चक्र शोधन

साधना का पंचम सौपान चक्र शोधन कहलाता है। इसका संबंध चक्रों से होता है। तंत्र साधक चक्र शोधन का विशेष महत्व है। कुल कुंडलीनी को इन चक्रों के माध्यम से उर्ध्व लोक में जाना है। इसलिए इन चक्रों का शोधन आवश्यक है।

शोधन शब्द का अर्थ है किसी भी सत्ता को उसकी मूल अवस्था में लाना है। जिसे परिशुद्ध करना अथवा साफ करना अथवा मांझना भी कहा जाता है। चक्र माया के प्रभाव से अपने मूल स्वभाव में प्रकट नहीं होते हैं। चक्र शोधन के द्वारा चक्र को मूल रुप में प्रकट किया जाता है। प्राय देखा गया है कि चक्र मनुष्य के शरीर में सुप्त अवस्था में होते हैं। वे शारीरिक, मानसिक एवं आध्यात्मिक क्रिया के नियंता होने पर भी ऐसा नहीं कर पाते हैं। इसलिए चक्र शोधन के द्वारा उनको जगाया जाता है। अर्थात चक्र का जागरण करने की साधना का नाम चक्र शोधन है। चक्र शोधन साधना की आधिभौतिक, आधिदैविक एवं आध्यात्मिक बंधन से मुक्ति करने में आध्यात्मिक बंधन से मुक्ति करने में महत्वपूर्ण भूमिका होती है। 

चक्र शोधन साधना में एक प्रक्रिया होती है। जिसके तहत चक्रों को इष्ट मंत्र सुनाया जाता है। जिससे चक्र की कलियां खिल जाती है तथा चक्र उसके मूल स्वभाव अथवा परिपक्वता को प्राप्त होता है‌‌‌। चक्र शोधन में शरीर की स्थिरता अथवा आसान की आवश्यकता नहीं होती है इसके साथ किसी प्रकार की संक्रियाओं की भी आवश्यकता नहीं होती है। चक्र शोधन की प्रक्रिया में हस्व व दीर्घ दोनों ही प्रकार की ध्वनि सुनाई जाती है। इसलिए उर्ध्व एवं अध: दोनों ही क्रम में इष्ट मंत्र की ध्वनि चक्र को सुनाई जाती है। हस्व अथवा उर्ध्वाधर ध्वनि में चक्र का जागरण होता तथा दीर्घ अथवा अधोतन ध्वनि में चक्र परिपक्वता को प्राप्त होता है। इन दोनों ही प्रक्रिया का संयुक्त नाम चक्र शोधन है। 

चक्र शोधन में ध्वनि का विज्ञान है इसलिए इस राग, लय एवं ताल तीनों का मिश्रण होता है। रिद्धम के अभाव में चक्र शोधन को बहुत अधिक समय लग जाता है। भँवरें के गुंजन से फूल खिल उठते है, उसी प्रकार रिद्धम से चक्र में नवचेतना आती है। यही चक्र शोधन का उद्देश्य है। चक्र शोधन का कार्य मात्र चक्र के जागरण तक ही सीमित नहीं रहती है। उस पर क्रियाशील वृत्तियों को भी नियंत्रण में लाती है। चक्र में छिपे गहन रहस्य का शोध भी करता है। इसलिए चक्र शोधन साधना का बहुत महत्व है। इस संभाले रखने के लिए साधना के पंचम सौपान में सजाया गया है। चक्र शोधन में साधक सहस्त्राचक्र‌ तक पहुँचता है। 

चक्र शोधन साधना के बाद साधक चक्र स्पष्ट देख पाता है। उस पर क्रियाशील वृत्तियों के प्रभाव का अनुभव कर उन्हें नियंत्रण में भी ले आता है। उसमें आध्यात्मिक रहस्य को भी देखने एवं अनुभव करने की सक्षमता भी प्राप्त कर लेता है। 
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श्री आनन्द किरण "देव"
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