तत्व धारणा (Tat'v Dha'ran'a')


तत्व को पहचानना, तत्व की समझ विकसित करना, तत्व के प्रति असमझ को दुरस्त करना, तत्व को देखना तथा तत्व की शक्ति को धारणा करना तत्व धारणा कहलाती है। इसे साधना का तृतीय सौपान कहा गया है। प्रथम दो सौपान में ब्रह्म सद्भाव में प्रतिष्ठित होने के बाद मध्यम ध्यान धारणा की ओर चलते हैं। जिसमें सबसे पहले तत्व धारणा की ओर चलते हैं। इसमें तत्व का ध्यान करना एवं धारण करना होता है। इसकी एक प्रक्रिया होती है। उसी के तहत् चलता हुआ साधक तत्व धारणा करता है। 

तत्व धारणा की प्रक्रिया स्मरण प्रक्रिया है। इसके तहत प्रथम तत्व का स्मरण करता है। साधक जो तत्व  लेता है उसका स्मरण किया जाता है। जिससे उस तत्व की सारी शक्ति शरीर एवं जगत में जहाँ कही भी होती है, वह तत्व को स्मरण की गई जगह पर आ जाती है। इसलिए लिए गुरु तत्व धारणा के साधक को तत्व का निश्चित बिन्दु बताकर उसमें स्थिर करते है। 

स्मरण प्रक्रिया के बाद दर्शन प्रक्रिया आती है। दर्शन में तत्व को देखा जाता है। देखने के लिए तत्व का रुप एवं रंग की आवश्यकता होती है। इसलिए गुरु साधक को तत्व का आकार एवं रुप भी दिखाते है। जिससे तत्व चेतनता को प्राप्त होता है। तत्व की यह चेतना रुहानी दुनिया के रहस्यों को संजीवता की दुनिया से साधक रुबरु कराते हैं। उसमें उपस्थित शक्ति का साक्षात्कार करता है। 

दर्शन के बाद श्रवण की प्रक्रिया आती है। इसमें उस तत्व के बीजाक्षर का श्रवण करता है।इसमें बीज मंत्र युक्त एक मंत्र दिया जाता है। जिसका साधक वाचन करता है। तत्व के मंत्र के वाचन से श्रवण होने वाले बीज मंत्र की पहचान सरल हो जाती है। तत्व धारणा की सम्पूर्ण साधना में चक्षु खुले रहते तथा एक विशेष केन्द्र पर स्थिर रखने होते हैं। तत्व धारणा के समय मन की जागृत अवस्था रखा जाता है। 

तत्व धारणा की उक्त प्रक्रिया के बाद हम संक्रिया की ओर चलते हैं। वस्तुतः तत्व धारणा में कोई संक्रिया नहीं सिखाई जाती है। अतः सभी संक्रिया स्वत: ही संपन्न होती है। जैसे तत्व की सभी शक्तियां मूल बिन्दु पर आना तथा शक्ति साधक तक पहुँचना इत्यादि संक्रिया है।

यद्यपि साधना में क्यों नामक प्रश्न महत्वपूर्ण नहीं होता है तथापि ब्रह्म प्राप्ति की यात्रा में तत्व धारणा का औचित्य समझना आवश्यक है। ब्रह्म साधना बंधन मुक्ति की साधना है। जिसमें आधिभौतिक, आधिदैविक एवं आध्यात्मिक सभी बंधनों से मुक्ति का प्रथम क्रम तत्व धारणा से होकर जाता है। इसलिए ब्रह्म भाव का साधक तत्व धारणा करता है। जिसमें साधक शक्ति संपन्न बनकर बंधन मुक्त होता है। 
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श्री आनन्द किरण "देव"
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