चरम निर्देश (supreme command)


मनुष्य को श्री श्री आनन्दमूर्ति जी की ओर चरम निर्देश प्राप्त हुआ है। जिसमें तीन निर्देश, एक विश्वास, एक गारंटी, एक कर्तव्य, एक चेतावनी, एक सावधानी तथा एक हिदायत भी मिली हुई है। 

                 तीन निर्देश

चरम निर्देश में मनुष्य को दोनों समय साधना करने, यम नियम का पालन करने तथा सत्पथ का निर्देशन करने के निर्देश मिले हैं। यह प्रत्येक आनन्द मार्गी एवं मनुष्य को अवश्य पालन करने है। 

                  एक विश्वास

चरम निर्देश में कहा गया कि निर्देश की पालना करने पर मृत्युकाल में परम पुरुष की भावना अवश्य ही जगेगी। 

                  एक गारंटी

चरम निर्देश में मुक्ति की गारंटी मिली है। इसलिए चरम निर्देश का पालन करना है। 

                  एक कर्तव्य

सभी मनुष्य को आनन्द मार्ग के पथ पर लाने की चेष्टा करने का कर्तव्य दिया गया। 

               एक चेतावनी

यम नियम के बिना साधना नहीं हो सकती है। ऐसे सावधानी अथवा चेतावनी भी दी गई है। 

                एक हिदायत

चरम निर्देश की अवहेलना करने का अर्थ है पशु जीवन के क्लेश में दग्ध होना है। 

                एक सावधानी

परम पुरुष स्नेह छाया में शास्वति शान्ति का लाभ मिलने के लिए है। सत्पथ का अनुसरण करने की सावधानी मिली हुई है। 

सत्पथ के निर्देशन को साधना का अंग बताया गया है। तथा यम नियम के बिना साधना नहीं हो सकती है। ऐसा एक अनिवार्य नियम भी बताया है। 

चरम निर्देश के अन्त में श्री श्री आनन्दमूर्ति जी अपने हस्ताक्षर देते हैं। अतः सीधा चरम निर्देश के वाक्य की जिम्मेदारी अपने हाथ में लेते हैं। 

यह निर्देश चरम इसलिए है कि‌ इससे खास अथवा उपर का कोई निर्देश नहीं है। इस निर्देश की कोई अपीलीय व्यवस्था नहीं है। अर्थात फाइनल आदेश है। 
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श्री आनन्द किरण "देव"
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