विधि एवं शील
(rules and regulations)
विधि का अर्थ का अर्थ नियम तथा शील का व्यवहार है। मनुष्य में उच्च आध्यात्मिक एवं मानवीय गुणों के विकास के लिए विधि एवं शील का निर्धारण किया जाता है। आज के युग के मनुष्य के लिए 16 विधि तथा 15 शील मिले हुए हैं।
षोडश विधि
(Sixteen Point)
जल प्रयोग, मूत्र नली की त्वक, जोड़ो के बाल, लंगोट, व्यापक शौच, स्नान, आहर, उपवास, साधना, इष्ट, आदर्श, आचरण संहिता, धर्म चक्र, चरम निर्देश, शपथ एवं (आचरण, सेमिनार, कर्तव्य एवं कीर्तन) नामक षोडश विधि प्रदान है।
जल प्रयोग, मूत्र नली की त्वक, जोड़ो के बाल एवं लंगोट का सीधा संबंध लैगिक ग्रंथि से है। शारीरिक संयम रखने एवं अवांछित भावों से दूर रखने के लिए उक्त उपाय करने का विधान दिया गया है। व्यापक शौच, स्नान, आहर एवं उपवास नाम द्वितीय चार शरीर मन की शुद्धि के लिए है। प्रथम दो बाहरी तथा शेष आंतरिक शुद्धि के लिए है। साधना, इष्ट, आदर्श एवं आचरण संहिता मानसाध्यात्मिक विकास के लिए है। धर्म चक्र, चरम निर्देश, शपथ एवं (आचरण, सेमिनार, कर्तव्य एवं कीर्तन) आध्यात्मिक अनुशासन में वृद्धि के लिए मिले हैं। यदि मनुष्य लैगिक शक्ति का दुरूपयोग न करें, शरीर व मन को स्वच्छ एवं स्वस्थ रखे, मन एवं आत्मा की प्रगति पर ध्यान दें तथा आध्यात्मिक अनुशासन को मानकर चले तो मनुष्यत्व में देवत्व प्रकट होता है। प्रथम शर्म, द्वितीय कर्म, तृतीय मर्म तथा चतुर्थ धर्म है।
पंचदश शील
(Fifteen Sheel)
षोडश विधि मनुष्य को देवता बनाती है तो पंचदश शील देवताओं को भगवान बनाती है। शील शब्द का अर्थ वे सिद्धांत जो मनुष्य में शालीनता, अनुशासन एवं जिम्मेदारी के गुणों का विकास करें। शील शब्द का प्रयोग प्राचीन काल राग द्वेष के त्याग के रूप में हुआ था। महात्मा बुद्ध न यम को पंचशील के प्रदान किये। वही पंडित जवाहरलाल नेहरु ने दुनिया को राजनैतिक पंचशील प्रदान किये है।
श्री श्री आनन्दमूर्ति जी ने मानवता को पञ्चदश शील - 1.क्षमा, 2.मन की उदारता, 3.आचरण और मिजाज पर नियंत्रण, 4.आनन्द मार्ग (आदर्श) के लिए सब कुछ त्याग करने के लिए प्रस्तुत रहना, 5.सर्वोत्तम संयम, 6.मधुर और हँसमुख व्यवहार, 7.नैतिक साहस, 8. दूसरों को शिक्षा देने के पहले अपने जीवन में उसे कर दिखाना, 9. दूसरों की निन्दा करना, दूसरों पर कीचड़ उछालना तथा सभी प्रकार की दलबाजी से अलग रहना, 10.यम-नियम को कठोरता पूर्वक मानकर चलना, 11.असावधानीवश अन्याय हो जाने पर उसे तुरन्त स्वीकार कर लेना तथा दण्ड की याचना करना, 12. किसी के द्वारा शत्रु की तरह व्यवहार किये जाने पर भी, 13.उसके प्रति घृणा बोध और दम्भ भावना का त्याग करना, 14.अनुशासनिक नियमावली को मानकर चलना, 15.उत्तरदायित्व के बोध का परिचय देना हमें प्रदान किये है।
षोडश विधि एवं पंचदश शील के द्वारा आदर्श मनुष्यता के बीज का रोपण किया गया।
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