निद्रा टुटने के तुरन्त बाद की जाने वाली प्रथम क्रिया गुरु सकाश कहलाती है तथा दिन की प्रथम क्रिया पंचजन्य कहलाती है। यद्यपि निद्रा टूटते ही प्रथम मधुविद्या तथा साष्टांग किया जाता है तथापि प्रथम क्रिया गुरु सकाश को माना जाता है। दिन की शुरुआत भी मधुविद्या एवं साष्टांग से होती है फिर भी पांचजन्य को प्रथम क्रिया कहा गया है। मधुविद्या एवं साष्टांग जीवन के मूल अंग है इसलिए उन्हें क्रिया के साथ नहीं जीवन के अंग के रूप में देखा जाता है।
गुरु सकाश
गुरु की छत्रछाया का अनुभव करना गुरु सकाश है। निंद्रा टुटते ही बिस्तर पर बैठकर गुरु के दर्शन करने का नाम गुरु सकाश है। इसमें एक मंत्र भी दिया गया है। उस मंत्र का मन ही मन उच्चारण कर गुरु के दर्शन किये जाते हैं। साथ में शपथ के वाक्य को भी स्मरण किया जाता है।
गुरु सकाश के द्वारा हम गुरुमुखी होने का सबूत अपने आप को सदैव देते हैं। भूलकर अथवा अचेतनता में भी अपने गुरु से अलग नहीं समझने के गुरु सकाश का नियमित अभ्यास जरुरी है। रात्रि सोने से पहले भी गुरु ध्यान करके सोना चाहिए तथा निंद्रा त्याग के तुरंत बाद गुरु सकाश से गुरु का सानिध्य, सारुप्य व सामिप्य इत्यादि मिलता रहता है। गुरु मनुष्य का निर्माण करते हैं तथा उसके दिशानिर्देशक है। गुरु को वराभय मुद्रा में पाता है। वर + अभय = वराभय। वरदान एवं अभयदान देने की मुद्रा वराभय कहलाता है। जिसमें एक हाथ से हमें शक्ति देते हैं तथा दूसरे हाथ हमारी कमजोरी को लेते हैं। इससे उनका बेटा निर्भय बनकर संसार में विचरण करता है। एक दूसरी मुद्रा जानुस्पर्श मुद्रा है। जानु को स्पर्श की हुई मुद्रा गुरु हमें गोद में उठाते हैं। एक छोटे बच्चे की भांति अपने उनसे चिपका कर रखते हैं।
पंचजन्य
प्रात:काल दिन की शुरुआत करने से पूर्व पंचजन्य करने की व्यवस्था है। यह दिन की शुरुआत की प्रथम क्रिया है। जिसमें प्रभात संगीत, कीर्तन, साधना, गुरु पूजा एवं साष्टांग नामक पांच क्रिया प्रातः पांच बजे की जाती है। बिस्तर त्याग कर दैनिक कार्य तक रात्रि की अंतिम क्रियाएँ है। लौकिक विचार स्नान तक अशुद्ध अवस्था बताई जाती है। लेकिन आध्यात्मिक दृष्टि कोई अशुद्ध अवस्था नहीं है। इसलिए पंचजन्य को दिन प्रथम क्रिया कह सकते हैं। पंचजन्य आध्यात्मिक क्रिया के साथ दिन की शुरुआत कराता है। प्रात:काल की साधना साधक व्यवस्था के अनुसार पंचजन्य के साथ अथवा बाद कर सकते हैं। प्रथम संध्या सूर्य उदय से 45 मिनट पहले से 45 मिनट बाद तक रहती है। प्रात:काल की साधना के लिए सबसे उपयुक्त समय इसे बताया गया है।
पंचजन्य श्री कृष्ण के शंख का नाम था। जिसने नवयुग का आह्वान व शुरुआत की थी। इसलिए आधुनिक युग में सभी की दिनचर्या की शुरुआत पंचजन्य से करने की व्यवस्था दी गई है। गुरु सकाश में चेतना की शुरुआत है।
गुरु सकाश का कोई समय निर्धारित नहीं है जबकि पंचजन्य का समय निश्चित है। गुरु सकाश दिनचर्या का अंग नहीं है जबकि पंचजन्य दिनचर्या का अंग है।
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श्री आनन्द किरण "देव"
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