मानव इतिहास के मात्र तीन पन्ने
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श्री आनन्द किरण "देव"
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अतीत की घटनाओं का पंजीकरण करना इतिकथा कहलाती है। जबकि अतीत घटनाओं का वह अंश जिसका उद्देश्य शिक्षागत लेखन है, वह इतिहास कहलाता है। शिक्षागत उद्देश्य से काल्पनिक कथाओं का चित्रण पुराण कहलाता है तथा इन सबका काव्यात्मक अंश को छंद की उपमा दी जाती है।
हर व्यक्ति का जीवन इतिहास नहीं होता है। इतिहास व्यक्तित्व से बनता हैं। जिसका जीवन युग सामान्य चलन से उपर हो, जो सबके लिए प्रेरणा स्रोत हो। इसलिए यह सोच भी ग़लत है कि शासक ही इतिहास बनाते हैं। इतिहास हर वह व्यक्ति बना सकता जिसका जीवन युग की भीड़ से अलग एक महान उद्देश्य को समर्पित होता है।
आओ इस पृथ्वी पर इतिहास बनाने वाले व्यक्तित्वों के दीदार करते हैं।
१. इतिहास बनाने वाला प्रथम व्यक्तित्व भगवान सदाशिव :~ इस धरती पर इतिहास का पहला पन्ना भगवान सदाशिव के नाम पर है। उन्होंने दुनिया भीड़ से उपर तात्कालिक समाज के कपाट पर अमिट हस्ताक्षर कर दिये। जिसे मानव सभ्यता कभी नहीं भूल सकती है। इसलिए उन्हें सृष्टि के आदि कारक के रूप में स्थापित किया गया। समय आज से 7000 वर्ष पूर्व कैलाश पर्वत पर एक ऐसे महा मानव का प्रादुर्भाव हुआ, जिन्हें युग देवाधिदेव महादेव कहकर पुकारा। उसी भगवान सदाशिव ने तात्कालिक समाज के सभी पक्षों को निर्मित संगठित एवं सुव्यवस्थित किया था। इसलिए इतिहास उस व्यक्तित्व को प्रणाम करता है। सदाशिव के महान व्यक्तित्व ने मानव सभ्यता की नींव रखी थी। उसी पर आज मानव सभ्यता खड़ी है। यद्यपि सदाशिव के सपनों की मानव सभ्यता अभी तक जमाने से कोशों दूर है तथापि उनके सपनों की ज्योति आनन्द मार्ग दर्शन के रुप अवश्य जगमगा रही है। सभ्यता के इस आदिपुरुष को मत मतांतर में नहीं देखा जा सकता है इसलिए मनुष्य की बुद्धि को अखंडत्व में स्थापित करनी होती है। खंड में सदाशिव के दर्शन नहीं हो सकते हैं। अतः खंड चिन्तन के आधार पर खड़े सभी दर्शन को ओझल हो जाना होगा। मनुष्य की बुद्धि को नव्य मानवतावाद में प्रतिष्ठित होना होगा। सदाशिव को मानव सभ्यता के प्रथम पुरुष के रुप में दर्शन करने वाले ब्रह्मा, विष्णु व महेश को इतिहास के पन्नों में देखना चाहते होंगे। भारतीय पुराणों में वर्णित विष्णु का क्षीरसागर व शेषनाग की शय्या तथा विष्णु की नाभी कमल में बैठे ब्रह्मा को मानव सभ्यता आस्था, विश्वास एवं श्रद्धा तो अर्पित कर सकती है। लेकिन अपने इतिहास में स्थापित नहीं कर सकती है। इसलिए मानव सभ्यता के दूसरे पन्ने की ओर चलते हैं।
2. मानव इतिहास दूसरा पन्ना श्रीकृष्ण के नाम :~ जैसे ही मानव इतिहास का दूसरा पन्ना श्रीकृष्ण के नाम पर लिखते ही श्रीराम को लेकर विद्वानों का दल खड़ा हो जाएगा। सदाशिव के पहले एवं बाद में भी ऋषि, मुनि एवं देवगणों ने अपने अपने सामर्थ्य के अनुसार इतिहास बनाने का काम किया है। मैं उन सबके कार्य को नमन कर अपनी श्रद्धा अर्पित करता हूँ। भगवान श्रीराम आस्था, विश्वास एवं श्रद्धा के प्रतिबिंब है लेकिन इतिहास के पन्नें में अदृश्य ही रह जाते हैं। श्री राम के दर्शन जिस ग्रंथ से होते वह महर्षि बाल्मीकि भी की भविष्य दृष्टि थी। इसलिए इतिहास के पन्नें श्री राम ढूंढ रहे हैं। यदि वानर, रीछ, भालू, गिर्द, गरुड़, राक्षस इत्यादि जीव मनुष्य सी समझ रखने वाले मिल जाएंगे तो इतिहास का पन्ना उनके लिए सजाया जा सकता है। इसलिए मैं इतिहास के दूसरे पन्नें के लिए श्री कृष्ण के दर्शन करने निकल रहा हूँ। आज से 3500 वर्ष पूर्व भारत ब्रज भूमि पर एक महामानव के दीदार हुए, जिन्होंने खंड विखंडित मानवता को एकता सूत्र में पिरोकर उसका सम्पूर्ण उत्थान किया था। उन्होंने उस व्यवस्था का नाम धर्मराज्य दिया। इतिहास ने उनकी इस देन को महाभारत के रूप में पढ़ा। इसलिए महाभारत मानव के इतिहास की प्रथम पुस्तक है। सदाशिव के युग में इतिहास की किसी पुस्तक की रचना नहीं हुई थी। श्री कृष्ण ने तात्कालिक सम्पूर्ण सृष्टि के लिए मानवता का पंचजन्य बजाया था। उनके सुदर्शन चक्र में कोई मत मतांतर नहीं था। मनुष्य की अल्प सोच गीता को साम्प्रदायिकता की धरोहर में देखती है। श्री कृष्ण तथा उसकी हर देन सम्पूर्ण मानव समाज के लिए थी।
¶. मानव के इतिहास की प्रथम पुस्तक महाभारत :~ ऋग्वेद इस धरातल की प्रथम पुस्तक है जबकि मैं इतिहास की पहली पुस्तक महाभारत को मानता हूँ। मनुष्य को शिक्षा देने के लिए एकांकी, नाटक, कहानी, छंद, काव्य व महाकाव्य आगे आए जिसमें रामायण की भी महत्वपूर्ण भूमिका है। लेकिन जिस पुस्तक को पढ़ने से मनुष्य के चारों पुरूषार्थ धर्म, अर्थ, काम एवं मोक्ष की प्राप्ति करवा दे वह पुस्तक वास्तव में इतिहास की पुस्तक महाभारत ही थी। आजकल पढ़ाये जाने वाले तथाकथित इतिहास से धर्म, अर्थ, काम एवं मोक्ष की प्राप्ति नहीं होती है जबकि महाभारत नामक इतिहास पढ़ सहस्त्र साधक उक्त पुरुषार्थ को प्राप्त कर दिया है। धर्म नैतिकता, नियम एवं नीति है, अर्थ भौतिक जगत की आर्थिक अनार्थिक क्रियाएँ है, काम मानव सभ्यता आबाद रुप से आगे बढ़ाने का दायित्व है तथा मोक्ष जीवन लक्ष्य है। इतिहास के अध्ययन अध्यापन का एकमात्र लक्ष्य यही है, धर्म, अर्थ, काम एवं मोक्ष को स्थापित करने वाले पूर्वजों के सफल जीवन से मनुष्य को दर्शन कराना तथा मनुष्य को उस दिशा में ले जाना।
श्री कृष्ण के बाद इतिहास पन्नें श्री कृष्ण के बाद महावीर स्वामी, महात्मा बुद्ध, जरथुस्त्र, महात्मा ईसा, हजरत मुहम्मद, आदि शंकराचार्य, रामानुजाचार्य, कबीर, सुर, तुलसी, गुरुनानक, मार्टिन लूथर, सहित अनेक संत, सुधार, राजा, महाराजा एवं नेताओं ने इतिहास पर तीसरे पन्नें पर हस्ताक्षर करने के प्रयास किया लेकिन उनके जीवन किसी एक अथवा एकाधिक क्षेत्र को छोड़कर अधिक कुछ नहीं कर पाए इसलिए इतिहास तीसरा पन्ना लिखने यह लोग चूक गए। यह लोग इतिहास की स्मृति में तो रह गए लेकिन इतिहास का तीसरा पन्ना नहीं लिख पाए। इतिहास का पन्ना लिखने के लिए मानव जीवन एवं सृष्टि के सभी क्षेत्र में रुढ़ मूल्यों को हटाकर नूतन मूल्य स्थापित करने पड़ते हैं।
3. इतिहास का तीसरा पन्ना लिख रहे है श्री श्री आनन्द मूर्ति : ~ श्री कृष्ण के बाद तीसरा पन्ना नहीं बन पाया उसे श्री श्री आनन्द मूर्ति उर्फ श्री प्रभात रंजन सरकार ने लिखना शुरू किया। उन्होंने मानव इतिहास के तीसरे पन्न की भूमिका, पटकथा एवं डिजाइनिंग करके आउट लाइन लिख दी है। उनके प्रयास से इतिहास का तीसरा पन्ना फिनिशिंग के बाद लांच भी हो गया है। उसे इतिहास के कक्ष में स्थापित करने के जिम्मेदारी अपने संगठन आनन्द मार्ग प्रचारक संघ एवं अपने शिष्य आनन्द मार्गी को दे दी है। यदि आनन्द मार्गी अथवा आनन्द मार्ग प्रचारक संघ श्री श्री आनन्द मूर्ति जी द्वारा तैयार किये गए इतिहास के तीसरे पन्ने को लक्ष्य तक पहुँचाकर उनके हस्ताक्षर को सिद्ध कर देता है तो इतिहास तीसरा पन्ना श्री श्री आनन्द मूर्ति के नाम चला जाएगा। सदाशिव एवं कृष्ण के युग इतिहास का पन्ना लिखना अधिक कठिन नहीं था। इसलिए उन्होंने भौतिक जीवन में लिख दिया। लेकिन आज के युग में इतिहास का पन्ना लिखना जटिल हो गया है। मानव मनीषा सहस्त्र सवाल करती तथा प्रमाण सहित सिद्ध करती है। उस युग प्रयोग बाद में होते पहल थीम लिखी जाती थी। आजके युग प्रदर्शन पहले थीम बाद में तैयार होती है। इसलिए श्री श्री आनन्द मूर्ति जी को जिम्मेदारी नियुक्ति करनी पड़ी।
आज के युग में भी कई विद्वान, दार्शनिक एवं विचार इतिहास के तीसरे पन्ने पर आड़ी तिरछी रेखाएँ खिंचने का प्रयास कर रहे। उनकी महत्वाकांक्षा को भी इतिहास देख रहा है।
अन्त में वही बात पुनः दोहरायी जाति इतिहास व्यक्ति का नहीं व्यक्तित्व का होता है।
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