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श्री आनन्द किरण "देव"
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#विषय - यही है - #धर्म
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मानव जाति का एक सामान्य इतिहास है। उसे भेद करके देखना मनुष्य का बौद्धिक चातुर्य है। सभी मनुष्य भावनात्मक रूप से एक ही है। बुद्धि जब तक भौगोलिक एवं सामाजिक खंड तत्व से जुड़ी रहती है। तब वह अपने भावना को दुषित कर देता है। उस स्थित में मनुष्य के अंदर एक शैतान के भी दर्शन हो सकते हैं। इसके विपरीत जब मनुष्य की बुद्धि चराचर में व्याप्त अखंड मंडलाकारम् ब्रह्म से जुडकर चराचर में व्याप्त होती तब उसे ऐसे महामानव के दर्शन होते हैं। जो उसके अज्ञान के अंधकार को ज्ञान रुपी शलाकाओं से हटाकर सत्य दर्शन करने वाले चक्षुओं को प्रदान करते हैं। इसलिए व्यक्ति उस सत्ता को गुरु कहकर नमन करता है। तब वह पाता है कि उसके यह सदगुरु ही सृष्टि के रचनाकार ब्रह्मा, पालनहार विष्णु तथा संहारकर्ता महेश है। अन्ततोगत्वा वह यह जान लेता है कि गुरु ही परमब्रह्म है। इसलिए वह अपने आपको इस सदगुरु को समर्पित कर देता है। उस सदगुरु द्वारा बताया गया पथ ही धर्म है। धर्मयुद्ध कहता है कि संकीर्णता, स्वार्थता एवं अंधता धर्म से बारबार आकर टकराती है और चूर्णविचूर्ण होकर अपने अस्तित्व को समाप्त कर देती है। शास्त्र में इसे पापात्मा का उद्धार कहा गया है। अतः धर्म के पथ चलने वालों को अपने विरोधियों की चिंता नहीं करनी चाहिए। यदि वे तुम्हारा विरोध करते हुए भी तुम्हारे निकट आएंगे तब भी उनका कल्याण ही होगा। इस विश्व का शास्वत सत्य कहता है कि धर्म एवं अधर्म की जंग में सदैव जय धर्म की ही जीत होती है। अतः धर्म के पथिकों को अपनी सफलता की चिंता नहीं करते हुए धर्म पथ पर चलते रहना चाहिए। इस पथ में जो कुछ भी मिलता है, उसे अमृत मानकर पान करते रहना चाहिए। यही आनन्द मार्ग है।
आनन्द मार्ग पर चलने वाला मार्गी यदि आनन्द से लबालब नहीं भरा हुआ है तो वह कुछ भी हो सकता है एक आनन्द मार्गी नहीं हो सकता है। इसलिए एक आनन्द मार्गी को सदैव आनन्द के गीत गाते रहना चाहिए। नैराश्य, नकारात्मक एवं दुखदर्द के भावों कभी स्थान नहीं देना चाहिए। यह जगत आनन्दमयी है। यहाँ सर्वत्र आनन्द ही आनन्द है। जिसका दर्शन एक आनन्द मार्गी ही करता है। दुखमयी व्यक्ति कभी भी आनन्द की वर्षा का आनन्द नहीं ले सकता है। इसलिए इस ग्रह के सभी मनुष्यों को आनन्द मार्ग के आदर्श को ग्रहण करना चाहिए। यही है धर्म।
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