सहज योग - प्राणायाम साधना (Sahaja Yoga - Pranayama practice)


साधना के चतुर्थ सौपान का नाम प्राणायाम साधना है। इसे सहज योग भी कहा गया है। प्राणवायु पर नियंत्रण से मन पर नियंत्रण आता है। ऐसा साधना विज्ञान में पढ़ाया जाता है। प्राणायाम को ब्रह्म साधना बनाने की कला श्री श्री आनन्द मूर्ति जी ने जग को बताई हैं। यद्यपि प्राणायाम को अष्टांग योग अंग के रुप में अलग-अलग रुपों में आदिकाल से करते आये है। लेकिन उस ब्रह्म साधना का रुप आनन्द मार्ग साधना में ही दिखाया गया है।

प्राणायाम में अनन्त प्राण शक्ति अणु  प्राण शक्ति में तथा अणु की प्राण शक्ति अनन्त प्राण शक्ति में ब्रह्म भाव से समाहित होती जाती है। इस प्रक्रिया के अभ्यास के लिए प्राणायाम की व्यवहारिक प्रक्रिया सिखी जाती है। प्राणायाम की प्रक्रिया से पूर्व ईश्वर प्रणिधान वाली संक्रिया की जाती है। भूत शुद्धि, आसान शुद्धि एवं चित्त शुद्धि के बाद ब्रह्म भावमय प्राणायाम इष्ट मंत्र के साथ किया जाता है। प्राणायाम की प्रक्रिया के अन्तर्गत सिखाया जाता है कि प्रात:काल, दोपहर, सांयकाल एवं रात्रि के प्राणायाम के केन्द्र अलग-अलग होता है। योग व तंत्र की इस  साधना में प्राण केन्द्र का गहन महत्व होता है। इसलिए साधक को प्राणायाम करते समय ध्यान एकाग्र करने वाले बिन्दु का विशेष ध्यान रखना चाहिए। प्रात:काल‌ की साधना में विचारों की उथल पुथल कम होती है, दोपहर विचारों शुरुआती दौर होता है, शाम को आते आते विचारों का तुफान आता है तथा रात्रि काल यह विचार उफान में होते हैं। इसलिए केन्द्र के चयन स्थुल से सूक्ष्म चक्र के स्वभाव का ध्यान रखा जाता है। 

प्राणायाम साधना जीव कोटि ब्रह्म कोटि की इस यात्रा में मनुष्य को आधिभौतिक आधिदैविक एवं आध्यात्मिक बंधनों को मुक्त करती है। तत्व धारणा का अधिक संबंध आधिभौतिक बंधन की मुक्ति से वही प्राणायाम का संबंध आधिदैविक बंधन से मुक्ति से है। 

प्राणायाम सहज योग साधना है। इसमें साधक सहज अवस्था को प्राप्त करता है। चंचलता अब साधक को सताती नहीं है। ध्यान एकाग्र करने भी अधिक दिक्कत नहीं रहती है‌। दुनिया के हर्ष एवं विषाद के आवेग साधक को विचलित नहीं करते हैं। सहज अवस्था में यह सब आना स्वाभाविक है। यदि प्राणायाम अभ्यास के बाद भी सहज अवस्था प्राप्त नहीं होती है। तो विशेष योग आवश्यकता होती है। कई साधक साधारण योग में भी इस अवस्था को प्राप्त कर लेते हैं। वे भाग्यशाली होते है। इससे वे भाग्यशाली प्रारंभिक योग वाले होते हैं। जो साधना अभ्यास से पूर्व ही सहज अवस्था के गुण धारणा कर लेते हैं।
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