आनन्दानुष्ठान या आनन्दोत्सव (Anandanushthan OR Anandotslav)

आनन्दानुष्ठान या आनन्दोत्सव
एक ऐसा सामाजिक उत्सव का अनुष्ठान जिसके भीतर आनन्द भोग करने वाले प्रकारान्तर से व्यष्टि व समष्टि अपने शारीरिक, मानसिक तथा आध्यात्मिक उन्नति का सुयोग प्राप्त करें, उन्हें आनन्दानुष्ठान तथा उस उत्सव को आनन्दोत्सव कहा जाता है। आज युग के मानव के लिए वर्ष 8 आनन्दोत्सव एवं आनन्दानुष्ठान को स्वीकारा गया है। 

१. आनन्द पूर्णिमा - वैशाखी पूर्णिमा को आनन्द पूर्णिमा के रूप में मानाने की व्यवस्था मिली है। यह इसलिए नहीं कि इस दिन श्री श्री आनन्दमूर्ति जी का धरा पर आगमन हुआ था। अपितु एक वैज्ञानिक वित्तीय वर्ष के परिवर्तन की अवधारणा है। इस दिन किसान जो अर्थव्यवस्था की धुरी है। अपना नया वित्तीय वर्ष शुरू करता है। उसको आध्यात्मिक भावधारा से भरने एवं शारीरिक मानसिक व आध्यात्मिक उन्नति को सामूहिक ऊर्जा देने के लिए स्वीकृति मिली है। 

२. श्रावणी पूर्णिमा - शिक्षा जगत में नयी शुरुआत का यह पर्व श्रावणी पूर्णिमा के रूप में मनाया जाता था। आज युग में शिक्षा समाज निर्माण की धुरी है, इसलिए श्रावणी पूर्णिमा को आनन्द से भरने के लिए एक सामाजिक उत्सव की स्वीकृति मिली है। शिक्षा में आध्यात्मिक मूल्यों का प्रवेश करने के लिए इसका आनन्दोत्सव में स्थान मिला है। न कि कालीचरण को दीक्षा दान की याद दिलाने के लिए। 

३. शरदोत्सव - अश्विन शुक्ल षष्ठी से अश्विन शुक्ल दशमी तक क्रमशः शिशु दिवस, साधारण दिवस, ललित कला दिवस, संगीत दिवस तथा विजयोत्सव के रूप में शरदोत्सव मनाने की व्यवस्था है। मनुष्य शारीरिक, मानसिक व आध्यात्मिक जीवन में नव परिवर्तन का संकेताक्षर यह पर्व है। 

४. दीपावली - कार्तिक अमावस्या को दीपावली मनाने की व्यवस्था अंधकार से आलोक की स्मृति बनाये रखने के लिए आनन्दोत्सव के रूप में प्रदान है। 

५. भ्राता द्वितीया - कार्तिक शुक्ल द्वितीया को भातृत्व को समर्पित करने के व्यवस्था है। सभी बहिन भाई में स्नेह, ममत्व व आदर का प्रकाश के लिए इसका आनन्दानुष्ठान किया गया है। 

६. नवान्न - फसल कट कर घर आने वाली पूर्णिमाओं को नवान्न दिवस घोषित किया गया है। यह खाद्य में नवीनता लाने की व्यवस्था है। अर्थात मौसम के अनुसार स्थानीय पैदावार के अनाज भोजन का अंग बनाना, एक प्रकार अनाज वर्ष भर नहीं खाना की सूचना देने वाला पर्व है। 

७. नववर्ष - आन्तर्जातिक पंजिका के प्रथम दिन तथा स्थानीय वर्ष पंजी के प्रथम दिवस को बिना राग द्वेष के आनन्दानुष्ठान में सम्मिलित किया गया है। प्रथम जनवरी तथा वर्ष प्रतिपदा इत्यादि। 

८. बंसन्तोत्सव - फाल्गुन पूर्णिमा को जीवन बंसन्त की खुशी उल्लास में शारीरिक, मानसिक एवं आध्यात्मिक उन्नति को भरने के लिए आनन्दानुष्ठान में बदलने की स्वीकृति मिली है। 

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नीलकंठ दिवस 12 फरवरी तथा 5 मार्च दधीचि दिवस दोनों संकल्प सिद्धि दिवस है। प्रथम में अन्याय शक्ति को निस्तेज करने तथा द्वितीय में आत्मोत्सर्ग को सम्मान देने के लिए स्वीकृति मिली है।
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