवालय होता है। जिसका प्रबंधक महासचिव होता है। यह चार बोर्ड जो अपने अपने क्षेत्र में स्वतंत्र है। उनके कार्य पद्धति को नियमित करता है तथा एक दूसरे को अन्य के मामले में हस्तक्षेप से रोकता है। साथ शीर्ष बोर्ड ओर इनके बीच की कड़ी होती है। इनके साथ में जो स्वायत्त संस्थाएं राजनीति एवं अर्थनीति से परे काम कर रहे। उनके अधिकारों की रक्षा करता है।
सामूहिक नेतृत्व शब्द का अर्थ है बोर्ड का नेतृत्व है।
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श्री आनन्द किरण "देव"
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